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33. उर्जस् - शस् टा
(22)
-
उर्जस्-शस्-टा-ङस्-सुप्सु वा { (उ:) + (जस् ) }
उः (उ) 1/1 {(जस्) - (शस्)
वा विकल्प से
भर्तृ→ भत्तु
· ( भत्तु + जस्) - (भत्तु + ( भत्तु + शस्) (भत्तु +
S
·
ङस् सुप्सु वा 5/33
जस्, शस्, टा, डस्, सुप् परे होने पर (ऋ के स्थान पर) विकल्प से 'उ' होता है। जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), शस् ( द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय), टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय), ङस् ( षष्ठी एकवचन का प्रत्यय), सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर ऋकारान्त शब्दों के ऋ के स्थान पर उ होता है अर्थात् इन विभक्ति, वचनों में ऋकारान्त शब्द के रूप विकल्प से उकारान्त शब्दों की तरह चलते हैं ।
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1
णो) णो )
( भत्तु + टा) = (भत्तु + णा)
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( भत्तु + ङस् ) = (भत्तु + णो )
-
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34. पितृभ्रातृजामातॄणामरः 5/34
-
(टा) - (ङस्) - (सुप्) 7/3}
भत्तुणो (प्रथमा बहुवचन) (सूत्र
भत्तुणो ( द्वितीया बहुवचन) (सूत्र
भत्तुणा (तृतीया एकवचन ) ( सूत्र
भत्तुणो (षष्ठी एकवचन ) ( सूत्र
पितृभ्रातृजामातॄणामरः { ( पितृभ्रातृजामातॄणाम्) + (अरः) }
S
1. देखें पाइअसद्दमहण्णवो।
2. मनोरमा, संजीवनी टीका के आधार पर ।
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5
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(भत्तु+सुप्) (भत्तु+सु) भत्तूसु (सप्तमी बहुवचन) (सूत्र 5 / 18, 5 / 10 )
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/ 16 )
5
5 / 14 )
5 / 17 )
{ (पितृ)
(भ्रातृ) - ( जामातृ) 6/3 } अरः (अर) 1/1
पितृ, भ्रातृ, जामातृ के (ऋ के स्थान पर) 'अर' (होता है ) ।
सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर पितृ, भ्रातृ,
जामातृ के (ऋ के स्थान पर) 'अर' होता है।
पितृपितर→पिअर'
भ्रातृ भाअर'
/ 15 )
जामातृ जामाअर'
इन शब्दों के रूप सभी विभक्तियों में अकारान्त शब्दों की तरह चलेंगे 2
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 )
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