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उत्तराध्य-10 पनसूत्रम
॥७११॥
वर जाण्यु छे, तेम परने पण उपदेश्यं छे. ए स्नान के छे? सर्व स्नानोमां उत्तम होवाथी महास्नान कडेवाय छे तेमन ऋषियोए ||NE
भाषांतर प्रशस्त मुनिने योग्य ए स्नान छे जेना बडे स्नान-हायेला पवित्र थयेला विमळ कर्म मळ रहित थवाथी विशुद्ध निष्कलंक बनेला अध्य०१३ महर्षि मुनीश्वरी उत्तम स्थानमोक्षस्थानने प्राप्त थया छे. 'एम हुं बोलु छ' [आ छेलं वाक्य मुधर्मास्वामीए जंबूस्वामी प्रति
॥७११॥ कहेल छे. ४७ हरिकेशीय नामक बार अध्ययन पूर्ण थयु. एवी ते उपाध्याय लक्ष्मीकीर्तिगणिना शिष्य लक्ष्मीवल्लभगणिविरचित उत्तराध्ययनमूत्रनी अर्थ दीपिका नामनी वृत्तिमा बारमुं हरिकेशीयाध्ययन पूर्ण थयु.
॥ अथ त्रयोदशमध्ययनं प्रारभ्यते ॥
अथ चित्रसंभूतीय नामक त्रयोदशाध्ययन. तपः कुवेता पुरषेण लिदान न कार्यमित्याह. इतिहादशत्रयोदशयोः संबंधः, चित्रसंभूतमाध्वोः संबंधमाह
तपः करनार पुरुषे निदान न करवू एम कही, बारमा तथा तेरमा अध्ययननी पूर्वोतर संगति दर्शाचीने चित्र तथा संभूत | JK | साधुना संबंधमां कहेछे के
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