________________ * * * * * * * * * * जैन धर्म-दर्शन का इनसाइक्लोपीडिया श्री विशेषावश्यक भाष्य धर्म, दर्शन और तत्वविद्या का एक कालजयी ग्रन्थ है। इस * महाभाष्य की आधारभित्ति आवश्यक सूत्र का प्रथम अध्ययन 'सामायिक' है। आवश्यक सूत्र के आध्यात्मिक रहस्य को प्रकट करने के लिए लगभग 1500 वर्ष पूर्व आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने * इस आगम पर नियुक्ति को रचना की थी। इस नियुक्ति के महात्म्य को देखते हुये लगभग एक शती / * पश्चात् जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने इस पर भाष्य लिखा। उस युग में इस भाष्य को पर्याप्त ख्याति प्राप्त * * हुई। भाष्य रचना के लगभग 500 वर्ष पश्चात् आचार्य मलधारी हेमचन्द्र ने इस ग्रन्थ पर 28000 श्लोक * प्रमाण शिष्यहिता नामक बृहद् वृत्ति की रचना की। इस प्रकार आवश्यक सूत्र के प्रथम अध्ययन पर * * लिखा गया यह सर्वाधिक बृहद् ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में न केवल जैन धर्म और जैन दर्शन का व्याख्यान * हुआ है बल्कि विभिन्न जैनेतर दार्शनिक मत-मतान्तरों का भी इसमें पर्याप्त प्रकाशन हुआ है। आगम * साहित्य में प्राप्त प्रायः अधिकांश विषय इस महाभाष्य में कहीं संक्षिप्त तो कहीं विशद शैली में * प्रकाशित हुये हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस ग्रन्थ का पाठक सम्पूर्ण आगम-आराम के विहार का शीतल सुरम्य स्वाद अपने अनुभव में उतार सकता है। आवश्यक नियुक्ति और उसके आधार पर रचित विशेषावश्यक भाष्य की महत्ता को विगत * सहस्राब्दी के प्रायः सभी मूर्धन्य मनीषी विद्वानों ने एक स्वर से स्वीकार किया है। यही कारण है कि * वर्तमान मनीषियों में भी विशेषावश्यक भाष्य का पठन, अनुवादन एवं व्याख्यान सर्वाधिक आकर्षण * का विषय बना हुआ है। प्राचीन साहित्य, संस्कृति एवं शिल्प के प्रति अपनी स्वाभाविक रुचि के * *कारण मैं स्वयं भी इस ग्रन्थराज के प्रति विशेष रूप से आकर्षित रहा हूँ। संस्कृत और प्राकृत भाषा में * विशेष गति न होने के कारण इस ग्रन्थ का व्यवस्थित अध्ययन तो मैं नहीं कर पाया, पर अधिकारी * विद्वानों एवं पूज्य मुनिराजों के सान्निध्य में बैठकर इस ग्रन्थ के हार्द को समझने-जानने का प्रयत्न * * अवश्य करता रहता हूँ। विगत कुछ वर्षों से मैं आचार्य प्रवर पूज्य श्री सुभद्रमुनि जी महाराज के निकट सान्निध्य का * * पुण्य लाभ प्राप्त करता रहा हूँ। सन् 2008 में श्रद्धेय आचार्य श्री के बड़ौत वर्षावास में उनके पर्याप्त * सान्निध्य का अवसर प्राप्त हुआ। उस अवधि में पूज्य आचार्य श्री विशेषावश्यक भाष्य के अनुवाद में * * संलग्न थे। आचार्य श्री के स्नेह आशीष से मुझे भी अपनी ज्ञान-पिपासा की संतृप्ति का अवसर मिला। * विशेषावश्यक भाष्य में प्रतिपादित धर्म और दर्शन के स्वरूप को मैंने आचार्य श्री से पूछा, सुना और समझा। अंततः मैंने जाना कि यह ग्रन्थराज जैन धर्म, दर्शन और तत्वविद्या का इनसाइक्लोपीडिया है। . 21वीं सदी के आगमज्ञ मनीषी मुनिराजों की श्रेणी में पूज्य आचार्य श्री की अपनी पहचान है। ******************* [7] *******************