Book Title: Varruchi Prakrit Prakash Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 54
________________ 110. चतुर्थ्याः षष्ठी 6/64 चतुर्थ्याः (चतुर्थी) 6/1 षष्ठी (षष्ठी) 1/1 चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी (होती है)। प्राकृत में चतुर्थी व षष्ठी के लिए एक ही जैसे प्रत्यय प्रयुक्त किये जाते हैं। 111. शेषः संस्कृतात् 9/18 शेषः (शेष) 1/1 संस्कृतात् (संस्कृत) 5/1 शेष (रूप) संस्कृत से (समझना चाहिए)। प्राकृत में बचे हुए शेष शब्दरूपों को संस्कृत के समान समझना चाहिए। ( कहा + सि ) - कहा (प्रथमा एकवचन) सभी संज्ञा शब्दों का संबोधन बहुवचन। शौरसेनी सूत्र 112. अनावावयुजोस्तययोर्दधौ 12/3 • अनादावयुजोस्तथयोर्दधौ {(अनादौ) + (अयुजोः) + (तथयोः) + (दधौ)} अनादौ (अनादि) 7/1 अयुजोः ( अयुज् ) 7/2 { (त) - (थ) 6/2} { (द) - (ध) 1/2} अनादि और असंयुक्त 'त' और 'थ' के स्थान पर 'द' और 'ध' (होते हैं)। अनादि (आदि में न रहनेवाले) और असंयुक्त 'त' और 'थ' के स्थान पर क्रमशः 'द' और 'ध' होते हैं। भविष्यति → भविस्सदि तथा → तधा . 113. गिर्जश्शसोर्वा क्लीबे स्वरदीर्घश्च 12/11 णिर्जश्शसोर्वा क्लीबे स्वरदीर्घश्च { (णिः) + (जस् ) + (शसोः) + (वा) } क्लीबे { (स्वर) - (दीर्घः) + (च) } णिः (णि) 1/1 { (जस् ) - (शस्) 6/2} वा - विकल्प से क्लीबे. (क्लीब) 7/1 { (स्वर) - (दीर्घ) 1/1} च - और नपुंसकलिंग में जस् और शस् के स्थान पर विकल्प से 'णि' (होता है) और पूर्व स्वर दीर्घ (होता है)। वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1) (47) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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