Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्ययनसूत्रम्
॥८०४ ॥
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क्ताभिलाषः पुनः कीदृशः सः ? उदग्रचारितपाः, उदयं प्रधानं साध्वाचारे सर्वविरतिलक्षणं दशविधरूपं चारित्रं, | तपो द्वादशविधं यस्य स उदग्रचारित्रतपाः एतादृशः सन् मोक्षं प्राप्तवित्रजीवमुनिरिति सुधर्मास्वामी जंत्रस्वामिनं | ब्रवीति. हे जंबू ! अहं तवाग्रे इति ब्रवीमि ॥ ३५ ॥ इति चित्रसंभृतीयं त्रयोदशमध्ययनं संपूर्ण ॥ १३ ॥ इति | श्रीमदुत्तराध्ययन सूत्रार्थदीपिकायां उपाध्यायश्रीलक्ष्मी कीर्तिगणिशिष्यलक्ष्मीवल्लभगणिविरचितायां चित्रसंभूतीयम|ध्ययन संपूर्ण ॥ १३ ॥
चित्रमुनि पण = पूर्वभवना चित्रजीव साधु पण महर्षि=महामुनि, अनुत्तर सर्वनी उपर वर्त्तता सिद्धिस्थाने गया. केम करीने ? अनुत्तर=जिनाज्ञा विशुद्ध सत्तरमकारनो संयम पालीने, केवा ते साधु ? कामभोगथी विरक्त = निवृत्ताभिलाष तथा उदग्र-प्रधान साधुना आचार, सर्वविरति लक्षण दशविध चारित्र तथा द्वादशविध तपःसंपन्न यह मोक्ष पाम्या चित्रजीव मुनि, एम सुधर्मास्वामी कहे छे के हुं एम बोलुं कुं.
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अहिं चित्रसंभूतीयनामक त्रयोदश अध्ययन पूर्ण थयुं. एवीरीते लक्ष्मी कीर्तिगणिना शिष्य लक्ष्मीवल्लभ मूरिए निर्मित उत्तराध्ययनना तेरमा अध्ययननी वृत्ति समाप्त थाय छे.
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भाषांतर अध्य०१३
॥ ८०४ ॥

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