Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ नमस्कार महामंत्र णमो अरहंताण णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोएसव्वसाहूणं उपर्युक्त मंत्र के प्रत्येक पद के प्रारम्भ और अन्त में 'ण-वर्ण' आया है । अन्तर केवल बिन्दु का है। बिना बिन्दु का 'ण' ध्वनि को गति प्रदान करता है और बिन्दु वाला 'ण' ध्वनि को रोकता है। मंत्र के अन्तर्गत पांच बिना बिन्दु वाले और पांच बिन्दु वाले कुल दस 'ण' हैं । 'ण' के स्थान पर न का प्रयोग किया जा सकता था पर जैनाचार्यों व विद्वानों ने 'ण-वर्ण' की ध्वनि को प्रधानता दी है, इसके पीछे कोई न कोई गूढ़ रहस्य होना चाहिए । हमारे देश के मनीषियों तथा योगियों ने 'नाद' से उत्पन्न होने वाली ध्वनि को 'ब्रह्म' की संज्ञा दी है। 'शब्द-ब्रह्म' की साधना करने वाले साधकों के ज्ञान व अनुभवों का लाभ उठाने वाले श्रावक 'शब्द-ब्रह्म' की शक्ति के गूढ़ रहस्य को समझें या न समझे पर उनके द्वारा बताये गए मार्ग पर कदम बढ़ाते हुए हजारों वर्षों से चले आ रहे हैं और चलते रहेंगे। बोल-चाल अथवा कई पुस्तकों में 'ण' के स्थान पर न' लिखा हुआ मिलता है पर मंत्रोच्चारण के अवसर पर साधकगण 'ण' व्यञ्जन का ही प्रयोग करते हैं। इन दोनों व्यञ्जनों (ण और न) के अर्थ शब्दानुसार, भावानुसार, विषयानुसार पृथक-पृथक हैं । 'न' के नमन, नमस्कार, नमो नारायण आदि अर्थ होते हैं वहां-ना, नहीं, निष्क्रीय निट्ठलू, नमक-हराम जैसे शब्दों व भावों की जानकारी भी मिलती है, जबकि 'हिन्दी शल्द कोष' में 'ण' प्रथम आया हो ऐसा शब्द नहीं मिलता है अतः यह केवल ध्वनि प्रधान व्यंजन वर्तमान में सांगीतिक दष्टि से 'न-वर्ण' का महत्व अधिक है। गायक जब रागालाप करता है तो-ता नूम, तननन का उच्चारण करता है। तराना-गायन-शैली में 'न' का प्रयोग विशेष तौर पर किया जाता है। तबला व पखावज के बोलों की रचनाएं 'न' पर आधारित मिलेगी तथा कत्थकनृत्य की रचनाओं में भी 'न-वर्ण' का खुल कर प्रयोग किया जाता है । संगीत कला के अन्तर्गत आने वाली तीनों विधाओं (गायन, वादन, नर्तन) में 'ण' का प्रयोग पखावज, तबला और नृत्य की कुछ रचनाओं में देखने को मिलता है, जब कि संगीत के प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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