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वक्तव्य.
आत्मानी गुफारूप अंतःकरणमां दिव्य ज्ञान अति सूक्ष्म छतां दिगंतगामी शक्तिवाला अनुभवाय छे, अने สี महापुरुषोनी वाणी अने लेखिनीवडे काव्यरूपे बहार प्रगट थइ अन्यने आनंदरसना सागररूप बने छे के जेना श्रवणमननथी धर्म, भक्ति, नीति अने व्यवहारनी शुद्ध भावनाओ प्रगट थाय छे.
आ श्री वीतराग - महादेव - स्तोत्र पण तेवुं ज परमात्मा परत्वे भक्ति उत्पन्न करावनार, महामंगलवारी अने वीतरागदेवनी स्तुतिरूपे छे. आ स्तोत्रना कर्त्ता कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य महाराजे पोतानी असाधारण प्रति भाथी परमात्मानी स्तुतिरूपे अलंकृत करेल छे, जे वीश प्रकाशमां पूर्ण करेल छे. के जे भक्ति निमित्ते पोतानो अनुभव श्री परमात्मा सन्मुख प्रकट करी पोताना आत्माने निर्मल बनावी रह्या छे.
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आ स्तुति तो खास जीवदया प्रतिपाल श्री कुमारपाल भूपालना निमिते ज आचार्य महाराजे रचेल छे, के ते राजेन्द्र प्रातःकालमां निरंतर पाठ करी पछी अन्न-पाणी लेता हता. आ स्तोत्रना प्रत्येक प्रकाशमां प्रभुना अतिशयोनुं वर्णन, जगत्कर्तृत्व मिमांसा, अनेकांतवादनी विशिष्टता आत्मनिंदा तीर्थंकर नामकर्मथो उत्पन्न थयेल लब्धिओनुं वर्णन, वगेरे छे ते योगी पुरुषोने वारंवार मननीय अने ध्यान करवा लायक होइ प्रभुभक्तिनो अखूट झरो आ स्तुतिमांथी बहे छे तेम भाविकजनो माने छे.
आवो भक्ति रस उत्पन्न करनार आ स्तुतिरूप स्तोत्र मूल संस्कृत भाषामा आ सभा तरफथो श्री जैन आत्मानंद शता
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