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प्रथमा
द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
वारि (इकारान्त नपुंसकलिंग) एकवचन
बहुवचन वारिं (5/30)
वारीइं (5/26), वारीणि (12/11) वारिं (6/60, 5/3) वारीइं (5/26), वारीणि (12/11) वारिणा (5/17)*
वारीहिं (6/60, 5/18, 5/5) वारिणो (5/15)
वारीण (6/60, 5/4, 5/11) वारिस्स (6/60, 5/8) वारीदो, वारीदु, वारीहि वारीहिन्तो, वारीसुन्तो, (6/60, 5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) वारिम्मि (6/60, 5/9, 6/61) वारीसु (6/60, 5/18, 5/10) हे वारि (5/27) . हे वारीइं (9/18)
सप्तमी संबोधन
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी
महु (उकारान्त नपुंसकलिंग) एकवचन
बहुवचन महुं (5/30)
महूइं (5/26), महूणि (12/11) महुं (6/60, 5/3) महूई (5/26), महूणि (12/11) महुणा (5/17)* महूहिं (6/60, 5/18, 5/5) महुणो (5/15)
महूण (6/60, 5/4, 5/11) महुस्स (6/60, 5/8) महूदो, महूदु, महूहि महूहिन्तो, महसुन्तो (6/60,5/6, 5/11, 6/61) (6/60, 5/7, 5/12) महुम्मि (6/60, 5/9, 6/61) महूसु (6/60, 5/18, 5/10) हे महु (5/27) . हे महूई (9/18)
सप्तमी संबोधन
*नोट - कातन्त्ररूपमाला के सूत्र संख्या 240 के अनुसार तृतीया से सप्तमी तक के नपुंसकलिंग शब्दों की रूपावली पुल्लिंग शब्दों के समान चलती है, इसीलिए सूत्रकार ने तृतीया से सप्तमी तक के प्रत्ययों का उल्लेख नहीं किया।
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
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