Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) मतलब यहहुवाकि-पीले कपडे और रैल विहारकरना-अनेकांतवादसे यानी ( स्याद्वादन्यायसें ) निन्हवपनानही, यहभी खुबकहा, इससतो तुमखुद कुबुल होगयेकि-अनेकांतवादसें उक्तबातें ठीकहैं, चतराइतो लेख लिखनेमें खूबकरतेहो-मगर-अकलमंदोके सामने चलनहीसकती, औरहमतो घरकेभेदी ठहरे,-हमारेसामन काइक्या चतराइ करेगा ?
जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताबके पृष्ट (१४) पर बयान है अनेक साधुओके बीचमें रैलविहार कररहेहै उनकोंही रोकना मुनिसंवेगीयोंकों कठिनतर है तो-अन्यमतावलंबीयोंकों क्या रौकसकेगें, ? एकही मनुष्य समस्त पीतांबरोका पीतलेशी धुरी-उडारहाहै तो क्या ऐसे साधु इतनीभारीसमुदायमें पढेलिखे नही है ? यदि है-तो-प्रकाशमें क्यौं-नही आते ? क्या ! उसपासथ्येसे डरते है, ? अहो मुनिमहाशयो पदि वीतरागप्रणीतसूत्रोंका बलहै तो क्यों छुपते फिरते हो ?
(जवाब.) पार्श्वस्थ वहहोता है जो आधाकर्मी-उपाश्रय-वापरे, देखो ! पंचकल्पचूर्णि, पार्श्वस्थ वहहोताहै-जो-आधाकर्मी आहार लेवे, देखो ! पीड नियुक्ति, पार्श्वस्थ-वहहोताहै-जो चौदहउपकरणसें ज्यादे उपकरण रखे, देखो ! निशीथसूत्रकीचूर्णि, पार्श्वस्थ वहहोताहै जो साधु-साध्वी-एकशाथ विहार करे, देखो ! व्यवहारसूत्रकी चर्णि पार्श्वस्थ वहहोताहै-जो- शय्यातरके घरका आहारलेवे, देखो! आवश्यकसूत्रकी चूर्णि,-कइमुनि-जब-एकमुल्कसे दुसरे मुल्ककों विहार करते है, श्रावकोके शाथ विहार करते है. क्या श्रावकलोक नही जातेकि-शाथमे दशपनरांह मुनिमहाराजहै आहारका योग रखना होगा. क्या ! जो पूर्णसंयमी होनेका दावा रखते है विनाश्रावकके अकेले विहारनही करसकते ? अगर कहा जाय-जैसा द्रव्यक्षेत्रकालभावहै-वैसावर्तते है, तोफिर इसी सडकपर आइये ! उत्कृष्टता किसबातकी रही ?

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