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(देव+भ्यस्) : (देव + हिन्तो, सुन्तो) = देवाहिन्तो,देवासुन्तो,देवेहिन्तो,देवेसुन्तो
(पंचमी बहुवचन) (देव + सुप्) - (देव + सु ) : देवेसु (सप्तमी बहुवचन) (देव + ङस्) - (देव + स्स) - देवेस्स या देवास्स नहीं बनेगा। (देव + ङि) - (देव + म्मि) - देवेम्मि या देवाम्मि नहीं बनेगा।
नोट - इस सूत्र में सु से सुप् तक की बात होने के बाद भी टीकाकारों ने उपर्युक्त
विभक्तियों की ही चर्चा की है।
13.
क्वचिद् ङसिङ्योर्लोपः 5/13 क्वचिद् ङसिङ्योर्लोपः { (क्वचित्) + (ङसि) + (योः) + (लोपः)} क्वचित् - कभी-कभी { (ङसि) - (ङि) 7/2} लोपः (लोप) 1/1 ङसि और डि परे होने पर कभी-कभी (उनका) लोप (होता है)। अकारान्त शब्दों के बाद ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) और ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर कभी-कभी उनका लोप हो जाता है। (देव + ङसि) - (देव + लोप) : देव (पंचमी एकवचन) (देव + ङि) : (देव + लोप) : देव (सप्तमी एकवचन)
14. इदुतोः शसो णो 5/14
इदुतोः शसो णो { (इत्) + (उतोः) + (शसः) + (णो) } . { (इत्) + (उत्) 6/2} शसः (शस्) 6/1 णो (णो) 1/1 इत्->इ, ईकारान्त, उत्→उ, ऊकारान्त के शस् के स्थान पर ‘णो' (होता
इ, ईकारान्त और उ, ऊकारान्त पुल्लिंग शब्दों के शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ‘णो' होता है। (हरि + शस) ८ (हरि + णो) : हरिणो (द्वितीया बहुवचन) (गामणी + शस् ) - (गामणी + णो) : गामणीणो (द्वितीया बहुवचन) (साहु + शस् ) - (साहु + णो) : साहुणो (द्वितीया बहुवचन) (सयंभू + शस् ) - (सयंभू + णो) : सयंभूणो (द्वितीया बहुवचन)
वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1)
(13)
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