Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्ययनसूत्रम्
||८३७॥
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| शाखाओ छेदाइ जाय त्यारे एज वृक्षने लोको स्थाणु=कुंठ=खीतो कहे छे. शाखाहीन वृक्षने जेम स्थाणुत्व आवे तेम पुत्रोथी वियुक्त | बनेला मने घरे रहेबामां सुख नथी. २९
| पंखाविणो व्व जहेब पक्खी । भिचविहीणुव्व रणे नरिंदो । विवन्नसारो वणिउच्व पोए। पहीणपुत्तोमि तहा अहंपि जेवो पांख व्होणो पंखी, जेवो भृत्य योद्धाओ विनानो रणसंग्राममां नरेंद्र-राजा, तथा विपन्नसार जेनी मालमत्ता समुद्रमां वामाइ होय ते वहाणां चडेलो वणिक्, तथा तेयो पुत्र विनानो हु' छु. ३०
व्या०
शब्दो दृष्टांतसमुच्चये, हे प्रिये ! इहास्मिन् लोके पक्षाभ्यां विहीनः पक्षी यादृशः स्यात्, पक्षहीनो हि | पक्षी आकाशमार्गोल्लंघनायाऽशक्तो येन केनापि हिंस्रेण पराभूयते. पुना रणे संग्रामे भृत्यैः सेवकैर्विहीनो नरेंद्रो नृप| तिरिव रिपुभिः पराभूयते पुनर्वणिक् व्यापारीव, यथा पोते प्रवहणे भग्ने सतीत्यध्याहारः, विपन्नसारो विगतसर्व| द्रव्यभांडो विषादं करोतीति शेषः, तथाहमपि प्रहीणपुत्रः प्रत्रजितपुत्रो विषादवान् भवामीति शेषः ।। ३० ।। इति पुरोहितप्ररूपितं वचनं श्रुत्वा वासियाह
'व' शब्द दृष्टांत समुच्चय अर्थ सूचवे छे. हे प्रिये ! आ लोकने विषये पांखोथी विहीन पंखी जेबो थाय, पांख व्होणो पंखी आकाशमार्गे वा अशक्त बनेलो जेम कोइ हिंस्रमाणीथी पराभव पामे; वळी जेम रणसंग्राममां भृत्य = सेवकोथी विहीन नरेंद्र= नृपति जेम शत्रुओथी पराभव पामे, तथा जेम वणिक् = वेपारी पोत = वहाणमां ('ते वहाण भांगे त्यारे' आटलो अध्याहार लेवो.) | विपन्नसार = सर्व द्रव्य भांड= तमाम मालमत्ता समुद्रमां नष्ट धतां विषाद= खेद करे, तेवी रोते हुं पण महीणपुत्र=पुत्रो मत्रजित थतां खेदयुक्त थ . (एटलं शेष छे.) ३०
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भाषांतर अध्य० १४
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