Book Title: Varruchi Prakrit Prakash Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 53
________________ आम् (षष्ठी बहुवचन) - ङि (सप्तमी एकवचन) - हरीण, गामणीण, साहूण, सयंभूण, वारीण, महूण, कहाण, मईण, लच्छीण, घेणूण, बहूण हरिम्मि, गामणीम्मि, साहुम्मि, सयंभूम्मि, वारिम्मि, महुम्मि हरीसु, गामणीसु, साहूसु, सयंभूसु, वारीसु, महूसु, कहासु, मईसु, लच्छीसु, घेणूसु, बहूसु . सुप् (सप्तमी बहुवचन) - 107. न डिङस्योरेदातौ 6/61 न डिङस्योरेदातौ न { (ङि) + (ङस्योः ) + (एत्) + (आतौ) } न : नहीं { (ङि) - (ङसि) 7/2 } { (एत्) - (आत्) 1/2 } ङि तथा ङसि परे होने पर एत् और आत् नहीं (होते)। इकारान्त और उकारान्त शब्दों से परे ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) होने पर एत्→ए और ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर आत्→आ नहीं होते। (यह सूत्र 6/60 से प्राप्त होनेवाले प्रत्ययों का निषेध सूत्र है) 108. ए भ्यसि 6/62 ए (ए) 1/1 भ्यसि (भ्यस्) 7/1 भ्यस् परे होने पर 'ए' (नहीं होता)। इकारान्त और उकारान्त शब्दों से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अकारान्त शब्दों की तरह ‘एकार' (नहीं होता) (यह सूत्र 6/60 से प्राप्त होनेवाले प्रत्ययों का निषेध सूत्र है) 109. द्विवचनस्य बहुवचनम् 6/63 द्विवचनस्य (द्विवचन) 6/1 बहुवचनम् (बहुवचन) 1/1 द्विवचन के स्थान पर बहुवचन (होता है)। प्राकृत में द्विवचन नहीं होता। द्विवचन के स्थान पर बहुवचन होता है। (46) वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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