Book Title: Vikram Pushpanjali Author(s): Kalidas Mahakavi Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 7
________________ भारत-वंदना ६२. [विष्णुपुराण से] मन्वादि राजर्षि अपने किसी सुख के लिये भारतवर्ष के अनुरागो न थे। शिबि और दिलीप जिस कारण से भारतवर्ष को प्रेम करते थे वे इस भूमि के सत्य और धर्म के आदर्श हैं जिनको जीवन में प्रत्यक्ष करना उनका दृढ़ व्रत और पराक्रम था। इन पुण्य आदर्शों की जिस भूमि में प्रतिष्ठा हुई वह भूमि स्वर्ग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति का साधन समझी गई। इसी भाव के ध्यान से गद्गद होकर विष्णु-पुराण के लेखक ने स्वर्ग के पद से भी भारतवर्ष के पद को ऊँचा उठा दिया हैगायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते ____ भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥ [विष्णु० २।३।२४] "सुना है कि देवता भी स्वर्ग में यह गीत गाते हैं-'धन्य हैं वे लोग जो भारत-भूमि में उत्पन्न हुए हैं। वह भूमि स्वर्ग से भी विशिष्ट है, क्योंकि वहाँ स्वर्ग और मोक्ष दोनों की साधना की जा सकती है। जो देवत्व भोग चुकते हैं वे मोक्ष के लिये पुनः भारतवर्ष में जन्म लेते हैं, जहाँ के आदर्श अपवर्ग की प्राप्ति में कारणभूत हैं।" [यजुर्वेद से ] • ऊपर जिस आदर्श-संस्कृति की कल्पना की गई है उसका चित्र यजुर्वद के इस आब्रह्मन् सूक्त में प्राप्त होता है श्राब्रह्मन् ! ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम् । श्राराष्ट्र राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायताम् । दोग्नी धेनु:, वोढानड़वान् , अाशुः सप्तिः, पुरन्धिर्योषा; जिष्णूरथेष्ठाः, सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम् । निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु । फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम् । योगक्षेमो नः कल्पताम् । [यजु० २२।२२] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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