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________________ (क + ङि) - (क + आहे, इआ) : काहे, कइआ (सप्तमी एकवचन) (ज + ङि) - (ज + आहे, इआ) : जाहे, जइआ (सप्तमी एकवचन) (त + ङि) - (त + आहे, इआ) : ताहे, तइआ (सप्तमी एकवचन) 55. तो दो ङसेः 6/9 त्तो (त्तो) 1/1 दो (दो) 1/1 ङसेः (ङसि) 6/1 ङसि के स्थान पर 'तो' और 'दो' (होते हैं)। किं→क, यत् →ज, तत्→त से परे ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'तो' और 'दो' (होते हैं)। (क + ङसि) - (क + त्तो, दो) : कत्तो, कदो (पंचमी एकवचन) (ज + ङसि) - (ज + त्तो, दो) : जत्तो, जदो (पंचमी एकवचन) (त + ङसि) : (त + तो, दो) : तत्तो, तदो (पंचमी. एकवचन) 56. तद ओश्च 6/10 तद ओश्च { (तदः->ततः) + (ओः) + (च) } ततः ( तत् ) 5/1 ओः (ओ) 1/1- च : और तत् से परे 'ओ' और (तो, दो होते हैं)। पुल्लिंग सर्वनाम तत् → त से परे ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ओ' और 'तो', 'दो' होते हैं। (त + ङसि) : (त + ओ, तो,दो) - तो, तत्तो, तदो (पंचमी एकवचन) 57. उसा से 6/11 ङसा (ङस्) 3/1 से (से) 1/1 ङस् सहित ‘से' (होता है)। पुल्लिंग सर्वनाम तत् →त से परे डस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) सहित विकल्प से 'से' होता है। (त + ङस्) : से (षष्ठी एकवचन) (30) वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004169
Book TitleVarruchi Prakrit Prakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2010
Total Pages126
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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