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का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। सूत्रों का विश्लेषण एक ऐसी शैली से किया गया है जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही सूत्रों को समझ सकेंगे। __दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। वर्तमान में इसके माध्यम से प्राकृत व अपभ्रंश का अध्यापन पत्राचार के माध यम से किया जाता है। प्राकृत भाषा के सीखने-समझने. को ध्यान में रखकर ही 'प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। प्रस्तुतं पुस्तक भी प्राकृत अध्ययनार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ऐसा हमारा विश्वास
पुस्तक प्रकाशन के लिए अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती सीमा ढींगरा के आभारी हैं जिन्होंने सूत्र-विश्लेषण के कार्य में अत्यन्त रुचिपूर्वक सहयोग दिया। पृष्ठ संयोजन के लिए श्री श्याम अग्रवाल एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स धन्यवादाह हैं।
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति
नरेशकुमार सेठी प्रकाशचन्द्र जैन अध्यक्ष
मंत्री . प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
माघशुक्ल पंचमी आचार्य कुन्दकुन्द जन्मदिवस वीर निर्वाण संवत् 2536
20. 01. 2010
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