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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य धनसूत्रम् ॥८५४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | जेम तेम शंकमान =शंकितचित्त वनी, धीमे धीमे जेम गरुड न जाणे तेम अविश्वासी रही तनु=स्वल्प जेम थाय ते सर्प चाले तेवी | रीते चालो. अर्थात् नमे पण गरुडनी जेने उपमा कही तेवा विषयोनो विश्वास करशोमां अत्रे विषयोने संयमरूम जीवितना अपहारक होवाथी गरुडोपमान आप्युं, तथा नर = मनुष्योने भोगलोलुप होवाथी सर्पोपमान आपयुं, कारण के सर्प भोगीज कहेत्राय छे. |विषयो तो देखाता सुंदर होवाथी गरुडाकार कहा. भोगीजनोनुं विषयोथीज मृत्यु थाय छे. माटे विषयोथी सर्वदा संकित - चेतता रहे: नागोव्व बंधणं छित्ता । अप्पणो वसहि वए || एवं पत्थं महाराय | इसुयारिति मे सुयं ॥ ४८ ॥ जेम नाग=हाथी बंधन छेदीने पोतानी वसति अरण्यमां जाय, [तेम तमे पण कर्मनां बंधन छेदीने आत्मानी वसति मोक्षगतिर जशो.] हे महाराज इषुकार ! आ पथ्य = हितकारक में जे साभळ्यु तु ते तमने कः ४८ ब्वा०—हे राजन् ! नाग इव हस्तीव बंधनं छित्वाऽात्मनो वसतिं स्वकीयस्थानं विध्याटवीं यांति, तथा त्वमपि बलवत्त्वान्नागो विषयशृंखलां छित्वात्मनः स्थानं मुक्तिं व्रजेः, धीरपुरुषा गजतुल्याः, विषयाः श्रृंखलातुल्याः, मुक्तिर्वि ध्याटवीवात्मगजस्य स्थानमुक्तं, हे इषुकारिमहाराज ! मया साधुमुखादिति पथ्यं हितं श्रुतमस्ति, नाहं स्वबुध्या ब्रवीमीत्यर्थः ॥ ४८ ॥ हे राजन् ! नाग जेम-हाथी जेम बंधन छेदीने आत्मानी वसति-पोतानुं रहेठाण-विध्याटवीमां जाय तेम तुं पण बळवान् होवाथी नाग जेवो छो तो विषयशृंखलारूप बंधनने छेदीने आत्मानुं स्थान- मोक्षे जाओ; धीर पुरुषो हाथी समान अने विषयो श्रृंखला तुल्य तेम मुक्ति विध्याटवी जेवी आत्मा रूपी गजनुं स्थान कछु . हे इषुकारि महाराज ! में साधुओना मुखेधी आवुं पथ्य For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य० १४ ॥८५४॥
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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