________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
उत्तराध्य
यन मृश्रम
॥६४० ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बहुश्रुतः यथाधिपतिः, यूथस्य चतुर्विधसंघस्य अधिपतिर्यथाधिपतिः एवं बहुश्रुतोऽपि यूथाधिपवृषभवत् आचार्यादिपदवीं प्राप्तः सन् विराजते. ॥१९॥
यथा=जेम-जेनुं वर्णन हमणांज आपशे एवो-वृषभ = बळद, यूथ=बळदना टोळांनो अधिपति धइने विराजे छे- शांभे छे; एज प्रमाणे बहुश्रुत पण विशेषताथी शोभे छे. वृषभ केवो? तीक्ष्ण शृंग=तीखां अणीदार शींगडांवाळो बळी जातस्कंध =धोंसरी धारण | कवानो भाग जेने उत्पन्न थयो छे तेवो, आवा वळदना जेवो बहुश्रुत पण शोभे छे, बहुश्रुत के वो? परपक्ष भेदवा माटे स्वमत ज्ञान तथा परमतज्ञान रूप वे तीक्ष्ण जेने छे एवो वळी ते बहुश्रुत केत्रो? जातस्कंध एटले जेने गणना कार्यरूपी घोंसरी उठावना अग्रणी | पणां रूप स्कंध जेने उत्पन्न थयेल छे एवो तथा यूथ = चतुर्विध संगनो अधिपति थयेलो; आयो बहुश्रुत पण यूथाधिपति वृषभनो पेठे आचार्य आदिक पदवी पामीने शोभे छे. १९
जहा से क्खिदा । उग्गे दुप्पहए | सोहे मियाण पैवरे । एवं हवइ हुए ।। २० ।। [जा] जेम [से] ते [तिक्ख दाढे] तीक्ष्ण दाढवाळो [उदग्गे] उत्कृट तथा ( दुप्पह सप) पराभव न पमाडी शकाय तेवा [मिआण] मृगो मध्ये [परवरे] प्रवर एवो [सीहे] सिंह शाभे छे, (एव) एज प्रमाणे [हुस्सुभवइर] बहुश्रुत पण शोभे छे. २०
व्या०—यथा सिंहो मृगाणामरण्यजीवानां मध्ये प्रवरः प्रधानः स्यात् एवं बहुश्रुतोऽपि सिंह इव अन्यतीर्थीयमृगाणां मध्ये प्रकर्षेण श्रेष्ठः स्यात् कथंभूतः सिंहः? तीक्ष्णदंष्ट्रः पुनः कीदृशः सिंहः ? उदग्र उत्कटकः, पुनः कथंभूतः दुःप्रहंसको दुरभिभवः अन्यैर्जीवै दुर्धृष्यो दुःसह इत्यर्थः, बहुश्रुतोऽपि सिंह इव, कथंभूतो बहुश्रुतः ? तीक्ष्णदंष्ट्रः,
For Private and Personal Use Only
भाषांतर अध्य०११
॥६४०॥