Book Title: Visheshavashyak Bhashya Part 01 Author(s): Subhadramuni, Damodar Shastri Publisher: Muni Mayaram Samodhi Prakashan View full book textPage 9
________________ एक भागीरथ प्रयास बत्तीस आगमों में आवश्यक सूत्र का प्रमुख स्थान है। इस आगम में जैन साधक के लिए * * आवश्यक रूप से करणीय क्रियाओं / साधनाओं का संकलन है। साधना की सफलता और दैनिक * आत्म-शुद्धि के लिए वैदिकों में सान्ध्यकर्म, ईसाईयों में प्रार्थना, बौद्धों में उपासना एवं मुस्लिमों में * नमाज का जो स्थान है वही स्थान जैन परम्परा में आवश्यक-आराधना का है। सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, * * वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान ये छह सोपान आवश्यक के अंग हैं। इन्हें ही षडावश्यक * * कहा जाता है। प्रत्येक श्रमण और श्रावक प्रतिदिन दोनों सन्ध्याओं में आवश्यक रूपी दर्पण में स्वयं * का अवलोकन करता है। राग और द्वेष के दुर्भावों से मुक्त होकर, देव एवं गुरु के प्रति प्रार्थना व * वन्दन के भावों से युक्त होकर साधक आत्मदर्शन करता है। आत्मदर्शन की अन्तर्यात्रा में वह देखता * है कि साधना-पथ पर उसने कितनी प्रगति की है, आत्मशुद्धि के वे कौन-कौन से अनुष्ठान हैं जिनकी . वह आराधना नहीं कर पाया है, एवं साधना-मार्ग पर वह कहां-कहां स्खलित हुआ है। आवश्यक* आराधना की वेला में वह स्खलनाओं से उत्पन्न दोषों का आत्म-आलोचना, आत्म-निन्दना एवं * आत्म-गर्हा द्वारा प्रक्षालन करता है। पुनः स्खलना न हो उसके लिए वह काया के ममत्व से मुक्त होकर ध्यान कोष्ठक (कायोत्सर्ग) में प्रवेश लेता है तथा आवश्यक के अंतिम चरण प्रत्याख्यान द्वारा * आश्रव-द्वारों पर प्रतिबंध लगाता है। शेष आगमों की स्वाध्याय कदाचित् प्रतिदिन न हो पाए तो साधना बाधित नहीं होती है, परन्तु आवश्यक सूत्र की आराधना किसी एक संध्या में भी बाधित हो जाए तो साधक साधना-पथ से भटक * जाता है। साधक स्वस्थ हो या रुग्ण, उसके लिए दोनों सन्ध्याओं में आवश्यक की आराधना अनिवार्य है। इसीलिये आवश्यक सूत्र का बत्तीस आगमों में प्राधान्य है। * आवश्यक सूत्र के इसी प्राधान्य के कारण श्रमण-परम्परा के प्रायः सभी मनीषी मुनियों ने इस आगम पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया। प्राचीनकाल से ही इस आगम पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, * विवरणिका आदि के रूप में प्रभूत साहित्य की रचना हुई है। लगभग 1600 वर्ष पूर्व सर्वप्रथम आगम* साहित्य को पुस्तकारूढ़, किया गया। इससे आगम साहित्य के स्वरूप में एकरूपता एवं स्थायित्व * आया। क्योंकि आगम साहित्य के मूल पद सूत्र रूप में थे इसलिये साधारण बुद्धि वाले साधकों के लिए उनके मौलिक अर्थों को समझ पाना आसान नहीं था। इसी तथ्य को लक्ष्य में रखते हुये विद्वान मुनिराजों * ने सूत्र रूप आगमों के सरलीकरण के लिए उनकी व्याख्याओं का लेखन शुरू किया। . आगम पदों के रहस्यों को प्रकट करने वाला सर्वाधिक पुराना साहित्य नियुक्ति साहित्य के रूप * में प्राप्त होता है। सूत्र के मौलिक अर्थ को प्रकट करने वाली व्याख्यान-पद्धति को नियुक्ति कहा जाता है। * * नियुक्तिकारों में आचार्य भद्रबाहु द्वितीय (वि. की 5-6 शती) का नाम प्राथमिकता और प्रधानता से लिया * जाता है। उन्होंने लगभग दस आगमों पर नियुक्तियों का लेखन किया। इनमें से सर्वप्रथम आवश्यक सूत्र * पर बृहद् नियुक्ति की रचना की जिसमें 1600 से अधिक गाथाएं हैं। आवश्यक नियुक्ति में आवश्यक * * सूत्र के छह अध्ययनों के साथ-साथ अन्य अनेक विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। शेष आगमों * * पर अपेक्षाकृत संक्षिप्त नियुक्तियां हैं और जो विषय आवश्यक सूत्र की नियुक्ति में प्रकाशित किए जा चुके ******************* [5] *******************Page Navigation
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