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________________ 70. तत् के परे सु होने पर 'स' (होता है) नपुंसकलिंग में नहीं । तत् → त और एतत् → एत के परे सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने (34) और एतत् पर 'त' का 'स' होता है परन्तु नपुंसकलिंग में नहीं होता । ( त + सु ) ( त + ओ) S सो ( एत + सु ) (एत + ओ) こ 69. अदसो दो मुः अदसो दो मुः अदसः (अदस्) 6/1 こ こ एसो 1. मनोरमा टीका के आधार पर 'तस्य' का निवेश होना चाहिए। प्राकृत प्रकाश, डॉ. श्रीकान्त पाण्डेय, पृ. 108 । Jain Education International 6/23 [ ( अदसः) + (दः) + (मुः) } (प्रथमा एकवचन ) (प्रथमा एकवचन ) दः (द) 1/1 मुः (मु) 1/1 अदस् का द 'मु' (हो जाता है ) । सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर अदस् का '' हो जाता है। अदस्→ अद→ अमु 'अमु' शब्द के रूप उकारान्त शब्दों की भांति चलेंगे। 1. सूत्र 4/6 'अन्त्यहलः' से स् का लोप हुआ । हश्च सौ 6/24 हश्च सौ { (हः) + (च) } सौ ह: (ह) 1/1 च - समुच्चयबोधक अव्यय सौ (सु) 7/1 सु परे होने पर 'ह' (होता है ) । अदस् (पु., नपुं, स्त्री.) के परे सु (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर 'द' के स्थान पर 'ह' होता है। (और पूर्व सूत्रानुसार अमु के पु. स्त्री. में अमू और नपुं में अमुं तो बनेंगे ही) (अदस् + सु)' = अदस्→अद 1. मनोरमा टीका के आधार पर 'सु' का लोप हो जाता है । अह (प्रथमा एकवचन ) (पु., नपुं, स्त्री . ) वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004169
Book TitleVarruchi Prakrit Prakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2010
Total Pages126
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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