Book Title: Vikram Pushpanjali Author(s): Kalidas Mahakavi Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ चरैवेति-चरैवेति गान [ लेखक - श्री वासुदेवशरण ] ऐतरेय ब्राह्मण के इस सुंदर गीत में इंद्र ने हरिश्चंद्र के पुत्र रोहित को सदा चलते रहने की शिक्षा दी है। इंद्र को यह शिक्षा किसी ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण प्राप्त हुई थी। ( १ ) चरैवेति चरैवेति नानाश्रान्ताय श्रीरस्ति इति रोहित शुश्रुम । पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरतः सखा ॥ चरैवेति, चरैवेति । हे रोहित, सुनते हैं कि श्रम से जो नहीं थका, ऐसे पुरुष को श्री नहीं पाप घर दबाता है। इंद्र उसी का मित्र है, इसलिये चलते रहो, चलते रहो । मिलती । बैठे हुए आदमी को जो बराबर चलता रहता है। ( २ ) पुष्पिण्यौ चरतो जंघे भूष्णुरात्मा फलग्रहिः । शेरेऽस्य सर्वे पाप्मानः श्रमेण प्रपथे हताः ॥ चरैवेति, चरैवेति । जो पुरुष चलता रहता है, उसकी जाँघों में फूल फूलते हैं, उसकी आत्मा चलनेवाले के पाप थककर सोए रहते हैं । भूषित होकर फल प्राप्त करती है । इसलिये चलते रहो, चलते रहो । ( ३ ) आस्ते भग आसीनस्य ऊर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः । शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगः ॥ चरैवेति, चरैवेति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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