Book Title: Varruchi Prakrit Prakash Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 28
________________ 30. सोर्बिन्दुर्नपुंसके 5/30 31. 32. सोर्बिन्दुर्नपुंसके { (सोः) + (बिन्दुः) + (नपुंसके ) } सोः (सु) 6/1 बिन्दु (बिन्दु) 1 / 1 नपुंसकलिंग में 'सु' के स्थान पर 'बिन्दु' ( अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों में 'सु' (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर बिन्दु 'अनुस्वार' ( ं) होता है। कमलं (प्रथमा एकवचन ) नपुंसके ( नपुंसक ) 7/1 होता है ) । - वारिं (प्रथमा एकवचन) महुं (प्रथमा एकवचन ) ( कमल + सु ) ( वारि + सु ) ( महु + सु ) ܚ = ( कमल + + ( वारि = ( महु Jain Education International ऋत आरः सुपि 5/31 ऋत आरः सुपि { (ऋतः ) + (आरः ) } सुपि + आरः (आर) 1/1 सुपि (सुप्) 7/1 ऋ के स्थान पर 'आर' ( हो जाता है ) । ऋतः (ऋत्) 6/1 सुप् परे होने पर ऋत् सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर ऋकारान्त शब्दों के 'ऋ' के स्थान पर 'आर' हो जाता है। S भर्तृ भत्तार भत्तार शब्द में अकारान्त शब्द के समान ही सभी विभक्तिबोधक प्रत्यय लग जाएंगे' मातुरात् 5/32 मातुरात् { (मातुः) + (आत्) } मातुः (मातृ) 6 / 1. 'आत् (आत्) 1/1 मातृ के (ऋ के स्थान पर) आत् आ (होता है ) । सुप् (प्रथमा से सप्तमी तक के विभक्तिबोधक प्रत्यय) परे होने पर मातृ के ऋ के स्थान पर आत् आ होता है। - वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1 ) मातृ माता माआ माआ शब्द में आकारान्त शब्द के समान ही सभी विभक्तिबोधक प्रत्यय लग जाएंगे' 1. मनोरमा, संजीवनी टीका के आधार पर । For Personal & Private Use Only (21) www.jainelibrary.org

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