Book Title: Yogashastram Part_2
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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पुव्वदिसि देवरमणो निच्चुज्जोओ अ दाहिणदिसाए । अवरदिसाए सयंपभ रमणिज्जो उत्तरे पासे ॥४॥ अंजणयाण चउदिसि जोयणलक्खम्मि लक्खविखंभा। पुस्खरिणीउ सहस्सोवेहा निम्मच्छसच्छजला ॥५॥ नंदिसेणा १ अमोहा य २ गोत्थुभा य ३ सुदंसणा ४ । नंदुत्तरा य १ नंदा २ मुनंदा ३ नंदिवद्धणा ४ ॥ ६ ॥ भद्दा १ विसाला २ कुमुया ३ बारसी पुंडरिंगिणी ४ । विजया १ वेजयंती य २ जयंती ३ अपराजिया ४ ॥ ७॥ पुव्वाइकमा नामा पुक्खरिणीणं तओ अ पंच सए।
गंतूण लक्खदीहा वणसंडा पंचसयपिहुला ॥ ८॥ १ नंदवद्धणा-शां.॥ २ पुंडरीगिणी-मु.॥ ३ विजयंती-संपू.॥ * पूर्वदिशि देवरमणो नित्योद्योतश्च दक्षिणदिशि। अपरदिशि स्वयंप्रभो रमणीय उत्तरे पार्थे ॥४॥ अञ्जनकानां चतुर्दिक्षु योजनलले लक्षविष्कम्भाः। पुष्करिण्यः सहस्रोद्वेधा निर्मत्स्यस्वच्छजलाः ॥५॥ नन्दिषेणा अमोघा च गोस्तूपा च सुदर्शना। नन्दोत्तरा च नन्दा सुनन्दा नन्दिवर्धना ॥६॥ भद्रा विशाला कुमुदा द्वादशी पुण्डरीकिणी। विजया वैजयन्ती च जयन्ती अपराजिता ॥७॥ पूर्वादिक्रमात् पुष्करिणीनां ततश्च पश्च शतानि। गत्वा लक्षदीर्घा वनखण्डाः पञ्चशतपृथुलाः ॥ ८ ॥
॥ ९३१॥
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