Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्य धनसूत्रम्
॥८५४ ॥
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| जेम तेम शंकमान =शंकितचित्त वनी, धीमे धीमे जेम गरुड न जाणे तेम अविश्वासी रही तनु=स्वल्प जेम थाय ते सर्प चाले तेवी | रीते चालो. अर्थात् नमे पण गरुडनी जेने उपमा कही तेवा विषयोनो विश्वास करशोमां अत्रे विषयोने संयमरूम जीवितना अपहारक होवाथी गरुडोपमान आप्युं, तथा नर = मनुष्योने भोगलोलुप होवाथी सर्पोपमान आपयुं, कारण के सर्प भोगीज कहेत्राय छे. |विषयो तो देखाता सुंदर होवाथी गरुडाकार कहा. भोगीजनोनुं विषयोथीज मृत्यु थाय छे. माटे विषयोथी सर्वदा संकित - चेतता रहे: नागोव्व बंधणं छित्ता । अप्पणो वसहि वए || एवं पत्थं महाराय | इसुयारिति मे सुयं ॥ ४८ ॥ जेम नाग=हाथी बंधन छेदीने पोतानी वसति अरण्यमां जाय, [तेम तमे पण कर्मनां बंधन छेदीने आत्मानी वसति मोक्षगतिर जशो.] हे महाराज इषुकार ! आ पथ्य = हितकारक में जे साभळ्यु तु ते तमने कः ४८
ब्वा०—हे राजन् ! नाग इव हस्तीव बंधनं छित्वाऽात्मनो वसतिं स्वकीयस्थानं विध्याटवीं यांति, तथा त्वमपि बलवत्त्वान्नागो विषयशृंखलां छित्वात्मनः स्थानं मुक्तिं व्रजेः, धीरपुरुषा गजतुल्याः, विषयाः श्रृंखलातुल्याः, मुक्तिर्वि ध्याटवीवात्मगजस्य स्थानमुक्तं, हे इषुकारिमहाराज ! मया साधुमुखादिति पथ्यं हितं श्रुतमस्ति, नाहं स्वबुध्या ब्रवीमीत्यर्थः ॥ ४८ ॥
हे राजन् ! नाग जेम-हाथी जेम बंधन छेदीने आत्मानी वसति-पोतानुं रहेठाण-विध्याटवीमां जाय तेम तुं पण बळवान् होवाथी नाग जेवो छो तो विषयशृंखलारूप बंधनने छेदीने आत्मानुं स्थान- मोक्षे जाओ; धीर पुरुषो हाथी समान अने विषयो श्रृंखला तुल्य तेम मुक्ति विध्याटवी जेवी आत्मा रूपी गजनुं स्थान कछु . हे इषुकारि महाराज ! में साधुओना मुखेधी आवुं पथ्य
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भाषांतर अध्य० १४
॥८५४॥

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