Book Title: Tristuti Paramarsh Author(s): Shantivijay Publisher: Jain Shwetambar Sangh View full book textPage 9
________________ मलेरकोट पांचालमुल्कमें जानतेहै सब निखिलजहान, धर्मशास्त्रकों पढे मुनिश्वर-व्याकरणकोशकों भारीज्ञान, सर्वशास्त्रकों आपने पृथक् पृथक् लिनेसबजान, पंजाव पूरव मारवाड-गुजरात मालवाकों दियोतार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधनघरबार विद्या, २,' दखनमेंगये आपमुनिजी-जिनमत खूबदिपायाहै, देशदेशमें आपका सुजश बहोतसा छायाहै, मानवधर्मसंहिता एकपुस्तक-बहोतखूब फरमायाहै, प्रश्नपांचको खंडनकरके मजहब रिसाला बनायाहै, तीनथुइका परामर्श एक-तीनथुइपें रचायाहैं, विधि जैनसंस्कार बनाकर तनपरयश उपजायाहै, गृहस्थापनमें नाम हठीसिंह-जन्मलग्नमें विदितविचार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटंब संवर्धन घरबार, विद्या, ३, उन्नीसवर्षकी उमरआपकी-जबसें यह संयम धायों, धन्यमुनिजी आपने कामक्रोध रिपुकों मार्यो, . सकल कामना तजी जग्तकी-लोभपाप पावकजार्यो, धन्यहो स्वामीआपने निजआतम कारजसार्यो, विद्यासागर न्यायरत्नमुनि-धर्मधुरंधर पदधार्यो, देशदेश और नगर गांवमें सुजश आपने विस्तार्यो, सुरजमल्लकी हाथजोडकर-मुनिजीवंदना वारंवार, सयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधन घरबार, विद्या, ४, [ इति गुरुभक्तिपर लावनी.]Page Navigation
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