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________________ परिशिष्ट 1 प्राकृतप्रकाश की टीकाएँ वररुचि ने तृतीय-चतुर्थ शताब्दी में प्राकृतप्रकाश की रचना की जो प्राकृत का सर्वाधिक लोकप्रिय व्याकरण ग्रन्थ है। संस्कृत में इसकी विभिन्न कालों में अनेक टीकाएँ लिखी गईं। प्राकृतप्रकाश की सर्वाधिक प्राचीन व लोकप्रिय टीका पाँचवी शताब्दी के भामह द्वारा रचित ‘मनोरमा' है। भामह के अनुसार इसमें बारह परिच्छेद हैं और 480 सूत्र हैं। प्रथम से नवें परिच्छेद तक सामान्य प्राकृत का विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया गया है। दसवें परिच्छेद में पैशाची को अनुशासित किया गया है । ग्यारहवें परिच्छेद में मागधी का विवेचन किया गया है । अन्तिम बारहवें परिच्छेद में शौरसेनी का निरूपण किया गया है। प्राकृतप्रकाश की दूसरी व्याख्या 'प्राकृतमञ्जरी' है। इसमें व्याख्या पद्यबद्ध है। इसके लेखक के सम्बन्ध में विवाद है । इसका समय भामह के बाद का ही मालूम चलता है। इसकी व्याख्या सरल है किन्तु शुरु के आठ अध्यायों तक ही मिलती है । प्राकृतप्रकाश की तीसरी और प्रसिद्ध व्याख्या 'प्राकृतसंजीवनी' है। इसके रचयिता वसन्तराज ई. की चौदहवीं शताब्दी के माने गये हैं । यह व्याख्या पर्याप्त विस्तृत है। इसमें भामह की अपेक्षा कुछ अधिक सूत्र माने गये हैं। इसमें प्राकृतप्रकाश के पाँचवें और छठे परिच्छेद को एक ही पाँचवें परिच्छेद में समाविष्ट कर लिया गया है। यह व्याख्या केवल आठवें (नवें) परिच्छेद तक मिलती है। 1 प्राकृतप्रकाश की चौथी व्याख्या 'सुबोधिनी' है । इसके लेखक सदानन्द हैं । इनका समय 15वीं और 17वीं शताब्दी के मध्य का है। यह प्राकृतसंजीवनी के समान आठवें परिच्छेद तक है और वास्तव में उसका लघुरूप ही है । प्राकृतप्रकाश की पाँचवी व्याख्या 'चन्द्रिका' है । यह आधुनिक युग में लिखी गई संस्कृत व्याख्या है। इसके लेखक म. म. मथुराप्रसाद दीक्षित हैं । यह व्याख्या 'प्राकृतसंजीवनी' और 'सुबोधिनी' का अनुसरण करती हुई भी मौलिकता को लिए हुए है। वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 ) Jain Education International For Personal & Private Use Only (73) www.jainelibrary.org
SR No.004169
Book TitleVarruchi Prakrit Prakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2010
Total Pages126
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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