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इन पाँच प्रसिद्ध व्याख्याओं के अतिरिक्त इसकी दो और संस्कृत व्याख्याएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से एक है रामपाणिवाद की 'प्राकृतवृत्ति' और दूसरी नारायण विद्याविनोद की 'प्राकृतदीपिका'। इन व्याख्याओं के अतिरिक्त बंगला, गुजराती आदि अन्य भाषाओं में भी इसकी व्याख्याएँ की गई हैं। इससे पता चलता है कि प्राकृत अध्ययन के क्षेत्र में 'प्राकृतप्रकाश' अत्यन्त महत्वपूर्ण रचना रही।
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वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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