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वररुचिप्राकृतप्रकाश
(भाग - 1)
डॉ. कमलचन्द सोगाणी श्रीमती सीमा ढींगरा
णाणुज्जीवो जोवो जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी
अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
राजस्थान
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वररुचिप्राकृतप्रकाश (संज्ञा व सर्वनाम सूत्र विश्लेषण)
(भाग - 1)
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
(निदेशक). श्रीमती सीमा ढींगरा
(सहायक निदेशक) अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जयपुर
LETE
णायुज्जीमा जीबी जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
___जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
राजस्थान
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Page #3
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प्रकाशक
अपभ्रंश साहित्य अकादमी,
जैनविद्या संस्थान,
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी, श्रीमहावीरजी - 322 220 ( राजस्थान )
• प्राप्ति - स्थान
1. जैनविद्या संस्थान, श्री महावीरजी
2. अपभ्रंश साहित्य अकादमी, दिगम्बर जैन नसियां भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड,
जयपुर - 302 004
• प्रथम बार, 2010
• मूल्य 150 /- रुपये
• पृष्ठ संयोजन
श्याम अग्रवाल,
ए - 336, मालवीय नगर, जयपुर, 9887223674
मुद्रक जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि., एम. आई. रोड, जयपुर - 302 001
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Page #4
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पाठ विषय
संख्या
1.
2.
3.
प्रकाशकीय
सूत्र - विवेचन
संज्ञा - प्रकरण
सर्वनाम-प्रकरण
शौरसेनी प्राकृत सम्बन्धी सूत्र
अनुक्रमणिका
संज्ञा - शब्दरूप
पुल्लिंग शब्द - देव, हरि, गामणी, साहु, सयंभू नपुंसकलिंग शब्द स्त्रीलिंग शब्द कहा, मइ, लच्छी, धेणु, बहू
कमल, वारि, महु
अतिरिक्त रूप
तीनों लिंगों में तीनों लिंगों में
सर्वनाम - शब्दरूप
पुल्लिंग शब्द... नपुंसकलिंग शब्द
स्त्रीलिंग शब्द
-
-
-
-
पृष्ठ संख्या
49-58
50
52
54
पिअर, पिउ, राअ, अप्प, अप्पाण 56
अम्ह
तुम्ह
1-48
9
27
47
सव्व, त, ज, क, एत, इम, अमु
सव्व, त, ज, क, एत, इम, अमु सव्वा, ता, ती, जा, जी, का, की,
एता, इमा, अमु
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59-72
59
63
66
71
72
Page #5
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पाठ विषय
संख्या
परिशिष्ट -1 प्राकृतप्रकाश की टीकाएँ
परिशिष्ट -2 सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि-नियम
परिशिष्ट - 3 सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण सहायक पुस्तकें एवं कोश
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पृष्ठ संख्या
73
75
78
118
Page #6
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प्रकाशकीय
‘वररुचिप्राकृतप्रकाश' प्राकृत अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है ।
प्राकृत भाषा जन साधारण की भाषा के रूप में प्राचीन समय से ही विकास को प्राप्त होती रही है। भगवान महावीर ने इसी जन - भाषा 'प्राकृत' को अपने उपदेशों का माध्यम बनाया। जन सामान्य की यही भाषा कुछ समय बाद साहित्यिक भाषा के रूप में हमारे सामने आई । प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश के रूप में विकसित होती हुई हिन्दी एवं प्रादेशिक भाषाओं का स्रोत बनी।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन में प्राकृत का अध्ययन आवश्यक है। प्राकृत भाषा का सम्बन्ध भारतीय आर्यभाषा के सभी कालों से रहा है । प्राकृत के अध्ययन के बिना आधुनिक आर्यभाषाओं की चर्चा पूर्ण नहीं हो सकती। किसी भी भाषा को सीखने-समझने के लिए उसके व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है ।
भाषाज्ञान की दृष्टि से वररुचि का 'प्राकृतप्रकाश' बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । ईसा की तृतीय - चतुर्थ शताब्दी में रचित इस ग्रन्थ का प्राकृत अध्ययन के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है। प्राकृत व्याकरण के उपलब्ध ग्रन्थों में वररुचि का 'प्राकृतप्रकाश' असन्दिग्ध रूप से प्राचीन है। इसमें प्राकृत व्याकरण के सूत्र संस्कृत भाषा में रचित हैं प्राकृत के विविध नियमों का विस्तृत विवेचन होने के कारण इस ग्रन्थ का विद्वत् जगत में काफी प्रचार एवं प्रसार हुआ है । अपनी रचनाशैली की सहजता और व्यापकता के कारण यह ग्रन्थ अपने रचनाकाल से ही काफी लोकप्रिय रहा है। प्राकृत भाषा के अध्ययन के लिए इस ग्रन्थ का महत्व असंदिग्ध है । इसके महत्व और आवश्यकता को देखते हुए ही विभिन्न कालों में इसकी अनेक टीकाएँ लिखी
गईं।
इसमें बारह परिच्छेद हैं। पाँचवें व छठे परिच्छेद में क्रमशः संज्ञा व सर्वनाम के सूत्र हैं। प्रस्तुत पुस्तक में प्राकृत व्याकरण के इन्हीं संज्ञा व सर्वनाम के सूत्रों
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का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। सूत्रों का विश्लेषण एक ऐसी शैली से किया गया है जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही सूत्रों को समझ सकेंगे। __दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। वर्तमान में इसके माध्यम से प्राकृत व अपभ्रंश का अध्यापन पत्राचार के माध यम से किया जाता है। प्राकृत भाषा के सीखने-समझने. को ध्यान में रखकर ही 'प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। प्रस्तुतं पुस्तक भी प्राकृत अध्ययनार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ऐसा हमारा विश्वास
पुस्तक प्रकाशन के लिए अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती सीमा ढींगरा के आभारी हैं जिन्होंने सूत्र-विश्लेषण के कार्य में अत्यन्त रुचिपूर्वक सहयोग दिया। पृष्ठ संयोजन के लिए श्री श्याम अग्रवाल एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स धन्यवादाह हैं।
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति
नरेशकुमार सेठी प्रकाशचन्द्र जैन अध्यक्ष
मंत्री . प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
माघशुक्ल पंचमी आचार्य कुन्दकुन्द जन्मदिवस वीर निर्वाण संवत् 2536
20. 01. 2010
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पाठ - 1 संज्ञा, सर्वनाम, संख्यावाची शब्द-सूत्र-विवेचन
भूमिका
वररुचि ने तृतीय-चतुर्थ शताब्दी में प्राकृतप्रकाश की रचना की जो प्राकृत का सर्वाधिक लोकप्रिय व्याकरण ग्रंथ है। उन्होंने इसकी रचना संस्कृत भाषा के माध्यम से की। प्राकृत व्याकरण को समझाने के लिए संस्कृत-व्याकरण की पद्धति के अनुरूप संस्कृत भाषा में सूत्र लिखे गये। किन्तु सूत्रों का आधार संस्कृत भाषा होने के कारण यह नहीं समझा जाना चाहिए कि प्राकृत व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत के विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता है। संस्कृत के बहुत ही सामान्यज्ञान से सूत्र समझे जा सकते हैं। हिन्दी, अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा का व्याकरणात्मक ज्ञान भी प्राकृत-व्याकरण को समझने में सहायक हो सकता है। ... अगले पृष्ठों में हम प्राकृत-व्याकरण के संज्ञा, सर्वनाम, संख्यावाची शब्दों के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं। सूत्रों को समझने के लिए स्वरसन्धि, व्यंजनसन्धि तथा विसर्गसन्धि के सामान्य-ज्ञान की आवश्यकता है। साथ ही संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों का ज्ञान भी होना चाहिए तथा उनके विभिन्न विभक्तियों में रूप समझे जाने चाहिए। प्राकृत में केवल दो ही वचन होते हैं - एकवचन तथा बहुवचन। अतः दो ही वचनों के संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों को समझना आवश्यक है। ये प्रत्यय-संकेत निम्न प्रकार हैं
विभक्ति एकवचन के प्रत्यय बहुवचन के प्रत्यय प्रथमा ... सु. ..
जस् द्वितीया अम् तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी
आम् सप्तमी . ङि * सन्धि के नियमों के लिए परिशिष्ट-2 देखें। वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
शस्
is thy
ङस् .
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· इनमें से - (1) ङसि और ङि के रूप हरि की तरह चलेंगे। जैसे 'सि' का सप्तमी एकवचन
में 'ङसौ' रूप बनेगा, तृतीया एकवचन में 'डसिना' रूप बनेगा। इसी प्रकार
दूसरे रूप भी समझ लेने चाहिए। (2) अम्, जस्, शस्, भिस्, भ्यस्, आम् और सुप् आदि के रूप हलन्त शब्द
भूभृत् की तरह चलेंगे। जैसे भिस् का सप्तमी एकवचन में रूप बनेगा 'भिसि', . 'अम्' का प्रथमा एकवचन में रूप बनेगा 'अम्', 'ङसि' का षष्ठी एकवचन
में रूप बनेगा 'डसेः'। इसी प्रकार दूसरे रूप भी समझ लेने चाहिए। (3) 'टा' के रूप ‘गोपा' की तरह चलेंगे। जैसे 'टा' का सप्तमी एकवचन में 'टि'
रूप बनेगा, षष्ठी एकवचन में 'ट:' रूप बनेगा, तृतीया एकवचन में 'टा' बनेगा। इसी प्रकार दूसरे रूप बना लेने चाहिए। उत्-उ, ओत्-ओ, एत्→ए, इत्-इ, आत्→आ आदि हलन्त शब्दों के रूप भी 'भूभृत्' की तरह चलेंगे। 'लुक्' शब्द के रूप भी इसी प्रकार चलेंगे। इनके अतिरिक्त कुछ दूसरे शब्द सूत्रों में प्रयुक्त हुए हैं। उन शब्दों के रूप कहीं 'राम" की तरह, कहीं 'स्त्री' की तरह, कहीं 'गुरु' की तरह, कहीं 'मातृ' की तरह, कहीं 'राजन् की तरह, कहीं 'आत्मन् की तरह, कहीं 'पितृ' की तरह चलेंगे। इसी तरह शेष शब्दों के रूपों को संस्कृत व्याकरण से समझ लेना चाहिए। सूत्रों को पाँच सोपानों में समझाया गया है - (1) सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि विच्छेद किया गया है, (2) सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियाँ लिखी गई हैं, (3) सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, (4) सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा (5) सूत्रों के प्रयोग लिखे गए हैं।
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1) |
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अगले पृष्ठों में संज्ञा, सर्वनाम एवं संख्यावाची शब्दों से सम्बन्धित सूत्र दिए गये हैं। इन सूत्रों से निम्नलिखित संज्ञा शब्द, सव्व आदि सर्वनाम शब्द और संख्यावाची शब्दों के रूप निर्मित हो सकेंगे
(क) पुल्लिंग शब्द - देव, हरि, गामणी, साहु, सयंभू। (ख) नपुंसकलिंग शब्द - कमल, वारि, महु। (ग) स्त्रीलिंग शब्द - कहा, मइ, लच्छी, घेणु, बहू। इन रूपों के अतिरिक्त कुछ दूसरे शब्द-रूपों को भी सूत्रों में समझाया गया है।
सूत्रों को समझाते समय कुछ गणितीय चिह्नों का प्रयोग किया गया है जिन्हें संकेत-सूची में समझाया गया है। 1. हरि शब्द
द्विवचन
बहुवचन प्रथमा हरिः
हरयः द्वितीया
हरीन् तृतीया हरिणा • हरिभ्याम् । हरिभिः चतुर्थी हरये हरिभ्याम् हरिभ्यः पंचमी । हरेः
हरिभ्याम्
हरिभ्यः षष्ठी हरेः
होः हरीणाम् सप्तमी . . हरौ होः हरिषु संबोधन . हे हरे . हे हरी हे हरयः
एकवचन
हरी
हरिम्
हरी
2. भूभृत् शब्द
एकवचनं
द्विवचन
भूभृत्
भूभृतौ
प्रथमा द्वितीया तृतीया
भूभृतम् भूभृता
बहुवचन भूभृतः भूभृतः भूभृद्भिः भूभृद्भ्यः भूभृद्भ्यः भूभृताम्
चतुर्थी
भूभृतौ भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृतोः
भूभृते
पंचमी षष्ठी
भूभृतः भूभृतः
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. भूभृत्सु
सप्तमी संबोधन
भूभृति हे भूभृत्
भूभृतोः हे भूभृतौ
हे भूभृतः
3. गोपा शब्द
एकवचन गोपाः
द्विवचन गोपौ
प्रथमा
द्वितीया
गोपाम्
गोपी
तृतीया
गोपा
बहुवचन गोपाः गोपः गोपाभिः गोपाभ्यः ।
गोपाभ्यः ___ गोपाम्
चतुर्थी
गोपाभ्याम् गोपाभ्याम् गोपाभ्याम् गोपोः
गोपे
पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन
गोपः गोपः गोपि हे गोपाः
गोपोः
गोपासु
हे गोपौ
हे गोपाः
4. राम शब्द
एकवचन
.
द्विवचन रामौ
बहुवचन रामाः
प्रथमा
रामः
द्वितीया
रामम्
रामौ
रामान्
तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन
रामेण रामाय रामात् रामस्य
रामाभ्याम् रामाभ्याम् रामाभ्याम् रामयोः रामयोः हे रामौ
रामैः रामेभ्यः रामेभ्यः रामाणाम् रामेषु हे रामाः
रामे
हे राम
5. स्त्री शब्द
प्रथमा
भी
द्वितीया
एकवचन द्विवचन
स्त्रियौ स्त्रियम्, स्त्रीम् स्त्रियौ स्त्रिया स्त्रीभ्याम्
बहुवचन स्त्रियः स्त्रियः, स्त्रीः स्त्रीभिः
तृतीया
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चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी सप्तमी संबोधन
स्त्रियै स्त्रियाः स्त्रियाः स्त्रियाम् हे स्त्रि
स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्याम् स्त्रियोः स्त्रियोः हे स्त्रियौ
स्त्रीभ्यः स्त्रीभ्यः स्त्रीणाम् स्त्रीषु हे स्त्रियः
6. गुरु शब्द
एकवचन
द्विवचन
गुरुः
गुरू
गुरू
गुरुम् गुरुणा
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन
गुरुभ्याम् गुरुभ्याम् गुरुभ्याम्
बहुवचन गुरवः गुरून् गुरुभिः गुरुभ्यः गुरुभ्यः गुरूणाम् गुरुषु हे गुरवः
गुरोः
गुर्वोः
गुर्वोः
हे गुरो
'
हे गुरू
।
7. मातृ (माता)
एकवचन प्रथमा माता द्वितीया । मातरम् तृतीया मात्रा .. चतुर्थी. . मात्रे पंचमी . मातुः षष्ठी मातुः सप्तमी मातरि संबोधन हे मातः
द्विवचन मातरौ मातरौ मातृभ्याम् मातृभ्याम् मातृभ्याम्
बहुवचन मातरः मातृः मातृभिः मातृभ्यः मातृभ्यः मातृणाम्
मात्रोः
मातृषु
मात्रोः हे मातरौ
हे मातरः
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8. राजन् (राजा)
एकवचन
द्विवचन राजानौ
प्रथमा
द्वितीया
राजानौ
तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन
राजा राजानम् राज्ञा राजे राज्ञः राज्ञः राज्ञि, राजनि हे राजन्
राजभ्याम् राजभ्याम् राजभ्याम् राज्ञोः राज्ञोः हे राजानौ
बहुवचन राजानः राज्ञः राजभिः राजभ्यः राजभ्यः राज्ञाम् राजसु हे राजानः
9. आत्मन् (आत्मा)
एकवचन
आत्मा
प्रथमा द्वितीया तृतीया
चतुर्थी
द्विवचन आत्मानौ आत्मानौ आत्मभ्याम् , आत्मभ्याम् आत्मभ्याम् आत्मनोः आत्मनोः हे आत्मनौ
आत्मानम् आत्मना आत्मने आत्मनः आत्मनः आत्मनि हे आत्मन्
बहुवचन आत्मानः आत्मनः आत्मभिः आत्मभ्यः आत्मभ्यः आत्मनाम् आत्मसु हे आत्मानः
पंचमी
षष्ठी सप्तमी संबोधन
10. पितृ (पिता)
एकवचन पिता
बहुवचन पितरः
प्रथमा
द्वितीया
पितरम्
पितॄन्
पित्रा
द्विवचन पितरौ पितरौ पितृभ्याम् पितृभ्याम् पितृभ्याम् पित्रोः ।
तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी
पित्रे
पितृभिः पितृभ्यः पितृभ्यः
पितु
पितुः
पितॄणाम्
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सप्तमी पितरि पित्रोः पितृषु
संबोधन हे पितः हे पितरौ हे पितरः 11. प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी, डॉ. कपिलदेव द्विवेदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी।
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संकेत सूची
अ = अव्यय
• ()- इस प्रकार के कोष्ठक में मूलशब्द रखा गया है। न () + ( ) + ( ) .... } इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर + चिह्न शब्दों में संधि का द्योतक है। यहां अन्दर के शब्दों में मूलशब्द ही रखे गये हैं।
( ) - ( ) - ( ) ....} इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर - समास का द्योतक है। • जहाँ कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1/2, 2/1, ... आदि ) ही लिखी हैं वहाँ उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'संज्ञा' है।
1/1- प्रथमा/एकवचन 1/2 - प्रथमा/द्विवचन 1/3 - प्रथमा/बहुवचन
द्वितीया/एकवचन 2/2 - द्वितीया/द्विवचन 2/3 – द्वितीया/बहुवचन
तृतीया/एकवचन
2/1
5/1 - पंचमी/एकवचन 5/2 - पंचमी/द्विवचन 5/3 - पंचमी/बहुवचन
षष्ठी/एकवचन षष्ठी/द्विवचन षष्ठी/बहुवचन सप्तमी/एकवचन
6/1
6/2
6/3
3/1
3/2 - तृतीया/द्विवचन 3/3 – तृतीया/बहुवचन
- चतुर्थी /एकवचन
7/2 – सप्तमी/द्विवचन 7/3 – सप्तमी/बहुवचन 8/1 - संबोधन /एकवचन
4/2 - चतुर्थी/द्विवचन 4/3 – चतुर्थी/बहुवचन
8/2 - संबोधन/द्विवचन 8/3 – संबोधन/बहुवचन
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संज्ञा-सर्वनाम-संख्यावाची शब्द-सूत्र
1.
अत ओत् सोः 5/1 अत ओत् सोः { (अतः) + (ओत्) } सोः अतः (अत्) 5/1 ओत् (ओत्) 1/1 सोः (सु) 6/1 अत् से परे सु के स्थान पर ओत्→'ओ' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे सु ( प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ओ' होता है। (देव +सु) = (देव + ओ) : देवो ( प्रथमा एकवचन )
जश्शसोर्लोपः 5/2 जश्शसोर्लोपः { (जस्) + (शसोः) + (लोपः) } . { (जस्) - (शस्) 6/2} लोपः (लोप) 1/1 जस् और शस् के स्थान पर 'लोप' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे जस् ( प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर लोप (शून्य प्रत्यय) होता है। (देव + जस्) - (देव + '0') - देवा' ( प्रथमा बहुवचन ) (देव + शस्) - (देव + '0') - देवा (द्वितीया बहुवचन) 1. सूत्र 5/11 से मूलशब्द के अन्त्य 'अ' का 'आ' हुआ है।
3.
अतोऽमः 5/3 अतोऽमः { (अतः) + (अमः) } अतः (अत्) 6/1 अमः (अम्) 6/1 अम् के अत्→'अ' का ( लोप होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे अम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) के 'अ' का लोप होता है (और 'म्' शेष रहता है) (देव + अम्) : (देव + म्) : देवं' (द्वितीया एकवचन) 1. सूत्र 4/12 ‘मो बिन्दुः' से पदान्त म् को अनुस्वार हुआ है
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टामोर्णः 5/4 टामोर्णः { (टा) + (आमोः) + (णः)} . { (टा) - (आम्) 6/2} णः (ण) 1/1 टा और आम् के स्थान पर 'ण' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे टा ( तृतीया एकवचन के प्रत्यय) और आम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ण' होता है। (देव + टा) : (देव + ण) - देवेण (तृतीया एकवचन) . (देव + आम्) : (देव + ण) : देवाण (षष्ठी बहुवचन) 1. सूत्र 5/12 से मूलशब्द के अन्त्य 'अ' का 'ए' हुआ है। 2. सूत्र 5/11 से मूलशब्द के अन्त्य 'अ' का 'आ' हुआ है। .
5.
भिसो हिं 5/5 भिसो हिं { (भिसः) + (हिं) } भिसः (भिस्) 6/1 हिं (हिं) 1/1 भिस् के स्थान पर 'हिं' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे भिस् ( तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हिं' होता है। (देव + भिस्) : (देव + हिं) - देवेहिं (तृतीया बहुवचन) 1. सूत्र 5/12 से मूलशब्द के अन्त्य 'अ' का 'ए' हुआ है।
ङसेरादोदुहयः 5/6 ङसेरादोदुहयः { (ङसेः) + (आ) + (दो) + (दु) + (हयः) } ङसेः (ङसि) 6/1 { (आ) - (दो) - (दु) - (हि) 1/3 } ङसि के स्थान पर 'आ', 'दो', 'दु', 'हि' (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे ङसि ( पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'आ', 'दो', 'दु', 'हि' होते हैं। ( देव + ङसि ) : ( देव + आ,दो,दु,हि ) - देवा, देवादो, देवादु देवाहि
(पंचमी एकवचन) 1. सूत्र 5/11 से मूलशब्द के अन्त्य 'अ' का 'आ' हुआ है।
(10)
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7. भ्यसो हिन्तो सुन्तो 5/7
भ्यसो हिन्तो सुन्तो { (भ्यसः) + (हिन्तो)} सुन्तो भ्यसः (भ्यस्) 6/1 हिन्तो (हिन्तो) 1/1 सुन्तो (सुन्तो) 1/1 भ्यस् के स्थान पर 'हिन्तो', 'सुन्तो' (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हिन्तो', 'सुन्तो' होते हैं। (देव+भ्यस्) = (देव + हिन्तो, सुन्तो) - देवाहिन्तो,देवासुन्तो,देवेहिन्तो,देवेसुन्तो
(पंचमी बहुवचन) 1. सूत्र 5/12 से मूल शब्द के अन्त्य अ का 'आ' और 'ए' हुआ है।
8.
स्सो उसः 5/8 स्सो ङसः { (स्सः) + (ङसः)} स्सः (स्स) 1/1 ङसः (डस्) 6/1 ङस् के स्थान पर 'स्स' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे डस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'स्स' होता है। (देव + ङस्) - (देव + स्स) देवस्स (षष्ठी एकवचन)
9.
डेरेम्मी 5/9 डेरेम्मी { (उः) + (ए) + (म्मी) } .: (ङि) 6/1 { (ए) - (म्मि) 1/2 } ङि के स्थान पर 'ए' और 'म्मि' (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ए' और 'म्मि' होते हैं। (देव + ङि) = (देव + ए, म्मि) = देवे, देवम्मि (सप्तमी एकवचन)
10.
सुपः सुः 5/10 सुपः (सुप्) 6/1 सुः (सु) 1/1 सुप् के स्थान पर 'सु' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर
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(11)
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'सु' होता है। (देव + सुप्) - (देव + सु) - देवेसु (सप्तमी बहुवचन) 1. सूत्र 5/12 से मूलशब्द के अन्त्य 'अ' का 'ए' हआ है।
11. जश्शस्ङस्यांसु दीर्घः 5/11
जश्शस्ङस्यांसु दीर्घः { (जस्) + (शस्) + (ङसि) + (आंसु) } दीर्घः { (जस्) + (शस्) + (ङसि) + (आम्) 7/3 } दीर्घः (दीर्घ) 1/1 जस् , शस् , ङसि , आम् परे होने पर 'दीर्घ' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे 'जस्' (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), 'शस्' (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय), 'ङसि' (पंचमी एकवचन का प्रत्यय), 'आम्' (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य अ का 'दीर्घ' होता है। (देव + जस्) - (देव + '0') : देवा (प्रथमा बहुवचन) (देव + शस्) : (देव + '0') : देवा (द्वितीया बहुवचन). (देव + ङसि) - (देव + आ,दो,दु,हि) - देवा, देवादो, देवादु, देवाहि
(पंचमी एकवचन) (देव + आम्) - (देव + ण) : देवाण (षष्ठी बहुवचन)
12. ए च सुप्यङिङसोः 5/12
ए च सुप्यङिङसोः ए च { (सुपि) + (अ) + (ङि) + (ङसोः) } ए (ए) 1/1 च - और सुपि (सुप्) 7/1 अ- नहीं {(ङि) - (डस्) 7/2} सुप् परे होने पर 'ए' (होता है) और (दीर्घ भी होता है) ङि, ङस् परे होने पर नहीं। सुप् (सु से सुप् तक विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर अकारान्त शब्दों के अन्तिम 'अ' के स्थान पर 'ए' होता है और (5/11 से दीर्घ होने के पश्चात बचे हुए पंचमी बहुवचन में ) दीर्घ भी होता है परन्तु ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) और ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर एत्व या दीर्घ नहीं होता। (देव + शस्) : (देव + '0') : देवे (द्वितीया बहुवचन) (देव + टा) : (देव + ण) : देवेण (तृतीया एकवचन) (देव + भिस्) : (देव + हिं) : देवेहिं (तृतीया बहुवचन)
(12)
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(देव+भ्यस्) : (देव + हिन्तो, सुन्तो) = देवाहिन्तो,देवासुन्तो,देवेहिन्तो,देवेसुन्तो
(पंचमी बहुवचन) (देव + सुप्) - (देव + सु ) : देवेसु (सप्तमी बहुवचन) (देव + ङस्) - (देव + स्स) - देवेस्स या देवास्स नहीं बनेगा। (देव + ङि) - (देव + म्मि) - देवेम्मि या देवाम्मि नहीं बनेगा।
नोट - इस सूत्र में सु से सुप् तक की बात होने के बाद भी टीकाकारों ने उपर्युक्त
विभक्तियों की ही चर्चा की है।
13.
क्वचिद् ङसिङ्योर्लोपः 5/13 क्वचिद् ङसिङ्योर्लोपः { (क्वचित्) + (ङसि) + (योः) + (लोपः)} क्वचित् - कभी-कभी { (ङसि) - (ङि) 7/2} लोपः (लोप) 1/1 ङसि और डि परे होने पर कभी-कभी (उनका) लोप (होता है)। अकारान्त शब्दों के बाद ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) और ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर कभी-कभी उनका लोप हो जाता है। (देव + ङसि) - (देव + लोप) : देव (पंचमी एकवचन) (देव + ङि) : (देव + लोप) : देव (सप्तमी एकवचन)
14. इदुतोः शसो णो 5/14
इदुतोः शसो णो { (इत्) + (उतोः) + (शसः) + (णो) } . { (इत्) + (उत्) 6/2} शसः (शस्) 6/1 णो (णो) 1/1 इत्->इ, ईकारान्त, उत्→उ, ऊकारान्त के शस् के स्थान पर ‘णो' (होता
इ, ईकारान्त और उ, ऊकारान्त पुल्लिंग शब्दों के शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ‘णो' होता है। (हरि + शस) ८ (हरि + णो) : हरिणो (द्वितीया बहुवचन) (गामणी + शस् ) - (गामणी + णो) : गामणीणो (द्वितीया बहुवचन) (साहु + शस् ) - (साहु + णो) : साहुणो (द्वितीया बहुवचन) (सयंभू + शस् ) - (सयंभू + णो) : सयंभूणो (द्वितीया बहुवचन)
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(13)
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15. ङसो वा 5/15
ङसो वा { (ङसः ) + (वा) } ङसः (ङस्) 6/1 वा - विकल्प से ङस् के स्थान पर विकल्प से ('णो' होता है)। इ, ईकारान्त और उ, ऊकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से ‘णो' होता है। (हरि + ङस्) : (हरि + णो) : हरिणो (षष्ठी एकवचन) (गामणी + ङस्) - (गामणी + णो) : गामणीणो (षष्ठी एकवचन) (साहु + ङस्) - (साहु + णो) : साहुणो (षष्ठी एकवचन) (सयंभू + ङस्) (सयंभू + णो) : सयंभूणो (षष्ठी एकवचन)
16. · जसश्च ओ यूत्वम् 5/16
जसश्च ओ यूत्वम् { (जसः) + (च) } ओ { (ई) + (ऊत्वम्) } . जसः (जस्) 6/1 च - और ओ (ओ) 1/1 (ई) - (ऊत्व) 1/1} जस् के स्थान पर 'ओ' (होता है साथ ही अन्त्य स्वर) ई और ऊत्व-→ऊ (होता है) और (णो भी होता है)। ' इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ओ' होता है तथा शब्दों के अन्तिम इ और उ को ई
और ऊ हो जाता है और ‘णो' प्रत्यय भी होता है। (हरि + जस्) - (हरी + ओ) : हरीओ (प्रथमा बहुवचन) (साहु + जस्) (साहू + ओ) : साहूओ ( प्रथमा बहुवचन) (हरि + जस्) (हरि + णो) : हरिणो (प्रथमा बहुवचन) (साहु + जस्) : (साहु + णो) : साहुणो ( प्रथमा बहुवचन)
17. टाणा 5/17
टाणा { (टा) - (णा) 1/1 } टा के स्थान पर ‘णा' (होता है)। इ, ईकारान्त और उ, ऊकारान्त पुल्लिंग शब्दों से परे टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'णा' होता है।
(14)
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(हरि + टा) (गामणी + टा) (साहु + टा) (सयंभू + टा)
- (हरि + णा) : हरिणा (तृतीया एकवचन) - (गामणी + णा) : गामणीणा (तृतीया एकवचन)
(साहु + णा) : साहुणा (तृतीया एकवचन) : (सयंभू + णा) : सयंभूणा (तृतीया एकवचन)
18.
सुभिस्सुप्सु दीर्घः 5/18 सुभिस्सुप्सु दीर्घः { (सु) – (भिस्) - (सुप्) 7/3 } दीर्घः (दीर्घ) 1/1 सु, भिस्, सुप् परे होने पर 'दीर्घ' ( होता है )। इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों में सु ( प्रथमा एकवचन का प्रत्यय), भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य इ और उ को 'दीर्घ' होता है। (और दीर्घ दीर्घ ही रहता है) (हरि + सु) हरी (प्रथमा एकवचन) (सु का लोप होगा) (साहु + सु) साहू (प्रथमा एकवचन) (सु का लोप होगा) (हरि + भिस्) : हरीहिं (तृतीया बहुवचन) (साहु + भिस्) : साहहिं (तृतीया बहुवचन) (सूत्र 6/60 और 5/5 से भिस् - हिं होगा) (हरि + सुप्) हरीसु (सप्तमी बहुवचन) (साहु + सुप्) . : साहूसु (सप्तमी बहुवचन) .(सूत्र 6/60 और 5/10 से सुप् - सु होगा)
1. मनोरमा टीका के आधार पर नोट - सुबोधिनी टीका के आधार पर इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में भी
इन्हीं प्रत्ययों का प्रयोग होगा। गामणी और सयंभू के रूप इसी सूत्र के - आधार से बना लेने चाहिये।
19.
स्त्रियां शस उदोतो 5/19 स्त्रियां शस उदोती. { (स्त्रियाम्) + (शसः) + (उत्) + (ओतौ)} स्त्रियाम् (स्त्री) 7/1 शसः (शस्) 6/1 { (उत्) - (ओत्) 1/2 } स्त्रीलिंग में शस् के स्थान पर उत्→ 'उ' और ओत्→'ओ' (होते हैं)। स्त्रीलिंग शब्दों में शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर उत्→'उ' और ओत्->ओ' (होते हैं)।
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(15)
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(कहा+शस्) - (कहा + उ, ओ) - कहाउ, कहाओ (द्वितीया बहुवचन) (मइ+शस्) - (मइ + उ, ओ) - मइउ, मइओ (द्वितीया बहुवचन) (लच्छी+शस्)- (लच्छी+उ, ओ) : लच्छीउ, लच्छीओ (द्वितीया बहुवचन) (घेणु+शस्) : (घेणु+उ, ओ) : घेणुउ, घेणुओ (द्वितीया बहुवचन) (बहू+शस्) - (बहू + उ, ओ) : बहूउ, बहूओ (द्वितीया बहुवचन)
20. जसो वा 5/20
जसो वा { (जसः) + (वा) } जसः (जस्) 6/1 वा : विकल्प से । जस् के स्थान पर विकल्प से ('उ' और 'ओ' होते हैं)। स्त्रीलिंग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से 'उ' और 'ओ' होते हैं। (कहा+जस्) : (कहा+ उ, ओ ) - कहाउ, कहाओ (प्रथमा बहुवचन) (मइ+जस्) : (मइ + उ, ओ ) : मइउ, मइओ (प्रथमा बहुवचन) (लच्छी+जस) - (लच्छी+उ, ओ) : लच्छीउ, लच्छीओ (प्रथमा बहुवचन) (धेणु+जस्) - (धेणु + उ, ओ) : घेणुउ, घेणुओ (प्रथमा बहुवचन)
(बहू+जस्) - (बहू + उ, ओ) : बहूउ, बहूओ (प्रथमा बहुवचन) नोटः अदन्तवत् (6/60) सूत्र के अनुसार विकल्प से 'कहा', 'मइ', 'लच्छी', 'धेणू',
'बहू', रूप भी बनेंगे।
अमि हस्वः 5/21 अमि (अम्) 7/1 हस्वः (हस्व) 1/1 अम परे होने पर 'हस्व' (होता है)। स्त्रीलिंग शब्दों में अम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (दीर्घ का) 'हस्व' होता है (और ह्रस्व स्वर ह्रस्व ही रहता है)। (कहा + अम्) - (कह + अम्) : कह (द्वितीया एकवचन) (मइ + अम्) - (मइ + अम्) मई (द्वितीया एकवचन) (लच्छी + अम्) - (लच्छि + अम्) : लच्छिं (द्वितीया एकवचन) (धेणु + अम्) - (घेणु + अम्) घेणु (द्वितीया एकवचन)
(16)
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(बहू + अम्) ( बहु + अम्) बहु * ( द्वितीया एकवचन )
* सूत्र 5/3 से अम् के अ का लोप और 4 / 12 से पदान्त म् का अनुस्वार हुआ है।
22. टाङस्ङीनामिदेददातः 5/22
टाङस्ङीनामिदेददातः {(टा) + (ङस्) + ( ङीनाम्) + ( इत्) + (एत्) + (अत्) + (आतः ) }
{ (टा) - (ङस्) - (ङि) 6/3 } { ( इत्) - ( एत्) - (अत्) - (आत्) 1 / 3} टा, ङस् और ङि के स्थान पर इत् 'इ', एत् 'ए', अत् आत् → 'आ' ( होते हैं ) ।
'अ',
स्त्रीलिंग शब्दों में टा ( तृतीया एकवचन का प्रत्यय), ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) और ङि ( सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर इत् → 'इ', एत्→‘ए’,अत्→‘अ', आत् 'आ' होते हैं ।
तृतीया एकवचन
( कहा + टा ) = ( कहा + इ, ए ) 1
( मइ + टा )
( लच्छी + टा)
こ
( धेणु+टा )
( बहू + टा. )
(धेणु+ङस्)
( बहू + ङस् )
= (मइ + अ, आ, इ, ए )
( लच्छी+अ, आ, इ, ए)
こ
こ
こ
षष्ठी एकवचन
( कहा + ङस् ) = ( कहा + इ, ए ) 1
( मइ + ङस् )
(लच्छी+ङस्)
こ
( धेणु+अ, आ, इ, ए)
(बहू + अ, आ, इ, ए)
वररुचिप्राकृतप्रकाश ( भाग 1 )
-
こ
こ
こ
= (मइ + अ, आ, इ, ए)
こ
( लच्छी +अ, आ, इ, ए)
=
कहाइ, कहाए
मइअ, मइआ, मइइ, मइए
लच्छीअ, लच्छीआ, लच्छीइ,
कहाइ, कहाए
मइअ, मइआ, मइइ, मइए
लच्छीअ, लच्छीआ, लच्छीइ, लच्छीए
こ
(धेणु + अ, आ, इ, ए ) = घेणुअ, घेणुआ, घेणुइ, धेणुए
こ
(बहू + अ, आ, इ, ए) - बहूअ, बहूआ, बहूइ, बहूए
लच्छी
घेणुअ, घेणुआ, धेणुइ, घेणुए
बहूअ, बहूआ, बहूइ, बहूए
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सप्तमी एकवचन (कहा + ङि) - (कहा + इ, ए ) कहाइ, कहाए (मइ + ङि) : (मइ + अ, आ, इ, ए) : मइअ, मइआ, मइइ, मइए (लच्छी + ङि)- (लच्छी+अ, आ, इ, ए) : लच्छीअ, लच्छीआ, लच्छीइ,
लच्छीए (धेणु+ङि) : (धेणु + अ, आ, इ, ए) = घेणुअ, घेणुआ, घेणुइ, घेणुए (बहू + ङि) : (बहू + अ, आ, इ, ए) : बहूअ, बहुआ, बहूइ, बहूए 1. आकारान्त शब्द में अ और आ प्रत्यय नहीं लगेंगे (सूत्र 5/23)
23. नातोऽदातौ 5/23
नातोऽदातौ { (न) + (आतः) + (अत्) + (आतौ) } . न : नहीं आतः (आत्) 5/1 { ( अत्) - (आत्) 1/2} आकारान्त से परे अत्→'अ' और आत्→'आ' नहीं ( होते )। . आकारान्त से परे टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) , ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) और ङि ( सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर अत्→'अ', आत्→'आ' प्रत्यय नहीं होते। कहाअ और कहाआ (तृतीया एकवचन में नहीं बनते) . . कहाअ और कहाआ (षष्ठी एकवचन में नहीं बनते) कहाअ और कहाआ (सप्तमी एकवचन में नहीं बनते)
24. आदीतौ बहुलम् 5/24
आदीतौ बहुलम् { (आत्) + (ईतौ) } बहुलम् { (आत्) - (ईत्) 1/2 } बहुलम् (बहुल) 1/1 (आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में अन्त्य आ के स्थान पर) आ और ई अधिकतर (होते हैं)।
आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में अन्त्य आ के स्थान पर आ और ई अधिकतर होते हैं। (हलद्दा, हलद्दी, सुप्पणहा, सुप्पणही) 1. मनोरमा, संजीवनी टीका।
(18)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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25.
न नपुंसके 5/25 न : नहीं नपुंसके (नपुंसक) 7/1 नपुंसकलिंग में नहीं (होता)। इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के बाद 'सु' (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर मूलशब्द के अन्तिम स्वर को (पुल्लिंग शब्दों के समान) दीर्घ नहीं होता। (यह सूत्र 5/18 का निषेध सूत्र है) (वारि + सु)- वारी नहीं बनेगा। (महु + सु) : महू नहीं बनेगा। 1. टीकाकारों के अनुसार यह सूत्र केवल 'सु' (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) के लिए ही है।
26. इं जश्शसोदीर्घः 5/26
इं जश्शसोदीर्घः इं { (जस्) + (शसः) + (दीर्घः) } इं (इं) 1/1 { (जस्) - (शस्) 6/1} दीर्घः (दीर्घ) 1/1 जस् और शस् के स्थान पर 'ई' (होता है) (और ) दीर्घ (भी होता है)। नपुंसकलिंग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ई' होता है और साथ ही अन्त्य स्वर 'दीर्घ' होता
(कमल + जस्) - (कमल + इं) - कमलाइं (प्रथमा बहुवचन) (वारि + जस्) - (वारि + इं) : वारीइं (प्रथमा बहुवचन) (महु + जस्) - (महु + इं) : महूइं (प्रथमा बहुवचन) (कमल + शस्) - (कमल + इं) : कमलाइं (द्वितीया बहुवचन) (वारि + शस्) - (वारि + इं) : वारीइं (द्वितीया बहुवचन) (महु + शंस्) - (महु + इं) : महूई (द्वितीया बहुवचन)
27. नामन्त्रणे सावोत्वदीर्घबिन्दवः 5/27 ___ नामन्त्रणे सावोत्वदीर्घबिन्दवः { (न) + (आमन्त्रणे) } { (सौ) + (ओत्व) +
(दीर्घ) + (बिन्दवः) } न - नहीं आमन्त्रणे (आमन्त्रण) 7/1 सौ (सु) 7/1 {(ओत्व) - (दीर्घ) - (बिन्दु) 1/3 }
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(19)
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28.
आमन्त्रण (अर्थ) में सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर 'ओत्व', 'दीर्घ', 'बिन्दु' नहीं (होते ) ।
आमन्त्रण ( सम्बोधन अर्थ) में सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय ) परे होने पर ओत्व→ओ (अकारान्त पुल्लिंग एकवचन में लगनेवाला प्रत्यय), दीर्घ (इकारान्त शब्दों में प्रयुक्त एकवचन का प्रत्यय) और बिन्दु ( नपुंसकलिंग शब्दों में प्रयुक्त एकवचन का प्रत्यय) नहीं होते ।
1
(देव + सु = हे देव
( हरि + सु ) ( कमल + सु)
(20)
こ
नोट: इसी सूत्र के आधार से इकारान्त, उकारान्त पु., नपुं, स्त्री. शब्दों के रूपों को भी समझना चाहिए ।
हे हरि
हे कमल
(हे देवो नहीं बनेगा)
( हे हरी नहीं बनेगा )
(हे कमलं नहीं बनेगा )
स्त्रियामात एत् 5 / 28
स्त्रियामात एत् { (स्त्रियाम्) + (आतः) + (एत्) }
स्त्रियाम् (स्त्री) 7/1 आतः (आत्) 6 / 1 एत् ( एत् ) 1 / 1
स्त्रीलिंग में आत्→‘आ’ के स्थान पर एत् 'ए' ( हो जाता है ) ।
स्त्रीलिंग सम्बोधन एकवचन में आकारान्त शब्द के आत् 'आ' के स्थान पर एत् → 'ए' हो जाता है ।
29. ईदूतोर्हस्व: 5/29 ईदूतोर्हस्वः { ( ईत्) + (ऊत्) 6/2 }
( कहा + सु ) = ( कहा + ए ) हे कहे ( सम्बोधन एकवचन )
こ
{ ( ईत्) + (ऊतोः) + (ह्रस्वः)}
ह्रस्वः (ह्रस्व) 1/1
ईत् ई और ऊत् ऊ के स्थान पर हस्व (इ, उ होता है ) । सम्बोधन एकवचन में ईकारान्त तथा ऊकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के स्थान पर
हस्व इ और उ हो जाता है ।
( लच्छी + सु ) ( बहू + सु )
1. मनोरमा, संजीवनी टीका के आधार पर ।
हे लच्छि ( सम्बोधन एकवचन ) (सु का लोप होगा ) हे बहु ( सम्बोधन एकवचन ) ( सु का लोप होगा ) 1
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
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30. सोर्बिन्दुर्नपुंसके 5/30
31.
32.
सोर्बिन्दुर्नपुंसके { (सोः) + (बिन्दुः) + (नपुंसके ) } सोः (सु) 6/1 बिन्दु (बिन्दु) 1 / 1 नपुंसकलिंग में 'सु' के स्थान पर 'बिन्दु' ( अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों में 'सु' (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर बिन्दु 'अनुस्वार' ( ं) होता है। कमलं (प्रथमा एकवचन )
नपुंसके ( नपुंसक ) 7/1 होता है ) ।
- वारिं (प्रथमा एकवचन)
महुं
(प्रथमा एकवचन )
( कमल + सु )
( वारि + सु )
( महु + सु )
ܚ
=
( कमल +
+
( वारि
= ( महु
ऋत आरः सुपि 5/31
ऋत आरः सुपि { (ऋतः ) + (आरः ) } सुपि
+
आरः (आर) 1/1 सुपि (सुप्) 7/1 ऋ के स्थान पर 'आर' ( हो जाता है ) ।
ऋतः (ऋत्) 6/1 सुप् परे होने पर ऋत् सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर ऋकारान्त शब्दों के 'ऋ' के स्थान पर 'आर' हो जाता है।
S
भर्तृ
भत्तार
भत्तार शब्द में अकारान्त शब्द के समान ही सभी विभक्तिबोधक प्रत्यय लग
जाएंगे'
मातुरात् 5/32
मातुरात् { (मातुः) + (आत्) }
मातुः (मातृ) 6 / 1.
'आत् (आत्) 1/1
मातृ के (ऋ के स्थान पर) आत् आ (होता है ) ।
सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर मातृ के ऋ
के स्थान पर आत् आ होता है।
-
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
मातृ माता माआ
माआ शब्द में आकारान्त शब्द के समान ही सभी विभक्तिबोधक प्रत्यय लग
जाएंगे'
1. मनोरमा, संजीवनी टीका के आधार पर ।
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33. उर्जस् - शस् टा
(22)
-
उर्जस्-शस्-टा-ङस्-सुप्सु वा { (उ:) + (जस् ) }
उः (उ) 1/1 {(जस्) - (शस्)
वा विकल्प से
भर्तृ→ भत्तु
· ( भत्तु + जस्) - (भत्तु + ( भत्तु + शस्) (भत्तु +
S
·
ङस् सुप्सु वा 5/33
जस्, शस्, टा, डस्, सुप् परे होने पर (ऋ के स्थान पर) विकल्प से 'उ' होता है। जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), शस् ( द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय), टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय), ङस् ( षष्ठी एकवचन का प्रत्यय), सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर ऋकारान्त शब्दों के ऋ के स्थान पर उ होता है अर्थात् इन विभक्ति, वचनों में ऋकारान्त शब्द के रूप विकल्प से उकारान्त शब्दों की तरह चलते हैं ।
こ
1
णो) णो )
( भत्तु + टा) = (भत्तु + णा)
S
( भत्तु + ङस् ) = (भत्तु + णो )
-
S
S
34. पितृभ्रातृजामातॄणामरः 5/34
-
(टा) - (ङस्) - (सुप्) 7/3}
भत्तुणो (प्रथमा बहुवचन) (सूत्र
भत्तुणो ( द्वितीया बहुवचन) (सूत्र
भत्तुणा (तृतीया एकवचन ) ( सूत्र
भत्तुणो (षष्ठी एकवचन ) ( सूत्र
पितृभ्रातृजामातॄणामरः { ( पितृभ्रातृजामातॄणाम्) + (अरः) }
S
1. देखें पाइअसद्दमहण्णवो।
2. मनोरमा, संजीवनी टीका के आधार पर ।
こ
5
こ
(भत्तु+सुप्) (भत्तु+सु) भत्तूसु (सप्तमी बहुवचन) (सूत्र 5 / 18, 5 / 10 )
こ
C
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S
/ 16 )
5
5 / 14 )
5 / 17 )
{ (पितृ)
(भ्रातृ) - ( जामातृ) 6/3 } अरः (अर) 1/1
पितृ, भ्रातृ, जामातृ के (ऋ के स्थान पर) 'अर' (होता है ) ।
सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर पितृ, भ्रातृ,
जामातृ के (ऋ के स्थान पर) 'अर' होता है।
पितृपितर→पिअर'
भ्रातृ भाअर'
/ 15 )
जामातृ जामाअर'
इन शब्दों के रूप सभी विभक्तियों में अकारान्त शब्दों की तरह चलेंगे 2
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35.
आ च सौ 5/35 आ (आ) 1/1 च - और सौ (सु) 7/1 सु परे होने पर 'आ' और ('अर' होता है)। पितृ, भ्रातृ, जामातृ शब्दों के सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर ऋ के स्थान पर 'आ' और 'अर' होते हैं। पितृ →पिता →पिआ, पितरो →पिअरो (प्रथमा एकवचन) भ्रातृ →भाता→भाआ, भातरो →भाअरो (प्रथमा एकवचन) जामातृ →जामाता→जामाआ, जामातरो→जामाअरो (प्रथमा एकवचन)
36.
राज्ञः 5/36 राज्ञः (राजन) 6/1 राजन् शब्द के (सु परे होने पर 'आ' होता है)। राजन्→राअ/राय' शब्द के सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर 'आ' होता है। राआ/राया (प्रथमा एकवचन) 1. राजन् →राज (अन्त्यहलः 3/6 से अन्तिम हल के लोप की अनुवृत्ति) राज→राअ (कगचजतदपयवां प्रायो लोपः 2/2) राअ/राय (प्राकृत में अ ध्वनि य में भी बदल जाती है)
37. आमन्त्रणे वा बिन्दुः 5/37
आमन्त्रणे (आमन्त्रण) 7/1 वा - विकल्प से बिन्दुः (बिन्दु) 1/1 आमन्त्रण में विकल्प से बिन्दु (होता है)। राजन्→राअ शब्द के आमन्त्रण (संबोधन में) विकल्प से बिन्दु ।' (होता है) राअं राय( संबोधन एकवचन)
38.
जस् - शस् - ङसां णो 5/38 जस्-शस्-ङसां णो { (ङसाम्) + (णो)} { (जस्-शस्-ङस्) 6/3 } णो (णो) 1/1 जस्, शस्, ङस् के स्थान पर ‘णो' (होता है)। राजन्→राअ शब्द के जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय), शस् (द्वितीया
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.
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बहुवचन के प्रत्यय), ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ‘णो' होता
(राअ + जस्) - (राअ + णो) - राआणो' (प्रथमा बहुवचन) (राअ + शस्) - (राअ + णो) : राआणो' (द्वितीया बहुवचन) (राअ + ङस्) - (राअ + णो) - राइणो' (षष्ठी एकवचन) 1. सूत्र 5/44 से राअ → राआ हुआ है। 2. सूत्र 5/43 से राअ → राइ हुआ है।
39.
शस एतु 5/39 शस एत् { (शसः) + (एत्) } शसः (शस्) 6/1 एत् (एत्) 1/1 शस् के स्थान पर एत् → 'ए' (होता है)। राजन् →राअ शब्द के शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर एत् →'ए' होता है। (राअ + शस्) - (राअ + ए) : राए (द्वितीया बहुवचन)
40.
आमो णं 5/40 आमो णं { (आमः) + (ण) } आमः (आम्) 6/1 णं (णं) 1/1 आम् के स्थान पर 'ण' (होता है)। राजन् →राअ शब्द के आम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ‘णं' (होता है)। (राअ + आम्) - (राअ + ण) : राआणं (षष्ठी बहुवचन) 1. सूत्र 5/44 से राअ→राआ हुआ है।
41. टाणा 5/41
टाणा { (टा) - (णा) 1/1 } टा के स्थान पर 'णा' (होता है)। राजन्→राअ शब्द के टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ‘णा' होता है।
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(राअ + टा) - (राअ + णा) : राइणा (तृतीया एकवचन) 1. सूत्र 5/43 से राअ→राइ हुआ है।
ङसश्च द्वित्वं वान्त्यलोपश्च 5/42 ङसश्च द्वित्वं वान्त्यलोपश्च {(ङसः) + (च)} {(द्वित्वम्)+(वा) +(अन्त्य) +(लोपः)+(च)} ङसः (ङस्) 6/1 च - और द्वित्वम् (द्वित्व) 1/1 वा - विकल्प से { (अन्त्य) - (लोप) 1/1} . च : और ङस् का और (टा का) विकल्प से द्वित्व (होता है) और अन्त्य वर्ण का लोप (भी होता है)। राजन् →राअ शब्द के ङस् (षष्ठी एकवचन) के ‘णो' और टा (तृतीया एकवचन) के ‘णा' का विकल्प से द्वित्व होता है और अन्त्य वर्ण का लोप भी होता है। (राअ + ङस) : (राअ + णो) : रण्णो (षष्ठी एकवचन) - (राअ + टा) = (राअ + णा) : रण्णा (तृतीया एकवचन)
43.
इदद्वित्वे 5/43 इदद्वित्वे { (इत्) + (अ) + (द्वित्वे) } इत् (इत्) 1/1. अ : नहीं द्वित्वे (द्वित्व) 7/1 द्वित्व नहीं होने पर इत्→ इ (होता है)। राजन् →राअ शब्द के ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) और टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) को द्वित्व न होने की स्थिति में अन्त्य वर्ण को इत्-→इ होता है। (राअ + ङस्) - (राअ + णो) : राइणो (षष्ठी एकवचन) . (राअ + टा) : (राअ + णा) : राइणा' (तृतीया एकवचन) 1. सूत्र 5/38 से डस् : णो हुआ है। 2. सूत्र 5/41 से टा : णा हुआ है।
44.
आ णोणमोरङसि 5/44 आ णोणमोरङसि आ { (णो) + (णमोः) + (अ) + (ङसि) }
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आ (आ) 1/1 { (णो) - (णम्) 7/2 } अ - नहीं ङसि (ङस्) 7/1 णो और णम् परे होने पर 'आ' (होता है) ङस् में नहीं। राजन् → राअ शब्द के णो (प्रथमा और द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) और णम् → णं (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य अक्षर को 'आ' होता है परन्तु ङस् (षष्ठी एकवचन) में ‘णो' प्रत्यय होने पर आ नहीं होता। (राअ + जस्) - (राअ + णो) - राआणो (प्रथमा बहुवचन) (राअ + शस्) - (राअ + णो) : राआणो (द्वितीया बहुवचन) (राअ + आम्) - (राअ + णं) : राआणं (षष्ठी बहुवचन) . (राअ + ङस्) - (राअ + णो) : राआणो नहीं बनेगा ..
45.
आत्मनोऽप्पाणो वा 5/45 आत्मनोऽप्पाणो { (आत्मनः) + (अप्पाणः) + (वा) } .... आत्मनः (आत्मन्) 6/1 अप्पाणः (अप्पाण) 1/1 वा - विकल्प. से आत्मन् के स्थान पर विकल्प से अप्पाण भी (होता है)। सुप् (सु से सुप् तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर आत्मन् →अप्प के स्थान पर विकल्प से अप्पाण भी (होता है)। इस शब्द के रूप सभी विभक्तियों में अकारान्त शब्द की तरह चलेंगे।
46. इत्वद्वित्ववर्ज राजवदनादेशे 5/46
इत्वद्वित्ववर्ज राजवदनादेशे { (राजवत्) + (अन्) + (आदेशे) } { (इत्व) - (द्वित्व) - वर्ज - सिवाय राजवत् - राजन् के समान अन : नहीं आदेशे (आदेश) 7/1 इत्व, द्वित्व के सिवाय राजन् →राअ के समान (रूप) (चलेंगे) आदेश में नहीं। इत्व (राइणा सूत्र-5/43) द्वित्व (रण्णा सूत्र-5/42) के सिवाय आत्मन्→अप्प के रूप राजन→राअ के समान चलेंगे आदेश में नहीं। अर्थात अप्पाण आदेश होने पर रूप 'देव' के समान चलेंगे। 1. समास के अन्त में वर्ज 'सिवाय' के अर्थ में प्रयुक्त होता है। देखें संस्कृत हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे।
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सर्वनाम सूत्र
47. सर्वादेर्जस एत्वम् 6/1
सदिर्जस एत्वम् { (सर्व) + (आदेः) + (जसः) + (एत्वम्) } { (सर्व) - (आदि) 5/1 } जसः (जस्) 6/1 एत्वम् (एत्व) 1 /1 सर्व → सव्व आदि से परे जस् के स्थान पर एत्व → 'ए' (होता है)। सर्व → सव्व आदि सर्वनामों से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ए' होता है। (सव्व + जस्) : (सव्व + ए) : सब्वे (प्रथमा बहुवचन) (त + जस) - (त + ए) ते (प्रथमा बहुवचन) (ज + जस्) : (ज + ए) : जे (प्रथमा बहुवचन) (एत + जस्) - (एत + ए) : एते (प्रथमा बहुवचन) (इम + जस्) - (इम + ए) : इमे (प्रथमा बहुवचन)
"
"
".
"
48. ऊँ स्सिंम्मित्थाः 6/2
ः (ङि) 6/1 { (स्सि) - (म्मि) - (त्थ) 1/3 } ङि के स्थान पर 'स्सिं', 'म्मि' और 'त्थ' (होते हैं)। सर्व → सव्व आदि सर्वनामों से परे ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'स्सिं' , 'म्मि' और 'त्थ' होते हैं। सप्तमी एकवचन (सव्व + ङि) - (सव्व +स्सिं, म्मि, त्थ) - सवस्सिं, सबम्मि, सव्वत्थ (त + ङि) : (त + स्सिं, म्मि, त्थ) : तस्सिं, तम्मि, तत्थ (ज + ङि) - (ज + स्सिं, म्मि, त्थ) : जस्सिं, जम्मि, जत्थ (एत + ङि) = (एत + स्सिं, म्मि, त्थ) : एतस्सिं, एतम्मि, एत्थ' (इम + ङि) - (इम + स्सिं, म्मि )2 इमस्सिं, इमम्मि 1. सूत्र 6/21 से एतत्थ के त का लोप होकर एत्थ बनेगा। 2. सूत्र 6/17 से इमत्थ नहीं बनेगा।
49. इदमेतद्धियत्तद्भ्यः टाइणा वा 6/3
इदमेतकियत्तद्भ्यः टाइणा वा { (इदम्) + (एतत्) + (किं) + (यत्) +
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(तद्भ्यः) } टाइणा वा { (इदम्) - (एतत्) - (किं) - (यत्) - (तत्) 5/3 } {(टा)-(इणा) 1/1} वा - विकल्प से इदम्, एतत्, किं, यत्, तत् से परे टा के स्थान पर विकल्प से 'इणा' (होता है)। इदम् →इम, एतत् →एत, किं →क , यत् →ज, तत् →त से परे टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से 'इणा' होता है। (इम + टा) - (इम + इणा) - इमिणा (तृतीया एकवचन) . (एत + टा) - (एत + इणा) : एतिणा (तृतीया एकवचन) ... (क + टा) - (क + इणा) - किणा (तृतीया एकवचन) (ज + टा) - (ज + इणा) - जिणा (तृतीया एकवचन) (त + टा) - (त + इणा) : तिणा . (तृतीया एकवचन)
50.
आम एसिं 6/4 आम एसिं { (आमः) + (एसिं) } आमः (आम्) 6/1 एसिं (एसिं) 1/1 आम् के स्थान पर 'एसिं' (होता है)। , इदम् →इम, एतत् →एत, किं →क , यत् →ज, तत् →त से परे आम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से 'एसिं' (होता है)। (इम + आम्) - (इम + एसि) : इमेसिं (षष्ठी बहुवचन) (एत + आम्) - (एत + एसि) : एतेसिं (षष्ठी बहुवचन) (क + आम्) - (क + एसिं) : केसिं (षष्ठी बहुवचन) (ज + आम) : (ज + एसि) : जेसिं (षष्ठी बहुवचन) (त + आम्) (त + एसि) : तेसिं (षष्ठी बहुवचन)
51. किंयत्तद्भ्यो उस आसः 6/5
किंयत्तद्भ्यो ङस आसः {(किं) + (यत्) + (तद्भ्यः) + (ङसः) + (आसः)} { (कि) - (यत्) - (तत्) 5/3} उसः (ङस्) 6/1 आसः (आस) 1/1 किं, यत्, तत् से परे ङस् के स्थान पर 'आस' (होता है)। किं →क , यत्→ज, तत्→त से परे डस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से 'आस' (होता है)।
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( क + ङस् )
( ज + ङस् )
( त + ङस् )
53. ङेहिं 6/7
54.
( क + ङि)
+ ङि)
( त + ङि)
こ
こ
こ
स्सा (स्सा) 1/1
से (से) 1/1
52. ईद्भ्यः स्सा से 6/6 ईद्भ्यः (ईत्) 5/3 ईकारान्त शब्दों से परे 'स्सा' और 'से' (होते हैं) । किं, यत्, तत् के ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों की, जी, ती से परे ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से 'स्सा' और 'से' होते हैं। (की + ङस् ) = (की + स्सा, से) = ( जी + स्सा, से).
( षष्ठी एकवचन )
किस्सा', कीसे जीसे
( षष्ठी एकवचन )
(जी + ङस् ) (ती + ङस् )
(ती + स्सा, से)
तिस्सा', तीसे
( षष्ठी एकवचन )
1. संयुक्ताक्षर के कारण की, जी, ती हस्व हुए हैं । मनोरमा टीका के आधार
पर)
こ
S
こ
( क + आस)
( ज + आस)
( त + आस )
S
ङेहि { (डे) + (हिं)
ङे: (ङि) 6/1 हिं (हिं) 1/1
ङि के स्थान पर 'हिं' (होता है ) ।
किं
→क, यत् → ज, तत् →त से परे ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय)
के स्थान पर विकल्प से 'हिं' होता है ।
( क + हिं)
(ज़ + हिं)
( त + हिं)
वररुचिप्राकृतप्रकाश ( भाग - 1 )
こ
=
S
こ
S
こ
कास (षष्ठी एकवचन)
जास (षष्ठी एकवचन)
तास (षष्ठी एकवचन )
= जिस्सा',
こ
कहिं
जहिं
तहिं
आहे इआ काले 6/8
आहे (आहे) 1/1 इआ (इआ ) 1/1 काल (अर्थ) में 'आहे' और 'इआ' (होते हैं) ।
किंक, यत् → ज, तत् त से परे सप्तमी एकवचन में काल अर्थ में 'आहे' और 'इआ' होते हैं ।
(सप्तमी एकवचन )
(सप्तमी एकवचन )
(सप्तमी एकवचन)
काले (काल) 7/1
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(क + ङि) - (क + आहे, इआ) : काहे, कइआ (सप्तमी एकवचन) (ज + ङि) - (ज + आहे, इआ) : जाहे, जइआ (सप्तमी एकवचन) (त + ङि) - (त + आहे, इआ) : ताहे, तइआ (सप्तमी एकवचन)
55.
तो दो ङसेः 6/9 त्तो (त्तो) 1/1 दो (दो) 1/1 ङसेः (ङसि) 6/1 ङसि के स्थान पर 'तो' और 'दो' (होते हैं)। किं→क, यत् →ज, तत्→त से परे ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'तो' और 'दो' (होते हैं)। (क + ङसि) - (क + त्तो, दो) : कत्तो, कदो (पंचमी एकवचन) (ज + ङसि) - (ज + त्तो, दो) : जत्तो, जदो (पंचमी एकवचन) (त + ङसि) : (त + तो, दो) : तत्तो, तदो (पंचमी. एकवचन)
56. तद ओश्च 6/10
तद ओश्च { (तदः->ततः) + (ओः) + (च) } ततः ( तत् ) 5/1 ओः (ओ) 1/1- च : और तत् से परे 'ओ' और (तो, दो होते हैं)। पुल्लिंग सर्वनाम तत् → त से परे ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ओ' और 'तो', 'दो' होते हैं। (त + ङसि) : (त + ओ, तो,दो) - तो, तत्तो, तदो (पंचमी एकवचन)
57. उसा से 6/11
ङसा (ङस्) 3/1 से (से) 1/1 ङस् सहित ‘से' (होता है)। पुल्लिंग सर्वनाम तत् →त से परे डस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) सहित विकल्प से 'से' होता है। (त + ङस्) : से (षष्ठी एकवचन)
(30)
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58.
59.
60.
आमा सिं 6 / 12
आमा (आम्) 3/1
आम् सहित 'सिं' (होता है ) |
पुल्लिंग सर्वनाम तत्त से परे आम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) सहित
विकल्प से 'सिं' होता है ।
( त + आम्) सिं (षष्ठी बहुवचन)
किमः कः 6/13
किमः (किम्) 6/1
किम् के स्थान पर 'क' (होता है) ।
सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर किम् के स्थान पर 'क' होता है ।
62.
こ
सिं (सिं) 1/1
इदमः इमः 6/14
इदमः (इदम्) 6/1
इदम् के स्थान पर 'इम' (होता है ) ।
के
सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर इदम् स्थान पर 'इम' होता है ।
कः (क) 1/1
61.. स्सस्सिमोरद्वा 6/15
वा
विकल्प से
स्सस्सिमोरद्वा { (स्स) + (स्सिमोः) + (अत्) + (वा) } { (स्स) - (स्सिम् ) 7/2}, अत् (अत्) 1/1 स्स और स्सिम् स्सिं परे होने पर अत् → अ विकल्प से ( होता है ) । स्स (इम का षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) और स्सि (इम का सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर इम के स्थान पर विकल्प से 'अ' होता है। (इम + स्सं ) (षष्ठी एकवचन ) (इम + स्सिं) = अस्सिं
- अस्स
( सप्तमी एकवचन )
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इमः (इम) 1/1
ङेर्देन ह: 6/16
ङेर्देन हः { ( ङे) + (देन) } हः ङे (ङि) 6/1 देन (द) 3/1
हः (ह) 1/1
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'द' सहित डि के स्थान पर 'ह' (होता है)। इदम् शब्द के 'द' सहित ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से 'ह' होता है। (इदम् + ङि) : इह (सप्तमी एकवचन) 1. (सूत्र 3/2 'अधो मनयाम्' से पदान्त म् , न् , य् का लोप होता है)
63. न त्थः 6/17
न : नहीं त्यः (त्थ) 1/1 'त्थ' नहीं (होता)। इदम् शब्द से परे ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'त्थ' प्रत्यय नहीं होता। (इम + त्थ) : इमत्थ नहीं बनेगा।
64. नपुंसके स्वमोरिदमिणमिणमो 6/18
नपुंसके स्वमोरिदमिणमिणमो { (सु) + (अमोः) + (इदम्) + (इणम्) + (इणमो) } नपुंसके (नपुंसक) 7/1 { (सु) - (अम्) 7/2} इदम् (इदम्) 1/1 इणम् (इणम्) 1/1 इणमो (इणमो) 1/1 नपुंसकलिंग में सु और अम् परे होने पर इदम् →'इदं', इणम् →'इणं', 'इणमो' (होते हैं)। इदम् शब्द के नपुंसकलिंग में सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) और अम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर इदम् → इम व विभक्तिप्रत्ययों सहित 'इदं', 'इणं', 'इणमो' होते हैं। (इम + सु) : इदं, इणं, इणमो (प्रथमा एकवचन) (इम + अम्) - इदं, इणं, इणमो (द्वितीया एकवचन) .. 1. मनोरमा टीका के आधार पर।
65. एतदः सावोत्त्वं वा 6/19
एतदः सावोत्त्वं वा एतदः { (सौ) + (ओत्त्वम्) + (वा) } एतदः → एततः (एतत्) 5/1 सौ (सु) 7/1 ओत्त्वम् (ओत्त्व) 1/1
(32)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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वा - विकल्प से एतत् से परे सु होने पर विकल्प से ओत्त्वं → 'ओ' (होता है)। एतत् → एत से परे सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर विकल्प से 'ओ' होता है। (एत + सु) : (एत + ओ) : एसो', एस. (प्रथमा एकवचन) 1. सूत्र 6/22 से एत के 'त' का 'स' होगा। 2. दीप्ति व्याख्या के अनुसार विकल्प से 'एस' रूप बनता है।
66.
तो उसेः 6/20 तो (त्तो) 1/1 डसेः (ङसि) 6/1 ङसि के स्थान पर 'तो' (होता है)। एतत् → एत से परे ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'तो' होता है। (एत + ङसि) : (एत + तो) : एत्तो(पंचमी एकवचन) 1. सूत्र 6/21 से एत के 'त' का लोप होगा।
67. त्तोत्थयोस्तलोपः 6/21
त्तोत्थयोस्तलोपः { (तो) + (त्थयोः) + (त) + (लोपः) } { (त्तो) - (त्थ) 7/2} { (त) - (लोप) 1/1 } तो और त्थ परे होने पर 'त' का लोप (होता है)। एतत् → एत से परे तो (पंचमी एकवचन में प्रयुक्त प्रत्यय) और त्थ (सप्तमी एकवचन में प्रयुक्त प्रत्यय) होने पर एत के 'त' का लोप हो जाता है। (एत + त्तो) :. एत्तो (पंचमी एकवचन) (एत + त्थ) : एत्थ (सप्तमी एकवचन)
68. तदेतदोः (तस्य) सः सावनपुंसके 6/22
तदेतदोः सः सावनपुंसके { (तत्) + (एतदोः-→एततोः) } सः { (सौ) + (अ) + (नपुंसके) } { (तत्) - (एतत्) 7/2} सः (स) 1/1 सौ (सु) 7/1 अ- नहीं नपुंसके (नपुंसक) 7/1
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
.
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70.
तत्
के परे सु होने पर 'स' (होता है) नपुंसकलिंग में नहीं ।
तत् → त और एतत् → एत के परे सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने
(34)
और एतत्
पर 'त' का 'स' होता है परन्तु नपुंसकलिंग में नहीं होता ।
( त + सु )
( त + ओ)
S सो
( एत + सु )
(एत + ओ)
こ
69. अदसो दो मुः अदसो दो मुः अदसः (अदस्) 6/1
こ
こ
एसो
1. मनोरमा टीका के आधार पर 'तस्य' का निवेश होना चाहिए। प्राकृत
प्रकाश, डॉ. श्रीकान्त पाण्डेय, पृ. 108 ।
6/23
[ ( अदसः) + (दः) + (मुः) }
(प्रथमा एकवचन )
(प्रथमा एकवचन )
दः (द) 1/1
मुः (मु) 1/1
अदस् का द 'मु' (हो जाता है ) ।
सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर अदस् का
'' हो जाता है।
अदस्→ अद→ अमु
'अमु' शब्द के रूप उकारान्त शब्दों की भांति चलेंगे।
1. सूत्र 4/6 'अन्त्यहलः' से स् का लोप हुआ ।
हश्च सौ 6/24
हश्च सौ
{ (हः) + (च) } सौ
ह: (ह) 1/1 च - समुच्चयबोधक अव्यय सौ (सु) 7/1 सु परे होने पर 'ह' (होता है ) ।
अदस् (पु., नपुं, स्त्री.) के परे सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर 'द' के स्थान पर 'ह' होता है। (और पूर्व सूत्रानुसार अमु के पु. स्त्री. में अमू और नपुं में अमुं तो बनेंगे ही)
(अदस् + सु)' = अदस्→अद
1. मनोरमा टीका के आधार पर 'सु' का लोप हो जाता है ।
अह (प्रथमा एकवचन ) (पु., नपुं, स्त्री . )
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71.
पदस्य 6/25 पदस्य (पद) 6/1 पद के स्थान पर (होते हैं)। पद से तात्पर्य प्रातिपदिक (विभक्तिचिह के जुड़ने से पूर्व संज्ञा शब्द) और प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न होनेवाले शब्द से है। आगे आनेवाले सर्वनाम मूलशब्द व विभक्तिचिहों से मिलकर आदेशरूप होंगे। जैसे - तुम्ह+ सु - तुं, तुमं पद कहे गये हैं। 1. प्राकृतप्रकाशः, डॉ. श्रीकान्त पाण्डेय, पृष्ठ - 110 का फुटनोट।
७
72.
युष्मदस्तं तुमं 6/26 युष्मदस्तं तुमं { (युष्मदः) + (तं) } तुमं युष्मदः (युष्मद्) 6/1 तं (तं) 1/1 तुमं (तुम) 1/1 युष्मद् शब्द के (सु परे होने पर) 'तं' और 'तुम' (होते हैं)। युष्मद् → तुम्ह शब्द के सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह
और सु के स्थान पर) 'त' और 'तुम' होते हैं। (तुम्ह + सु) : तं, तुमं (प्रथमा एकवचन)
73. तुं चामि 6/27
तुं चामि तुं { (च) + (अमि) } तुं (तुं) 1/1 च : और अमि (अम्) 7/1 .
अम् परे होने पर तुं और ('तं', 'तुम') (होते हैं)।
युष्मद् → तुम्ह शब्द के अंम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर .. (तुम्ह और अम् के स्थान पर) 'तु' और 'तं', 'तुम' होते हैं।
(तुम्ह + अम्) : तुं, तं, तुमं (द्वितीया एकवचन)
74. तुझे तुम्हे जसि 6/28
तुझे (तुझे) 1/1 तुम्हे (तुम्हे) 1/1 जसि (जस्) 7/1 जस् परे होने पर 'तुझे', 'तुम्हे' (होते हैं)। युष्मद् →तुम्ह शब्द के जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह
और जस् के स्थान पर) 'तुझे' और 'तुम्हे' होते हैं।
(तुम्ह + जस्) : तुझे, तुम्हे (प्रथमा बहुवचन) वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(35)
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75. वो च शसि 6/29
वो (वो) 1/1 च : और शसि (शस्) 7/1.. शस् परे होने पर 'वो' और ('तुज्झे' , 'तुम्हे') (होते हैं)। युष्मद् →तुम्ह शब्द के शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह
और शस् के स्थान पर) 'वो' और 'तुझे', 'तुम्हे' होते हैं। . (तुम्ह +शस्) : वो, तुझे, तुम्हे (द्वितीया बहुवचन)
76. टाङ्योस्तइ तए तुमए तुमे 6/30
टाइयोस्तइ तए तुमए तुमे { (टा) + (ड्योः) + (तइ) } तए तुमए तुमे { (टा) - (ङि) 7/2} तइ (तइ) 1/1 तए (तए) 1/1
तुमए (तुमए) 1/1 तुमे (तुमे) 1/1 .. टा और ङि परे होने पर 'तइ', 'तए', 'तुमए' और 'तुमे' (होते हैं)।
युष्मद् → तुम्ह शब्द के टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) और ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह और टा , तुम्ह और डि के स्थान पर) 'तइ', 'तए', 'तुमए' और 'तुमे' होते हैं। (तुम्ह + टा) तइ, तए, तुमए, 'तुमे (तृतीया एकवचन) (तुम्ह + ङि) तइ, तए, तुमए, तुमे (सप्तमी एकवचन)
77. ङसि तुव - तुमो -तुह -तुज्झ - तुम्ह - तुम्माः 6/31
ङसि (ङस्) 7/1 { (तुव)-(तुमो)-(तुह)-(तुज्झ)-(तुम्ह)-(तुम्म) 1/3 } ङस् परे होने पर 'तुव', 'तुमो', 'तुह', 'तुज्झ', 'तुम्ह', 'तुम्म' (होते हैं)। युष्मद् → तुम्ह शब्द के ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह और ङस् के स्थान पर) 'तुव', 'तुमो', 'तुह', 'तुज्झ', 'तुम्ह', 'तुम्म' होते
(तुम्ह + ङस्) - तुव, तुमो, तुह, तुज्झ, तुम्ह, तुम्म (षष्ठी एकवचन)
78.
आङि च ते दे 6/32 आङि (आङ्) 7/1 च : और ते (ते) 1/1 दे (दे) 1/1 आङ् में 'ते', 'दे' (होते हैं) और। युष्मद् → तुम्ह शब्द के आङ् (टा - आङ् अर्थात् तृतीया एकवचन का
(36)
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प्रत्यय) परे होने पर 'ते', 'दे' होते हैं और डस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह और ङस् के स्थान पर) 'ते', 'दे' होते हैं। (तुम्ह + आङ्) : ते, दे (तृतीया एकवचन) (तुम्ह + ङस्) : ते, दे (षष्ठी एकवचन)
79.
तुमाइ च 6/33 तुमाइ (तुमाइ) 1/1 च : और 'तुमाइ' और (ते, दे होते हैं)। युष्मद् → तुम्ह शब्द के आङ् - टा अर्थात् तृतीया एकवचन का प्रत्यय परे होने पर (तुम्ह और आङ् के स्थान पर) 'तुमाइ' और 'ते' 'दे' होते हैं। (तुम्ह + आङ्) - तुमाइ, ते, दे (तृतीया एकवचन)
80. तुज्झेहिं तुम्हेहिं तुम्मेहिं भिसि 6/34
तुज्झेहिं (तुझेहिं) 1/1 तुम्हेहिं (तुम्हेहिँ) 1/1 तुम्मेहिं (तुम्मेहिं) 1/1 भिसि (भिस्) 7/1 भिस् परे होने पर 'तुज्झेहिं', 'तुम्हेहिं', 'तुम्मेहि' (होते हैं)। युष्मद् → तुम्ह शब्द के भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह और भिस् के स्थान पर) 'तुझेहिं', 'तुम्हेहिं', 'तुम्मेहिं' होते हैं। (तुम्ह + भिस्) - तुज्झेहिं, तुम्हेहिं, तुम्मेहिं (तृतीया बहुवचन)
81. ङसौ तत्तो तइत्तो तुमादो तुमादु तुमाहि 6/35
ङसौ (ङसि) 7/1 तत्तो (तत्तो) 1/1 तइत्तो (तइत्तो) 1/1 तुमादो (तुमादो) 1/1 तुमादु (तुमादु) 1/1 तुमाहि (तुमाहि) 1/1 ङसि परे होने पर 'तत्तो', 'तइत्तो', 'तुमादो', 'तुमादु', 'तुमाहि' (होते हैं) युष्मद् → तुम्ह शब्द के ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह और ङसि के स्थान पर) 'तत्तो', 'तइत्तो', 'तुमादो', 'तुमादु', 'तुमाहि' होते हैं। (तुम्ह + ङसि) : तत्तो, तइत्तो, तुमादो, तुमादु, तुमाहि (पंचमी एकवचन)
82. तुम्हाहिन्तो तुम्हासुन्तो भ्यसि 6/36
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तुम्हाहिन्तो ( तुम्हाहिन्तो) 1 / 1 तुम्हासुन्तो ( तुम्हासुन्तो) 1 / 1 भ्यसि (भ्यस्) 7/1
भ्यस् परे होने पर 'तुम्हाहिन्तो', 'तुम्हासुन्तो' (होते हैं) ।
युष्मद् → तुम्ह शब्द के भ्यस् ( पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर ( तुम्ह और भ्यस् के स्थान पर) 'तुम्हाहिन्तो', 'तुम्हासुन्तो' होते हैं । ( तुम्ह + भ्यस् ) = तुम्हाहिन्तो, तुम्हासुन्तो ( पंचमी बहुवचन)
83. वो भे तुज्झाणं तुम्हाणमामि
वो भे तुज्झाणं तुम्हाणमामि
(38)
भे (भे) 1/1
at (at) 1/1 तुम्हाणम् → तुम्हाणं (तुम्हाणं) 1 / 1 आम् परे होने पर 'वो', 'मे', 'तुज्झाणं', 'तुम्हाणं' (होते हैं) ।
6/37
वो भे तुज्झाणं [ ( तुम्हाणम्) + (आमि ) }
युष्मद् → तुम्ह शब्द के आम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर ( तुम्ह
और आम् के स्थान पर) 'वो', 'भे', 'तुज्झाणं', 'तुम्हाणं' होते हैं।
( तुम्ह + आम्)
तुज्झाणं (तुज्झाणं) 1/1
आमि (आम्) 7/1
6/38
84. ङौ तुमम्मि तुमस्सिं ङौ (ङि) 7/1 ङि परे होने पर 'तुमम्मि', 'तुमस्सिं ' (होते हैं)।
तुमम्मि (तुमम्मि ) 1/1
こ
वो, भे, तुज्झाणं, तुम्हाणं (षष्ठी बहुवचन)
युष्मद् तुम्ह शब्द के ङि ( सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर ( तुम्ह और ङि के स्थान पर) 'तुमम्मि', 'तुमस्सिं' होते हैं।
( तुम्ह + ङि) + ङि)
S
तुमम्मि, तुमस्सिं (सप्तमी एकवचन )
6 / 39
85. तुज्झेसु तुम्हेसु सुपि तुज्झेसु ( तुज्झेसु) 1/1 सुप् परे होने पर 'तुज्झेसु', 'तुम्हेसु' (होते हैं) ।
तुम्हेसु ( तुम्हेसु) 1/1
तुमस्सिं (तुमस्सिं) 1/1
सुपि (सुप्) 7/1
युष्मद् तुम्ह शब्द के सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर
( तुम्ह और सुप् के स्थान पर) 'तुज्झेसु', 'तुम्हेसु' होते हैं।
( तुम्ह+ सुप्) तुज्झेसु, तुम्हेसु (सप्तमी बहुवचन)
こ
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86. अस्मदो हमहमहअं सौ 6/40
अस्मदो हमहमहअं सौ { (अस्मदः) + (हम्) + (अहम्) + (अहअं) } सौ अस्मदः (अस्मद्) 6/1 हम् → हं (हं) 1/1 अहम् → अहं (अहं) 1/1 अहअं (अहअं) 1/1 सौ (सु) 7/1 अस्मद् → अम्ह के सु परे होने पर 'हं', 'अहं', 'अहअं' (होते हैं)। अस्मद् → अम्ह के सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और सु के स्थान पर) 'हं', 'अहं', 'अहअं' होते हैं। (अम्ह + सु) : हं, अहं, अहअं (प्रथमा एकवचन)
87.
अहम्मिरमि च 6/41 अहम्मिरमि च { (अहम्मिः ) + (अमि) } च अहम्मिः (अहम्मि) 1/1 अमि (अम्) 7/1 च : और अम् परे होने पर 'अहम्मि' (होता है) और। अस्मद् → अम्ह के अम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर 'अहम्मि' होता है और सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर भी (अम्ह
और सु, अम्ह और अम् के स्थान पर) 'अहम्मि' होता है। (अम्ह + अम्) : अहम्मि (द्वितीया एकवचन) (अम्ह + सु) : अहम्मि (प्रथमा एकवचन)
88.
मं ममं 6/42 .. मं (म) 1/1 ममं (मम) 1/1 'म', 'मम' (होता है)। अस्मद् → अम्ह के अम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह
और अम् के स्थान पर) 'मं', 'मम' होता है। (अम्ह + अम्) : में, ममं (द्वितीया एकवचन)
89.
अम्हे जश्श्सोः 6/43 अम्हे जश्श्सोः अम्हे { (जस्) + (शसोः) } अम्हे (अम्हे) 1/1 { (जस्) + (शस्) 7/2 } जस्, शस् परे होने पर 'अम्हे' (होता है)।
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अस्मद् → अम्ह के जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) , शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और जस्, अम्ह और शस् के स्थान पर) 'अम्हे' (होता है)। (अम्ह + जस्) : अम्हे (प्रथमा बहुवचन) (अम्ह + शस्) : अम्हे (द्वितीया बहुवचन)
90. णो शसि 6/44
णो (णो) 1/1 शसि (शस्) 7/1 . शस् परे होने पर ‘णो' (होता है)। अस्मद् →अम्ह के शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह
और शस् के स्थान पर) 'णो' होता है। . (अम्ह + शस्) : णो (द्वितीया बहुवचन)
91.
आङि मे ममाइ 6/45 आङि (आङ्) 7/1 मे (मे) 1/1 ममाइ (ममाइ) 1/1 आङ् परे होने पर 'मे', 'ममाइ' (होते हैं)। अस्मद् →अम्ह के आङ् (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और आङ् के स्थान पर) 'मे', 'ममाइ' होते हैं। (अम्ह + आङ्) : मे, ममाइ (तृतीया एकवचन)
92.
ॐ च मइ मए 6/46 डी (ङि) 7/1 च : और मइ (मइ) 1/1 मए (मए) 1/1 ङि परे होने पर 'मइ', 'मए' (होते हैं) और। अस्मद् → अम्ह के ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह
और ङि के स्थान पर) 'मइ', 'मए' होते हैं और तृतीया एकवचन में भी 'मइ', 'मए' होते हैं। (अम्ह + ङि) : मइ, मए (सप्तमी एकवचन) (अम्ह + आङ्) : मइ, मए (तृतीया एकवचन)
(40)
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93. अम्हेहिं भिसि 6/47 अम्हेहिं (अम्हेहिं) 1/1 भिस् परे होने पर 'अम्हेहिं' (होता है ) ।
95.
अस्मद् → अम्ह के भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह
और भिस् के स्थान पर) 'अम्हेहिं' होता है।
( अम्ह + भिस्) = अम्हेहिं (तृतीया बहुवचन)
ममादो ( ममादो ) 1 / 1
94. मत्तो महत्तो ममादो ममादु ममाहि ङसौ 6/48 मत्तो ( मत्तो) 1 / 1 महत्तो ( मइत्तो) 1 / 1 ममादु (ममादु) 1/1 ममाहि ( ममाहि) 1 / 1 ङसौ (ङसि) 7/1 ङसि परे होने पर ‘मत्तो', 'मइत्तो', 'ममादो', 'ममादु', 'ममाहि' (होते हैं) अस्मद्→अम्ह के ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और ङसि के स्थान पर) 'मत्तो', 'मइत्तो', 'ममादो', 'ममादु', 'ममाहि' होते हैं । ( अम्ह + ङसि ) मत्तो, मइत्तो, ममादो, ममादु, ममाहि (पंचमी एकवचन)
भिसि (भिस्) 7/1
अम्हाहिन्तो अम्हासुन्तो भ्यसि 6/49
अम्हाहिन्तो (अम्हाहिन्तो) 17 1 अम्हासुन्तो ( अम्हासुन्तो) 1 / 1 भ्यसि (भ्यस्) 7/1
भ्यस् परे होने पर 'अम्हाहिन्तो', 'अम्हासुन्तो' (होते हैं) ।
अस्मद् →अम्ह के भ्यस् ( पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह
और भ्यस् के स्थान पर) 'अम्हाहिन्तो', 'अम्हासुन्तो' होते हैं । ( अम्ह + भ्यस् ) - अम्हाहिन्तो, अम्हासुन्तो ( पंचमी बहुवचन)
96. मे मम मह मज्झ ङसि मे (मे) 1/1 ङसि (ङस्) 7/1
6/50
ममं (मम) 1/1 मह (मह) 1/1
वररुचिप्राकृतप्रकाश ( भाग 1 )
ङस् परे होने पर 'मे', 'मम', 'मह', 'मज्झ' (होते हैं) ।
अस्मद् → अम्ह के ङस् ( षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर ( अम्ह
और ङस् के स्थान पर) 'मे', 'मम', 'मह', 'मज्झ' होते हैं।
( अम्ह + ङस् )
मे, मम, मह, मज्झ (षष्ठी एकवचन )
मज्झ (मज्झ ) 1 / 1
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97. मज्झ णो अम्ह अम्हाणमम्हे आमि 6/51
मज्झ णो अम्ह अम्हाणमम्हे आमि मज्झ णो अम्ह { (अम्हाणम्) +(अम्हे) } आमि मज्झ (मज्झ) 1/1 णो (णो) 1/1 अम्ह (अम्ह) 1/1 . अम्हाणम् → अम्हाणं (अम्हाणं) 1/1 अम्हे (अम्हे) 1/1 आमि (आम्) 7/1 आम् परे होने पर 'मज्झ', 'णो', 'अम्ह', 'अम्हाणं', 'अम्हे' (होते हैं)। अस्मद् → अम्ह के आम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह
और आम् के स्थान पर) 'मज्झ', 'णो', 'अम्ह', 'अम्हाणं'; 'अम्हे' होते हैं। (अम्ह + आम्) : मज्झ, णो, अम्ह, अम्हाणं, अम्हे (षष्ठी बहुवचन)
98.
ॐ ममम्मि ममस्सिं 6/52 डी (ङि) 7/1 ममम्मि (ममम्मि) 1/1 . ममस्सिं (ममस्सि) 1/1 ङि परे होने पर 'ममम्मि', 'ममस्सिं' (होते हैं)। अस्मद् → अम्ह के ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और ङि के स्थान पर) 'ममम्मि', 'ममस्सिं' होते हैं। (अम्ह + ङि) : ममम्मि, ममस्सिं (सप्तमी एकवचन)
99.
अम्हेसु सुपि 6/53 अम्हेसु (अम्हेसु) 1/1 सुपि (सुप्) 7/1 सुप् परे होने पर 'अम्हेसु' (होता है)। अस्मद् → अम्ह के सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह
और सुप के स्थान पर) 'अम्हेसु' होता है। (अम्ह + सुप्) : अम्हेसु (सप्तमी बहुवचन)
100. द्वेर्दो 6/54
द्वेर्दो { (द्वेः) + (दो) } द्वेः (द्वि) 6/1 दो (दो) 1/1 द्वि के स्थान पर 'दो' (होता है)। विभक्ति सम्बन्धी कोई भी प्रत्यय परे रहने पर द्वि के स्थान पर 'दो' (होता है)।
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द्वि → दो इस 'दो' शब्द में 6/60 'शेषोऽदन्तवत् ' सूत्र के अनुसार अकारान्त शब्दों के समान प्रत्यय लग जाएंगे। (मनोरमा टीका के आधार पर)
प्रथमा बहुवचन - दुवे, दोणि (6/57) द्वितीया बहुवचन - दुवे, दोणि (6/57) तृतीया बहुवचन - दोहिं (6/60, 5/5) चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन - दोण्हं (6/59) पंचमी बहुवचन - दोहिन्तो, दोसुन्तो (6/60, 5/7) सप्तमी बहुवचन - दोसु (6/60, 5/10)
101. स्ति 6/55
स्ति { (ः) + (ति) } त्रेः (त्रि) 6/1 ति (ति) 1/1 त्रि के स्थान पर 'ति' (होता है) विभक्ति सम्बन्धी कोई भी प्रत्यय परे रहने पर त्रि के स्थान पर 'ति' होता
त्रि → ति इस 'ति' शब्द में 6/60 'शेषोऽदन्तवत् ' सूत्र के अनुसार अकारान्त शब्दों के समान प्रत्यय लग जाएंगे। (मनोरमा टीका के आधार पर) प्रथमा बहुवचन - तिण्णि (6/56) द्वितीया बहुवचन - तिण्णि (6/56) तृतीया बहुवचन . - तीहिं (6/60, 5/5, 5/18) चतुर्थी. घ षष्ठी बहुवचन - तिण्डं (6/59) पंचमी बहुवचन _ - तीहिन्तो, तीसुन्तो (6/60, 5/7, 5/12) . सप्तमी बहुवचन . - तीसु (6/60, 5/18, 5/10)
102. तिण्णि जश्शस्भ्याम् 6/56
तिण्णि जश्शस्भ्याम् तिण्णि {(जस्) + (शस्भ्याम्)} तिण्णि (तिण्णि) 1/1 { (जस्) - (शस्) 3/2}
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जस्, शस् सहित 'तिण्णि' (होता है)। ति शब्द के जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) सहित 'तिण्णि' होता है। (ति + जस्) : तिण्णि (प्रथमा बहुवचन) (ति + शस्) : तिण्णि (द्वितीया बहुवचन)
103. द्वेर्दुवे दोणि वा 6/57
द्वेर्दुवे दोणि वा { (द्वेः) + (दुवे) } दोणि वा . . द्वेः (द्वि) 6/1 दुवे (दुवे) 1/1 दोणि (दोणि) 1/1 वा : विकल्प से द्वि शब्द के (जस्, शस् सहित) विकल्प से 'दुवे', 'दोणि' (होते हैं)। द्वि शब्द के जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन का . प्रत्यय) सहित विकल्प से 'दुवे', 'दोणि' होते हैं। (दो + जस्) : दुवे, दोणि (प्रथमा बहुवचन) (दो + शस्) : दुवे, दोणि (द्वितीया बहुवचन)
104. चतुरश्चत्तारो चत्तारि 6/58
चतुरश्चत्तारो चत्तारि { (चतुरः) + (चत्तारो) } चत्तारि चतुरः (चतुर्) 6/1 चत्तारो (चत्तारो) 1/1 चत्तारि (चत्तारि) 1/1 चतुर् शब्द के (जस्, शस् सहित) 'चत्तारो', 'चत्तारि' (होते हैं)। चतुर् → चतु शब्द के जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) सहित ‘चत्तारो', 'चत्तारि' होते हैं। (चतु + जस्) : चत्तारो, चत्तारि (प्रथमा बहुवचन) (चतु + शस्) : चत्तारो, चत्तारि (द्वितीया बहुवचन)
105. एषामामो ण्हं 6/59
एषामामो ण्हं { (एषाम्) + (आमः) + (हं) } एषाम् (इदम्) 6/3 आमः (आम्) 6/1 ण्हं (ग्रह) 1/1 इदम् (इन सब) के आम् के स्थान पर ‘ण्हं' (होता है)। इन सबके (द्वि, ति, चतुर् के) आम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) के स्थान पर 'हं' होता है।
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(दो + आम्)
( ति + आम्)
(चतु + आम्)
こ
こ
こ
106. शेषोऽदन्तवत् 6 / 60
शेषोऽदन्तवत् शेषः (शेष) 1/1 शेष (रूप) अकारान्त की तरह ( चलेंगे ) ।
अकारान्त शब्दों के अतिरिक्त आकारान्त, इकारान्त, उकारान्त आदि शब्दों के जिस विभक्ति, वचन के प्रत्यय पूर्व में नहीं बताये गये हैं, उस विभक्ति व वचन में अकारान्त शब्दों के प्रत्यय लगते हैं । शब्दरूप निम्न प्रकार होंगे
{ ( शेषः) + (अदन्तवत् ) }
जस् (प्रथमा बहुवचन) अम् (द्वितीया एकवचन) -
डस् (षष्ठी एकवचन)
दोहं (षष्ठी बहुवचन)
तिन्हं (षष्ठी बहुवचन)
चतुण्डं (षष्ठी बहुवचन)
-
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
-
भिस् (तृतीया बहुवचन) - ङसि (पंचमी एकवचन) -हरीदो, हरीदु, हरीहि, गामणीदो, गामणीदु, गामणीहि, साहूदो, साहूदु, साहूहि, सयंभूदो, सयंभूदु, सयंभूहि, वारीदो, वारीदु,वारीहि, महूदो, महूदु, महूहि, कहादो, कहादु, कहाहि, मईदो, मईदु, मईहि, लच्छीदो, लच्छीदु, लच्छीहि, धेणूदो, धेणूदु, धेणूहि, बहूदो, बहूदु, बहूहि
भ्यस् (पंचमी बहुवचन)
S अदन्तवत् अदन्त की तरह
-
कहा, मई, लच्छी, धेणू, बहू
हरिं, गामणीं, साहुं, सयंभूं, वारिं, महुं, कहं, मईं, लच्छिं, धेणुं, बहुं
कहाहिं, मईहिं, लच्छीहिं, धेहिं, बहूहिं
हरीहिन्तो, हरीसुन्तो, गामणीहिन्तो, गामणीसुन्तो, साहूहिन्तो, साहूसुन्तो, सयंभूहिन्तो, सयंभूसुन्तो, वारीहिन्तो, वारीसुन्तो, महूहिन्तो, महूसुन्तो, कहाहिन्तो, कहासुन्तो, मईहिन्तो, मईसुन्तो, लच्छीहिन्तो, लच्छीसुन्तो, धेणूहिन्तो, धेणूसुन्तो, बहूहिन्तो, बहूसुन्तो हरिस्स, गामणीस्स, वारिस्स,
साहुस्स, सयंभूस्स,
महुस्स
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:
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आम् (षष्ठी बहुवचन) -
ङि (सप्तमी एकवचन) -
हरीण, गामणीण, साहूण, सयंभूण, वारीण, महूण, कहाण, मईण, लच्छीण, घेणूण, बहूण हरिम्मि, गामणीम्मि, साहुम्मि, सयंभूम्मि, वारिम्मि, महुम्मि हरीसु, गामणीसु, साहूसु, सयंभूसु, वारीसु, महूसु, कहासु, मईसु, लच्छीसु, घेणूसु, बहूसु .
सुप् (सप्तमी बहुवचन) -
107. न डिङस्योरेदातौ 6/61
न डिङस्योरेदातौ न { (ङि) + (ङस्योः ) + (एत्) + (आतौ) } न : नहीं { (ङि) - (ङसि) 7/2 } { (एत्) - (आत्) 1/2 } ङि तथा ङसि परे होने पर एत् और आत् नहीं (होते)। इकारान्त और उकारान्त शब्दों से परे ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) होने पर एत्→ए और ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर आत्→आ नहीं होते। (यह सूत्र 6/60 से प्राप्त होनेवाले प्रत्ययों का निषेध सूत्र है)
108. ए भ्यसि 6/62
ए (ए) 1/1 भ्यसि (भ्यस्) 7/1 भ्यस् परे होने पर 'ए' (नहीं होता)। इकारान्त और उकारान्त शब्दों से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अकारान्त शब्दों की तरह ‘एकार' (नहीं होता) (यह सूत्र 6/60 से
प्राप्त होनेवाले प्रत्ययों का निषेध सूत्र है) 109. द्विवचनस्य बहुवचनम् 6/63
द्विवचनस्य (द्विवचन) 6/1 बहुवचनम् (बहुवचन) 1/1 द्विवचन के स्थान पर बहुवचन (होता है)। प्राकृत में द्विवचन नहीं होता। द्विवचन के स्थान पर बहुवचन होता है।
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वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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110. चतुर्थ्याः षष्ठी 6/64
चतुर्थ्याः (चतुर्थी) 6/1 षष्ठी (षष्ठी) 1/1 चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी (होती है)। प्राकृत में चतुर्थी व षष्ठी के लिए एक ही जैसे प्रत्यय प्रयुक्त किये जाते हैं।
111. शेषः संस्कृतात् 9/18
शेषः (शेष) 1/1 संस्कृतात् (संस्कृत) 5/1 शेष (रूप) संस्कृत से (समझना चाहिए)। प्राकृत में बचे हुए शेष शब्दरूपों को संस्कृत के समान समझना चाहिए। ( कहा + सि ) - कहा (प्रथमा एकवचन) सभी संज्ञा शब्दों का संबोधन बहुवचन।
शौरसेनी सूत्र
112. अनावावयुजोस्तययोर्दधौ 12/3 • अनादावयुजोस्तथयोर्दधौ {(अनादौ) + (अयुजोः) + (तथयोः) + (दधौ)}
अनादौ (अनादि) 7/1 अयुजोः ( अयुज् ) 7/2 { (त) - (थ) 6/2} { (द) - (ध) 1/2} अनादि और असंयुक्त 'त' और 'थ' के स्थान पर 'द' और 'ध' (होते हैं)। अनादि (आदि में न रहनेवाले) और असंयुक्त 'त' और 'थ' के स्थान पर क्रमशः 'द' और 'ध' होते हैं। भविष्यति → भविस्सदि तथा → तधा .
113. गिर्जश्शसोर्वा क्लीबे स्वरदीर्घश्च 12/11
णिर्जश्शसोर्वा क्लीबे स्वरदीर्घश्च { (णिः) + (जस् ) + (शसोः) + (वा) } क्लीबे { (स्वर) - (दीर्घः) + (च) } णिः (णि) 1/1 { (जस् ) - (शस्) 6/2} वा - विकल्प से क्लीबे. (क्लीब) 7/1 { (स्वर) - (दीर्घ) 1/1} च - और नपुंसकलिंग में जस् और शस् के स्थान पर विकल्प से 'णि' (होता है) और पूर्व स्वर दीर्घ (होता है)।
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नपुंसकलिंग में जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से 'णि' होता है और पूर्व स्वर दीर्घ होता
(कमल + जस् ) : कमलाणि (कमल + शस् ) : कमलाणि (वारि + जस् ) : वारीणि (वारि + शस् ) : वारीणि (महु + जस् ) : महूणि (महु + शस् ) : महूणि
(प्रथमा बहुवचन) (द्वितीया बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (द्वितीया बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (द्वितीया बहुवचन)
114. शेषं महाराष्ट्रीवत् 12/32
शेषं महाराष्ट्रीवत् { (शेषम्) + (महाराष्ट्रीवत्) } शेषं (शेष) 2/1 महाराष्ट्रीवत् - महाराष्ट्री की तरह शेष रूपों को महाराष्ट्री की तरह (समझना चाहिए) शेष रूपों को महाराष्ट्री की तरह समझना चाहिए।
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पाठ - 2 संज्ञा - शब्दरूप
प्रस्तुत अध्याय मे संज्ञा शब्दों की रूपावली दी जा रही है। इसमें निम्नलिखित शब्दों की रूपावली दी जा रही है -
पुल्लिंग शब्द - देव, हरि, गामणी, साहु, सयंभू, नपुंसकलिंग शब्द - कमल, वारि, महु, स्त्रीलिंग शब्द - कहा, मइ, लच्छी, घेणु, बहू
इन शब्दों के अतिरिक्त कुछ और शब्दों की रूपावली भी दी जा रही है जो विशेष प्रकार से चलती है -
संज्ञावाचक पुल्लिंग शब्द - पिअर, पिउ (पिता) पुल्लिंग शब्द
- राय (राजा) पुल्लिंग शब्द
- अप्प, अप्पाण (आत्मा)
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प्रथमा
द्वितीया
देव (अकारान्त पुल्लिंग) एकवचन
बहुवचन देवो (5/1)
देवा (5/2, 5/11) देवं (5/3)
देवा (5/2, 5/11) .
देवे (5/12) देवेण (5/4, 5/12) देवेहिं (5/5, 5/12) देवस्स (5/8)
देवाण (5/4, 5/11)
तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
देवा, देवादो, देवादु, देवाहि देवेहिन्तो, देवेसुन्तो, (5/6, 5/11) ,देव (5/13) देवाहिन्तो, देवासुन्तो
(5/7, 5/12) देवे, देवम्मि (5/9) देव(5/13) देवेसु (5/10, 5/12) हे देव (5/27)
हे देवा (9/18)
सप्तमी संबोधन
FEEEEEEEEEEEEE
प्रथमा
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
हरि (इकारान्त पुल्लिंग) एकवचन
बहुवचन हरी (5/18)
हरिणो (5/16)
हरीओ (5/16) हरिं (6/60, 5/3) हरिणो (5/14) हरिणा (5/17)
हरीहिं (5/18, 6/60, 5/5) हरिणो (5/15)
हरीण (6/60, 5/4, 5/11) हरिस्स (6/60, 5/8) हरीदो, हरीदु, हरीहि हरीहिन्तो, हरीसुन्तो, (6/60,5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) हरिम्मि (6/60, 5/9, 6/61) हरीसु (6/60, 5/18, 5/10) हे हरि (5/27)
हे हरीओ, हे हरिणो (9/18)
सप्तमी संबोधन
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एकवचन
प्रथमा
EEEEEEE
गामणी (इकारान्त पुल्लिंग)
बहुवचन गामणी (5/18) गामणीणो (5/16)
गामणीओ (5/16) द्वितीया गामणी (6/60, 5/3) गामणीणो (5/14) तृतीया गामणीणा (5/17) गामणीहिं (6/60, 5/18, 5/5) चतुर्थी व गामणिणो (5/15) गामणीण (6/60, 5/4) षष्ठी गामणिस्स (6/60, 5/8) पंचमी गामणीदो, गामणीदु, गामणीहि गामणीहिन्तो, गामणीसुन्तो,
(6/60, 5/6, 6/61) (6/60, 5/7) सप्तमी गामणीम्मि (6/60, 5/9, . गामणीसु (6/60, 5/18, 6/61)
5/10) संबोधन हे गामणी (5/27) हे गामणीणो, हे गामणीओ (9/18)
साहु (उकारान्त पुल्लिंग) एकवचन
बहुवचन प्रथमा . साहू (5/18)
साहुणो (5/16)
साहूओ (5/16) द्वितीया साहुं (6/60, 5/3) साहुणो (5/14) तृतीया साहुणा (5/17) साहूहिं (6/60, 5/18, 5/5) चतुर्थी व साहुणो (5/15)
साहूण (6/60, 5/4, 5/11) षष्ठी साहुस्स (6/60, 5/8) पंचमी साहूदो, साहूदु, साहूहि साहूहिन्तो, साहूसुन्तो,
(6/60,5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) सप्तमी साहुम्मि (6/60, 5/9, 6/61) साहूसु (6/60, 5/18, 5/10) संबोधन हे साहु (5/27) हे साहुणो, हे साहूओ (9/18)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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प्रथमा
EEEEEE
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
सयंभू (ऊकारान्त पुल्लिंग) एकवचन
बहुवचन सयंभू (5/18) सयंभूणो (5/16) ...
सयंभूओ (5/16) सयंभू (6/60, 5/3) .. सयंभूणो (5/14) सयंभूणा (5/17) सयंभूहिं (6/60, 5/18, 5/5) सयंभूणो (5/15)
सयंभूण (6/60, 5/4) सयंभूस्स (6/60, 5/8) सयंभूदो, सयंभूदु, सयंभूहि सयंभूहिन्तो, सयंभूसुन्तो, (6/60, 5/6, 6/61) (6/60, 5/7) सयंभूम्मि (6/60, 5/9, सयंभूसु (6/60, 5/18, 5/10) 6/61) हे सयंभू (5/27) हे सयंभूणो, हे सयंभूओ (9/18)
सप्तमी
संबोधन
E EEEEEEEEE
कमल (अकारान्त नपुंसकलिंग) एकवचन
बहुवचन प्रथमा कमलं (5/30) कमलाइं (5/26), कमलाणि (12/11) द्वितीया कमलं ( 5/3) कमलाइं (5/26), कमलाणि (12/11) तृतीया कमलेण ( 5/4, 5/12)* कमलेहिं ( 5/5, 5/12) चतुर्थी व कमलस्स (5/8) कमलाण ( 5/4, 5/11) षष्ठी पंचमी कमला, कमलादो, कमलादु, कमलेहिन्तो, कमलेसुन्तो,
कमलाहि (5/6, 5/11) कमलाहिन्तो, कमलासुन्तो
कमल (5/13) (5/7, 5/12) सप्तमी कमले, कमलम्मि (5/9) कमलेसु ( 5/10, 5/12)
कमल (5/13) संबोधन हे कमल (5/27) हे कमलाइं (9/18) * नोट - कातन्त्ररूपमाला के सूत्र संख्या 240 के अनुसार तृतीया से सप्तमी तक के नपुंसकलिंग शब्दों की रूपावली पुल्लिंग शब्दों के समान चलती है, इसीलिए सूत्रकार ने तृतीया से सप्तमी तक के प्रत्ययों का उल्लेख नहीं किया।
(52)
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प्रथमा
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
वारि (इकारान्त नपुंसकलिंग) एकवचन
बहुवचन वारिं (5/30)
वारीइं (5/26), वारीणि (12/11) वारिं (6/60, 5/3) वारीइं (5/26), वारीणि (12/11) वारिणा (5/17)*
वारीहिं (6/60, 5/18, 5/5) वारिणो (5/15)
वारीण (6/60, 5/4, 5/11) वारिस्स (6/60, 5/8) वारीदो, वारीदु, वारीहि वारीहिन्तो, वारीसुन्तो, (6/60, 5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) वारिम्मि (6/60, 5/9, 6/61) वारीसु (6/60, 5/18, 5/10) हे वारि (5/27) . हे वारीइं (9/18)
सप्तमी संबोधन
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
महु (उकारान्त नपुंसकलिंग) एकवचन
बहुवचन महुं (5/30)
महूइं (5/26), महूणि (12/11) महुं (6/60, 5/3) महूई (5/26), महूणि (12/11) महुणा (5/17)* महूहिं (6/60, 5/18, 5/5) महुणो (5/15)
महूण (6/60, 5/4, 5/11) महुस्स (6/60, 5/8) महूदो, महूदु, महूहि महूहिन्तो, महसुन्तो (6/60,5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) महुम्मि (6/60, 5/9, 6/61) महूसु (6/60, 5/18, 5/10) हे महु (5/27) . हे महूई (9/18)
सप्तमी संबोधन
*नोट - कातन्त्ररूपमाला के सूत्र संख्या 240 के अनुसार तृतीया से सप्तमी तक के नपुंसकलिंग शब्दों की रूपावली पुल्लिंग शब्दों के समान चलती है, इसीलिए सूत्रकार ने तृतीया से सप्तमी तक के प्रत्ययों का उल्लेख नहीं किया।
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प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
संबोधन
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
(54)
कहा ( आकारान्त स्त्रीलिंग)
बहुवचन
कहाउ, कहाओ (5/20) कहा (6/60, 5/2) · कहाउ, कहाओ (5/19) कहाहिं ( 6/60, 5 / 5 ) कहाण ( 6 / 60, 5/4)
एकवचन
chel (9/18)
कहं (5/21, 6/60, 5/3)
कहाइ, कहाए (5/22, 5 / 23 ) कहाइ, कहाए (5/22, 5 / 23 )
कहादु, काहि
कहादो, (6/60,5/6, 6/61) कहाइ, कहाए (5/22, 5/ 23 ) कहासु ( 6/60, 5/10 ) हे कहाउ, हे कहाओ, हे कहा ( 9 / 18 )
कहाहिन्तो, कहासुन्तों (6/60, 5/7)
हे कहे (5/28)
एकवचन
मई ( 5 / 18 ) *
मइ (इकारान्त स्त्रीलिंग)
मई (5/21, 6/60, 5/3)
मइअ, मइआ, मइइ,
मइए (5/22)
मइअ, मइआ, मइइ,
मइए (5/22)
संबोधन
मइ (5/27)
* सुबोधिनी टीका के आधार पर ।
मइअ, मइआ, मइइ,
मइए (5/22)
मईदो, मईदु, मईहि
(6/60, 5/6, 5/11, 6/61)
बहुवचन मइउ, मइओ (5/20)
मई (6/60, 5/2, 5/11 ) मइउ, मइओ (5/19) मईहिं ( 6/60, 5/5, 5 / 18 )
मईण (6/60, 5/4, 5/11)
मईहिन्तो, मईसुन्तो
(6/60, 5/7, 5/12) मईसु ( 6 / 60, 5 / 10, 5 / 18 )
हे मइउ, हे मइओ, हे मई ( 9 / 18 )
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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प्रथमा
लच्छी (ईकारान्त स्त्रीलिंग) एकवचन
बहुवचन प्रथमा लच्छी (5/18)* लच्छीउ, लच्छीओ (5/20)
लच्छी (6/60, 5/2) द्वितीया लच्छिं (5/21, 6/60, 5/3) लच्छीउ, लच्छीओ (5/19) तृतीया लच्छीअ, लच्छीआ, लच्छीइ लच्छीहिं (6/60, 5/5)
. लच्छीए (5/22) चतुर्थी व लच्छीअ, लच्छीआ, लच्छीइ, लच्छीण (6/60, 5/4) षष्ठी लच्छीए (5/22) पंचमी लच्छीदो, लच्छीदु, लच्छीहि लच्छीहिन्तो, लच्छीसुन्तो
(6/60, 5/6, 6/61) . (6/60, 5/7) सप्तमी लच्छीअ, लच्छीआ, लच्छीइ, लच्छीसु (6/60, 5/10)
लच्छीए (5/22) संबोधन हे लच्छि (5/29) हे लच्छीउ,हे लच्छीओ,
हे लच्छी (9/18) घेणु (उकारान्त स्त्रीलिंग) एकवचन
बहुवचन प्रथमा घेणू (5/18)*
घेणुउ, घेणुओ (5/20)
धेणू (6/60, 5/2, 5/11) द्वितीया धेj (5/21, 6/60, 5/3) घेणुउ, घेणुओ (5/19) तृतीया घेणुअ, घेणुआ, घेणुइ, धेहिं (6/60, 5/5, 5/18)
धेणुए (5/22) चतुर्थी व घेणुअ, घेणुआ, घेणुइ, घेणूण (6/60, 5/4, 5/11) षष्ठी घेणुए (5/22). पंचमी घेणूदो, घेणू, धेहि घेणूहिन्तो, धेणूसुन्तो
(6/60, 5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) सप्तमी घेणुअ, घेणुआ, घेणुइ, . घेणूसु (6/60, 5/10, 5/18)
घेणुए (5/22) संबोधन हे घेणु (5/27) हे घेणुउ, हे घेणुओ, हे घेणू (9/18) * सुबोधिनी टीका के आधार पर।
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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प्रथमा
बहू (ऊकारान्त स्त्रीलिंग) एकवचन
बहुवचन बहू (5/18)* बहूउ, बहूओ (5/20)
बहू (6/60, 5/2) द्वितीया बहुं (5/21, 6/60, 5/3) बहूउ, बहूओ (5/19) तृतीया बहूअ, बहूआ, बहूइ, बहूहिं (6/60, 5/5)
बहूए (5/22) चतुर्थी व बहूअ, बहूआ, बहूइ, बहूए, बहूण (6/60, 5/4) षष्ठी (5/22) पंचमी बहूदो, बहूदु, बहूहि बहूहिन्तो, बहूसुन्तो
(6/60, 5/6, 6/61) (6/60, 5/7) .. सप्तमी ___बहूअ, बहूआ, बहूइ, बहूसु (6/60, 5/10)
बहूए (5/22) संबोधन हे बहु (5/29) हे बहूउ, हे बहूओ, हे. बहू (9/18) * सुबोधिनी टीका के आधार पर।
प्रथमा
पिअर : पिता (अकारान्त की तरह रूप) . एकवचन
बहुवचन पिआ (5/35),
पिअरा (5/34, 5/2,5/11) पिअरो (5/34, 5/1) द्वितीया पिअरं (5/34, 5/3) . पिअरा (5/34, 5/2, 5/11)
पिअरे (5/34, 5/12) तृतीया पिअरेण (5/34, 5/4, 5/12) पिअरेहिं (5/34, 5/5, 5/12) चतुर्थी व पिअरस्स (5/34, 5/8) पिअराण (5/34, 5/4, 5/11) षष्ठी पंचमी पिअरा, पिअरादो, पिअरादु, पिअरेहिन्तो, पिअरेसुन्तो,
पिअराहि (5/34, 5/6, 5/11) पिअराहिन्तो, पिअरासुन्तो
पिअर (5/34, 5/13) (5/34, 5/7, 5/12) सप्तमी पिअरे, पिअरम्मि (5/34,5/9) पिअरेसु (5/34, 5/10, 5/12)
पिअर (5/34, 5/13) संबोधन हे पिअर (5/27) हे पिअरा (9/18)
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वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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एकवचन
पिउ : पिता (उकारान्त की तरह रूप)
बहुवचन पिउणो (5/33, 5/16)
पिउणो (5/33, 5/14) पिउणा (5/33, 5/17) पिउणो (5/33, 5/15)
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी संबोधन
पिऊसु (5/33, 5/18, 5/10)
EEEEEEEEEEEE
प्रथमा द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
राअ (राजा) एकवचन
बहुवचन राआ (5/36)
राआणो (5/38, 5/44) राअं (6/60, 5/3) राआणो (5/38, 5/44)
राए (5/39) राइणा (5/41, 5/43) राएहिं (6/60, 5/5, 5/12) रण्णा (5/42, 5/41) राइणो (5/38, 5/43) राआणं (5/40, 5/44) . रण्णो (5/42) राआ, राआदो, राआदु, राआहि राएहिन्तो, राएसुन्तो, (6/60, 5/6, 5/11) राआहिन्तो, राआसुन्तो
(6/60, 5/7, 5/12) राए, राअम्मि
राएसु (6/60,5/10, 5/12) (6/60, 579) हे राअं (5/37) हे राआणो (9/18)
सप्तमी
संबोधन
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(57)
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Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
EEEEEE
अप्प (राअ की तरह रूप) एकवचन
बहुवचन अप्पा (5/46, 5/36) अप्पाणो (5/46, 5/38, 5/44) अप्पं (5/46, 6/60, 5/3) अप्पाणो (5/46, 5/38, 5/44)
अप्पे (5/46, 5/39) अप्पणा (5/46, 5/41) अप्पेहिं (6/60, 5/5, 5/12) अप्पणो (5/46, 5/38) अप्पाणं (5/46, 5/40, 5/44)
तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
अप्पा, अप्पादो, अप्पादु, अप्पाहि (6/60, 5/6, 5/11) अप्पे, अप्पम्मि (6/60,5/9) हे अप्पं (5/46, 5/37)
अप्पेहिन्तो, अप्पेसुन्तो, अप्पाहिन्तो, अप्पासुन्तो (6/60, 5/7, 5/12) अप्पेसु (6/60,5/10, 5/12) हे अप्पाणो (9/18) .
सप्तमी संबोधन
E
प्रथमा द्वितीया
अप्पाण (अकारान्त पुल्लिंग की तरह रूप ) एकवचन
'बहुवचन अप्पाणो (5/45, 5/1) अप्पाणा (5/45, 5/2, 5/11) अप्पाणं (5/45, 5/3) .. अप्पाणा (5/45, 5/2, 5/11)
अप्पाणे (5/45, 5/12) अप्पाणेण (5/45,5/4, 5/12) अप्पाणेहिं (5/45, 5/5, 5/12) अप्पाणस्स (5/45, 5/8) अप्पाणाण (5/45, 5/4, 5/11)
EEEE
तृतीया चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
अप्पाणा, अप्पाणादो, अप्पाणादु, अप्पाणेहिन्तो, अप्पाणेसुन्तो, अप्पाणाहि (5/45, 5/6, 5/11) अप्पाणाहिन्तो, अप्पाणासुन्तो अप्पाण (5/45, 5/13) (5/45, 5/7, 5/12) अप्पाणे,अप्पाणम्मि (5/45,5/9) अप्पाणेसु (5/45,5/10, 5/12) अप्पाण (5/45, 5/13) हे अप्पाण (5/45, 5/27) हे अप्पाणा (9/18)
सप्तमी
संबोधन
(58)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #66
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________________
3
सर्वनाम
शब्दरूप
प्रस्तुत अध्याय मे सर्वनाम शब्दों की रूपावली दी जा रही है । इसमें निम्नलिखित
शब्दों की रूपावली दी जा रही है
पुल्लिंग शब्द
नपुंसकलिंग शब्द
स्त्रीलिंग शब्द
तीनों लिंगों में
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
-
-
पाठ
एकवचन
सव्वो ( 5/1)
सव्वं ( 5/3)
सव्व, त, ज, क, एत, इम, अमु
-
सव्व, त, ज, क, एत, इम, अमु
सव्वा, ता, ती, जा, जी, का, की, एता, इमा, अमु
अम्ह, तुम्ह
पुल्लिंग
सव्वेण (5/4, 5/12)
सव्वस ( 5/8 )
सव्वस्सिं सव्वम्मि, सव्वत्थ (6/2 )
1
वररुचिप्राकृतप्रकाश ( भाग 1 )
-
-
सव्व (सब)
सव्वा, सव्वादो, सव्वादु, सव्वाहि सव्वेहिन्तो, सव्वेसुन्तो,
(5/6, 5/11)
सव्वाहिन्तो, सव्वासुन्तो (5/7, 5/12)
सव्वेसु ( 5 / 10, 5/12)
बहुवचन
सव्वे (6/1 )
सव्वे (5/12)
सव्वा (5/2, 5/11 )
सव्वेहिं (5/5, 5/12)
सव्वाण ( 5/4, 5/11 )
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(59)
Page #67
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________________
प्रथमा द्वितीया
तृतीया
पुल्लिंग - त (वह). एकवचन
बहुवचन सो (6/22, 5/1) ते (6/1) तं (5/3)
ते (5/12)
ता (5/2, 5/11) तिणा (6/3)
तेहिं (5/5, 5/12) तेण (5/4, 5/12) तास (6/5), से (6/11) तेसिं (6/4), सिं (6/12) तस्स (5/8)
ताण (5/4, 5/11) तत्तो, तदो (6/9) ताहिन्तो, तासुन्तो, तेहिन्तो, तो (6/10)
तेसुन्तो (5/7, 5/12) तस्सिं, तम्मि, तत्थ (6/2) तेसु (5/10, 5/12) तहिं (6/7) ताहे, तइआ (6/8)
चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
पुल्लिंग - ज (जो) एकवचन
बहुवचन जो (5/1)
जे (6/1) जं (5/3)
जे (5/12)
जा (5/2, 5/11) जिणा (6/3)
जेहिं (5/5, 5/12) जेण (5/4, 5/12) जास (6/5)
जेसिं (6/4) जस्स (5/8)
जाण (5/4, 5/11) जत्तो, जदो (6/9) जाहिन्तो, जासुन्तो, जेहिन्तो,
जेसुन्तो (5/7, 5/12) जस्सिं, जम्मि, जत्थ (6/2) जेसु (5/10, 5/12) जहिं (6/7) जाहे, जइआ (6/8)
चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
सप्तमी
(60)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #68
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________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
पुल्लिंग - क (कौन) एकवचन
बहुवचन को (5/1)
के (6/1) कं (5/3)
के (5/12)
का (5/2, 5/11) किणा (6/3)
केहिं (5/5, 5/12) केण (5/4, 5/12) कास (6/5)
केसिं (674) कस्स ( 5/8) . काण (5/4, 5/11) कत्तो, कदो (6/9) काहिन्तो, कासुन्तो, केहिन्तो,
केसुन्तो (5/7, 5/12) कस्सिं, कम्मि, कत्थ (6/2) केसु ( 5/10, 5/12) कहिं (6/7) काहे, कइआ (6/8) .
चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
सप्तमी
पुल्लिंग - एत (यह) एकवचन
बहुवचन एसो (6/19, 6/22)
एते (6/1) एस (6/19) द्वितीया एतं (5/3)
एते (5/12)
एता (5/2, 5/11) तृतीया एतिणा (6/3) . एतेहिं (5/5, 5/12)
एतेण (5/4, 5/12) चतुर्थी व . एतस्स (5/8)
एतेसिं (6/4)
एताण (5/4, 5/11) पंचमी एत्तो (6/20, 6/21) एताहिन्तो, एतासुन्तो, एतेहिन्तो, __एता, एतादो, एतादु, एताहि एतेसुन्तो ( 5/7, 5/12)
(5/6, 5/11) सप्तमी · एतस्सिं, एतम्मि, एतेसु ( 5/10, 5/12)
... एत्थ (6/2,6/21)
षष्ठी
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(61)
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Page #69
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________________
प्रथमा द्वितीया
तृतीया
पुल्लिंग - इम (यह) . एकवचन
बहुवचन इमो ( 5/1)
इमे (6/1) इमं (5/3)
इमे (5/12)
इमा (5/2, 5/11) इमिणा (6/3)
इमेहिं (5/5, 5/12) इमेण ( 5/4, 5/12) अस्स (6/15, 5/8) इमेसिं (6/4) इमस्स (5/8)
इमाण (5/4, 5/11) इमा, इमादो, इमादु, इमाहि इमाहिन्तो, इमासुन्तो, इमेहिन्तो, . (5/6, 5/11) इमेसुन्तो ( 5/7, 5/12) अस्सिं (6/2, 6/15) इमेसु ( 5/10, 5/12) इमस्सिं, इमम्मि (6/2, 6/17) इह (6/16)
चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
EEEEEEE
तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
पुल्लिंग - अमु (वह) एकवचन
___ बहुवचन अह (6/24)
-
अमुणो (5/16), अमूओ (5/16)
अमणो / अमू (5/18) अमुं (6/60, 5/3) . अमुणो (5/14) अमुणा (5/17) अमूहिं (6/60, 5/18, 5/5) अमुस्स (6/60, 5/8) अमूणं (6/60, 5/4, 5/11) अमुणो (5/15) अमूदो, अमूदु, अमूहि अमूहिन्तो, अमूसुन्तो (6/60, 5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) अमुस्सिं, अमुम्मि, अमुत्थ (6/2) अमूसु (6/60, 5/18, 5/10)
सप्तमी
(62)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #70
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________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी.
नपुंसकलिंग - सव्व (सब)
बहुवचन
सव्वाइं (5/26), सव्वाणि ( 12 / 11 ) सव्वाइं (5/26), सव्वाणि ( 12 / 11 ) सव्वेहिं (5/5, 5/12)
सव्वाण ( 5/4, 5/11 )
एकवचन
सव्वं ( 5/30)
सव्वं ( 5/3)
सव्वेण ( 5/4, 5/12)
सव्वस्स ( 5/8)
सव्वा, सव्वादो, सव्वादु, सव्वाहि सव्वेहिन्तो, सव्वेसुन्तो,
(5/6, 5/11)
सव्वाहिन्तो, सव्वासुन्तो (5/7, 5/12)
सव्वेसु ( 5 / 10, 5 / 12 )
सव्वस्सिं, सव्वम्मि, सव्वत्थ (6/2)
एकवचन
तं (5/30)
तं ( 5/3)
तिणा (673)
नपुंसकलिंग त ( वह )
तेण ( 5/4, 5 / 12 )
तास ( 6 / 5 ) से (6/11 )
तस्स (5/8)
तत्तो, तदो (69)
at (6/10) तस्सिं, तम्मि, तत्थ (6/2)
तहिं (677)
ता, तइआ (6/8)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
बहुवचन
ताइं (5/26), ताणि ( 12 / 11 ) ताइं ( 5/26), ताणि ( 12 / 11 ) तेहिं (5/5, 5/12)
afi (6/4), fi (6/12)
ताण (5/4, 5/11) ताहिन्तो, तासुन्तो, तेहिन्तो, agat (5/7, 5/12) तेसु ( 5 / 10, 5 / 12 )
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(63)
Page #71
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________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
(64)
नपुंसकलिंग
एकवचन
जं ( 5/30)
जं ( 5/3)
जिणा (6/3)
जेण ( 5/4, 5/12)
जास (6/5)
जस्स (578)
जत्तो, जदो (69)
जस्सिं, जम्मि, जत्थ (6/2) जहिं ( 6/7)
जाहे, जइआ (6/8)
एकवचन
कं ( 5/30)
कं ( 5/3)
किणा (6/3)
केण ( 5/4, 5 / 12 )
कास (6/5)
कस्स (5/8)
कत्तो, कदो ( 6/9 )
कस्सिं, कम्मि, कत्थ (6/2)
कहिं (677) काहे, कइआ (6/8)
ज (जो)
नपुंसकलिंग - क (कौन)
बहुवचन
काई (5/26), काणि ( 12 / 11 ) काई (5/26), काणि ( 12 / 11 )
केहिं ( 5 / 5, 5 / 12 )
बहुवचन
जाई (5/26), जाणि ( 12/11 ) जाई (5/26), जाणि ( 12 / 11 )
जेहिं ( 5/5, 5/12)
जेसिं (6/4)
जाण ( 5/4, 5 / 11 ) . जाहिन्तो, जासुन्तो, जेहिन्तो, सुन्तो ( 5/7, 5/12)
जेसु ( 5 / 10,5 / 12 )
केसिं (6/4)
काण ( 5/4, 5 / 11 ) काहिन्तो, कासुन्तो, केहिन्तो, सुन्तो ( 5/7, 5 / 12 ) केसु ( 5 / 10, 5 / 12 )
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
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Page #72
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________________
प्रथमा
नपुंसकलिंग - एत (यह) एकवचन
बहुवचन एतं ( 5/30)
एताइं (5/26), एताणि (12/11) द्वितीया एतं ( 5/3)
एताइं (5/26), एताणि (12/11) तृतीया एतिणा (6/3)
एतेहिं ( 5/5, 5/12) एतेण ( 5/4, 5/12) चतुर्थी व एतस्स (5/8)
एतेसिं (6/4)
एताण (5/4, 5/11) पंचमी एत्तो (6/20, 6/21) एताहिन्तो, एतासुन्तो, एतेहिन्तो,
एता, एतादो, एतादु, एताहि एतेसुन्तो (5/7, 5/12)
(5/6, 5/11) सप्तमी एतस्सिं, एतम्मि, एत्थ (6/2,6/21) एतेसु (5/10, 5/12)
षष्ठी
EEEEEEEEEEEEE
प्रथमा
द्वितीया तृतीया
चतुर्थी व षष्ठी
नपुंसकलिंग - इम (यह) एकवचन
बहुवचन इदं, इणं, इणमो (6/18) इमाइं (5/26), इमाणि (12/11) । इदं, इणं, इणमो (6/18) इमाइं (5/26), इमाणि (12/11) इमिणा (6/3)
इमेहिं (5/5, 5/12) इमेण (5/4, 5/12) अस्स (6/15, 5/8) . इमेसिं (6/4) इमस्स ( 5/8)
इमाण (5/4, 5/11) इमा, इमादो, इमादु, इमाहि इमाहिन्तो, इमान्तो, इमेहिन्तो, - (5/6, 5/11)
इमेसुन्तो (5/7, 5/12) अस्सिं (6/2, 6/15) इमेसु ( 5/10, 5/12) इमस्सिं, इमम्मि (6/2, 6/17) इह (6/16)
पंचमी
सप्तमी
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(65)
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बहुवचन
प्रथमा
द्वितीया
नपुंसकलिंग - अमु (वह) एकवचन अमुं (6/60, 5/30) अमूइं (6/60, 5/26) अह (6/24)
अमूणि (6/60, 12/11) अमुं (6/60, 5/3) अमूइं (6/60, 5/26),
अमूणि (6/60, 12/11) अमुणा (5/17)
अमूहिं (6/60, 5/18, 5/5) अमुस्स (6/60, 5/8) अमूण (6/60, 5/4, 5/11) अमुणो (5/15) अमूदो, अमृदु, अमूहि अमूहिन्तो, अमूसुन्तो (6/60, 5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) अमुस्सिं, अमुम्मि, अमुत्थ (6/2) अमूसु (6/60, 5/18, 5/10)
तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
स्त्रीलिंग - सव्वा (सब) एकवचन
बहुवचन सव्वा (9/18)
सव्वाउ, सव्वाओ (5/20)
सव्वा (6/60, 5/2) सव्वं (5/21, 6/60, 5/3) सव्वाउ, सव्वाओ (5/19) सव्वाइ, सव्वाए (5/22, 5/23) सव्वाहिँ (6/60, 5/5) सव्वाइ, सव्वाए (5/22, 5/23) सव्वाण (6/60, 5/4)
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सव्वादो, सव्वादु, सव्वाहि सव्वाहिन्तो, सव्वासुन्तो (6/60,5/6, 6/61) (6/60, 5/7) सव्वाइ, सव्वाए (5/22, 5/23) सव्वासु (6/60, 5/10)
सप्तमी
(66)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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________________
प्रथमा
स्त्रीलिंग - ता (वह) एकवचन
बहुवचन सा (6/22, 9/18) ताउ, ताओ (5/20)
ता (6/60, 5/2) तं (5/21, 6/60, 5/3) ताउ, ताओ (5/19) ताइ, ताए (5/22, 5/23) ताहिं (6/60, 5/5) ताइ, ताए (5/22, 5/23) ताण (6/60, 5/4)
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
नादो ताद ताहि तादो, तादु, ताहि (6/60,5/6, 6/61) ताइ, ताए (5/22, 5/23).
ताहिन्तो, तासुन्तो (6/60, 5/7) तासु (6/60, 5/10)
सप्तमी
प्रथमा
स्त्रीलिंग - ती (वह). एकवचन
बहुवचन ती (5/18)*
तीउ, तीओ (5/20)
ती (6/60, 5/2) द्वितीया तिं (5/21, 6/60, 5/3) तीउ, तीओ (5/19) तृतीया तीअ, तीआ, तीइ, तीए (5/22) तीहिं (6/60, 5/5) चतुर्थी व तीअ, तीआ, तीइ, . तीण (6/60, 5/4) षष्ठी तीए (5/22) पंचमी तीदो, तीदु, तीहिं तीहिन्तो, तीसुन्तो
(6/60, 5/6, 6/61) (6/60, 5/7) सप्तमी तीअ, तीआ, तीइ, तीसु (6/60, 5/10)
तीए (5/22)
* सुबोधिनी टीका के आधार पर।
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प्रथमा
स्त्रीलिंग - जा (जो) एकवचन
बहुवचन जा (9/18)
जाउ, जाओ (5/20)
जा (6/60, 5/2) जं (5/21, 6/60, 5/3) जाउ, जाओ (5/19) : जाइ, जाए (5/22, 5/23) जाहिं (6/60, 5/5) जाइ, जाए (5/22, 5/23) जाण (6/60, 5/4)
.
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
जादो, जादु, जाहि (6/60,5/6, 6/61) . जाइ, जाए (5/22, 5/23)
जाहिन्तो, जासुन्तो (6/60, 5/7) । जासु (6/60, 5/10)
सप्तमी
EEEEEEEEEEE
स्त्रीलिंग - जी (जो) एकवचन
बहुवचन प्रथमा जी (5/18)*
जीउ, जीओ (5/20)
जी (6/60, 5/2) द्वितीया जिं (5/21, 6/60, 5/3) जीउ, जीओ (5/19) तृतीया जीअ, जीआ, जीइ, जीहिं (6/60, 5/5)
जीए (5/22) चतुर्थी व जीअ, जीआ, जीइ, जीण (6/60, 5/4) षष्ठी जीए (5/22) पंचमी जीदो, जीदु, जीहि जीहिन्तो, जीसुन्तो
(6/60, 5/6, 6/61) (6/60, 5/7) सप्तमी जीअ, जीआ, जीइ, जीसु (6/60, 5/10)
जीए (5/22)
* सुबोधिनी टीका के आधार पर।
(68)
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प्रथमा
द्वितीया
तृतीया चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
एकवचन
का ( 9 / 18 )
सप्तमी
स्त्रीलिंग
कं (5/21, 6/60, 5 / 3 )
काइ, काए (5/22, 5 / 23 ) काइ, काए (5/22, 5/23)
एकवचन
की (5/18) *
कादो,
कादु, काहि (6/60,5/6, 6/61)
काइ, काए (5/22, 5/23)
स्त्रीलिंग
कीए (5/22)
कीदो, की, कहि
किं (5/21, 6/60, 5/3)
कीअ, कीआ, कीइ,
कीए (5/22)
कीअ, कीआ, कीइ,
(6/60, 5/6, 6/61) कीअ, कीआ, कीइ,
कीए (5/22)
* सुबोधिनी टीका के आधार पर ।
का ( कौन)
-
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
बहुवचन काउ, काओ (5/20) का (6/60, 5/2)
काउ, काओ (5/19) काहिं (6/60, 5/5) काण (6/60, 5/4)
काहिन्तो, कासुन्तो (6/60, 5/7)
कासु ( 6 / 60, 5 / 10 )
की (कौन)
बहुवचन
कीउ, कीओ (5/20)
की (6/60, 5/2) कीउ, कीओ (5/19) कीहिं ( 6/60, 5/5 )
T (6/60, 5/4)
कीहिन्तो, कीसुन्तो (6/60, 5/7)
कीसु ( 6/60, 5 / 10 )
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(69)
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्त्रीलिंग - एता (यह) एकवचन
बहुवचन प्रथमा एसा (6/22, 9/18) एताउ, एताओ (5/20)
एता (6/60, 5/2) द्वितीया एतं (5/21, 6/60, 5/3) एताउ, एताओ (5/19) तृतीया एताइ, एताए (5/22, 5/23) एताहिं (6/60, 5/5) . चतुर्थी व एताइ, एताए (5/22, 5/23) एताण (6/60, 5/4) . .
षष्ठी
पंचमी
एतादो, एतादु, एताहि एताहिन्तो, एतासुन्तो (6/60,5/6, 6/61) . (6/60, 5/7) एताइ, एताए (5/22, 5/23) एतासु (6/60, 5/10)
सप्तमी
प्रथमा
स्त्रीलिंग - इमा (यह) एकवचन
बहुवचन इमा (9/18)
इमाउ, इमाओ (5/20)
इमा (6/60, 5/2) इमं (5/21, 6/60, 5/3) इमाउ, इमाओ (5/19) इमाइ, इमाए (5/22, 5/23) इमाहिं (6/60, 5/5) इमाइ, इमाए (5/22, 5/23) इमाण (6/60, 5/4)
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
इमादो, इमादु, इमाहि इमाहिन्तो, इमासुन्तो (6/60,5/6, 6/61) (6/60, 5/7) इमाइ, इमाए (5/22, 5/23) इमासु (6/60, 5/10)
सप्तमी
(70)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
स्त्रीलिंग
सुबोधिनी टीका के आधार पर ।
अमुअ, अमुआ, अमुइ, अमुए (5/22),
एकवचन
अमू (5/18) •
3TE (6/24)
अमुं (5/21, 6/60, 5/3)
अमुअ, अमुआ, अमुइ, अमुए (5/22)
अमुअ, अमुआ, अमुइ,
अमुए (5/22)
अमूदो, अमूदु, अमूहि
(6/60, 5/6, 5/11, 6/61)
-
तीनों लिंगों में .
मत्तो, मइत्तो, ममादो,
ममाहि (6/48)
एकवचन
हं, अहं, अहअं (6/40)
अहम्मि (6/41 )
अहम्मि (6/41)
मं, ममं (6/42)
मे, ममाइ ( 6/45 )
मइ, मए ( 6/46)
मे, मम, मह, मज्झ (6/50)
मइ, मए ( 6/46) ममम्मि ममस्सिं (6 / 52 )
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
अमु (वह)
ममादु,
बहुवचन अमुउ, अमुओ (5/20) अमू (6/60, 5/2, 5/11) अमुउ, अमुओ (5/19) अमूहिं ( 6/60, 5/5, 5 / 18 )
अमूण ( 6/60, 5/4, 5 / 11 )
अमूहिन्तो, अमूसुन्तो (6/60, 5/7, 5/12) अमूसु ( 6 / 60, 5 / 10, 5 / 18 )
अम्ह (मैं)
बहुवचन अम्हे (6/43)
अम्हे (6/43)
णो (6/44) अम्हेहिं ( 6/47 )
मज्झ, णो, अम्ह, अम्हाणं,
अम्हे (6/51) अम्हाहिन्तो, अम्हासुन्तो ( 6/49)
अम्हेसु (6/53)
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(71)
Page #79
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________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
(72)
तीनों लिंगों में
-
एकवचन
तं तुमं (6 / 26 )
तुं, तं, तुमं (6/27)
तइ, तए, तुमए, तुमे (6/30) ते, दे (6/32), तुमाइ (6/33)
तुव, तुमो, तुह, तुज्झ, तुम्ह, तुम्म (6/31), ते, दे (6/32) तत्तो, तइत्तो, तुमादो, तुमादु,
तुम्ह (तुम)
बहुवचन तुम्हे, तुझे (6/28) वो, तुम्हे, तुझे (6/29) तुज्झेहिं, तुम्हेहिं, तुम्मेहिं ( 6/34)
वो, भे, तुज्झाणं, तुम्हाणं (6/37)
तुम्हाहिन्तो, तुम्हासुम्तो (6/36)
तुमाहि (6/35)
तइ, तए, तुमए, तुमे ( 6/30) तुज्झेसु, तुम्हेसु (6/39) तुमम्मि, तुमस्सिं ( 6/38 )
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
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________________
परिशिष्ट 1 प्राकृतप्रकाश की टीकाएँ
वररुचि ने तृतीय-चतुर्थ शताब्दी में प्राकृतप्रकाश की रचना की जो प्राकृत का सर्वाधिक लोकप्रिय व्याकरण ग्रन्थ है। संस्कृत में इसकी विभिन्न कालों में अनेक टीकाएँ लिखी गईं।
प्राकृतप्रकाश की सर्वाधिक प्राचीन व लोकप्रिय टीका पाँचवी शताब्दी के भामह द्वारा रचित ‘मनोरमा' है। भामह के अनुसार इसमें बारह परिच्छेद हैं और 480 सूत्र हैं। प्रथम से नवें परिच्छेद तक सामान्य प्राकृत का विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया गया है। दसवें परिच्छेद में पैशाची को अनुशासित किया गया है । ग्यारहवें परिच्छेद में मागधी का विवेचन किया गया है । अन्तिम बारहवें परिच्छेद में शौरसेनी का निरूपण किया गया है।
प्राकृतप्रकाश की दूसरी व्याख्या 'प्राकृतमञ्जरी' है। इसमें व्याख्या पद्यबद्ध है। इसके लेखक के सम्बन्ध में विवाद है । इसका समय भामह के बाद का ही मालूम चलता है। इसकी व्याख्या सरल है किन्तु शुरु के आठ अध्यायों तक ही मिलती है ।
प्राकृतप्रकाश की तीसरी और प्रसिद्ध व्याख्या 'प्राकृतसंजीवनी' है। इसके रचयिता वसन्तराज ई. की चौदहवीं शताब्दी के माने गये हैं । यह व्याख्या पर्याप्त विस्तृत है। इसमें भामह की अपेक्षा कुछ अधिक सूत्र माने गये हैं। इसमें प्राकृतप्रकाश के पाँचवें और छठे परिच्छेद को एक ही पाँचवें परिच्छेद में समाविष्ट कर लिया गया है। यह व्याख्या केवल आठवें (नवें) परिच्छेद तक मिलती है।
1
प्राकृतप्रकाश की चौथी व्याख्या 'सुबोधिनी' है । इसके लेखक सदानन्द हैं । इनका समय 15वीं और 17वीं शताब्दी के मध्य का है। यह प्राकृतसंजीवनी के समान आठवें परिच्छेद तक है और वास्तव में उसका लघुरूप ही है ।
प्राकृतप्रकाश की पाँचवी व्याख्या 'चन्द्रिका' है । यह आधुनिक युग में लिखी गई संस्कृत व्याख्या है। इसके लेखक म. म. मथुराप्रसाद दीक्षित हैं । यह व्याख्या 'प्राकृतसंजीवनी' और 'सुबोधिनी' का अनुसरण करती हुई भी मौलिकता को लिए हुए है।
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
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(73)
Page #81
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________________
इन पाँच प्रसिद्ध व्याख्याओं के अतिरिक्त इसकी दो और संस्कृत व्याख्याएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से एक है रामपाणिवाद की 'प्राकृतवृत्ति' और दूसरी नारायण विद्याविनोद की 'प्राकृतदीपिका'। इन व्याख्याओं के अतिरिक्त बंगला, गुजराती आदि अन्य भाषाओं में भी इसकी व्याख्याएँ की गई हैं। इससे पता चलता है कि प्राकृत अध्ययन के क्षेत्र में 'प्राकृतप्रकाश' अत्यन्त महत्वपूर्ण रचना रही।
(74)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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________________
परिशिष्ट - 2
सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि - नियम स्वर सन्धि 1. यदि इ, ई, उ, ऊ के बाद भिन्न स्वर अ, आ, ए आदि आवे तो इ, ई के स्थान
पर य और उ, ऊ के स्थान पर व् हो जाता है - सु + अमोः : स्वमोः (सूत्र - 6/18) ङसि + आंसु : ङस्यांसु (सूत्र - 5/11)
ई + ऊत्वम् : यूत्वम् (सूत्र - 5/16) 2. यदि अ, आ के बाद अ या आ आवे तो उसके स्थान पर आ हो जाता है
न + आमन्त्रणे : नामन्त्रणे (सूत्र - 5/27) वा + अन्त्य : वान्त्य (सूत्र - 5/42) सर्व + आदेः : सर्वादेः (सूत्र - 6/1)
च + अमि : चामि (सूत्र - 6/27) 3. यदि औं आदि के बाद अ आदि स्वर आवे तो उसके स्थान पर आव हो जाता
सौ + ओत्त्वं : सावोत्त्वं (सूत्र - 6/19) . सौ + अनपुंसके : सावनपुंसके (सूत्र - 6/22) व्यंजन सन्धि . 4. यदि तु के आगे अ, आ आदि स्वर तथा द्, व्, भ् आदि आवे तो त् के स्थान
पर न हो जाता है - क्वचित् + ङसि : क्वचिद् ङसि (सूत्र - 5/13) इत् + उतोः : इदुतोः (सूत्र - 5/14) उत् + ओतौ : उदोतो (सूत्र - 5/19)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1) |
(75)
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________________
आत् + ईतौ : आदीतौ (सूत्र - 5/24) ईत् + ऊतोः : ईदूतोः (सूत्र - 5/29) पदान्त म् के आगे कोई व्यंजन हो तो म् का अनुस्वार हो जाता हैस्त्रियाम् + शस : स्त्रियां शस . (सूत्र - 5/19)
ङसाम् + णो : डसा णो (सूत्र - 5/38) 6. यदि स् के आगे श् वर्ग हो तो स् को श् होगा -
जस् + शसोः : जश्श्सोः (सूत्र - 5/2)
जस् + शस् : जश्शस् (सूत्र - 5/11) विसर्ग सन्धि 7. यदि विसर्ग से पहले अ या आ के अतिरिक्त इ, ए, ओ आदि स्वर हों और
विसर्ग के बाद अ आदि स्वर अथवा म् , ण, ल, व् आदि व्यंजन हों तो विसर्ग का र हो जाता है - शसोः + लोपः : शसोर्लोपः (सूत्र - 5/2) आमोः + णः : आमोर्णः (सूत्र - 5/4) ङसेः + आ : ङसेरा । (सूत्र - 5/6) हु: + एम्मी : उरेम्मी (सूत्र - 5/9)
ईदूतोः + ह्रस्वः : ईदूतोर्हस्वः (सूत्र - 5/29) 8. यदि विसर्ग से पहले अ या आ और बाद में कोई स्वर अथवा ङ्, म् आदि हों
तो विसर्ग का लोप हो जाता है - अतः + ओत् : अत ओत् (सूत्र - 5/1) शसः + उदोतौ : शस उदोतौ (सूत्र - 5/19) स्त्रियामातः + एत् : स्त्रियामात एत् (सूत्र - 5/28) ऋतः + आरः : ऋत आरः (सूत्र - 5/31)
शसः + एत् : शस एत् (सूत्र - 5/39) (76)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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________________
9. यदि विसर्ग से पहले अ हो और विसर्ग के बाद म, ङ, द, ह आदि हों तो अ
और विसर्ग मिलकर ओ हो जाता है - भिसः + हिं : भिसो हिं (सूत्र - 5/5) भ्यसः + हिन्तो : भ्यसो हिन्तो (सूत्र - 5/7) स्सः + ङसः : स्सो ङसः (सूत्र - 5/8)
ङसः + वा : ङसो वा (सूत्र - 5/15) 10. यदि विसर्ग के बाद त् हो तो विसर्ग के स्थान पर स् और च हो तो श् हो जाता
जसः + च : जसश्च (सूत्र - 5/16) ङसः + च : डसश्च (सूत्र - 5/42)
ओः + च : ओश्च . (सूत्र - 6/10) त्थयोः + त : त्थयोस्त (सूत्र - 6/21)
योः + तइ : ङ्योस्तुइ (सूत्र - 6/30) यदि विसर्ग से पहले अ और बाद में भी अ हो तो दोनों मिलकर ओऽ रूप हो जाता है - अतः + अमः : अतोऽमः (सूत्र - 5/3) नातः + अदातौ : नातोऽदातौ (सूत्र - 5/23) आत्मनः + अप्पाणो : आत्मनोऽप्पाणो (सूत्र - 5/45)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(77)
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट - 3 सूत्र (3)
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सन्धि-नियम
1.
5/1
अत ओत् सोः {(अतः)+(ओत्)} सोः
2.
5/2
जश्शसोर्लोपः ... . 6,7 {(जस्)+(शसोः)+(लोपः)} .
3. .
5/3
अतोऽमः {(अतः)+(अमः)}
4.
5/4
टामोर्णः {(टा)+(आमोः)+(णः)}
5.
5/5
5/5
भिसो हिं {(भिसः)+(हिं)}
6.
5/6
ङसेरादोदुहयः {(ङसेः)+(आ)+(दो)-(दु)-(हयः)}
___7.
5/7
भ्यसो हिन्तो सुन्तो {(भ्यसः)+(हिन्तो)} सुन्तो
(78)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण (7)
(6)
भूभृत्
ओत्
(अत्) 5/1 (ओत्) 1/1 (सु) 6/1
भूभृत्
उसे
___EE
(जस्) (शस्) 6/2 (लोप) 1/1
भूभृत्
राम
(अत्) 6/1 (अम्) 6/1
भूभृत्
भूभृत्
टा
.
(टा)
(आम्) 6/2 (ण) 1/1
भूभृत् राम
भूभृत्
(भिस्) 6/1 (हिं) 1/1
परम्परानुसरण
ater .
(ङसि) 6/1
हरि
(आ)
(हि) 1/3
भ्यसः हिन्तो
(भ्यस्) 6/1 (हिन्तो) 1/1 (सुन्तो) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण
सुन्तो
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(79)
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Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
सन्धि-नियम
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सूत्र (3)
8.
5/8
स्सो उसः {(स्सः)+(ङसः)}
9.
5/9
डेरेम्मी
{(.:) (ए)+(म्मी)
10.
5/10
सुपः सुः
11.
5/11
5/11
जश्शस्ङस्यांसु दीर्घः 6, 1. {(जस्)+(शस्)+(ङसि)+(आंसु)} दीर्घः
12.
5/12
ए च सुप्यङिङसोः ए च {(सुपि)+(अ)+(ङि)+(ङसोः}}
13.
5/13
क्वचिद् ङसियोर्लोपः 4,7 {(क्वचित्)+(ङसि)+(योः)+(लोपः)}
(80)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण
(5)
(6)
(7)
स्सः
(स्स) 1/1 (ङस्) 6/1
राम भूभृत्
(ङि) 6/1
(म्मि) 1/2
.
(सुप्) 6/1 (सु) 1/1
(जस्)
शस् .
(शस्)
(ङसि). (आम्) 7/3 (दीर्घ) 1/1
भूभृत्
राम
(ए) 1/1
परम्परानुसरण
(सुप्) 7/1
भूभृत्
Ba ko ,
(ङि)
(ङस्) 7/2
भूभृत्
क्वचित् ङसि
योः लोपः
(क्वचित्) (ङसि) (ङि) 7/2 (लोप) 1/1
हास
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(81)
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Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. सूत्र - संख्या
(1)
(2)
14.
15.
16.
17.
18.
19.
(82)
5/14
5/15
5/16
5/17
5/18
5/19
सूत्र
(3)
इदुतोः शसो णो {(इत्) + (उतोः) + (शसः) + (णो)}
सोवा {(ङसः)+(वा)}
जसश्च ओ यूत्वम् {(जसः) + (च)} ओ (ई) + (ऊत्वम्)}
टाणा
सुभिस्सुप्सु दीर्घः
स्त्रियां शस उदोतौ {(स्त्रियाम्) + (शसः) + (उत्) + (ओती)}
सन्धि-नियम (4)
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4, 9
10, 1
5, 8, 4
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
शब्दानुसरण
मूलशब्द, विभक्ति (6)
(इत्) (उत्) 6/2 (शस्) 6/1 (णो) 1/1
भूभृत् भूभृत् परम्परानुसरण
(ङस्) 6/1
भूभृत्
(जस्) 6/1
भूभृत्
(ओ) 1/1
परम्परानुसरण
(ऊत्क)
फल
(टा) (णा) 1/1
माता
(भिस्) (सुप) 7/3 (दीर्घ) 1/1
दीर्घः
भूभृत् राम
स्त्रियाम् शसः
(स्त्री) 7/1 (शस्) 6/1
भूभृत्
उत्
(उत्)
ओतौ
(ओत्) 1/2
भूभृत्
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(83)
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--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सूत्र (3)
सन्धि-नियम (4) . .
20.
5/20
जसो वा {(जसः)+(वा)}
21...
5/21
अमि ह्रस्वः
5/22
टाङस्ङीनामिदेददातः {(टा)+(ङस्)+(ङीनाम्)+(इत्) (एत्)+(अत्)+(आतः)}
23.
5/23
2, 11, 4
नातोऽदातौ {(न)+(आतः)+(अत्)+(आतौ)}
24.
5/24
4
आदीतौ बहुलम् {(आत्)+(ईतौ)} बहुलम्
25.
5/25
न नपुंसके
(84)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण
(7)
(जस्) 6/1
भूभृत्
(वा)
(अम्) 7/1
भूभृत्
ह्रस्वः
(ह्रस्व) 1/1
राम
(टा)
उस्
डीनाम्
(ङि) 6/3
(आत्) 1/3
न
भूभृत्
आतः अत् आतौ
(आत्) 5/1 (अत्) (आत्) 1/2
भूभृत्
आत्
.
.
(आत्) (ईत्) 1/2 (बहुल) 1/1
२
भूभृत्
बहुलम्
फल
(न)
नपुंसके
(नपुंसक) 7/1
राम
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(85)
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________________
सन्धि-नियम
क्र.सं. (1)
सूत्र-संख्या (2)
सूत्र (3)
26.
5/26
6,
इं जश्शसोदीर्घः इं {(जस्)+(शसः)+(दीर्घः)}
27.
5/27
2, 3
नामन्त्रणे सावोत्वदीर्घबिन्दवः . {(न)+(आमन्त्रणे)} {(सौ)+(ओत्व)+(दीर्घ)+ (बिन्दवः)}
28.
5/28
स्त्रियामात एत् {(स्त्रियाम्)+(आतः)+(एत)}
29.
5/29
4,7
ईदूतोर्हस्वः {(ईत्)+(ऊतोः)+(हस्वः)}
5/30
7
सोर्बिन्दुर्नपुंसके {(सोः)+(बिन्दुः)+(नपुंसके)}
31.
5/31
ऋत आरः सुपि {(ऋतः)+(आरः)} सुपि
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति (6)
शब्दानुसरण (7)
परम्परानुसरण
•horBE
(इं) 1/1 (जस्) (शस्) 6/1 (दीर्घ) 1/1
भूभृत् राम
आमन्त्रणे
(आमन्त्रण) 7/1 (सु) 7/1. (ओत्व)
EE
ओत्व
दीर्घ
(दीर्घ)
बिन्दवः
(बिन्दु) 1/3
112-*** Ikul Itv sit art ***
स्त्रियाम्
म
आतः
(स्त्री) 7/1 (आत्) 6/1 (एत्) 1/1
भूभृत्
भूभृत्
ऊता
भूभृत्
(ऊत्).6/2 (हस्व) 1/1
राम
.
बिन्दुः
.. (स) 6/1 (बिन्दु) 1/1 (नपुंसक) 7/1
नपुंसके
ऋतः आरः
(ऋत्) 6/1 (आर) 1/1 (सुप्) 7/1
भूभृत् राम
थार.
सुपि
भूभृत
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(87)
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Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. सूत्र - संख्या
(1)
(2)
32.
33.
34.
35.
36.
37.
(88)
5/32
5/33
5/34
5/35
5/36
5/37
सूत्र
(3)
मातुरात् {(मातुः)+(आत्)}
उर्जस्-शस्-टा-ङस्-सुप्सु वा {(उः)+(जस्)}
पितृभ्रातृजामातॄणामरः {(पितृ)-(भ्रातृ)-(जामातृणाम्) + (अरः)}
आच सौ
राज्ञः
आमन्त्रणे वा बिन्दुः
सन्धि-नियम
(4)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
For Personal & Private Use Only
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण
(7)
मातृ
(मातृ) 6/1 (आत्) 1/1
মুমূর
(उ) 1/1
(जस्)
DBEEF
(शस्) (टा)
(सुप) 7/3
भूभृत्
(वा)
(पितृ)
(भ्रातृ)
भ्रातृ जामातृणाम्
(जामातृ) 6/3 (अर) 1/1
LE
(आ) 1/1
माता
(सु) 7/1
राज्ञः
(राजन्) 6/1
राजन्
आमन्त्रणे
(आमन्त्रण) 7/1
राम
वा
(बिन्दु) 1/1
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(89)
For Personal & Private Use Only
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
सन्धि-नियम
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सूत्र (3)
38.
5/38
जस्-शस्-ङसां णो {(ङसाम्)+(णो)}
39.
5/39
शस एत् {(शसः)+(एत)}
40. .
5/40
आमो णं {(आमः)+(ण)}
41.
5/41
टाणा
5/42
10, 5, 2, 10
ङसश्च द्वित्वं वान्त्यलोपश्च {(ङसः)+(च)}{ (द्वित्वम्)+(वा)+ +(अन्त्य)+(लोपः)+(च)}
43.
5/43
इदद्वित्वे {(इ.)+(अ)+(द्वित्वे)}
(90)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति (6)
शब्दानुसरण (7)
जस्
शस् ङसाम्
(जस्) (शस्) (ङस्) 6/3 (णो) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण
शसः
(शस्) 6/1 (एत्) 1/1
भूभृत् भूभृत्
एत्
(आम्) 6/1 (ण) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण
(णा) 1/1
डसः
च. द्वित्वम्
(ङस्) 6/1 (च) (द्वित्व) 1/1
..
वा
अन्त्य
(अन्त्य) (लोप) 1/1
च
(इत्) 1/1
(द्वित्व) 7/1
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(91)
-
For Personal & Private Use Only
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
सन्धि-नियम
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सूत्र (3)
आ णोणमोरङसि {(णो)+(णमोः)+(अ)+(ङसि)}
44.
5/44
45.
5/45
11,9
आत्मनोऽप्पाणो वा . {(आत्मनः)+(अप्पाणः)+(वा)}
46.
5/46
इत्वद्वित्ववर्ज राजवदनादेशे {(राजवत्)+(अन्)+(आदेशे)}
47.
6/1
2, 7, 8
सर्वादेर्जस एत्वम् {(सर्व)+(आदेः)+(जसः)+(एत्वम्)}
48.
6/2
उ: स्सिंम्मित्थाः
(92)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण
|
लता
(आ) 1/1 (णो) (णम्) 7/2
भूभृत्
(अ)
(ङस्) 7/1
भूभृत्
आत्मन्
आत्मनः अप्पाणः
(आत्मन्) 6/1 (अप्पाण) 1/1 (वा)
राम
इत्व द्वित्व वर्ज राजवत्
(इत्व) (द्वित्व) (वर्ज) (राजवत्)
अन्
(अन्)
आदेशे
(आदेश) 7/1
(सर्व). (आदि) 5/1 (जस्) 6/1 • (एत्व) 1/1
ELE
(ङि) 6/1
(त्थ) 1/3
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(93)
For Personal & Private Use Only
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. सूत्र - संख्या
(1)
(2)
49.
50.
51.
52.
53.
(94)
6/3
6/4
6/5
6/6
6/7
सूत्र
(3)
इदमेतद्द्किंयत्तद्भ्यः टाइणा वा {(इदम्) + (एतत्) + (किं) + (यत्) +
(तद्भ्यः)}
आम एसिं {(आमः) + (एसिं)}
किंयत्तद्भ्यो ङस आसः {(किं)+(यत्) + (तद्भ्यः) + (ङसः)
+ (आसः)}
ईद्भ्यः स्सा से
ङेि {(ङे)+(हिं)}
सन्धि-नियम
(4)
For Personal & Private Use Only
4
8
9, 8
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
शब्दानुसरण
मूलशब्द, विभक्ति (6)
(2)
इदम
(इदम्) (एतत्)
एतत्
भूभृत्
a FEDEFE
(यत्) (तत्) 5/3 (टा) (इणा) 1/1 (वा)
इणा
लता
आमः
एसिं.
(आम्) 6/1 (एसिं) 1/1
परम्परानुसरण
(किं)
(यत्)
तद्भ्यः ङसः आसः
(तत्) 5/3 (डस्) 6/1 (आस).1/1
भूभृत् भूभृत् राम
ईद्भ्यः
(ईत्) 5/3 (स्सा) 1/1 (से) 1/1
भूभृत् लता परम्परानुसरण
(ङि) 6/1 (हिं) 1/1
हरि परम्परानुसरण
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1) ..
(95)
For Personal & Private Use Only
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
(1)
54.
55.
56.
57.
58.
59.
(96)
सूत्र - संख्या
(2)
6/8
6/9
6/10
6/11
6/12
6/13
सूत्र
(3)
आहे इआ का
तो दो ङसे:
तद ओश्च {(तदः)+(ओः)+(च)}
ङसा से
आमा सिं
किमः कः
सन्धि-नियम (4)
For Personal & Private Use Only
8, 10
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति (6)
शब्दानुसरण (7)
क
(आहे) 1/1 (इआ) 1/1 (काल) 7/1
परम्परानुसरण लता राम
(तो) 1/1 (दो) 1/1 (ङसि) 6/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण
हरि
+ '&
ततः
(तत्) 5/1 (ओ) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण
(ङस्) 3/1 (से) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण
(आम्) 3/1 (सिं) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण
भूभृत्
(किम्) 6/1 - (क) 1/1
कः .
राम
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(97)
For Personal & Private Use Only
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
(1)
60.
61.
62.
63.
64.
65.
(98)
सूत्र - संख्या
(2)
6/14
6/15
6/16
6/17
6/18
6/19
सूत्र
(3)
इदमः इमः
स्सस्सिमोरद्वा
{(स्स)+(स्सिमोः)+(अत्)+(वा)]
डेर्देन हः {(ङे) + (देन)} हः
न त्थः
नपुंसके स्वमोरिदमिणमिणमो {(सु)+(अमोः) + (इदम्) + (इणम्) + (इणमो)}
एतदः सावोत्त्वं वा {(सौ) + (ओत्त्वम्) + (वा)}
सन्धि-नियम (4)
For Personal & Private Use Only
7, 4
1, 7
3, 5
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति (6)
शब्दानुसरण (7)
इदमः
भूभृत्
(इदम्) 6/1 (इम) 1/1
इमः
राम
स्स
स्सिमोः
(स्स) (स्सिम्) 7/2 (अत्) 1/1
15
भूभृत् भूभृत्
to
(वा)
this
to i
(ङि) 6/1 (द) 3/1 (ह) 1/1
t
in
(न).
(त्थ) 1/1
नपुंसके
(नपुंसक) 7/1
भूभृत्
अमोः इदम् इणम् इणमो.
(अम्) 7/2 (इदम्) 1/1 (इंणम्) 1/1 . (इणमो) 1/1
इदम् भूभृत् परम्परानुसरण
एतदः→एततः सौ . ओत्त्वम् .
(एतत्) 5/1 (सु) 7/1. (ओत्त्व) 1/1 (वा)
फल
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(99)
For Personal & Private Use Only
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र
क्र.सं. (1)
सूत्र-संख्या (2)
सन्धि-नियम (4)
66.
6/20
तो उसेः
.
67..
6/21
10
त्तोत्थयोस्तलोपः {(त्तो)+ (त्थयोः)+(त)+(लोपः}}
68.
6/22
4,3
तदेतदोः सः सावनपुंसके {(तत्)+(एतदोः)} सः {(सौ)+(अ)+(नपुंसके)
69.
6/23
अदसो दो मुः {(अदसः)+(दः)+(मुः}}
6/24
हश्च सौ {(हः)+(च)}
10
71.
6/25
पदस्य
(100)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण (7)
परम्परानुसरण
(त्तो) 1/1 (ङसि) 6/1
हरि
TE BEEG
(त्तो) (त्थ) 7/2
लोपः
(लोप) 1/1
तत् एतदोः→एततोः
भूभृत्
राम
(तत्) (एतत्) 7/2 (स) 1/1 (सु) 7/1 (अ). (नपुंसक) 7/1
सौ
नपुंसके
राम
अदसः
(अदस्) 6/1 (द) 1/1 (मु) 1/1
(ह) 1/1 (च) (सु) 7/1
पदस्य
(पद) 6/1.
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(101)
For Personal & Private Use Only
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. सूत्र - संख्या
(1)
(2)
72.
73.
74.
75.
76.
(102)
6/26
6/27
6/28
6/29
6/30
सूत्र
(3)
युष्मदस्तं तुमं
{(युष्मदः)+(तं)}
तुं चामि {(च)+(अमि)}
तुझे तुम्हे जसि
वो च शसि
टाङ्योस्तइ तए तुमए तुमे {(टा)+(ड्योः) + (तइ)}
सन्धि-नियम
(4)
For Personal & Private Use Only
10
10
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण
(5)
युष्मदः
'ICE
(युष्मद्) 6/1 (तं) 1/1 (तुम) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण
(तुं) 1/1
परम्परानुसरण
(अम्) 7/1
भूभृत्
BEER P
(तुझे) 1/1 (तुम्हे) 1/1 (जस्) 7/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत्
(वो) 1/1
परम्परानुसरण
(शस्) 7/1
भूभृत्
(टा)
हरि
तए
(ङि) 7/2 (तंइ) 1/1 .(तए) 1/1 (तुमए) 1/1 (तुमे) 1/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(103)
For Personal & Private Use Only
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
.. क्र.सं.
(1) 77.
सूत्र-संख्या (2) 6/31
सूत्र
सन्धि-नियम (3) ङसि तुव-तुमो-तुह-तुज्झ-तुम्ह-तुम्माः
___78. 6/32
6/32
आङि च ते दे
79.
6/33
तुमाइ च
80.
6/34
तुझेहिं तुम्हेहिं तुम्मेहिं भिसि
___81.
6/35
सौ तत्तो तइत्तो तुमादो तुमादु तुमाहि
(104)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
शब्दानुसरण
मूलशब्द, विभक्ति (6)
भूभृत्
(ङस्) 7/1 (तुव) (तुमो) (तुह)
BEDESEED
(तुज्झ)
(तुम्ह)
(तुम्म) 1/3
राम
(आङ्) 7/1
भूभृत्
v at tv
(ते) 1/1 (दे) 1/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण
(तुमाइ) 1/1
परम्परानुसरण
च .
(च)
तुज्झेहिं तुम्हेहि
तुम्मेहिं भिसि
(तुज्झेहिं) 1/1 (तुम्हेहिं) 1/1 (तुम्मेहिं) 1/1 (भिस्) 7/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत्
ङसौ
हरि
तत्तो ।
तइत्तो
तुमादो
(ङसि) 7/1 (तत्तो) 1/1 (तइत्तो) 1/1 (तुमादो) 1/1 (तुमादु) 1/1 (तुमाहि) 1/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण
तुमादु
तुमाहि . .
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(105)
For Personal & Private Use Only
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
सन्धि-नियम
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सूत्र (3)
82. 6/36
तुम्हाहिन्तो तुम्हासुन्तो भ्यसि
83.
6/37
6/37
वो भे तुज्झाणं तुम्हाणमामि {(तुम्हाणम्)+(आमि)}
84.
6/38
झै तुमम्मि तुमस्सिं
85.
6/39
तुझेसु तुम्हेसु सुपि
86.
6/40
अस्मदो हमहमहअं सौ {(अस्मदः)+ (हम्→ह)+(अहम् →अहं) +(अहअम् अहअं)}
87.
6/41
अहम्मिरमि च {(अहम्मिः )+(अमि)}
(106)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र - शब्द
(5)
तुम्हहिन्तो
तुम्हासुन्तो भ्यसि
ने
भे
तुज्झाणं
तुम्हाणं
आमि
啊
तुमम्मि
तुमस्सिं
罵罵
तुझेसु
सुपि
अस्मदः
ho
अहं अहअं
सौ
अहम्मिः
अमि
च
मूलशब्द, विभक्ति
(6)
(तुम्हाहिन्तो) 1/1
( तुम्हासुन्तो) 1 / 1
(भ्यस्) 7/1.
(वो) 1/1 (भे) 1/1
( तुज्झाणं) 1 / 1
( तुम्हाणं) 1/1
(आम्) 7/1
(ङि) 7/1
(तुमम्मि ) 1 / 1
(तुमस्सिं) 1 / 1
(तुज्झेसु) 1/1
(तुम्हेसु) 1 / 1
(सुप्) 7/1
( अस्मद् ) 6 / 1
(हं) 1/1
(अहं) 1/1
(अहअं) 1/1
7/1
( अहम्मि) 1 / 1
(अम्) 7/1
(च)
वररुचिप्राकृतप्रकाश ( भाग 1 )
-
For Personal & Private Use Only
शब्दानुसरण
(7)
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
भूभृत्
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
भूभृत्
हरि
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
भूभृत्
भूभृत्
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
गुरु
हर
भूभृत्
(107)
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सूत्र (3)
सन्धि-नियम (4)
88.
6/42
मं ममं ।
।
89.
6/43
अम्हे जश्श्सोः {(जस्)+(शसोः)}
90.
6/44
णो शसि
91.
6/45
आङि मे ममाइ
92.
6/46
डौ च मइ मए .
93.
6/47
अम्हेहिं भिसि
94.
6/48 .
मत्तो मइत्तो ममादो ममादु ममाहि ङसौ
(108)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण (7)
(6)
#. 4.
(म) 1/1 (मम) 1/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
(अम्हे) 1/1 (जस्) (शस्) 7/2
भूभृत्
(णो) 1/1. (शस्) 7/1
परम्परानुसरण भूभृत्
आङि
मे
(आ) 7/1 (मे) 1/1 (ममाइ) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण
ममाइ
(ङि) 7/1
हरि
परम्परानुसरण परम्परानुसरण
अम्हेहिं भिसि
परम्परानुसरण
भूभृत्
मत्तो मइत्तो ममादो ममादु ममाहि ङसौ ....
(मइ) 1/1 (मए) 1/1 (अम्हेहिं) 1/1 (भिस्) 7/1 (मत्तो) 1/1 (मइत्तो) 1/1 (ममादो) 1/1 (ममादु) 1/1 (ममाहि) 1/1 (ङसि) 7/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण
हरि
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(109)
For Personal & Private Use Only
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
सन्धि-नियम
क्र.सं. (1)
सूत्र-संख्या (2)
सूत्र (3)
95.
6/49
अम्हाहिन्तो अम्हासुन्तो भ्यासि
96.
6/50
मे मम मह मज्झ ङसि
97.
6/51
मज्झ णो अम्ह अम्हाणमम्हे आमि .. {(अम्हाणम्)+(अम्हे)} .
98.
6/52
ङौ ममम्मि ममस्सिं
99.
6/53
अम्हेसु सुपि
100.
6/54
{(वे:)+(दो)}
(110)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण
(5)
(7)
अम्हाहिन्तो
अम्हासुन्तो भ्यसि
(अम्हाहिन्तो) 1/1 (अम्हासुन्तो) 1/1 (भ्यस्) 7/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत्
मह
(मे) 1/1 (मम) 1/1 (मह) 1/1 (मज्झ) 1/1 (ङस्) 7/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत्
पि
मज्झ
अम्ह अम्हाणं
(मज्झ) 1/1 (णो) 1/1 (अम्ह) 1/1 (अम्हाणं) 1/1 (अम्हे) 1/1 (आम्) 7/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण
अम्हे
आमि
भूभृत्
डो
हरि
ममम्मि
(ङि) 7/1 . (ममम्मि) 1/1 (ममस्सि ) 1/1
ममस्सिं ..
परम्परानुसरण परम्परानुसरण
अम्हेसु
(अम्हेसु) 1/1 (सुप्) 7/1
परम्परानुसरण भूभृत्
सुपि
।
दो
(द्वि) 6/1 (दो) 1/1
हरि परम्परानुसरण
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1).
(111)
For Personal & Private Use Only
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2)
सूत्र (3)
सन्धि-नियम (4)
101.
6/55
___10
वेस्ति {(ः)+(ति)}
102. 6/56
तिण्णि जश्शस्भ्याम् {(जस्)+(शस्भ्याम्)}
103.
6/57
द्वेर्दुवे दोणि वा {(द्वे:)+(दुवे)}
104.
6/58
चतुरश्चत्तारो चत्तारि {(चतुरः)+(चत्तारो)}
105.
6/59
एषामामो ण्हं {(एषाम्)+(आमः)+ (ग्रह)
106.
6/60
11
शेषोऽदन्तवत् {(शेषः)+(अदन्तवत्)}
(112)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
For Personal & Private Use Only
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण (7)
(6)
हरि
(त्रि) 6/1 (ति) 1/1
परम्परानुसरण
तिण्णि
(तिण्णि) 1/1
परम्परानुसरण
जस्
(जस्)
शस्भ्याम्
(शस्) 3/2
भूभृत्
ri OFF
(द्वि) 6/1 (दुवे) 1/1 (दोणि) 1/1
परम्परानुसरण परम्परानुसरण
(वा)
चतुरः चत्तारो .
.
(चतुर्) 6/1 (चत्तारो) 1/1 (चत्तारि) 1/1
भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण
चत्तारि
एषाम्
इदम्
आमः
(इदम्) 6/3 (आम्) 6/1 (ण्ह) 1/1
भूभृत्
परम्परानुसरण
राम
शेषः अदन्तवत्
(शेष) 1/1 (अदन्तवत्)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(113)
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Page #121
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सन्धि-नियम
क्र.सं. (1)
सूत्र-संख्या (2)
सूत्र (3)
107.
6/61
न डिङस्योरेदातौ {(ङि)+(ङस्योः )+(एत्)+(आतौ)}
7, 4
108.
6/62
ए भ्यसि
109.
6/63
द्विवचनस्य बहुवचनम्
110. 6/64
चतुर्थ्याः षष्ठी
111.
9/18
शेषः संस्कृतात्
112.
12/3
अनादावयुजोस्तथयोर्दधौ 3, 10, 7 {(अनादौ)+(अयुजोः)+(तथयोः)+(दधौ)}
(114)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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सूत्र - शब्द
(5)
न
ङि
ङस्योः
एत् आतौ
"ए
भ्यसि
द्विवचनस्य
बहुवचनम्
चतुर्थ्याः
षष्ठी
शेषः
संस्कृतात्
अनादी
अयुजोः
त
थयोः
द
धौ
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग
मूलशब्द, विभक्ति
(6)
(न)
(ङि)
(ङसि) 7/2
(एत्)
(आंत्) 1/2
(g) 1/1 (भ्यस् ) 7/1
( द्विवचन) 6 / 1
( बहुवचन) 1 / 1
(ageff) 6/1
(षष्ठी) 1/1
(शेष) 1/1 (संस्कृत) 5 / 1
(अनादि) 7/1
(अयुज्) 7/2
(त)
(थ) 6/2
(ध) 1 / 2
-
1)
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शब्दानुसरण
(7)
हरि
भूभृत्
परम्परानुसरण
भूभृत्
राम
फल
नदी
नदी
राम
राम
हरि
भूभृत्
राम
राम
(115)
Page #123
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________________
क्र.सं. (1)
सूत्र-संख्या (2)
सूत्र
सन्धि-नियम (3) णिर्जश्शसोर्वा क्लीबे स्वरदीर्घश्च 7, 6, 7, 10 {(णिः)+(जस्)+(शसोः)+(वा)} {(स्वर)+(दीर्घः)+(च)}
113.
12/11
114.
12/32
शेषं महाराष्ट्रीवत् {(शेषम्)+(महाराष्ट्रीवत्)}
(116)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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सूत्र-शब्द
मूलशब्द, विभक्ति
शब्दानुसरण
(5)
(7)
हरि
भूभृत्
(णि) 1/1 (जस्) (शस्) 6/2 (वा) (क्लीब) 7/1 (स्वर) (दीर्घ) 1/1
स्वर
शेषम्
(शेष) 2/1 (महाराष्ट्रीवत्)
महाराष्ट्रीवत्
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1).
(117)
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सहायक पुस्तकें एवं कोश
1. प्राकृतप्रकाशः
: सम्पादक - आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय
(सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,
वाराणसी) : सम्पादक - डॉ. श्रीकान्त पाण्डेय (साहित्य भण्डार, सुभाष बाजार, मेरठ - 2)
2. प्राकृतप्रकाशः
3. The Prākļtaprakāśa : E. B. Cowell
(Punthi Pustak, Calcutta) 4. प्रौढ़ रचनानुवाद कौमुदी : डॉ. कपिलदेव द्विवेदी :
(विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी) 5. पाइअ-सद्द-महण्णवो : पं. हरगोविन्ददास त्रिकमचन्द सेठ
(प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी) 6. कातन्त्र व्याकरण : गणिनी आर्यिका ज्ञानमती
(दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान) 7. वृहद् अनुवाद-चन्द्रिका : चक्रधर नौटियाल 'हंस'
(मोतीलाल बनारसीदास नारायणा,
फेज I दिल्ली) 8. आचार्य हेमचन्द्र और : डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री,
उनका शब्दानुशासन (चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी 1) एक अध्ययन
(118)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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