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अगीयारमा अध्ययनमा बहुश्रुतपूजा कही हवे आनारमा अध्ययनमा बहुश्रुते पण 'तपोनुष्ठान करघु' एम प्रतिपादन कराशे ए. उत्तराध्यरीते पूर्वोत्तर अध्ययननी संगति दर्शावी एटले आ अध्ययनमा तपो माहात्म्य कहेवामां आवशे. हरिकेशबल साधु-तपस्वी हता,
भाषांतर यनसूत्रम्
अध्य०१२ तेनो अहीं संबंध एवीरीते छे के-मथुरा नगरीमा शंख नामे विषयसुखथी विरक्त राजा हतो ते एक वख्ते स्थविरोनी समीपे ॥६५६॥ नीकल्या, कालक्रमे गीतार्थ-दीक्षा पूर्वक संयमी=थया. पृथ्वीभंडळमां परिभ्रमण करतां हस्तिनागपुरमा आवी चड्या ज्यां भिक्षा ॥६५६॥
माटे गाममा पेसे छे त्यां एक अति उनो मार्ग हतो के जेनापर उष्णकाळमां कोइर्था चाली न शका, तेथी ते मार्गर्नु 'हुतवह एqE | नाम पडी गयुं हतुं; ते मुनियें पांसेना गोखमां बैठेला एक सोमदेवनामना पुरोहितने पूछयु के-केम आ पागे जाउं?' पुरोहिते | विचार्यु के -जो आ साधु आ हुतवह मार्गे जाय तो तेना पग बळे त्यारे ए तरफडाट जोवानो मारो कौतुक मनोरथ पूरी याय' | आथी तेणे ते साधुने एज मार्ग चौंध्यो, इर्यासमिविना उपयोगे मुनि एज मार्गे जवाने प्रवृत्त थया. लब्धि (सिद्धि)ना पात्रभूत ते
मुनिना पादप्रभावथी तेवो अग्निसदृश मार्ग पण शांत थइ गयो. ते मार्गमां धीरे धीरे चाल्या जता मुनिने जोइ ते पुरोहित पोताना JEI निवासना गोखमांथी हेठे उतरी पोताना बेय पगवती ते मार्गनो स्पर्श को त्यां तो बरफ जेबो शीतल मार्ग जाण्यो. ते समज्यो
| के मुनिना पादज आ महात्म्य छे, त्यारे तेणे एम विचार्यु के-'अरे! पाप कर्म करनार बनी में आ पुण्यात्मा साधुने केवो मार्ग | देखाड्यो? पण आना पादस्पर्शीज आ मार्गना तापनी उपशांति थइ, तेथी जो हुँ आनो शिष्य थाउं तो मारा आ पापर्नु मायचिस थाय? आम विचारीने तेणे मुनिनी आगळ पोतार्नु पाप प्रकाशित कयु, अने तेना पादमां प्रणाम कर्या. मुनिए पण तेने सारीरीते धर्म प्रकाशित कर्यो ते उपरथी ते सोमदेव पुरोहितने पंवेग उत्पन्न थतां ते मुनिनी पांसेज दीक्षा ग्रहण करी. हवे ए सोमदेव
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