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पाठ - 1 संज्ञा, सर्वनाम, संख्यावाची शब्द-सूत्र-विवेचन
भूमिका
वररुचि ने तृतीय-चतुर्थ शताब्दी में प्राकृतप्रकाश की रचना की जो प्राकृत का सर्वाधिक लोकप्रिय व्याकरण ग्रंथ है। उन्होंने इसकी रचना संस्कृत भाषा के माध्यम से की। प्राकृत व्याकरण को समझाने के लिए संस्कृत-व्याकरण की पद्धति के अनुरूप संस्कृत भाषा में सूत्र लिखे गये। किन्तु सूत्रों का आधार संस्कृत भाषा होने के कारण यह नहीं समझा जाना चाहिए कि प्राकृत व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत के विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता है। संस्कृत के बहुत ही सामान्यज्ञान से सूत्र समझे जा सकते हैं। हिन्दी, अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा का व्याकरणात्मक ज्ञान भी प्राकृत-व्याकरण को समझने में सहायक हो सकता है। ... अगले पृष्ठों में हम प्राकृत-व्याकरण के संज्ञा, सर्वनाम, संख्यावाची शब्दों के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं। सूत्रों को समझने के लिए स्वरसन्धि, व्यंजनसन्धि तथा विसर्गसन्धि के सामान्य-ज्ञान की आवश्यकता है। साथ ही संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों का ज्ञान भी होना चाहिए तथा उनके विभिन्न विभक्तियों में रूप समझे जाने चाहिए। प्राकृत में केवल दो ही वचन होते हैं - एकवचन तथा बहुवचन। अतः दो ही वचनों के संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों को समझना आवश्यक है। ये प्रत्यय-संकेत निम्न प्रकार हैं
विभक्ति एकवचन के प्रत्यय बहुवचन के प्रत्यय प्रथमा ... सु. ..
जस् द्वितीया अम् तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी
आम् सप्तमी . ङि * सन्धि के नियमों के लिए परिशिष्ट-2 देखें। वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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