Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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विज्ञान और अध्यात्म : द्वन्द्व एवं दिशा अरविन्द के अनुसार आज हम ऐसी जगह पर पहुँच गये हैं, जहां मूल तत्व और मूल-शक्ति के रूप में केवल काल्पनिक विभेद रह गया है। (लाइफ डिवाइन, भाग-१ पृ० १७) यों तो प्राचीनकाल से अध्यात्म चिंतन में जड़-चेतन के अद्वैत की भावना निकलती थी किन्तु उस युग के विज्ञान की अविकसित धारा में यह शक्ति नहीं थी कि इसके लिये दृढ़ आधार मिल सके, इसीलिये "एकमेवाद्वितीयम्, "एकोऽहद्वितीयोनास्ति", "ला इलाहिल्लिह" आदि सूचक अद्वैत-चिंतन विद्या-विलास या गगन-बिहार ही सिद्ध हुए, भले ही कुछेक ऋषियों एवं मुनियों ने अपरोक्षानुभूति के माध्यम से इसको व्यक्तिगत जीवन में अनुभव किया हो । आज भी जड़ चेतन को एकता को विज्ञान के सुदृढ़ भूमि पर स्थापित नहीं की है लेकिन जिसके लिये पिछले दो हजार वर्षों से दार्शनिक और वैज्ञानिक प्रयत्न करते हुए दृश्यमान अनेकताओं के बीच एकता की स्थापना कर रहे थे, आज आधुनिक विज्ञान ने उसे काफी सफल कर दिया है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक ए० एन० हाइटेड कहता है-"अपने चारों ओर जिस दुनिया को हम देखते है उसका मानसिक जगत् से सम्बन्ध हम जितना समझते हैं उससे कहीं ज्यादा है ।" इसी को लेनिन अपनी व्याख्या से और भी उजागर करते हैं कि-"मैटर की मौलिक बनावट में ही चेतना का मूल तत्व मिला हुआ है।" यूजेन विगनर ने भी कहा है कि 'दो प्रकार तत्व होते हैं"-अपनी चेतना का सत्य" और इसके अतिरिक्त जो सत्य है । (Existence of my consciousness and existence of other's consciousness). लेकिन ये दोनों निरपेक्ष एवं स्वतन्त्र नहीं बल्कि सापेक्ष हैं । सबकुछ अभिसांज्ञिक या सांप्रत्ययिक है। "सोरिल हिरोशेलवुड ने स्पष्ट कहा"-अन्तस्तत्व की अस्वीकृति अपनी तात्कालिक प्रत्यक्षानुभूति और उसके अस्तित्व को अस्वीकृति है। मैक्स बोन ने इसीलिये सैद्धान्तिक पदार्थ विज्ञान को वास्तविक दर्शन कहा है । न्यूटन-आइन्स्टीन की कोटि के पदार्थ वैज्ञानिक नील्स बोर ने आण्विक पदार्थ (Atomic Physics) के अन्तर्गत पूरकता का सिद्धान्त (Principle of Complementarity) प्रस्तुत किया है जिसे जापानी पदार्थ वैज्ञानिक यूकाबा ने समर्थन करते हुए कहा है कि जापान में हम अरस्तु के निरपेक्ष तर्कशास्त्र से प्रभावित नहीं है। श्री अरविन्द ने तो इसे और भी स्पष्ट किया कि "अन्तस्तत्व का एक रूप मैटर है।" (लाइफ डिवाइन, भाग-२, पृष्ठ-४५३)। श्री मां ने इसीलिये दर्द से कहा है-"जिमे ईश्वर ने मिलाया, एक किया है, क्यों उसे मनुष्य अलग करना चाहता है। "बटेंड रसेल के अनुसार" मानस और मैटर का अन्तर काल्पनिक है।" क्वान्टम मेकानिक्स (Quantum Mechanics) के विज्ञाता पी० ए० एम० हिराक ने कहा है "प्रकृति के आधारभूत सिद्धान्त भी जगत् को उतने परिचालित नहीं करते है जितना वे दोखते हैं ।” अध्मात्म को भाषा में जड़-चेतन के इसी अद्वैत को "सर्व खलु इदं ब्रह्मम", "ईशावास्यमिदं ब्रह्मम ' या "सीयाराममय सब जगजानी' आदि उक्तियों से स्पष्ट किया गया है। जब सब कुछ "ब्रह्म या ईश्वर" है तो फिर चित्-अचित्, जड़-चेतन का भेद हो क्या होगा ? जेम्स जीन्स (Mytserious Universe), एडिंगटन आदि समकालीन वैज्ञानिक विज्ञान में प्रत्ययवादी प्रवृत्तियों का समावेश देखते हैं।
एक दूसरी दृष्टि से भी विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय देखा जा सकता है । विज्ञान सृष्टि के नियमों का अनुसन्धान करता है और कहता है कि प्रकृति अपने नियमों से आबद्ध है।
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