Book Title: Varruchi Prakrit Prakash Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 47
________________ अस्मद् → अम्ह के जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) , शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और जस्, अम्ह और शस् के स्थान पर) 'अम्हे' (होता है)। (अम्ह + जस्) : अम्हे (प्रथमा बहुवचन) (अम्ह + शस्) : अम्हे (द्वितीया बहुवचन) 90. णो शसि 6/44 णो (णो) 1/1 शसि (शस्) 7/1 . शस् परे होने पर ‘णो' (होता है)। अस्मद् →अम्ह के शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और शस् के स्थान पर) 'णो' होता है। . (अम्ह + शस्) : णो (द्वितीया बहुवचन) 91. आङि मे ममाइ 6/45 आङि (आङ्) 7/1 मे (मे) 1/1 ममाइ (ममाइ) 1/1 आङ् परे होने पर 'मे', 'ममाइ' (होते हैं)। अस्मद् →अम्ह के आङ् (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और आङ् के स्थान पर) 'मे', 'ममाइ' होते हैं। (अम्ह + आङ्) : मे, ममाइ (तृतीया एकवचन) 92. ॐ च मइ मए 6/46 डी (ङि) 7/1 च : और मइ (मइ) 1/1 मए (मए) 1/1 ङि परे होने पर 'मइ', 'मए' (होते हैं) और। अस्मद् → अम्ह के ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (अम्ह और ङि के स्थान पर) 'मइ', 'मए' होते हैं और तृतीया एकवचन में भी 'मइ', 'मए' होते हैं। (अम्ह + ङि) : मइ, मए (सप्तमी एकवचन) (अम्ह + आङ्) : मइ, मए (तृतीया एकवचन) (40) वररुचिप्राकृतप्रकाश (भाग - 1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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