Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7 Author(s): Nand Kishor Prasad Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa MujjaffarpurPage 14
________________ विज्ञान और अध्यात्म : द्वन्द्व एवं दिशा डॉ० रामजी सिंह* विज्ञान और अध्यात्म के विषय में मनोभाव यही है कि विज्ञान के द्वारा हमें बाह्य जगत् का और अध्यात्म के द्वारा अन्तर्जगत् का ज्ञान प्राप्त होता है। लेकिन विज्ञान की सम्यक् दृष्टि तो यही है कि "विज्ञान" का अर्थ है "विशिष्ट ज्ञान", इसलिये इसमें बाह्य जगत् एवं अन्तर्जगत् दोनों का ज्ञान अभिनिहित हैं। असल में मूल में है "वैज्ञानिक दृष्टि", जिसमें हम सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अवगाहन एवं दोहन करते हैं । विज्ञान ने बाह्य जगत् के रहस्यों के भेदन में जितना समय और शक्ति दी है, उतना अन्तस्तत्व की खोज में नहीं दे पाया है। यही कारण है कि मानव-प्रकृति का बहुलांश अभी भी गहन अन्धकार में है। शायद विज्ञान अपने उत्कर्ष के चकाचौंध में यह भूल गया था कि मानव कार्य सिद्धि के लिये भले ही अनेकों उपयुक्त साधनों की खोज करता रहा है लेकिन एक भी साधन स्वयं मनुष्य के समान नहीं है। मानवतुल्यं नैकमपि साधनम् । मानव परम पुरुषार्थ है। यूनानी दार्शनिक प्रोटागोरस ने तो कहा ही था (Man is the measure of all things)। व्यास ने भी कहा-"नहि श्रेष्ठतरं किंचित् मानुषात् ।" हिलहार्ड (The Phenomenon of Man), ले (Man in the Modern world). एलक्सिस कैरल (Man, the Unknown), युग (Modern Man in Search of Soul) एवं मार्क्स आदि आधुनिक विद्वानों ने मानव की भूमिका और महत्व का अवगाहन करने पर अत्यधिक जोर दिया है। फिर भी हम विज्ञान-विरुद्ध नहीं हो सकते । जो विद्वान-विरुद्ध है, वह ज्ञान नहीं अज्ञान और अन्धविश्वास हैं । जो विज्ञान-विरुद्ध है, वह तर्क-विरुद्ध है और तर्क-विरुद्ध हम हो नहीं सकते। जो तर्क नहीं करता है, वह अन्धविश्वास और रूढ़ियों में जकड़ा हुआ है, जो तर्क नहीं कर सकता है, वह मूर्ख है और जो तर्क करने का साहस नहीं करता वह दास-वृत्ति का व्यक्ति है। इसीलिये जो विज्ञान या तर्क विरुद्ध है, उसके लिए कहीं कोई अवसर नहीं है। यह असत्य एवं भ्रम है। किन्तु हमें कुछ चोजें ऐसी हैं जो तर्क विरुद्ध नहीं है लेकिन तर्क से परे है। इसलिये जो तर्क से परे है वह न तो विज्ञान विरुद्ध है न तर्क-विरुद्ध । इसी तरह जो विज्ञान से परे है, वह तर्क विरुद्ध या ज्ञान-विरुद्ध नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यह है कि विज्ञान एवं तर्क उपयोगिता एवं महत्व के प्रति आस्था और विश्वास स्वयं विज्ञान एवं तर्क से ऊपर है । सभी बातें तर्काधारित होनी चाहिये, सभा विज्ञान सम्मत होने चाहिये, यह तो एक प्रकार का धार्मिक विश्वास जैसा ही है। इस तथ्य को हाइ जन वर्ग ने अपनी पुस्तक (Physics and Beyond) में अच्छी तरह प्रतिपादित किया है । * गाँधी-विचार विभाग, भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर-७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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