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'सु' होता है। (देव + सुप्) - (देव + सु) - देवेसु (सप्तमी बहुवचन) 1. सूत्र 5/12 से मूलशब्द के अन्त्य 'अ' का 'ए' हआ है।
11. जश्शस्ङस्यांसु दीर्घः 5/11
जश्शस्ङस्यांसु दीर्घः { (जस्) + (शस्) + (ङसि) + (आंसु) } दीर्घः { (जस्) + (शस्) + (ङसि) + (आम्) 7/3 } दीर्घः (दीर्घ) 1/1 जस् , शस् , ङसि , आम् परे होने पर 'दीर्घ' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे 'जस्' (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), 'शस्' (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय), 'ङसि' (पंचमी एकवचन का प्रत्यय), 'आम्' (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य अ का 'दीर्घ' होता है। (देव + जस्) - (देव + '0') : देवा (प्रथमा बहुवचन) (देव + शस्) : (देव + '0') : देवा (द्वितीया बहुवचन). (देव + ङसि) - (देव + आ,दो,दु,हि) - देवा, देवादो, देवादु, देवाहि
(पंचमी एकवचन) (देव + आम्) - (देव + ण) : देवाण (षष्ठी बहुवचन)
12. ए च सुप्यङिङसोः 5/12
ए च सुप्यङिङसोः ए च { (सुपि) + (अ) + (ङि) + (ङसोः) } ए (ए) 1/1 च - और सुपि (सुप्) 7/1 अ- नहीं {(ङि) - (डस्) 7/2} सुप् परे होने पर 'ए' (होता है) और (दीर्घ भी होता है) ङि, ङस् परे होने पर नहीं। सुप् (सु से सुप् तक विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर अकारान्त शब्दों के अन्तिम 'अ' के स्थान पर 'ए' होता है और (5/11 से दीर्घ होने के पश्चात बचे हुए पंचमी बहुवचन में ) दीर्घ भी होता है परन्तु ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) और ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर एत्व या दीर्घ नहीं होता। (देव + शस्) : (देव + '0') : देवे (द्वितीया बहुवचन) (देव + टा) : (देव + ण) : देवेण (तृतीया एकवचन) (देव + भिस्) : (देव + हिं) : देवेहिं (तृतीया बहुवचन)
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वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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