Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kende
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तराध्य
कुमारे ते कन्याने पूछयु के-अहींथी क्या जवान छे?' रत्नवतीए उत्तरमा कयु के-'अहीं मगधपुर जवान छे, त्यां मारा बापना पनसूत्रम् न्हाना भाइ धनसार्थवाह नामना शेठ रहे के तेमने आ वधी वातनी खबर छे तेथी ते तमारु तथा मारुं समागमन सुंदर रीते जाणशे, भाषा र त्यां आपणे जइये छीये, पछी आपनी जेम इच्छा होय तेम करवू.' रत्नवनीना आवां वचन सांभळी कुमार ब्रह्मदत्त मगधपुर भणी
INE अध्य०.३ ॥७४९॥ जवानी प्रवृत्ति करी, त्यारे वरधनु सारथि वन्या, आम गामे गाम थतां तेओ कौशांची प्रदेशमाथी नीकळी गया.
७४९॥ ___अन्यदागती गिरिगुहाटव्यां, तत्र कंटकसुकंटकाभिधानौ दो चौरसेनापती तं प्रवरं रथ विभूषितं स्त्रीरत्नं च प्रेक्ष्य तद्रक्षकं च कुमारद्वयमेव सन्नद्धौ सपरिवारौ प्रहतुमायातो. अत्रावसरे कुमारेग तथा प्रहर गशक्तिर्दर्शिता, यथा सर्वेऽपि चौरसुभटाः कुमार प्रहाराजर्जराः सर्वासु दिक्षु गताः. कुमारस्ततो रथारुढश्चलितः, वरधनुनोक्तं कुमार! यूयं दृढश्रांताः, ततो मुहर्तमानमत्रैव रथे निद्रासु वमनुभवत ? ततो रत्नवल्या सह कुमारः प्रसुप्तः, गिरिनदी एका मार्गे
समायाता, तावत्तुरंगमाः श्रमखिन्ना नाग्रे चलंति, ततः कथंचित्प्रतिवुद्धः कुमारः अमखिन्नांस्तुरंगमान् पश्यन् रथाग्रे allच वरधनुमपश्यन् जल निमित्तं वरधनुगतो भविष्यतीति चिंतितवान. इतस्ततः पश्यन् कुमारो रथाग्रभागं रुधिरा
वलिप्तं ददर्श. ततो ब्यापादितो वरधनुरिति ज्ञात्वा हा हा ! हतो मे सुहदिति शोकातःकुमारो रथोत्संगात्पपात,
मूछी च प्राप्तवान्. JET आगळ चालतां तेओ गुफाओवाळा पर्वतयुक्त अरण्यमां प्राची चडचा, त्यां कंटक तथा सुकंटक नामना बे चोर सेनापति, ए|
शणगारेला श्रेष्ठ रथने तथा तेमां बेठेल स्त्री रत्नने जोड तेमज एनी रक्षा करनारा थे कुमारज छे एम धारी परिवार सहित तयार
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291