________________
वड्डमाणचरिउ नदी पार करता हुआ ढिल्ली आया था। ' उस समय ढिल्लीमें राजा अनंगपालका राज्य था।' अनंगपाल द्वारा सम्मानित अग्रवाल कुलोत्पन्न नट्टल साहूकी प्रेरणासे कविने 'पासणाहचरिउ' की रचना की थी।
. पासणाहचरिउ एवं वड्डमाणचरिउमें विबुध श्रीधरका जितना जीवन-परिचय मिलता है, उसे मिलाकर भी अध्ययन करनेसे यह पता नहीं चलता कि कविकी मूल वृत्ति क्या थी तथा उसका पारिवारिक-जीवन कैसा था? जैसा कि पूर्वमें कहा जा चुका है कि उसके नामके साथ 'विबुध' एवं 'बुध' ये दो विशेषण मिलते है, किन्तु वे दोनों पर्यायवाची ही हैं। इन विशेषणोंसे उसके पारिवारिक-जीवनपर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। प्रतीत होता है कि कवि प्रारम्भसे ही संसारके प्रति उदासीन जैसा रहा होगा। गृह-परिवारके प्रति उसके मनमें विशेष मोह-ममताका भाव नहीं रहा होगा, अन्यथा वह अपना विस्तृत परिचय अवश्य देता। . विबुध श्रीधरने स्वरचित प्रत्येक कृतिमें उसका रचनाकाल दिया है, इस कारण उसका रचनाकाल तो वि. सं. ११८९ से १२३० के मध्य निश्चित है ही। कविकी अन्य जो दो रचनाएँ अनुपलब्ध हैं, उनके विषयमें यदि यह मान लिया जाय कि उनके प्रणयनमें कविको लगभग १० वर्ष लग गये होंगे तथा यदि यह भी मान लिया जाय कि उसने अपने अध्ययन, मनन एवं चिन्तनके बाद लगभग २५ वर्षकी आयुमें ग्रन्थप्रणयनका कार्य प्रारम्भ किया होगा तब विबुध श्रीधरका जन्म वि. सं. ११५४ के आसपास तथा उसकी कुल आयु लगभग ७६ वर्षकी सिद्ध होती है।
४. आश्रयदाता
विबुध श्रीधरकी उपलब्ध रचनाओंमें साहू नट्टल, साहू नेमिचन्द्र, साहू, साहू सुपट्ट एवं पीथे पुत्र कुँवरके उल्लेख एवं संक्षिप्त परिचय प्राप्त होते हैं । कविने उनके आश्रयमें रहकर क्रमशः पासणाहचरिउ, वड्डमाणचरिउ, भविसयत्तकहा और सुकुमालचरिउ नामक ग्रन्थों की रचना की थी।
वड्ढमाणचरिउके आश्रयदाता साहू नेमिचन्द्रके विषयमें कविने लिखा है कि वे जायस ( जैसवाल ) कुलावतंस थे। वे वोदाउव के निवासी थे । कविने उनके पारिवारिक-जीवनका मानचित्र इस प्रकार प्रस्तुत किया है
साहू नरवर ( पत्नी सोमइ अथवा सुमति
प्रस्तुत ग्रन्थके प्रेरक । नेमिचन्द्र ( पत्नी वीवा )
एवं आश्रयदाता"
र
रामचन्द्र श्रीचन्द्र विमलचन्द्र उक्त वोदाउव नगर कहां था, इसकी सूचना कविने नहीं दी है। किन्तु अध्ययन करनेसे विदित होता है कि वह आधुनिक बदायूँ ( उत्तर प्रदेश ) नगर रहा होगा। बदायूँ नगर जैसवालोंका प्रधान केन्द्र भी माना जाता रहा है। उक्त नेमिचन्द्रने कवि श्रीधरसे 'वड्ढमाणचरिउ' के प्रणयनको प्रार्थना की जिसे उसने सहर्ष स्वीकार किया।
१. पासणाह. १२२५-१६ २. पासणाह. १४१ ३. पासणाह. शहा११-१४ ४. वड्ढमाण., श२।३,१०४१।३ । ५. बड्ढमाण.,१०१४१ ६. वही, १२२२११००४१।३ ।
., ७,बही, १।२।४, १४३३, १०॥४१४३, १०४१।१५।
८. वही, १०४१।११। ६, वही. १०४१।१२। १०. वही. १०४९।१३ । ११. वही, १।२।४-१२, १।३१-३:१०४१।३-४।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org