Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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Page #1 --------------------------------------------------------------------------  Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्यासागर-न्यायरत्न श्रीमन निविजयजी महाराज जैनश्चतांवर-साधु Widgaisaigar-Ngaiyratna-Shreemat Shointivijayji-Maharaj Jain Shwetámbar-Sádhe Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2SCENERATAR किताब, | [त्रिस्तुति-परामर्श,] [सूरिमंत्रप्रसादेन-खंडयामिशतंमतं,] (इसकों) जनाब-फेजमाब-मग्जनेइल्म-महाराज-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न-मुनि-शांतिविजयजीने-फायदेखास जैनश्वेतांबरके-मुरत्तिबकिया, (और.) जैन-श्वेतांबर-संघ-पाचोरा-जिलाखानदेशने छपवाकर-जाहिरकिया. LTD ( आमलोग इसकों-ब-गौरदेखे.) ___ . [इसमें.] प्रश्नोत्तरपत्रिका-पृछाप्रतिवचन-श्रीमण्यरहस्य-पयूषण निर्णयपत्रिका-विवेचनप्रियजैनबंधुका इस्तिहार-एकजैन बंधुको जाहिखबर-जिज्ञासुजनमनन्समाधि-और-तीन स्तुतिप्राचीनताकिताबवगेराका-जवाब दर्ज है, . Dy. N TOSALIT. O . TAR Oly [प्रथम-आति .] अमदावाद. धी सरस्वती ओइल इनजीन प्रीन्टींग प्रेस. (संवत १९६३-) _ (मूल्य ०-८-०) सने १९०७. - 1 . Aw I Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FSARSHARERAKHARASTRARRIER MM LER PAN (दोहा.) सम्यम् दर्शन अंकहै-और कृत्य सब सुन्न, ___अंक जतनकर राखिये-मुन्न सुन्न दस गुन्न, १, SHRSHSECREENERGRECRUSSCREASURESUCKRECRUCRECRUcks AMPARA EN (दोहा.) अपने अपने पंथकों पोषत सकल जहान, वैसे यह मत पोषना-मत समझो मतिमान, २, म MBudae ऊऊऊऊऊ [दोहा.] Arihantervation समझ बडी संसारमे-समझु टारे दोष, समझ समझकर प्राणिया-गया अनंता मोक्ष. ३ SectegregaRTEGORIESss Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिबाचा,( बयाने-शुरुआत-किताब,- ) जब हमाराचौमासा-व-मुकाम-जबलपुरथा-पांचोरा-जिलाखानदेशक श्रावकोने हमको कइखतभेजे, और अर्ज गुजारीशकियकिआप यहां तशरोफलाकर हमलोगोकों तालोमधर्मकी देवे, जिसकी वजहसें हम धमचुस्तवने और फेजपावे, हमने उनको अर्ज कुबुलकिड और ब-सवारीरेल जबलपुरसे रवानाहोकर ब-मुकाम-पांचोरा आये, तमाम जैनश्वेतांबरश्रावक टेशनपर वास्तेपेशवाइकों हाजिर हुवे, और शहरमें लेजाकर कयागकरवाया. ___व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशाहोताथा और सबलोग निहायतखुश होतेथे, दूसरे मजहबके लोगबाग वास्तेमजहबीबहेसको आतेथे और बहेसकरके फायदा हासिलकरतेथे, दुनियामें धर्मबराबर कोइचीज नही, दौलत-और-मालखजाना-शीशमहेल-सजहुवेकमरे--और-नागबगीचे -बदौलतधर्मके मीलेहै, खूबसुरतऔरत-उमदागेहने-शालशाले-खूब सुरतरुप और-लंबीउमर-पूरवभवमें पुन्यकियाथा उसीकानतीजाहे देखलो ! कइलोग रोटियोके मोहताज और नंगेबदन फिररहेहै, सबब उ. सकायहीहै उनोने पूरवभवमें पुन्यनहीकिया, तुमारेघरजब खुशीकेनः रेबजेगें सबलोग हाजिररहेगे, मगर जबरंजहोगा कोइपासतक-न-आयगा, खास ! औरतभी मुसीबतकेदिनोमे किनारादेकर चलीजातीहै, इसीसे कहाजाताहै लोगमतलबके गरजी, धन-दौलत मिथ्या-औरदुनिया चंद्ररोजके लियहै, जोशख्श ज्ञानियोके फरमानेपर अमलकरेगा-चैनपायगा, मुलाहजाकरलो ! यहबात-सच है-जो-जूठ, ? यह मिट्टीकापुतला-नमालमकिसरोज खाखमे मिलजायगा-जिसको तुम इतनीखातिर-वतवाजेकररहेहो,-जैसेख्वाबमें तरहतरहचीजें देखतेहो-दुनिया उसीका एकनमुनाहै. अगर तुमकों फेजपानाहै-तों धर्मकरो. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ( इस किताबके छपवानेमे जिनजिन महाशयोने दौलत __ खर्चकिइ-उनके नाम इस मुजबहै.) शेठ-दौलतरामजी-खूबचंदजी-मारवाडी-मोतीवाले, . शेठ-बालचंदजी-गुलाबचंदजी-मारवाडी-मोतीवाले, शेठ-रतनशी-वीरम-कछ-कोठारावाले, शेठ-हंसराजजी-मेघजी-कछ-मुजपुरवाले, शेठ-हठमलजी-धनजी-मारवाडी-मोतीवाले, शेठ-वेलजी-माणक-कछ-तेरावाले, शेठ-कानजी-जयवत-कछ-वाडियावाले, उपरलिखे महाशयोने बेशक ! इसकिताबके छपवानेमें उमदा तोरसे खर्चकियाहै, हम-खास-मुकाम-पांचोरेमें करीब (४) महिने रहे, कोइतकलीफ-नहीहुइ, सब वख्त ज्ञानचर्चा में गुजरा, यहांपर(१) जैनश्वेतांबरमंदिर और (५०) घर श्रावकोके आबादहै, सबश्रावकोने हमारी खिदमतकिइ, इसकिताबकों पढकर आमलोग फायदा हासिल करे,-ग्रंथवनाना उसीका नामहै-जिसमें इन्साफ और चतराइके लेखहो, [ दोहा,] चतराइकी बातमें बातबातमें बात, ज्यूकेलेके पातमें-पातपातमें पात, १ 3 ब-कलम-विद्यासागर-न्यायरत्न. , मुनि-शांतिविजयजी. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [अधिपति-जेनश्वेतांबर मेगजीन-श्रीयुत-यतिजीबालचंद्रजीका-बनायाहुवा-गुरुभक्तिपर-पद,-]. . . (रागिनी-झींझोटी.) [ जलभरन जात जमुनाके घाट-बडे ठाठसे आवतकाम नीयां जलभरन-इसचालपर..]. न्यायरत्न महाराज कृपानिधि-शांतिविजयजी जगउपकारी, स्याद्वाद नयचक्र विशारद-तारक जिनवानी उरधारी, न्यायरत्न, १, मिथ्यामतकों खंडन किनो-जैनपत्र बांचत नरनारी, कीर्ति भूमंडलमें प्रकटी-मानत दुनिया आलिम सारी, न्यायरत्न, २, खानदेश पांचोरा नगरे-पार्थचिंतामनि मंगलकारी, तासमभावे दर्श लयो मुनि-संघसकलकों आनंदकारी, न्यायरत्न, ३, तीनथुइका परामर्श कर-ग्रंथरचा और किना जारी, विद्यासागरपदके धारी-बाल*प्रभाकरको सुखकारी, न्यायरत्न. ४, ( इतिगुरुभक्तिपर पद.) [राजवैध-श्रीयुत-मोनलालजी-लक्ष्मीदजी-साकीनकुशलगढ-मालवाका-बनायाहुवा-गुरुभक्तिपर कवित.] (दोहा.-) नामशांति गुनशांतहै-शांतिमुनि अनगार, अशुभकर्मकृतविघ्नको-शांतिकरन दातार, १, चिंतामनिसम शांतिमुनि-रंगे अधिक वैराग, . पंचममें परगट भये-भविजनकेरे भाग्य. २, ** चंद्र Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवित्त.] महावीरशासनके उन्नतिकरनहार-धर्मके धुरंधर ऐसे मुनिराजहै, कुमतिमद हस्तिनके कुंभस्थलफोरवेकों-पंचाननराजसमजिनके शिरताजहै, ज्ञानजलदाता उलसाताभविवारिजके-अचलदृढरंगमयजिनका समाजहै, मोहनमनमाने-तीनलोकमें-न छाने-ऐसेसुगुरुसयानेविजयशांतिमहाराजहै,३ [इतिगुरुभक्तिपर-कवित्त,-] -------- - [ कवि-सुरजमल-साकीन-उदयपुर-मुल्कमेवाडकी बनाइहुई-गुरुभक्तिपर-लावनी,-] विद्यासागर न्यायरत्न श्री शांतिविजयजी-बडेअणगार, संयमलिनो आपने छोडयो कुटुंबसब धनघरबार, भावनगर गजरातके मांही-शहरबडो भारी उत्तम, धन्यहै धरणी वहांकी जहां मुनिजी लियोहै जनम, धन्य पिता मानकचंदजीको-वो चलते जिनमतको धरम, थे सतवादी जिनके पुत्र कहलाये अनुपम, धन्यवाद रलियातकवरकों-माता बुद्धिकी थीअगम, संस्कारसे आप आजन्मे उदयभये निजपूरवकरम, महाजन विशाओशवालथे-जूठवचन नही एकलगार, संयमलीनो आपने छोड़यों-कुटुंबसबधनघरबार, विद्या, ? श्रीरी आत्माराममहाराज-जिनोने लिये आपकों है पहिचान, दीक्षालिनी साल उन्नीस और छत्तीसप्रमान, वेशाखशुक्ल दसमी गुरुवारे-हुवेसंयमी चतुरसुजान, Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलेरकोट पांचालमुल्कमें जानतेहै सब निखिलजहान, धर्मशास्त्रकों पढे मुनिश्वर-व्याकरणकोशकों भारीज्ञान, सर्वशास्त्रकों आपने पृथक् पृथक् लिनेसबजान, पंजाव पूरव मारवाड-गुजरात मालवाकों दियोतार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधनघरबार विद्या, २,' दखनमेंगये आपमुनिजी-जिनमत खूबदिपायाहै, देशदेशमें आपका सुजश बहोतसा छायाहै, मानवधर्मसंहिता एकपुस्तक-बहोतखूब फरमायाहै, प्रश्नपांचको खंडनकरके मजहब रिसाला बनायाहै, तीनथुइका परामर्श एक-तीनथुइपें रचायाहैं, विधि जैनसंस्कार बनाकर तनपरयश उपजायाहै, गृहस्थापनमें नाम हठीसिंह-जन्मलग्नमें विदितविचार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटंब संवर्धन घरबार, विद्या, ३, उन्नीसवर्षकी उमरआपकी-जबसें यह संयम धायों, धन्यमुनिजी आपने कामक्रोध रिपुकों मार्यो, . सकल कामना तजी जग्तकी-लोभपाप पावकजार्यो, धन्यहो स्वामीआपने निजआतम कारजसार्यो, विद्यासागर न्यायरत्नमुनि-धर्मधुरंधर पदधार्यो, देशदेश और नगर गांवमें सुजश आपने विस्तार्यो, सुरजमल्लकी हाथजोडकर-मुनिजीवंदना वारंवार, सयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधन घरबार, विद्या, ४, [ इति गुरुभक्तिपर लावनी.] Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८...... [ लावनी-अष्टपदी.-] [ जगतमें नवपदजयकारी-सेवतां पापटले भारी, ] . (इसचालपर-) मुनिश्री शांतिविजयजी आप-जग्तके मेटदिये संताप, सुखसंसारसे मुखमोडयो-कुटुंबसें सवनातो तोड्यो, ध्यान निज जिनप्रभुसें जोडयो-लोभ और मोहकाम छोडयो, (दोहा.) पंचमहाव्रतधारके-करतेहो उपकार, छकायाके जीवबचाते-मुनिजी वारंवार,.. भुलकर नहीकरते संताप-जग्तके मेटदिये सब पाप, मुनिश्री, १ कामना छोडी सारीको तरसना मारी भारीको,धन्य ऐसे आचारीको-नमनहैदृढव्रतधोराका, .. (दोहा.) पुदगल परिचय छोडियो-भव्यजीवनके काज, . विचरतहो सबजग्तमे स्वामी-धर्मध्यानके जहाज, अनुकंपा रही दिलमें व्याप-जग्तके मेटदिये संताप, मुनिश्री. २, दोषसन कर्मनको टार्यो-गरव तनमनसे सब गार्यो, धर्म जिनवरकों विसतार्यो-अन्यमत चितमें नहीं धार्यों, (दोहा.) मिथ्यामतकों खंडन किनो-जिनमतमंडन कीन, श्रीजिनप्रभुके चरनसरनमें-रहतेहै लयलीन, दुष्टजन गये आपसे कांप-जग्तके मेटदिये संताप, मुनिश्री, ३, इंद्रियां पांचोकों मारी-आपने तजे कनक नारी, धर्मके ग्रंथ रचे भारी-वचन सब माने संसारी, (दोहा.) कहांतलक बननकरु-मुनिजी परमदयाल, सुरजमल्लकी हाथजोडकर-वंदना ल्यो प्रतिपाल, प्रभुका नित उठकरते जाप-जग्तके मेट दिये संताप. मुनिश्री, ४, (इति-अष्टपदी लावनी समाप्त.) Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (जिनाय नमः) [त्रिस्तुति-परामर्श,-] किताब, d [ सूरिमंत्र प्रसादेन-खंडयामि शतं मतं,] ___ इस किताबको. जनाब-फेजमाब-मग्जनेइल्म-श्रीमन्महाराज-जैनश्वेतांबर-धर्मोपदेया-विद्यासागर-न्यायरत्न-मुनि-शांतिविजयजीने फायदे खास-जैनश्वेतांबरके मुरत्तिब किई. [शुरुआत,] - इबादत करताहुं तीर्थंकरदेवोकी-गणधरोकी और खास गुरुओकी-जिनकी बदौलत इल्मपाया और मुक्तिकारास्ता हासिलहुवा, दुनिया इल्मबराबर कोईचीज नही, लाजिमहै इन्सानकों जोकुछइल्म आप पायाहो दूसरोंकोंभी कुछहिस्सा दे जावे, ॐ (दोहा.-) सुखचाहो विद्यापढो यद्यपि नीच होय,पर्यो अपावनठौर-कंचन तजे न कोय, १ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (श्रीस्तुतिपरामर्श.) सरस्वतीके कोशकी- बडी अपूरव बात, खर्चेसें नित बढतहै-बिन खर्चे घट जात, २ इस किताबमें तीनस्तुतिका परामर्श-मुखवत्रिकाकी चर्चाप्रश्नोत्तरपत्रिका-पृछाप्रतिवचन-श्रामण्यरहस्य-प्रश्नपत्रिका-और पयूषणपत्रिका वगेराका जवाब दर्जहै, एक किताब प्रश्नोत्तरपत्रिकापृष्ट (११) की-दुसरी पृछाप्रतिवचन पृष्ट (२७)की-तीसरी श्रामण्यरहस्य किताब पृष्ट .(२५)की-प्रश्नपत्रिका और पर्दूषणपत्रिका-जो इन दिनोंमें छपकर जाहिर हुइहै इनका माकुल जवाब इसमेदिया जायगा, खयाल करके सुनो ! मालूम होजायगाकि-किसकदर उमदा जवाब दियाहै, (१) (इनसाफ,) लाजिमहै इन्सानकों किसीकिताबकी शुरुआतकरे इन्साफकों न भूले, और शास्त्रस बुतसें पेंश आवे, बुरे अल्फाजलिखना अकलमंदोंका काम नही, बुरे अल्फाज लिखनेसे शास्त्रार्थका मजा नही रहता, दूसरोंकी इज्जतपर चौट करना अपनी इज्जत घटानाहै. भले आदमी हमेशां भलाइकी बातें किया करतेहै, मुनासिबहै आम शख्शोंजब किसी किताबकों लिखने बैठे. बुरे अल्फाज पासतक-न-आनेदेवे, दुष्मनकोंभी इज्जतसे देखे, और खुशमिजाजसें लेख लिखते चले जाय, अछे लोगोंका फरमानाहैकि-सभ्यता रखो, खुशामद छोडो, अत्युक्ति मतकरो, सच बातसें जितना हठोगे उतना तरक्कीसें हठोगे, अमर कोई चाहे-मैं-आस्मानसें चांद सूर्यकों नीचे बुलवा हुँ-तोयह नीरालडकपनहोगा. चांदसूर्य हर्गिज ! नीचे न आयगें, इसीतरह इज्जतदारोंकी इज्जत किसीके लिखनेसें कम-न-होगी, आमलोग Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) इस किताबकों अवलसें अखीरतक गौरके साथ देखे, इसमें बहुत कुछ बातें एसी मिलेगी जो तुमकों आइंदे फायदेमंद होगी, (२) (बयान वज्रस्वामी और देवर्डि गणि क्षमा श्रमणवगेरा जैनाचार्योंका,-) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (३) पर बयान हैकि-वज्रस्वामी-देवदिगणि क्षमाश्रमण-जिनदत्तमूरि-हीरविजयमूरि-वगेराकों उत्तम पुरुषोमें जानना, ___(जवाब,) जिनकों उत्तम पुरुष जानना उनके फरमानेपर अमलभी करना जरुरीहै, सीर्फ ! उत्तम पुरुष कहनेहीसे काम नही चलता, खयाल करो ! वे-चारस्तुति माननेवालेथे--या-नही,? अगर अगर कहाजाय चारस्तुति माननेवालेथे-तो-फिर चतुर्थस्तुतिको इनकारकरना कौन इन्साफकी बातहुई, ? (३) ॐ ( जैनाचार्य हरिभद्रसूरि-कालिकाचार्य और धर्मकीर्तिमूरि-) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (७) पर मजमनहै-हरिभद्रसूरिने चारस्तुति स्थापन करनेकेलिये ललितविस्तराग्रंथ बनाया, इनोंसें चैत्यवंदन चारस्तुति करनेका मत निकला. (जवाब.) चार स्तुति जैनशास्त्रोंमें कदीमसें चली आतीहै, हरिभद्रसूरिजीने नयीजारी नहीं किई, ललितविस्तराग्रंथ ·उनोने ‘आमजैनकोंमकों वास्ते फायदेके मुरत्तिब किया, कोइनयीबात उसमें -- - -- Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) जारी नहीकिई, जो बात कदीमसें चलीआतीथी उसीको बयान फरमाइहै, शुरुसमयचक्रमें तीर्थकर रिषभदेव महाराजके वख्तसें आजतक जैनमें चारस्तुतिपढते चले आये, प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (७) पर तेहरीरहै कालिकाचार्यजीने चौथकी सवत्सरीकरनेका मत चलाया, (जवाव.) कौन कहताहै कालिकाचार्यजीने चौथकी संवत्सरीकरनेका मत चलाया ? जो बात शास्त्रोंमें दर्जहो उसकों नयीबात कौनकहसकताहै, ? ( कल्पसूत्र में खुला पाठहै,-) अंतरा-विय-से-कप्पई, (टीका) अर्वागपि पयूषणायां कल्पते परं-न-कल्पते-तां-रात्रिं भाद्रपदशुक्लपंचमीरात्रि-अतिक्र मयितुं, ___ पंचमीके पेस्तर संवत्सरीकरना कल्पे-पंचमीकोंभी कल्पे, मगर पंचीके बाद-छठ-या सप्तमीवगेराकों करना-न कल्पे, सबुतहुवा चौथकी संवत्सरीकरना-खिलाफहुक्म तीर्थकर गणधरोंके नही, कालिकाचार्यजीमहाराज जैनमजहबमें बतौर आफताबके होगये, उनोने कोइ नयामजहब जारी नहीं किया,.. प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (७) पर दलीलहै धर्मकीर्तिमरिने चार स्तुति स्थापन करनेकेलिये संघाचारवृत्ति बनाई, इनोनेही चार स्तुतिका पुनरोद्धार किया,. (जवाब.) कौन कहताहै धर्मकीर्तिमरिने चार स्तुति जारिकिई ? जोबात कदीमसें चलीआतीहो उसका स्थापन-या-पुनरोद्धार कोई क्यौं करे ? चार स्तुति तीर्थंकरोके वख्तसें चलीआतीहै, आचार्य Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PAARAANAVRAN (त्रीस्तुतिपरामर्श.) धर्मकीर्तिमूरि बडे आलीमहुवे, उनोने संघाचारवृत्ति फायदे आमजैनसंघके बनाइहै, कोइ नयीबात जारी नहीं किई. (४) ॐ (दरबयान-महाराजश्रीसत्यविजयजीका.) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (८) पर बयानहै संवत् (१७२१) में सिंहमूरिने सोलह शिष्योंकों उपाध्यायपद दिया, और सत्यविजयजीकों पंन्यासपद दिया, इससे रिसाकर दूसरे गछके रुलियार यतियोंसे मिलकर कापडिकमत पैदाकिया, परंतु यतियोंका जौर होनेसें कापकिमतकी दिप्ति-न-हुई, (जवाब.) कौन कहताहै महाराजश्रीसत्यविजयजीनेकापडिक मत पैदा किया ? बल्कि ! उनोने धर्मकी तरकी किई, जिनकी बदौलतं आजभी तरक्की होरहीहै, महाराजश्रीसत्यविजयजी बडे आलीम और फाजिल हुवे, उनोने किसीसे नाराजहोकर कोईबात इख्तियार नहीकिई, वे-जैनशास्त्रोंके पुरे माहितगार थे, कौन कहताहै उनकी वरक्की नहीं हुई, बल्कि ! खूबहुई !! और देखलो ! इसजमाने भी होरहीहै, महाराजसत्यविजयजीका जैसा नाम था वैसेही उनमे गुणथे, तारीफ करो उनकी जिनोने शिथिलाचारको हठाकर अपने आत्माकों धर्मपर पावंद किया, (५) ( बयान महाराजश्रीरुषविजयजी और __ वीरविजयजीका,) श्रामण्यरहस्य पृष्ट (७) पर महाराजश्रीरुपविजयजी-वीरविजयजीका जो बयानहै उसके जवाबमें मालूमहो-वे-आलादर्जेके कवि Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) थे, उनकों कवित्वशक्तिने आज तमाम जैनसंघको चकित करदियाहै, उनकी बराबरी कोई क्या करेगा ? उनोंके एकएक शेयर मानो सूत्रसिद्धांतके जंजीरहै, उनकों किसीने सकिस्त नहीदिई, न-उनकी चीज किसीने छिनी, क्या ? ३-इसका बिल-न-थे जो अपनी चीजकी हिफाजत-न-करसके, ? (६) ( बीच बयान-मुनिकों मौजे पहनना-और ___ कम वारीशमें गोचरी जानेका.____ अगरकोई सवालं करेकि-जैनकिताबोंमें किसजगह फरमायाहैकि-मुनि मौजे पहने और वारीशमें गोचरी जाय, ? (जवाब.) प्रवचनसारोद्धारमें और कल्पसूत्रमें खुलासाबयानहै, जैन मुनि-पांचतरहके चमडे रखे, और कम बारीशमें गोचरी जाय, अवल प्रवचन सारोद्धारका बयान सुनिये ! गाथा (६८३) मे देखो! क्या लिखाहै, ? __(गाथा.) अयं एलगावि-महिषी-मिगाणमजिणं च पंचमं होई, तलिगा खल्लग बद्धे-कोसग कित्तीय बीयंतु, ५८३, ___ (माइना,) बकरेका चमडा, गाडरका चमडा, गौका चमडा भेंसका चमडा और हिरनका चमडा, येह पांचतरेहके चमडे जैनमुनिकों रखना फरमाया, तलिगा (यानी) चमडेके तलिये इनइन सबबसें पांवमें पहनना मुनिकों कहा, जबकभी रातकों चलनेका कामपडे, रास्ता-न-दिखलाइदेताहो, साथके मुनियोंसे जुदे पड गयेहो उस हालतमें-या-जब कभी बिरानजमीनपर चलना पड़े-चौरोंका-या Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) शैरवगेरा जानवरोंका-खौफहो, या सफरकरनेकी जल्दीहो-जिसमुनिकेपांव बहुतमुलाइमहो- खुलेपांव चलनेकी ताकात-न-हो उसहालतमें उक्त चमडेके तलिये पांवकों बांधकर मुनि चले,-जिसमुनिके पांव ठंडके सबब फटजातेहो-तकलीफ होतीहो-अतिसुकमाल मुनिकों ठंडमें चलना-न-बनसकताहो उसहालतमें मुनि उपाहन पहने, तीसरे भेदमें (वाधरी.) यानी टुटे हुवे उपानहकों सीडनेकेलिये चमडेका टुकडाभी मुनिरखे, चतुर्थभेदमें (कोसग,) यानी-किसीमुनिके नख -या-पांव फट गयेहो-उनकों बांधनेके लिये एकतरहकाचर्ममयउपकरण रखे, पांचवेभेदमें अग्निका खौफ होतो-अपने बचावके लियेया-सचित्त पृथवीकायादिकी रक्षाकेलिये-या-गिलीजमीनपर बिछानेके लिये-मुनि-उक्तप्रकारका चमडारखे, एसा प्रवचनसारोद्धारका पाठहै जिनकों शकहौ उक्त ग्रंथ देखलेवे, देखिये ! इसपाठमें मुनिकों चमडेका उपकरण और चमडा रखना कहा-अगर कोई सवाल करे मुनिकों चमडा रखना हमने कभी-नही सुना तो जवावमें मालूमहो-प्रकरणरत्नाकरके तीसरे भागमें जो प्रवचनसारोद्धारग्रंथ छपाहै उसके पृष्ट (२६३) पर गाथा (६८२) देखो, थोडे पढे हुवे चाहे सो समजे मगर जानकारलोग सचबातकों इनकार नहीं कर सकते, सबुतहुवा उपर दिखलायेहुवे सबबोंसें जैनमुनिचमडेके उपाहन पहने-कोई हर्ज नही, बतलाइये ! मौजे पहनना सबुत हुवा-या-नही, कमवारीशमें गोचरीजानेके बारेमें कल्पसूत्रका पाठहैकि-अल्पदृष्टिमें स्थविरकल्पी मुनि-कंबल ओढकर गोचरीजाय, ( देखो ! पाठ कल्पसूत्रका,).. कप्पइ-से-अप्पुठीकायंसि, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) (टीका,) प्रावृत्तस्य-अल्पवृष्टी गंतुं कल्पते, - (माइना,) कमवारीशमें कंबल ओढकर गोचरीजाना स्थविकल्पीमुनिकों हुक्महै, जिनकों शकहो कल्पसूत्र निकालकर साधुसमाचारीका पाठ देखे, वारीश बहुतहोतीहों जिसमे मारे पानीके आहार बेंकाम होजाताहो उस हालतमें गोचरीजाना बेशक मनाहै, (७) ( दर बयान-महाराजश्री बुटेरायजीका.) - प्रश्नोत्तर पत्रिका पृष्ट (९) पर मजमूनहैकि-संवत् (१९२१) में बुटेरायजीने व्याख्यानके वख्त मुहपत्ति-न-बांधनेका-मतचलाया, और संवत् (१४००) के करीब जो श्रीपूज्योने ज्ञान आशातना मिटानेकेलिये आचरण चलाइथी उसका भंग किया,. ... (जवाब) क्या ! तीर्थकरगणधरोंके वचनोसेंभी श्रीपूज्योंकी चलाईहुइ आचरण बडी होगई, ? हर्गिज ! नही !! तीर्थंकर गणधरोंने जैनशास्त्रोमें किसीजगहनही फरमायाकि-व्याख्यानके वख्त-या-तमाम दिन मुहपर मुहपत्ति बांधो, अगर फरमायाहो कोई बतलावे ? आजतक कोईमहाशय इसबातकों शास्त्रपाठसें सबुत नहीं करसके, जोजो महाशय इसबातकी हिमायत करतेहै शिवाय आचरणा-रूढीऔर-परंपराके दूसरा कोइ सबुत पेश नहीं करसकते, यादरखो ! आचरणा थोडेरोज चलकर टुट जायगी-शास्त्रोका फरमाना हमेशांकेलिये कायम रहेगा, अगरपरंपराकोंही अगाडी लातेहो-तो जो लोग तमामदिन मुहपर मुहपत्ति बांध रखतेहै वे-नही कहेगेंकिहमारीभी परंपराहै और हमारे बडेरोने चलाइहै, फिर उनकों लाजवाब करनेके लिये तुमारे पास क्या सबुतहै, और जो संवत् (१४००) के करीब श्रीपूज्योने आचरणा चलाइ बतलातेहो इस बातके लिये आपलोगोके Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) पास क्या सबुतहे, ? किस श्रीपज्यजीने इस आचरणाकों चलाइ उनका नाम क्यों नही जाहिर किया ? महाराजश्री बुटेरायजीसाहब जो फरमातेथेकि-मुहपत्ति मुहपरबांधना किसी जैनशास्त्रमें नही लिखा बहुत दुरुस्त था, जो बात मुताबिक हुक्म तीर्थकर गणधरोकेहो उसको नयी कौन कहसकताहे, ? मुहपत्ति कानमें डालनेसें मुनिकों कर्णवेध कराना पड़ेगा, किसी जैनशास्त्रमें नहीं लिखाकि-मुहपति बांधनेकेलिये मुनि-कर्णवेध-करावे, कल्पसूत्रकी पुरानी पुस्तके जो मुनहरीहर्कोकी लिखिहुइ पुस्तकालयोमें मिलतीहै उसमें गणधर मुधस्विागी-जंबुस्वामी वगेरा मुनियोंकी तस्वीर बनीहुइ मौजूदहै, मुहपति उनके हाथमे रखीहुइहै मुखपर बांधीहुइ नही, अगर व्याख्यानके वख्तभी मुहपति मुंहपर बांधना जैनशास्त्रोंमें लिखाहोता तो उनकी तस्वीरमेंभी मुहपति बांधनेका आकार होता. (८) (बयान महाराजश्री झवेरसागरजी-और एहवाले रतलाम,-) ___ महाराजश्री अवेरसागरजी मुल्क-मालवेतर्फ-बहुत अर्सेतक विचरे, और आम जैनसंघकों तालीम धर्मकी दिई, इंदोर-उज्जैनरतलाम वगेरामें चौमासे किये, संवत् (१९३०) मे जवं मध्यस्थोकी सभाकरके ब-मुकाम रतलामपर उनोने तीनथुइका परामर्श किया उस अर्सेका बनाहुवा-ग्रंथ-निर्णयप्रभाकर अबभी रतलाममें मौजूद है. जिनकों शकहो जैनश्वेतांबरसंघसें मंगाकर देखे. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (९) बीच बयान-महाराजश्री आत्मारामजी आनंदविजयजी और उनका बनायाहुवा __ जैनतत्वादर्शग्रंथ,-) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (९) पर तेहरीरहौक-बुटेरायजीके शिष्य आत्मारामजी हुवे उनके बनाये हुवे जैनतत्वादर्शमें तीनथुइ लिखीहै, (जवाब.) जैनतत्वादशमं प्रतिक्रमणके वख्त तीनथुइ नही लिखी, अगर लिखीहोतो कोई बतलावे, जिनजिन महाशयोने जैनतत्वादर्शग्रंथ पढाहोगा उनको मालूमहोगा महाराजश्री आत्मारामजीआनंदविजयजीने-प्रतिक्रमणके वख्त तीनथुइ करना नहीं लिखी, बात मंदिरमे करनेकीथी कहनेवालोने उसका खुलासा-न-लिखा और कहदिया जैनतत्वादर्शमेंभी तीनथुइ लिखीहै, मगर जैनतत्वादर्शमें प्रतिक्रमणके वख्त तीनथुइ नही लिखी, जैनतत्वादर्श पृष्ट(४१७) परदेखो, (१०) (दरबयान-कोटिशब्द-और-उसके माइनेका,) पृछा प्रतिवचन पृष्ट (१३) पर बयानहैकि-आत्माराजीने जैनतत्वादर्शमें कोटिशब्दको संज्ञाविशेष लिखा, पृष्ट (१४) पर ते हरीरहै आत्मारामजी प्रमाणिक विद्वान् कहलातेथे, उनकों क्या ! एसा असंगत अर्थ लिखना शोभा देताथा ? (जवाब.) महाराजश्री. आत्मारामजी-आनंदविजयजीने कोटीशब्दको संज्ञाविशेष लिखा इस लिखनेसे उनका यह मतलब नहीं Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) थाकि-(१००) सो लाखकों कोई कोटि न समझे, और सीर्फ ! बीसकोंही कोटी समझे, ग्रंथकर्ताके फरमानेपर खयाल करनाचाहिये, जिसमतलबपर जो बात फरमाइहो उसीमतलबपर उसका माइना समजझना चाहिये, क्या ! एक शब्दके कई माइने नहीहो सकते, ? अगर होसकतेहै-तो-फिर कोटिशब्दके बारेमेंभी वही बात क्यों नहीं समझते ? देखो, कल्पसूत्रमें जहां तीर्थकर महावीरस्वामीका बयानहै, और जिसजगह देवदुष्य वस्त्र गिरगयाहै उसके बारेमें टीकाकारने कितने माइनेकरके दिखलायेहै, . ( पाठ-कल्पसूत्रका,) मासाधिकसंवत्सरादूई विहरन् दक्षिणचावालपुरासन्नसुवर्णवालुका नदीतटे कंटकेविलग्य देवदुष्यापतितेसति भगवान् सिंहावलोकनेनतद्राक्षीत्-ममत्वेनैतिकचित्-१, स्थंडिले-वा-पतितंइतिविलोकनायेत्यन्वे, २, अस्मत्संततेवस्त्रपात्रं सुलभं दुर्लभं-वा-भावीतिविलोकनार्थ-इतिअपरे, ३, वृद्धास्तु कंटके वस्त्रविलग्नात् स्वशासनं कंटकबहुलं भविष्यतीतिविज्ञाय निर्लोमत्वात्वस्त्राई-न-जग्राह इति, ४, . (माइना,) तीर्थकर महावीरस्वामीका जब देवदुष्यवस्त्र स्वर्णवालुका नदीकनारे गिरगयाथा-उसपर कितनेक आचार्य फरमातेहै उनोने जो सिंहावलोकनसें देखा-ममत्वसे देखा, १ कोइ कहतेहै अछीजमीनपर गिरा-या-बुरीपर उसकोलिये देखा, २, Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामशे.) कोइ कहतेहै अपनी संततिको बस्त्रपात्रमिलना दुसवारहोगाया-आसान ? इसलिये देखा, ३, - वृद्ध कहतेहै कांटोंकी जमीनपर गिरा इसलिये स्वशासनमें कंटकलोग ज्यादे होगें एसा जानकर देखा, लोभका कोई काम नही था, देखिये ! यहां एकपाठपर आचार्योने कितने तात्पर्य दिखलायेहै, जिसजिसमतलबसे जो जो बात ग्रंथकर्त्ताने बयान फरमाईहो उसी मतलबपर उसको समझना और उसपर अमल करना चाहिये, -wu (११) (चिरागके बारेमें कइलोगोकीराय,) . कइयोंका फरगानाहै दियेका चांदना अचितहै, मगर नही ! दियेका चांदना अचितनही, सचितहै, जिनकों शकहो कर्मग्रंथ देखे, उसमें रक्तवर्ण और उश्नस्पर्शतेउकायमें फरमाया, उद्योतनामकर्म नही फरमाया, इसबातपर कोइ खयालकरे तो बखूबी उसको मालूमहोगा. और उसके दिलका शक रफाहोगा, - प्रश्नपत्रिकाप्रश्न (९) में बयानहैकि-जिसगछका नामलेकर साधुवजेतिसगछके आचार्यनी आण-न-पाले-वो-साधुहै-या-नही,? ..(जवाब.) अगर उस आचार्यका हुक्म-मुताबिकशास्त्रकेंहोतो-उसको ब-सिरोचश्म कुबुलकर, मगर जब खिलाफ हुक्म शास्त्रके कोईवात आचार्य फरगावे-तो चेलेकी फर्जहै उसको न-माने, साधुपना अपनीकायाकी शुद्धिकेलियेहै-नकि-जूठी-होमे-हां-मिलानेकेलिये, Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुतिपरामर्श . ) (१२) (बयान- मुखवस्त्रिका चर्चाका, ―) पृछाप्रतिवचन पृष्ट ( ४ ) पर पुछनाहो मुहपत्ति कानमें घालना कहां नेकप्रमाण देता हुँ, - मजमून है कि - यदि आपको यह लिखा है - तो - मैं - पंचांगी के अ ( जवाब . ) अनेकप्रमाण तो अलग रहे एकभी कोई बतलावे, प्रश्नोत्तरपत्रिकामे लिखा व्याख्यानके वख्त मुहपत्ति बांधना श्री पूज्योकी चलाईहुई आचरणाहै, और यहां लिखा पंचांगीके अनेक प्रमाणदेताहु, क्या खूब बात है ! जिनके लेखमें पूर्वापर विरोध झलकरहा है, विपाकसूत्रका जो सबुतदिया है उसमे किसजगह लिखाहैकि - गौतमस्वामीने व्याख्यानके बख्त मुंहपर मुँहपत्ति बांधी 2 मृगापुत्रकों जब देखनेगयेथे उसवख्त बदबूके सबब मुंह बांधाथा, व्याख्यानके वख्तकी वहां कोई बात नही थी, दुसरासबुत जो महानिशीथसूत्रका पेश किया है उसमेंभी व्याख्यानके वख्तका लेख नही है, तीसरासबुत जो औघनियुक्तिका दिया उसमेभी व्याख्यानकेवख्त बांधना नही फरमाया, ( पाठ - औघनिर्यक्तिका - यहां देत है, देखलो, ) ( गाथा. ) संपाइम रयरेणु - पमज्जणठावयंति मुहपत्ती, नासंच मुहंच बंधइ - ताए वसहि पमज्जंतो, ( व्याख्या) संपातिमसत्वरक्षणार्थं जल्पद्मिः मुखे दीयते, तथा रजः सचित्तपृथ्वीकायः सत्प्रमार्जनार्थमुखवस्त्रिका ग्रहणं प्रतिपादयंतिपूर्वर्षयः - तथा नाशिकां मुखंच - बध्नाति तथा मुखवस्त्रिकया वसतिं च प्रमार्जयेत् येन मुखादौ - न - प्रविशतीति, Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुविपरामर्श.) देखिये ! इसमें किसीजगह नहि लिखाकि-व्याख्यानके वख्त-मुहपति बांधो, बल्किसंपातिमसत्वरक्षणार्थ जल्पनि मुख दीयते, एसा पाठ जाहिरहै, (यानी.) उडतेहुवे जीव मुखमें-न-आनगिरे इसलिये मुखवस्त्रिका मुखके अगाडीरखना कहा, मगर बांधना नही फरमाया, जो लोग औघनियुक्तिके भरुसे बैठेहो-वे-अपना-शक-रफा करे, औषनियुक्तिमें साफ बयानहैकि-बोलतेवख्त हाथमें रखो, मकानसाफकरतेवख्त बांधना कहा सो बारीकरज मुखमें-न-आनगिरे इसलिये कहा, और वह मुखवत्रिकाभी दूसरीतरहकी कही, जोकिगलेकेपीछे ग्रंथीबंधन-होसके-उतनीबडी होना चाहिये व्याख्यानके वख्तकी वहां कोईघात नहींहै, उपाश्रय-यानी-रहनेके मकानको साफ करतेवख्त बांधना कहा उसवख्त कोई बांधता नही और व्याख्यानके वख्त बांधनेका पक्ष पकडतेहै, दीयते पदका माइना बांधना हर्गिज ! नही होसकता,-बोलतेवख्त मुखके सामने रखनेकी मुहपति-जो-एक बीलस्त चारअगुलकी होतीहै वह जुदीहै और मकानसाफकरतेवख्त बांधनेकी जुदीहै, जोकि-उतनीवडी होनाचाहिये जिससे मुख ढका जासके-और-उसका त्रिकोण-आकारकरके गलेके पीछाडी गांठ इिइ जासके. (पाठदुसरा औधनियुक्तिका,-) (गाथा.) चउरंगुलं विहथ्थी-एयं मुहणंतगस्सपमाणं, बीयं मुहप्प माणं-गणण पमाण इक्कैकं, (व्याख्या.) चत्वार्यगुलानि-वितस्तिश्चैकेति एतचतुरस्रं मुखानंतकस्यप्रमाणं अथवा-इदंद्वितीयंप्रमाणं Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुतिपरामर्श.) १५ यदुत - मुखप्रमाणं कर्तव्यं मुखानंतकं एतदुक्तं भवति वसतिप्रमार्जनादौ यथा मुखं प्रछाद्यते, कृकाटिकायां ग्रंथिर्दातुं शक्यते तथा कर्तव्यं - त्र्यत्रं कोणद्वये गृहीत्वा यथा कृकाटिकायां ग्रंथिदतुं शक्यते तथा कर्तव्यं एतत् द्वितीयगणनाप्रमाणेन पुनस्तदैकैकमेव ग्रहणं मुखानंतकं भवतीत्यर्थः इसका माइना अवलआचुका है, सबुतहोगयाकि- मकान साफ करते वख्त जिस मुखवस्त्रिकाले मुख बांधना कहा वह उतनीबडी होनाचाहिये जो मुख और गलेतक बांधी जासके, व्याख्यानकेवख्त बांधने का इसमें कोई जिक्र नही, जोलोग परंपराका सहारालेते है उनकों याद रहे परंपरा तरहतरहकी चलपडी किसकिसपर अमल करोगे ? - शास्त्र औघनियुक्तिका फरमाना है जल्पद्मि मुखे दीयते, अगर बांधने का हुक्म होतातो दीयतेकी जगह बध्यते पाठहोता, पृछाप्रतिवचनपृष्ट (९) पर तेहरीर हैकि - आदिपदसे व्याख्यान अवसरमें सूत्र आशातना तथा अनुपयोगसेहुइ सावद्यभाषा इन दोनोदोपोसे बचाव के लिये कानमें घालतेहै यहरीति पुष्टालंबन सहित है, ( जवाब ) जोबात मूलसूत्रमेंनही, न-टीका में है कोई किससबुतसे मंजूर करेगा, सूत्रआसातनाका सहारा लियाजाय तो व्याख्यानके वख्तकाही क्या मुदा रहा ? सूत्रसिद्धांत साधुलोग हरवख्त बांचते रहते है, फिर एसाकहना चाहिये जबजब सूत्रसिद्धांत बांचना मुहपर मुहपति बांधकर बांचना, पृछाप्रतिवचनपृष्ट (९) पर हितशिक्षा के रासका सबुतादियाहैकि - " मुखे बांधी ते मुहपती" – (यानी ) मुखपर बांधीजाय वह मुहपति जानना, - ( जवाब . ) हितशिक्षा के रासकों बनानेवाले रिखवदासजी श्री Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) वक संवत (१६८२) मे हुवे, कहिये ! फिर इनका बनाया हुवा रास किससूत्रकी पंचांगीमें गिनना, ? अगर कहा जाय यहतो एक भाषाकाग्रंथहै तो फिर पंचांगीके सबुतोंमें इसको कोई कैसे मजूर करसकेगा, ? पृछाप्रतिवचनपृष्ट (१०) पर बयानहैकि-व्याख्यानमें बांधना किसी सूत्रके अक्षरोसें नहीं पाई जाती, मालुमहोताहैकि-औपनियुक्तिमें लिखे आदिपदसें व्याख्यानमेंभी बांधनाचाहिये एसा समझकर परंपरामें घालतेहोगें,. (जवाब.) जोबात किसीसूत्रके अक्षरोसें नही पाइजाती उसको कोई किससबुतसें मंजूरकरेगा ? आदिशब्दसें बांधनेका सहारालेनाभी इसलिये ठीकनहीकि औषनियुक्तिमें व्याख्यानकेवख्त आदिशब्दसे मुहपतिबांधो एसा नही फरमाया, सबुतहुवा व्याख्यानवख्तया-तमामदिन मुहपर मुहपति बांधना किसी जैनशास्त्रमें नहि लिखा, परंपरा-रूढी-और-आचरणाका सहारा लेना गलतहै, तमाम जैनोंको तीर्थकरगणधरोंके फरमानेपर अमल करना चाहिये, (१३) ( बीचबयान-प्रश्नपत्रिकाके (२९) में __ सवालका,-) सवाल (२९) में बयानहैकि-जिसचेलेकों गुरुने निकालादिया और-वो-चेला गुरुकी नींदाकरनेलगा, पीछे प्रामांतरके श्रावकोंने उसको मानलिया-वे-श्रावक सम्यक्ती समझे जावे-या-मिथ्यादृष्टि समझे जावे, ? उसकों उनके साधु-न-वर्जे-तो विरोधक-या-आराधक, ? Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) ( जवाब . ) किसचेलेकों किसगुरूने निकाल दिया इसका खुलासा जाहिर क्यौं- न- किया, 2 जाहिर करतेतो वहशख्श जवाबदेता, इन्साफ फरमाता है. चेला अगर अपने सत्यधर्मपर पाबंद हो-और-गुरु उसकों इन्साफ से निकालदेवे --तो उसमें गुरुका दोषहै, चेलेका नही, और वह गुरुही क्या ! जो इन्साफ - न - करे. सत्यवादीचेला अपनेधर्मपर पावंद रहे तो उसका कोई क्या करसकता है, ? दशवैकालिकसूत्रकी अवलगाथामें बयान है “देवाभी- तं - नमसंती जस्सं धम्मेसया मणो, " देवता भी उसकों नमस्कार करतेहै जिसका मन हमेशां धर्मपर पाबंद हो, और उसकी हमेशां फतेह होगी, उसको माननेवाले - श्रावकसम्यक्ती कहेजायगें - मिथ्यादृष्टि नही, दुसरे साधुओके मनाकरनेसें उस सत्यवादीका कोई नुकशान नही, - (१४) (दरबयान- दांतोंकी बत्तीसीका.) प्रश्नपत्रिका - सवाल (५२) पर प्रश्नकर्त्ताने पुछा है - साधुओने दांतोकी बत्तीसी चढाना कहां कहा है, ? ( जवाव . ) हरजगह जैनशास्त्रों में कहा है संयमकी हिफाजतकरो. और संयमसेंभी अपने आत्माकी ज्यादेहिफाजतकरो, जब आत्माही - न - रहेगा तो संयमकी हिफाजत कैसे हो सकेगी ? सबुतहुवा आत्माकीहिजाफत करना जरुरीबात है, आत्मा शरीरके ताल्लुहै, और शरीर खानपानके - जबकि खानपानकी चीज चवा - चवाकर-नखाइजाय हजम कैसे हो सकेगी, ? हजम-न- होगी तो तरेहतरहके रोग दाहोगें, और फिर उसके मिटाने के उपावलेने पडेंगे, उसलिये अगर अवलसे उपाय करलिया जायतो क्या ! हर्जहै ? सबुतहुवा - Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) दांतोकी बत्तीसी चढाना देहरक्षामें सामीलहै और उसका चढाना कोइ हर्जकी बातनही, अगर कोई जैनपुनि-शौखसें-या-अपनी खूबसुरतीकेलिये दांतोंकी बत्तीसी चढावेतो वेशक मनाहै, मगर आत्मरक्षाकेलिये कोइ मन नही, (१५) 3 ( बीच बयान-आनंदसृरिके,-) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (४) पर तेहरीरहैकि-वर्तमानमें-आनंदसूरि प्रमुख मध्यमभेदमें जानना, a (जवाब,) कौनकहताहै आनंदमूरि-मध्यमभेदमे-थे, बल्कि! उत्तमपुरुषोमें थे, आमलोग इसवातकों मंजूर करतेहैकिं-उनोने मुताबिक जमानेके तरकी धर्मकी अछीकिई, मजहबी-बहेस-वे-उमदातौरसे जानतेहै और यहगुण आचार्यों में होनाभी, जरुरीथा विना इस गुणके तरकी धर्मकी कैसे होसकतीहै, ? देखलो ! समवसरणमेंभी वादी मौजूदरहतेथे, जोकि-इन्साफस-प्रतिवादीयोंकों लाजवाब करतेथे, आठतरहके प्रभावकोंमें वादीकोंभी प्रभाव गिनेहै, महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजी-इस जमानेमें प्रभावक होगये,-इस बातकी कोइ जैन इनकार नही करसकता, (१६) ( दरबयान-जैनतत्वादर्शग्रंथका,-) __अगर कोइ कहे जैनतत्वादर्श-और-श्राद्धविधिमें तीनथुइ बयानकिइहै-तो जवाबमें मालूमहो-जैनतत्वादर्शमें तीनथुइ नही बयानकिइ, यात मंदिरकीथी लिखनेवालोने उसका खुलासा-नही दिया, और गुम्मलेख लिखलिखकर कहदिया तीनथुइ कहीहै, जैनतत्वादर्श Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुति परामर्श . ) १९ में बात मंदिरमें पढनेकी थी, प्रतिक्रमणकेलिये नही, ज्यादे मंदिर होतो - एक एकमंदिरमें एक एक स्तुति पढनाभी. कहा, जैनतत्वादर्शका पाठ यहां देतेहै आमलोग देखे, ( पाठ - जैनतत्वादर्शका, ) पृष्ट (४१७) पर लिखा है - " एक निश्राकृत उसको कहते है जो गछके प्रतिबंधसे बनाहो, जैसाकि - यह हमारे गछका मंदिर है, दूसरा अनिश्राकृत, जिसपर किसीगछका प्रतिबंध नहीहो, इन सर्व मंदिरोंमें तीनथुइ पढना, जेकर सर्व मंदिरोंमें तीनथुइ देते बहुतकाल लगता जाने तथा मंदिर बहुतहोवे - तहां - एक एक जिनमंदिर में, एकएक थुइ पढे, इसवास्ते सर्वजिनमंदिरो में विशेषरहित भक्ति करे, "देखिये ! इसमें प्रतिक्रमणका नाम निशानभी नही, आगे पीछेका संबंध मिलाकर देखना चाहिये, कोई महाशय यह-न-समझेकि - जैनतत्वादर्श में प्रतिक्रमणके वख्त - तीनथुइ - लिखी है, श्रविधिग्रंथका भी खुलासा बयान करते है, सुनो ! चिमनलालजी सांकलचंदजीकी छपवाइहुइ किताब श्राद्धविधिभाषांतर पृष्ठ (१५२) पर लिखा है कि (गाथा.) निस्सकडमनिस्सकड चेइए सव्वेहिं धुइ तिन्नि, वेलंच चेड़ आणिय - नाउं इक्किक्किया वावि, - (अर्थ) निश्राकृत ते कोगनुं चैत्य-अनिश्राकृत -ते- गछवगरनुं सर्व साधारण चैत्य एवां बने प्रकारना चैत्ये त्रण स्तुति कहवी, एम करतां जो घणीवार लागे Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .૦ ( त्रिस्तुतिपरामर्श . ) अथवा घणां चैत्य होय - अने-बधामां त्रणत्रण स्तुति कहतां घणीवार लागे - तेलीवार टकी- शकाय एम-न-होय-तो एकएक थोय कहेवी, पण जेजे देहरे गयां त्यां स्तुति कह्याविना पार्छु- न-फरबु, - देखिये ! यहां भी वही बात है जो जैनतत्वादर्शमें फरगाह है, प्रतिक्रमण व तीनथुई करना किसीजगह जिक्र नही, नाहक ! लोग भल में पडे है, कहां मंदिर की बात और कहां प्रतिक्रमणकी - ?-जमीन-आसमान का फर्क है, - (१७) ( जवाब - विवेचनप्रिय - जैनबंधुके सवालों का,) १ - (सवाल) जैन तत्वादशमें ऋणथइ चैत्यमां करनी-सो- कैसे ? और क्या ! मुद्दाहै, ? - ( जवाब . ) चैत्यपरिपाटी के वख्त मंदीरमें तीनस्तुति बोलना, बस ! यही मुद्दा आरै यही बातह, दुसरा कोइबात नही, अगर वख्त थोडाहो तो एक एक जिनमंदिरमें एकएक स्तुति पढनाभी पाठ है, जैनतत्वादर्श - और - श्राद्धविधिका पाठ उपर लिखचुके जिनकों शकहो - दोनों - ग्रंथ खोलकर देखे, २ - सवाल, सदा रंगेहुवे कपडे पहनना कहां कहा है ? ( जवाब ) निशीथसूत्र के अठारमें उदेशेमें कहा है कि - जैनमुनि-नकपडेकों कथ्ये चुनेवगेराका रंगदेवे, जिसको शकहो निशीथसूत्रका अठारवा उदेशा देख लेवे, ३ – सवाल, करमिभंते पहिले और इर्यापथिका पीछे -सो-कैसे, १ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) २१ ( जवाब.) सवालकर्त्ता किसगछका है जाहिर करे, उसपर जवाब दिया जायगा. ४ - नवीन आचार्य किसको कहते हो और प्राचीन आचार्य किसको कहतेहो ? (जवावं.) ब - हुक्म तीर्थकर गणधरोंके चले वह माचीन-औरखिलाफ हुक्म चले वह नये आचार्य जानना. ५ ---- सवाल, गुहपति व्याख्यानके वख्त कान में डालना कि- नही, ? ( जवाब . ) व्याख्यानके वख्त-या तमाम दिन- मुहपर मुदपत्ति बांधना -या- कानमें डालना - किसी जैनशास्त्रमें नही लिखा, पेस्तर बहुत कुछ बयान इसके बारेमें दे चुके है, पढनेवालोंने पढाहोगा, शास्त्र औघनियुक्तिका खुला पाठहै- जल्पद्मिर्मुखे दीयते, अगर बांधना मंजूर होता तो वध्यते एसा पाट होता, मगर कैसे हो ? तीर्थकर गणधरोंका हुक्मही नही तो पाठ कहांसें आवे ? (१८) (जवाब दुखगर्भितवैराग्यका, ) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ठ ( ५ ) पर दलील है कि - " घरमें खाने के दुखसें अर्थात् आजिविका पुरी - नं - होनेसे दीक्षालेकर थोडेसे पढकर गुर्वा - दिकों के प्रत्यनीक " "यहां पर्देका क्या ! कामहै ? " - इत्यादिवच - नबोलनेवाला, "सर्वज्ञभाषितवचनोका उध्थापन करनेवाला, चतुर्विधसंघका प्रत्यनीक - अन्यायरत्न - अशांतिका करनेवाला" - वगेरा वगेरा, ( जवाब . ) सर्वज्ञभाषितवचनकों उथ्थापनकरनेवाला - और - Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) चतुर्विसंघका प्रतनीक जैनमें उसकोकहा-जो-खिलाफ हुकम तीर्थकर गणधरके नयामजहबइजादकरे, अशांतिकरनेवाला उसको कहना जो संघमे भेदडाले-और-अपनानयाफिरका कायमकरे, न्यायरत्न अशांतिकरनेवाले नही बल्के ! लेखककीकुतर्करुप अशांतिकों माकुलजवाबोसे मिटानेवालेहै-और-वे-दुनियादार हालतमें-अंग्रेजी-हिंदी-गुजराती संस्कृत चारइल्मके जाननेवालेथे, उनकों खानपानकेलिये घरमें वहुतकुछ मौजूदथा. उनकों दुखकौनसीवातका था-जो-दुखगर्भित-वैराग्यसे दीक्षा इख्तियार करे, ? उनोने अपने आत्मसाधनकेलिये दीक्षा इख्तियार किइहै, गुरुओका प्रत्यनीक कौनहै ? इसपर अकलमंदलोग दर्याफत करे, पर्देके बारेमें न्यायरत्नका फरमाना बहुतदुरुस्तहै, देवमंदिर-और-धर्मशास्त्रकी व्याख्यानसभा पर्दा करना किसीशास्त्रका हुकम नही, मुल्कमारवाड-और-पूरवतर्फ श्रावकोंमें रवाजहैकिजिनमदिरमें पूजा पढाते वख्त-और-धर्मशास्त्रकी व्याख्यानसभाभी औरतोंकेलिये पर्दा लगातेहै, औरतें व्याख्यानसुननेकी जगह बातें करतीहै, न्यायरत्न इसपरफरमातेहै मंदिर और व्याख्यानसभागें पर्देका क्या कामहै, ? कहिये ! इसमें कौन बेंजा वातहै, ? कोइशख्श शास्त्रकी वातकों गप्प कहे-और-३इन्साफकी बातकरे तो उसको जबानीताडना देना जैनशास्त्रका हुकमहै. देखो ! रायपसेणीमूत्रमें क्या लिखाहै ? उसपर ख्याल करो, ! ! केशीकुमारजैनाचार्य जब परदेशीराजाके मुल्कमें गयेथे और इसशहरका राजापरदेशी-जब मजहबी बहेसकेलिये उनकेसामने आयाथा-कुतर्क करनेलगा उसहालतमें केशीकुमारजैनाचार्यने उसको साफ कहदियाकि-मूढतराएणं तुमं पयेसीराया,-बतलाइये ! मूढशब्दका माइना क्याहुवा सबुतहुवा मुनिलोगभी कुतर्ककरनेवालोंको जवानी ताडना करे, देखो ! ज्ञातासूत्रमेंभीलिखाहै तं धीरथ्थुणं अज्जो नागसिरीए Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) -माहणीये अहएणाए-अपुरणाए-जाव-णिबोलियाए,-माइना इसका इसतरहहैकि-जब-नागिला-माहणीने धर्मरुचिनामके अणगारकों जहरमय कटुकतुंबेका पार्क खानेको दियाथा और उसकेखानेसें धर्मरुचि अणगारका अंतकालहुवाथा-उसवख्तकहाहैकि-धिक्कारहै नागिला माहणीकों-जो-अधन्या-अपुन्या-और-नींबोलीकी तरह कटुकहै जिसने जहरमय पाक-धर्मरुचिअणगारको दिया-सबुतहुवा-गुनहगारको सख्तकलामकहनाकोइ हर्ज नही.-जिसकों शक हो-ज्ञातासूत्र देखलेवे, अगरकोइ कहे श्रावकोंकों देवानुप्रिय कहनाभी-तो-शास्त्रोंमे लिखाहै, जवाबमें मालुमहो-जिसश्रावककों देवताभी धर्मसें-न-डिगा-सके उसकेलिये देवानुप्रिय कहाहै-या-अधर्मीयोंकेलिये, ? जो जो श्रावक खिलाफहुकम तीर्थकरगणधरोके चलतेहै, धपशास्त्रपर एतकात नहीं लाते और शास्त्रकी बातोंकों हंसी उडातेहै, उनको सख्त-सुस्तकहना कोइ मुमानियत नही, आवश्यकसूत्रके अवल अध्ययनमें पाठ है जो शख्स गुस्ताखीसें पेंश आवे गुरु उसकों सख्तसुस्तवचनकहे, पशलन : जो घोडा अपनी चाल चलताहै उसको चाबुक कोइ नही लगाता. लेकिन ! जब चलनेमें बदमाशी करताहै-उस हालतमें उसको चाबुक दिखलाना फर्जहै,--कोई शख्स किसी उस्तादकेपास वास्ते सवालाकों जावे तो बडे अदवसे पेश आनाचाहिये मुनिजनोंकों कइजगह मूर्योसें वहेस करना पडतीहै, जव- बहुदा-बसनदवाते पंश करतेहै उसहालतमे उसकों जवानी ताडना देना मुनिलोगोंकी फर्जहै, उसपर कइयोंका कहना होताहै मुनिलोंगोंकों गुस्सा करना ठीक नहीं, मगर अपनी भूलकों कोइ नही देखता, ? और इसवातपर कोइ खयाल नहीं लाताकि-तुमारी भूलहुइ जब मुनिलोग तुमारेपर नाराजहुवेहै. इसलिये हर Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) शख्शकों अपनी भूलपर खयाल करनाचाहिये, और उस्ताद जोकूछ फरमावे उसपर अमल करना चाहिये, (आवश्यकसूत्रके-अवलअध्ययनमें पाठहै कि,-) जह जच वाहलाणं-अस्साणं जणवएसु जायाणं, सयमेव खलिण गहणं-अहवावि बलाभिउगेणं, पुरिसझाएवि तहा-विणीय विणयंमि नथ्थिअभियोगो, सेसंमि अभियोगो-जणवयजाए जहा आसे, (टीका,) यथा जात्यवाल्हिकानामश्वानां जनपदेषु मगधेषु जातानां स्वयमेव खलिनस्य-कविकत्यग्रहणं अथवापि बलाभियोगेन तथा पुरुषजातेपि पुरुषविशेषेपि विनीतविनये अभ्यस्तवैनेथिके नास्ति अभियोग:--शेषेविनयरहिते बलाभियोगो वर्तते,__(माइना.) जैसे उमदा घोडा लगामकों खुद ले लेताहै-याउसको पकडकर मुंहमें लगाम पहनाइजातीहै, ऐसे विनयवान् चेला अगर खुद-समझजाय और कुतर्क न-करे-तो निहायत उमदा वातहै, अगर समझानेपरभी-न-समझे और गुस्ताखीकरे-उसकेलिये वलाभियोग (यानी.) जवानी ताडना देना, देखिये ! इस पाठसें क्या ! सबुतहुवा, ? इसपर गौर करो, न्यायरत्न इसीवातपर पावंदहै. जो जो श्राव क न्यायरत्नके सामने अदबसें पेंश आतेहै उनकों न्यायरत्न कभी साल बात नही कहते, मगर जब कोई गुस्ताखी करने लाताहै तो उसकों बेशक : सख्त बात कहतेहै,-रायपसेणीसूत्रमें परदेशी राजाकोंकेशीकुमार जैनाचार्यने-मूढतराएएं तुमं पएसीराया-कहा, ज्ञातासूत्रमेंनागिला-माहणीको अधन्या-अपुन्या कही. आवश्यकसूत्रमें-अविनयी Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) शिष्यकों सख्तसुस्तकहना फरमाया, कौनजैनी इनपाठोंकों इनकारया-जूठ कहसकताहै, ? जब कोइ जैनमुनि-व्याख्यान वाचना शुरु करतेहै तो अवल एसापाठ बोलतेहै, (अनुष्टुप्-छंद.) अज्ञानतिमिरांधानां-ज्ञानांजनशिलाकया, नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः १, ___ अज्ञानतिमिरकरके अंधे बनेहुवेजीवाको ज्ञानरुपी-शिलाकाकरके जिसगरुमहाराजने-अंजनकिया, उनकों नमस्कार हो, देखिये ! इसमेंभी-" अज्ञानतिमिरांधानां." एसा पाठहै.--एक बादशाहने बडा: आलिशान मकान बनवाया और दरवाजा उसका इतना बडा रखा जो करीव (२५) हाथ उंचा होगा, उसके उपरकेभागमें उमदाकारिगिरी और चित्रकारीबिनवाइकि-जिसकों तमाम लोग देखनेकों आतेथे और देखकर खुश होतेथे, जो कोइ मुसाफिर इसशहरमें आताथा उसमहेलको देखनेकेलिये जरूर जाताथा, और उचीनिगाहकरके देखताथा, बादशाहने उसदरवजेके उपरले भागमें एक एसीनसीहतकीबातलिखवा दिइथीकि-जिसकी--तारीफ बेंमीशालथी बडेबडे होंमें यहलिखवादियाथाकि " उंचा क्या देखताहे, ? निचा देख !! दुनियामें आकर तेने क्या नेकी किई, ?-" देखनेवाले इसमिशालकों देखकर शर्मीदे होजातेथे और क Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) हतेथे क्या उमदा नसीहत दिइहै जिसकी तारीफकरना दुसवारहै, हरशख्शको मुनासिबहै अपनीकारवाइपर ख्याल कर,-- - न्यायरत्न हमेशां न्यायरत्नही रहेगें, किसीके कहनेसे अन्यायरत्न नहीहोसकते, एकशख्शकी तरक्की देखकर दुसरा नाराजरहे यहभी एकजमानेकी खूबीहै, यादरखो ! न्यायरत्नके लेख हमेशां चलते रहेगें, किसीके लेखका जवाब-न-देवे. या-चूप रहे यह ख्वाबमेंभी-नही-समझना,-जो जिसतरह पेंश आयगा उसकेशाथ हम उसीतरह पेंश आयगें, (१९) (बीचबयान-यांत्रिकविहारके,-) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (१०) पर बयानहै संवत् (१९५९) में शांतिविजयजीने साधुओकों रैलमें बेठनेका मत चलाया, (जवाब.) जब इरादेधर्मके नावमें बेठनेका जैनमुनिकों हुकमहै तो रैलभी एकतरहकी सवारीहै, नाव पानीमें चलतीहै रैल जमीनपर चलतीहै, बल्के ! जलमें कइतरहके जीव रहतेहै उतने जमीन पर नहीरहते,-अगरकोइ मुनि शौखसे-या-अपने आरामकेलिये रैल सवारी करतो बेशक ! पापहै, और उसकी मुमानियतभीहै, क्योंकि उसका इरादा धर्मपर नहीरहा.-मगर इरादे धर्मके तपसीलन धर्मकी तरक्कीकेलिये कोइ मुमानियत नही, आजकलके लोगबाग ब-सबबरैलके-अपना बतनछोडकर हजारांह कोशोंपर जायसेहै जहांकि-धर्मका नामनिशानभी नहीपाता, औरवहां कोइभी जैनमुनि उनकों जैनधर्मका रस्ताबतलानेवाले नही मिलते, बल्किन् ! धर्मको छोडकर अधर्मी होजातेहै, उसहालतमें कोइ जैनमुनि रैल-नाव-या-डोलीमें बैठकरवहां जावे और तालीमधर्मकीदेवेतो कोई नुकशाननही, बल्किन् ! फायदा Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) है, इसीसबबसें हम रैलमें बेठना मुनासिब समझतेहै, पैदलविहारीमुनि लोगोमें कइ जैनमुनि ऐसे देखेजातेहै जिनकेसाथ श्रावकलोग चलतेहै, बैलगाडी वगेरा शाथ चलतीहै, मुनिलोगखुद जानतेहैकि-यह-कार्य हमारेही सबबसे होताहै, बतलाइये ! बैलगाडी वगेरासे रास्तेमें सूक्ष्म जीवोंका नाश होताहै-या नही, ? कइजैनमुनि बडीसफरमें डोलीमें बेठकर विहार करतेहै, कहिये ! डोलीकों उठानेवाले रास्तेके कीडोंकों कैसे बचा सकेगे, ? उनको तो बोजा उठाकर चलना पडताहै, कइ जैनमुनि ऐसेभी देखेजातेहै जिसमुल्कमें उनोंकों जानाहो. और-वहां उनकीश्रद्धाके मुताविक बर्तावकरनेवाले श्रावक-न-हो-तो-अपनी श्रद्धाके अनुरागी श्रावकोके शाथ विहारकरतेहै. क्या आत्मार्थी पूर्णसंयमी पैदलविहारी अकेले विहार-नही-करसकते, ? अगर कहाजाय इरादेधर्मके भावहिंसा नही. और विना भावहिंसाके पाप नही, तो फिर इसीसडकपर आओ, उत्कृष्टता किसवातकी रही, ? अगर उत्कृ. ष्टसंयमी बनना मंजूरहै-तो-पहाडोकी कंदरामें-और-बनखंडमें गुजर करना चाहिये, शहरमे आनेकी क्या जरुत ? तीनतीन चारचारवर्ष एकही-शहरमें बेठरहना यहकौनसे जैनशास्त्रका हुकमहै, ? अगर कहा जाय लाभदेखकर इरादेधर्मके बैठेरहतेहै तो फिर इसीतरह दूसरी बातभी समझलो, पृछाप्रतिवचन पृष्ठ (१७) पर मजमुनहैकि-शांतिविजयजीकी -तो-कोइ-गिनतीही नहीहै. श्रावकमंडलसें बहार बहार फिरतेहै. (जवाब.) शांतिविजयजीकी कोई गिनति नही तो तुम लोगोकीकौनसी गिनती है. और कौन कहताहै शांतिविजयजी श्रावक मंडलसें बहार बहार फिरतेहै, ? क्या! गुजरात-मारवाड-पंजाब-राजपुतानापूरव-मध्यखंड-मालवा-वराड-खानदेश-और-दखन-श्रावकमंडलकी Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) आबादीके मुल्क नही ? जहांकि-शांतिविययजी बसात विचरे और और अबभी विचररहेहै, श्रावकमंडलके ऐसे थोडेही मुल्क बाकी रहे होगें जहांकि-शांतिविजययजी-न-विचरेहो, - पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१७) पर तेहरीरहैकि-मनिश्रीआत्मारामजीको-यहबात नहीं सूझ पडीथी, ? और उनके शिष्य शांतिविजयजीके नेत्रभी तबतक नही खुलेथे ? नही तो दोनोंजने सलाह करतेरैलमें बेठनेकी आचरणा चलाडालते, (जवाब.) बेशक ! महाराजश्रीआत्मारामजी-आनंदविजयजीको सुझ पडीथी, जभी तो चतुर्थस्तुतिनिर्णय किताब-बनाकर-तीनथुइकी प्ररुपणाको गलत बतला गये, जिससे तमाम मुल्कोंमें जैनश्वेतांबर श्रावकोंका शक रफा हुवा, और अपने धर्मपर पायबंद रहे, देखिये ! सुरत-जैनश्वेतांबर चारस्तुति माननेवालोने कैसा उमदा ठहराव किया, ? लेखक इसपर ख्यालकरे, !-और-इसवापरभी गौर करेकि-यह-जवाबभी कैसा उमदाहै, जिसकों पढकर अकलमंद लोग ताज्जुब करेंगे, शांतिविजयजीके नेत्र हमेशां खुलेहै देखलो ! किसकदर तुमारे सवालोंके माकुल जवाब देतेचले जारहेहै, अगरकोइ हजार चतराइ करे मगर अकलमंदोके सामने किसीकी चतराइ नहीं चल सकती. अगर कोइ कहे फलाने मुनि रैलसवारी क्यों नहीं करते ? फलाने पैदल क्यों चलतेहै, ? जवाबमें मालूमहो इसकी फिक्र कोइ क्यों करे, ? अपनीअपनी कारवाइपर खयालकरना चाहिये, जो-जैसा-करेगा वैसा फल पायगा,.....पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१८) पर दलीलहै रैलयात्रामें गृहस्थलोगोकाभी धर्म निर्वाहित नही होसकता तो अणगारधर्म कयौं कर निवाहित होसकेगा, ? Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श. (जवाव.) कौनकहताहै रैलसवारीसें धर्मनिर्वाहित नहींहोसकता, अपना धर्म सबकों प्यारा होताहै, चाहे दुनियादार हो-या-साधु हो, अपना धर्म रखेगा चैन पायगा, रैलसवारीमें खानपान-न-करे और जहां उतरे वहां खानपान करे तो धर्मकैसे जासकताहै, ? धर्मरखनेवाले वडीबडी मुसीबतमेंभी अपना धर्म रखतेहै-तो रैलसवारीमें धर्मरखना कौनमुश्किलकीबातहै, ? चेडाराजाने-कौणिकराजाके सामने लडाइके वख्तभी अपनाधर्म नही छोडा था, पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१८) पर वयानहै शांतिविजयजी चाहे हम आंखपर चश्मा लगावे, स्वछतंबेजका प्रावरण ओढे, और रैलगाडीमें पेतालीसघंटोमें पश्चिमसमुद्रसे पूरवसमुद्रतक विहारकरडाले, और संयमी महाव्रती साधु कहलानेका होसिला पुरा करे-ये-दोनों बातें नही होसकती. ... (जवाब.) क्या नही होसकती ? बेशक ! इरादेधर्मके होसकतीहै. देखलो ! और आगे जरा इसइबारतकों पढलो, मालूमहोजायगाकि-संयमी-महाव्रतीकहलानेका होसला इसतरह पुराहोताहै, शांतिविजयजी जो चश्मालगातेहै धर्मऔर आत्मरक्षाकेलिये लगातेहै, जिसकी आंखोंमें कमरोशनीहो, शास्त्रके हर्फ-न-बचसकतेहो-ऐसेमुनि-चश्मा-न-लगाव और जीवोकी हिंसा उनसे होतीरहे क्या ! इसबातकों अछीसमझतेहो, ? जीवरक्षाकेलिये जैसे दूसरे उपकरणहै चश्मेभी एक तरहके उपकरणहै, स्वछतंबेजका प्रावरण औढतेहै सो इसकी जैनशास्रोमें कोइमुमानियतनहीं, देखलो ! लाखलाख रुपयोंके रत्नकंबल पेस्तरकेमुनिलोग रखतेथे प्रवचनसारोद्धारका हुकमहै और उसका यहां पाठ बतलातेहै देखलो, ! Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (पाठ प्रवचनसारोडार गाथा (८०४) द्वार (१११)-) मुल्लजुअं पुणतिविहं-जहन्नयं माझमं च उक्कोस, जहन्नण अठारसगं-सयसहस्सं च उक्कोसं, (माइना.) कपडेका मौल शास्त्रोमें तीनतरहकाफरमाया, जधन्य-मध्यम उत्कृष्ट, जिसमें जघन्य अठारहरुपयेका और उत्कृष्ट, लाखरुपयेका कपडा रखना मुनिकों हुकमहै, अपने अपने लाभांतरायकमके दूरहोनेसें जिसकों जो चीज मीले उसपर दूसरोंकों नाराज होना फिजुलहै, जिसवातका हुकम शास्त्रोमें दर्जहै उसका इनकार कौनकरसकताहै, ? देखलो ! लाखरुपयेका रत्नकंबल रखना फरमाया तो-नव --या-अठारांहरुपयेके कंबलकी कौन गिनतीरही, ? विद्यासागरने सबुत प्रवचनसारोद्धारका देदिया जिसकी ताकातहो रद करे, रद तो क्या करेगें ? मंजूरकरना पडेगाकि-विद्यासागरका कहना ठीकहै, रैलसवारी में पश्चिमसे पूर्व समुद्रतक (४५) घंटेमें जानेकीबात जो लिखी जवाबमें मालूमहो धर्मकी तरक्कीके लिये इससेभी जलदी चलनेवाली ( रैलमें) बनपडेतो (३५) घंटमें जासकतेहै, पेस्तरके जमानेमें जब आकाश गामिनीविद्यामौजूदथी धर्मकी तरक्कीकोलिये मुनिलोग बजरीये उस विद्याके (१) घंटेमें हजारां कोश जातेथे, तो (४५) घंटेकी बात कौन गिनतीमं रही ? संयमीकहलानाभी मूर्छारहित बर्तावकरनेवालोकाकाम Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) है, जोशख्श-अपने ज्ञानदर्शनचारित्रमें पावंदहै उसकों असंयमी कौन कहसताहै, ? गुणवान्की सबजगह इज्जतहोतीहै, चाहे कोई दूसरा उनकी इज्जतहोती देखकर नाराजरहे-गुणवान्का उससे कोइ नुकशान नही. इजतदारोंकी इज्जत किसीके कहनेसे कम नहीं होसकती,चाहे विद्यासामर हो-या-कोइ दूसराहो-जो-संयम पालेगा वह संयमीकहलायगा, शांतिविजयजीके संयमी कहलानेसें दूसराकोइ नाराज रहे यहभी-एकजमानेकी खूबीहै.___पृछापातिवचम पृष्ट (१९) मजमूनहैकि-रैलयात्रामें पीडेषणा दोष कैसेटलसकता होगा जिसबातका शांतिविजयजीकों घमंडहै किंतु संयम पालनायही शास्त्रकासारहै, (जवाब.) अगरसंयमपालंनाहीसारहैतो श्रद्धा और ज्ञानक्यौं मजूररखतेहै? पंडितोसें क्यौं ग्रंथबनातेहै? अकेलासंयमपालकरहीबैठेरहनाथा, तत्वार्थसूत्रमेंतोसम्यक्दर्शनज्ञान और चारित्र-तीनोंकेमिलनेसें मोक्षका मार्ग कहा.-और लेखकपुरुष लिखतेहै संयमपालनाही शास्त्रका सारहै, क्या कहना ! लेखकहो-तो-ऐसेही हो, मगर याद रहे ! जैनशास्त्रोंमें अकेला चारित्र कारआमद नही फरमाया, शुद्धश्रद्धा-शुद्ध ज्ञान-और शुद्धचारित्र-तीनोंके मिलनेसेंही काम चलेगा, जो लोग अकेले चारित्रकोही सार बतलातेहै भूलकरतेहै, शिवाय ज्ञानदर्शनके अकेला चारित्र क्या काम देसकताहै, ? शास्त्रोमें हरजह लिखाहै श्रद्धा परमदुर्लभहै, बादउसके ज्ञान-और-ज्ञानकेपीछेचारित्रहे, रैलमें बैठे खानपान-न-करे और जिसगांवमें जाय वहां शुद्ध आहार लेवे फिर पीडेषणा दोष कैसे लगेगा, ? जोजो मुनि-अपनीश्रद्धाके अनुरागी श्रावकोके शाथ विहार करतेहै-वहां पींडेषणा दोष कैसेटलसकताहोगा इसबातपर कोइ खयाल करे,-और जिसबातका शांतिविजयजीकों घमंड बतलाते हो मगर धर्मोपदेशदेना आम मुनिलोगांकी फर्ज है, शांतिविजयजी इसीफर्जकों अदा कररहहै, इसमें घमंडकी कोई बात नही. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) पृछाप्रतिवचनपृष्ट (१७) परतेहरीरहै जो शिथिलाचारीहोतेहैवे-अपने शाताकेलिये अनेक अपवादपदका बहाना करके बुरीबुरी प्रतिसेवना करतेहै, उनके दिखलाये हुवे अपवादिकशास्त्रप्रमाणोंकों देखकर भव्यप्राणियोंकों विस्मित-न-होना चाहिये,--- (जवाब.) शिथिलाचारीकोनहै ? और अपवादमार्गका बहाना कौन लेताहै ? इसपरं फिर गौर करलो ! आजकाल असे कौन जैनमुनिहै-जो-अपवाद मार्गका सहारा-न-लेते हो, ? ख्याल करो ! उत्सर्ग मार्गमें तोजैनमुनिकों उद्यान-बनखंड-या-पहाडोंकी गुफामें रहना फरमाया. आज शहरमें आनकर रहते है कहिये ! यह उत्सगमार्गहुवा-या - अपवादमार्ग, ? उसंगमार्गमें जैनमुनिकों तीसोपहर गौचरी जाना कहा, सौचो ! आज ऐसाकौनकरताह, ? उत्सर्गमार्गमें जैनमुनिकों शून्यागार-बनखंड-या-श्मशानवगेरामेंजाकर ध्यानकरना कहा आज ऐसा कौन करताहै ? उत्सर्गमार्गमें पात्रकों लेप-न-लगे वैसी लुखासुखा आहारलेनाफरमाया, खयालकरो ! आजऐसा कौन करताहै, ? उत्सर्ग मार्गमें रोग पैदा हो तो समताभाव करना मगर दवा नहीं लेना कहा, आज ऐसा कौन करताहै, ? अगर कहाजाय वैसाजमाना आजकल नहीं रहा. न-वैसीताकात रही इसलिये जैसा जमानाहै-वैसी-क्रिया का रतेहै-तो-फिर इसी संडकपरआओ, ! उत्कृष्टता किसबातकी दिखलाते हो ? विद्यासागरभी-तो यही फरमातेहैकि-द्रव्यक्षेत्रकालभावदेखकर चलो, कोरीवातें बनाना क्या ! फायदा, ? अपवादमार्ग-विदून किसीका काम नहींचलता, अगरकोइ कहे हम-कमजोर मार्गकों मंजूर नही करते तो बतलावे-शहरमें आनकर क्यों रहतेहै, पहाडोंकीगुफा-और-बनखंडमें जाकर क्यों नही रहते,-खानपानकी चीजें वहांही मिलजायाकरेगी,अगर-न-मिलेतो-समताभावः करना, क्योंकि-समताभावगैरहना मूनिका Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) धर्महै, और यहभीवातहैकि-लेखकपुरुष उत्सर्गमार्गी ठहरे, मगरमालूम होगया लेखकका उत्सर्गमार्ग कौरीवाते बनानेवालेहै, और यहभी लेखकबतलावे शिथिलाचारी किसकों कहतेहै और कठिनाचारी किसको, ? और इसबातकोभी जाहिरकरेकि-अपवादमार्गका सहारा तुम लोगलेतेहो-या-नही ? कोरीबातें बनाना सबकोइ जानतेहै मगर उस मुताबिक चलनेवाले बहुतकम निकलेगे, इनसाफफरमाताहै जैसाव्यक्षेत्रकालभाव देखो उसमुजब बर्ताव कसे, बडीबडीवातें बनानेसेकोइकाफायदानही. ऍतो अपनेअपने खयालमें-हरकोइमुनि उत्कृष्टसंयमी बननाचाहतेहै. और यहसमझतेहैकि-हम-जैसीक्रिया करतेहै वैसी कोई नहीकरता. मगर विना शुद्धश्रद्धा और ज्ञानके क्रिया कोइ कामनही दे शकती, लेखकपुरुष लिखताहैकि-अपवादपदका बहाना लेकर बुरी बुरी प्रतिसेवना करतेहै उनके दिखलायेहुबे अपवादिकशास्त्रप्रमाणोकों देखकर भव्यप्राणीयोकों विस्मितहोना-नहीचाहिये,-जवाबमें मालूमहोजोकोइसाधु-अपनेश्रद्धानुरागीश्रावकोके शाथविहारकरे-उसको-उत्सर्ग मार्गगामी-कहना-या-अपवादमार्गी कहना ?-और-यहभी बतलावेकि-श्रावक-मकान किराये लेवे-और-उसमें जो-मुनि-रहे-यह उत्सर्गमार्गहै -या-अपवादमार्ग, ? अपवादका बहाना कोनलेताहै-और-अपवादिक शास्त्रके प्रमाणकौन बतलाताहै, इसपर लेखकपुरुष फिरगौरकरे, कोइ हजार चतुराइसैले मगर अकलमंदोकेसामने एकभीनही चलशकती, प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (१०) पर दलीलहै शांतिविजयजीने ऐसी प्ररुपणाकरी श्रावकहै-सो-साधुओंकों दुकानसे मिठाइ वगेरा तुलवाकर दिलवादेवेतो कुछदोष नही. (जवाव.) शांतिविजयजीने ऐसीप्ररुपना नहीकिइ, अगर लेखकके पास कोइसवतहो-तो-पेंश करे, विनासबुत ऐसालिखाणकरना Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) लेखककेलिये मुसीबत का सामना होगा, इसलिये आईदे खयाल रखे. और ऐसे लिखाणोसें परहेज करे, - ३४ प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ठ (१०) पर बयान है गृहस्थोंसें वैयावच्चकराना, साबुन कपडे धोना - नोकरसें भार उठवाना इत्यादि अनेक तरहकी शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणा शांतिविजयजीने करी. ( जवाब . ) जो जो जैनमुनि - ग्रंथवनवाते है - पंडित लोग-शाथ रहते है, मणोवंदपुस्तक उनके लिये बैलगाडीमें या रैलमें आतीजाती हैं, क्या ! मुनिलोग नही जानतेकि - ग्रंथबनाने के सबब ये - ये क्रिया होती है, जैनशास्त्रमें बयान है - कोइ कार्य करना, कोइकार्य दूसरे से करवाना-याउसकेलिये अनुमतिदेना - तीनो एक बराबर है, बतलाइये लेखकमहाशय ! इस कार्यकों उत्सर्गमार्ग कहना - या - अपवाद मार्ग : वातेंतो बडीबडी वनाते हो - मगर कुछ जैनशास्त्रकीभी मालूम है ? अगर आपको मालूम न- होतो- गुरुलोगो के पास जाकर दर्याफत किजिये. और दिलमें खयालकिजिये कैसा उमदाजवाब है जिसको पढकरतुमभी ताज्जुब करोगे, शांतिविजयजीने को शास्त्रविरुद्ध प्ररुपना नही कि, उनकी जितनीवातेहै शास्त्रसबुत हैं, गृहस्थोसे वैयावृत्यकरानेके बारेमें जवाब सुनिये, ! पंचा कसूत्र में बयान है कि श्रावक-मुनि की वैयावृत्य (यानी) खिदमतकरे, इस पंचाशकसूत्र हमारे सामने नहीं है, होतातो पाठभी यहां लिखदेते, सोचो ! कोइ मुनिमहाराज बीमार हालतमेंपडेहो और उसवख्त दूसरे मुनि उनके पास हाजिर न हो तो उसमुनिकी खिदमत श्रावक करे या- नही ! अगर कहाजाय न करेतो बतलानाचाहिये श्रावकोकों जैनशाखोमें श्रमणोपासक क्यों कहे, ? - साबुनसे कपडे धोने के बारेमें जवाबलिजिये, ! क्षारसे कपडा धोना जैनशास्त्रों में मुनिकेलिये हुकम है, और साबुन एक तरहका क्षार है, इसलिये साबुनसें कपडाधोनाभी खिलाफ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) हुकमशास्त्रके नही, बोजा उठवानेके बारेमें खयाल करो! कोइ मुनि बीमारहो-और-उनकों एकगांवसें दूसरेगांव जानाहो-उसहालतमें कपडेया-पुस्तकपंने-दूसरोंसे-न-उठवावेतो-क्या-वहांही धरे रहनेदे, ? और. अकेले चले जाय, ? क्या ! खबवातहैकि-जिसकोकोइभी अकलमंद मंजूर नही करसके, अगर कहाजाय इरादेधर्मके दूसरेसे-वह-बोजा उठवायाजायतो कोइ हर्जकी बातनही, तोफिर इसीसडकपर आओ, ! उत्कृष्टता किसबातकी रखतेहो. ? घूमघामकर अपवादमार्गपर आना और बातें बडीबडी बनाना-यह-अकलमंदोके सामनेनही चलसकता. (२०) ॐ (दरबयान--मानवधर्मसंहिता किताबके.) . ___ पृछापतिवचन किताब पृष्ट (२१) पर मजमूनहै मानवधर्मसंहिता-ग्रंथ-जोछपाहै, यदि अवसरमिलातो उसकीभीखबर लिइजायगी, (जवाब,) हम राजेंद्रसूर्योदय-औरअभिधान-राजेंद्रकोश-जोकि-अबतक बनरहाहै-उसकीभी खबरलेनेकों मुस्तेजहै, जिसकेदिलमें जो उमेदहो पुरीकर लेवे, मालूमनहीकि-विद्यासागर-तुमारे लेखपर दशगुनीटीका करनेका तयारहै, मानवधर्मसंहिताकी कोइ क्याखबरलेगा, ? उसकोंछपे आज सातवर्ष होगये किसीकीताकात-न-हुइकि-उसकी कोई खबरलेता, बल्के ! कइमहाशयोने उसकेबारेमें तारीफलिखि, और छपेबाद फौरन बीक गई, (२१) (बीचबयान-विद्यासागरके लेखोंका,) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (११) परतेहरीरहै-शांतिविजयजी-जैन पत्रमें-कइदफे शास्त्रविरुद्ध लेखलिखते है इसकाभी जवाब पंचांगीके अनुसार दिया जायेगा. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (जवाब.) अमर पंचांगीके मुताबिक जवाबदेनेकी ताकात रखतेहो तो-जवाबदो-प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरना किसमूत्रकी पंचांगीमें लिखाहै. ? जवावदेना मुश्किलहोगा. जबानीजमाखर्चसे कामनहीचलता, कागजरुप मेंदान सामनेपडाहै, जिसकी मरजीहो-अपनीअकलरूप घोडा दोडालेवे,-शांतिविजयजीके लेख किसजगह शास्त्रविरुद्धथे. ? जाहेर क्यों नहींकिया. ?--अबभी जिसकी ताकातहो-शांतिविजयजी के लेख शास्त्रविरुद्ध सबुत करदेवे, हम उसकों वहादुर समझेगे, पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१८) पर दलीलहै जैनपत्रमें निरंतर शांतिविजयजीके लेखोंकी भरमाररहतीहै और आगे यहभी लिखाकि-शांतिविजयजीकी मतिकल्पना क्याक्या उगलतीहै, ? ( जवाब.) शांतिविजयजीकी मतिकल्पना अबतक क्या देखी है ::--अभी तो अव्वलही कामपडाहै, आगे देखतेजाओ ! क्या क्या ! ! मजा दिखलातेहै, ? शांतिविजयजीकी मतिकल्पनाका मजा अगाडी मालूम होगा, देखलो ! पांचकिताबोंके लेखोंका-और-कइइस्तिहारोंका माकुलजवाब एकहीशाथ तुमकों देदिया, शांतिविजयजीके लेखोंकी भरमार जो जैनपत्रमें रहतीहै वहीतो तुमकोंनागवार गुजरती होगी, अगर मारी ताकातहो-तो-तुमभी दूसरा-सप्ताहिकपत्र-निकालो, फिर हमारे तुमारे लेख खूबचलतेरहेगें, पश्नोत्तरपत्रिकामें जाहिरहुवाथाकि-शुद्धसिद्धांतरहस्यमासेकपत्रमें जवाबदियाजायगा, यानी शुद्धसिद्धांतरहस्य नामसे मासिकपत्र निकलेगा, मगर आज उसको निकलते वर्षानुवर्ष-बीतगये, अबतक उसका जन्मभी नहीहुवा, लेखोंकी भरमार कोइ क्या ! रखेगा ! ! लेखोकी भरमार रखनाभी तो अक्कलके ताल्लुकहै, Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुति परामर्श.) ३७ पृछाप्रतिवचन पृष्ट (२३) पर बयान है शांतिविजयजीके लेखोसे जैनपत्रका अधिपति - पत्र क्यों भरता है, ? ( जवाब . ) शांतिविजयजीके लेख इन्साफी होते है इसीलिये उनके खोसे जैनपत्र भरा जाता है, - शांतिविजयजीके लेख जैनपत्र में छपे और पृछाप्रतिवचनके लेखककों नागवार गुजरे यहभी एक उसके भाकी बात है, पृछाप्रतिवचन पृष्ट (२६) पर मजमन है समग्रश्रुतकासार चारिहै उसकी तर्फदृष्टि फेरो जहां वह चरणरनहै वही समग्र सामायि कादि - बिंदुसारांतश्रुत है, वह - न - हुवा तो कुछ - न - हुवा, ( जवाव . ) अगर समग्रश्रुतकासार चारित्रही है-तो-ज्ञानऔर श्रद्धा कुछकार्यकारी न रहे, फिर ग्रंथबनाने के लिये पंडित लोगोकों रखना, उनकों तनख्वाह देना, मंगोबिंदपुस्तके इधर उधर मंगवाना यह सब आडंबर क्यों ? तुमतो एकेलेचारित्रकोंही सारबतलातेहो, और यहभी कहाते होकि - चारिन - हवा - तो कुछ-न- हुवा, फिरतो ग्रंथबनाना बेकार होगया, अकेले चारित्रकोंही इख्तियारकरके बैठरहनाचाहिये, लेखकपुरुष बातेंतो बडीबडी बनाते है मगर अबतक जैन आगमका पुरेपुरामतलब नहीपास के है. जैनशास्त्रोमें शुद्धश्रद्धा - शुद्धज्ञान - और - शुद्धचारित्र तीनों केमिलनेपर मोक्षकां मार्गकहा, अकेलेचारित्रसें मोक्षनही है, श्रामण्यरहस्य - पृष्ट (१५) तेहरीर है वर्त्तमानमें भी देखो ! न्यायरत्न खडेहुवे, ज्ञानप्रकाश किया. गाडीमेंवेठनेसें कुछदोष नही, छापा छपवाना कागज लिखना, वगेरा वगेरा, ( जवाब . ) पंडितों की मदद से ग्रंथ बनवाना, सुरतके संघने जब अगत्यका ठहराव किया- तब - एक जैनबंधुके नामसे " जाहेरखबर " Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ( त्रिस्तुति परामर्श . ) छपना, एकसत्पक्षग्राहीके नामसे - " माहाराजश्री राजेंद्रसूरिनी त्रण थुइ अने 17 संबंधी चरचा चारथुइ का - छापाछपना विवेचनप्रिय जैन बंधुके नामसे - " श्रीसंघने सत्यंवातनी सूचना " - लेख छपना, यहभीतो ज्ञानका प्रकाशही किया है, - श्री पूज्यजी - श्रीधरणेंद्र - सूरिजी - जोकि - सनातन - जैन श्वेतांबर - चारस्तुतिकी - श्रद्धा में पावंदथे - उनोने क्यौं तीनस्तुतिकी प्ररुपना नहीकि, क्या !-वे- तीनस्तुतिकी प्ररुपनाकरना नही जानते थे ? - मगर - वे - कैसे करे ! क्योंकि - जैनशास्त्र के पुरे माहितगार थे, न्यायरत्नका ज्ञानप्रकाशदेखना हो तो उनकी बनाइहुइ मानवधर्मसंहिता- जैनसंस्कारविधि - रिसालामजहब ढुंढिये - और - त्रिस्तुतिपरामर्शजो - आपलोगोकेसामने मौजूद है उनसे देखो, और-वे- धर्मकी तरक्कीके लिये हुवे है इसमें कोई शक नही, - BE ( चीठी लिखनेकेबारेमें कल्पभाष्यवृत्तिका पाठहै कि . ) जथ्थविय गंतुकामा - तथ्यवि कारिंतितेसिंनायंतु आरख्खियाइ तेविय - तेणेवकमेण पुछति, - ( वृत्तिः) यत्रापि राज्येगंतुकास्तत्रापिये साधवोवर्ततेतेषां लेखप्रेषणेन संदेशप्रेषणेन - वा- सविज्ञातुं कुर्वति, यथावयं इतोराज्यात् तत्रागंतुकामा अतोभवद्मिस्तत्रारक्षकान् ततः पृछति, यदाह - तैरनुज्ञातं भवति तान् साधून् ज्ञापयंति, आरक्षितादिभिरन्नानु ज्ञातमस्ति भवद्मिरत्र - आगंतव्यं, एषनिर्गमने प्रवेशेच विधिरुक्तः ( माइना . ) जिसराज्यसे साधुलोग दुसरेराज्यमें जानाचाहते हो - तो - पेस्तर उसराज्यमें ठहरेहुवे अपने साधुओंकों लेख भेजकर - या Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) -संदेशा कहलाकरपुछलेवेकि-वहांकेराज्यरक्षकोसें दर्याफतकरो हम वहां आनाचाहतेहै, वे-साधु-वहांकेराज्यरक्षकोंसें पुछे-और-अगर उउनकाहुकमहोवे-तो-उनकोलिखे, बेशक ! आओ !! ख्याल करो! कल्पभाष्यवृत्तिमें धर्मकामकलिये साधुलोगोको चीठीलिखनेका हुकमहैया-नही, ?-अगरहै-तो-कुबुलकरनाचाहिये, दुनियादारीकेलिये चीडीलिखना बेशक ! मनाहै, क्योंकि-मुनिलोगोने दुनियादारीकोंछोड दियाहै,-याद रहे ! न्यायरत्नकेलेखहमेशांचलतेही रहेगें, तुमारेलिखनेसे-वे-बंद-न-करेंगें, जोलोग-शास्त्रके फरमानेपर अमलकरनेवालेहै, किसीकेकहनेपर खयाल नहीं रखते, श्रामण्यरहस्य पृष्ट (१९) पर दलीलहै जैनपत्रमें प्रश्नोत्तर न्यायरत्नके देखतेहै-वे-सर्वप्रायः सूत्रविरुद्ध जैनसिद्धांतकों कलंकित करतेहै, लोग-तो-जावनीभाषा-बांचकरप्रसन्नहोतेहै, किंतु सूत्रकामर्म कुछ समझते नही, (जवाब.) मूत्रकामर्म जाननेवालेतो-एक-तुमहीहो, दुसरे सब अजानहै, क्याखूब ! न्यायरत्नके सवालजबाब अगरकोइ शख्श शास्त्रविरुद्ध सबुत करदेगा उसरौज देखलिया जायमा, और उसकों बहादूर समझाजायगा, हालतो कारोबातेंही चलरहीहै, न्यायरत्न जो उर्दूजबान अमलमेंलातेहै सबब उसका यहहैकि-उनकेलेख-आमहिंदमें पढेजातेहै, अगर-वे-अकेलीगुजराती-मालवी-मारवाडी-पंजाबीजबान लिखेतो-आमलोगोकों फायदा कैसे हो, ? (२२) (बयान ज्ञानपढनेकेबारेमें,-) श्रामण्यरहस्य पृष्ट (११) पर मजमूनहै ज्ञानपढनेका बहाना लेकर आचारछोडदेतेहै, बनियेलोग भोलेहै पढेमात्रकों पंडित मानतेहै Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) आचारभ्रष्ट-और-गुरुआज्ञा बहारका महादोष-सो-कौनदेखे ? दोनो डूबते है, (जवाब.) श्रावकलोग भोलेहे जभीतो नयेमजहबकों इख्तियार करलेतेहै, ज्ञानपढ़नेके बहानेकिसने आचारछोडा उसकानाम जाहिरमें आनाचाहिये, पढेहुवेंकोंपंडित आमलोग मानतेहै, क्या ! पढेहुवेकों-न-मानेतो अनपढकों पंडितमाने ? क्याखूब लेखक हेकि-जिनकेलेखकी-तारीफ कोइबयान नहीकरसकता, हरेककोममें भाले-चतर-इल्मदार-जानकार-और-अजान सभीतरहके लोग होतेहै, एकबनियोपरही क्याबातहै ? आचारभ्रष्ट-और-गुरुआज्ञाके बहारकौनहै इसबातकों आमजनश्वेतांबरकोमजानतीहै, श्रद्धामें फर्क किसनेडाला ? और अधर्ममें कौनडूबतहै ? इसवातकोंभी-आमलोग ब-खूबी जानतेहै,.. प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (१०) पर तेहरीरहै जिसकिसीकों अधिकजाननेकी इछाहोतो पत्रआनेसें पूर्वपरोके वचनसें-वा-आत्मारामजी प्रमुखके ग्रंथोसे सबुतीसहित शुद्धसिद्धांतरहस्य-नामकमासिकपत्रमें-जवाब दिया जायगा, (जवाब.) शुद्धसिद्धांतरहस्य-मासिकको निकलतेतो वर्षानुवर्ष बतीतहोगये,-न-मालूम ! उसकाजन्म कबहोगा, ?-उसमासिक जारीकरके अगरकोइ-महाराजश्रीआत्मारामजी-आनंदविजयजीके नाम या-हमारेपर कछ लिखेगा उसकों माकुलजवाब मिलतारहेगा, यहां जबाबकी कोइकमी-नहीहै, चाहे कोइ पूर्वधरोके वचनोसें-द्वादशांगीसें-या-पंचांगीसें जिसतरहपंशआनाहो-आवे, हमारेपास सबतरहकेमशाले तयार है, Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श) (२३) 3 (बीचबयान पर्युषणनिर्णयपत्रिका. पर्युषणनिर्णयपत्रिका पृष्ट (२) पर दलीलहै जैनपत्रद्वारा कइ महाशयोके पुछेहुवे प्रश्नोंकी भरमाररहतीहै उसमें जोकोइ सिद्धांतविपरीत बातहै उसको अज्ञमंदबुद्धिवालेभव्य-मान-न-लेवे. (जवाब.) खिलाफतेहरीरजैनसिद्धांतके एकभीबात विद्यासागर नही लिखते. लेखोकी भरमाररखना अकलकेताल्लुकहै जिनोने शास्त्रपढनेकी पुरीकसरत किइहोगी वहीलेखोंकी भरमार रखसकेगे. विद्यासागरके लेखोसें आमलोग फायदा उठगसकतेहै, क्योंकि उनके लेख इन्साफीहोतेहै, लेखकको अगर विद्यासागरके लेख नागवारगुजरतेहो तो उनकेलेखोसे परहेजकरे, विद्यासागरका कोइनुकशान नही, पर्युषणनिर्णयपत्रिका पृष्ट (१०) पर मजमूनहै आषाढसुदीपुनमका पर्युषणहै, वह उत्सर्ग है, अपवादसेतो भाद्रवसुद पंचमीका है, पृष्ट (१४) पर यहभी लिखाहै यह प्रश्न मणीलाल धोलेरावालोने न्यायरत्नकों पुछाथा, उसकों और हमारे लेखकों बांचकर निर्णयकरियेकि-सत्य-असत्य लेख कौनसा है, ? . . (जवाब.) बांचकर देखलिया, तुमारा लेख न्यायरत्नके लेखके सामने कमजोरहै,-न्यायरत्नने जो जैनपत्रमें मणिलाल धोलेरेवालोंके सवालोका जवाब दियाथा बहुतदुरुस्तथा, आजतक उसकों किसीने गलत नही फरमाया, लेखकने पूर्वपक्ष क्यौं-न-लिखा. ? मगर लिखेक्या ? जो बात सचहो उसको गलत कौनकहसकताहै, ?: अकलमंदोकों लाजिमहैजिसकाखंडनलिखे पूर्वपक्ष बतलाकर उत्तरपक्ष देवे, जैसाकि-हमने इसकिताबमें दियाहै, Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) पर्युषणनिर्णय पत्रिका पृष्ट (१६) पर बयानहै न्यायरत्ननाम धरातेहै वचन सब अन्यायके निकलतेहै, (जवाब.) अन्यायके वचन उनकेहै-जो-प्रतिक्रमणमें-तीनथुइकरनेकी प्ररुपणा करतेहै. और पाठ उसका पंचांगीमें बतलासकतेनही. न्यायरत्नका कोइहर्फ बेंइन्साफकानही. अगर न्यायरत्नके वचन अन्यायकेहोते-तो-उनकेलेखोंकी तरक्की मुल्कोंमें क्योंहोती,? न्यायकेलेखलिखतेहै जभीतो लोग उनकों न्यायरलकहतेहै, पर्युषण निर्णयपत्रिका पृष्ट (१७) पर तेहरीरहै, है ! सुज्ञपुरुषो !! तीर्थकरजेसेते यह निर्दोष बनता चाहतेहै. (जवाब.) बेशक ! तीर्थकरदेवोको-आचार्योकों-और-साधुओकों जोकि-धर्मके नायब थे-बुराकहनेवाले लोग-बुराकहतेहीथे. दु. निया कभी एकरंग-न-हुइ-न-होगी. इस बातमें न्यायरत्नने कुछगलत नहीलिखाथा, जिसवातकों इन्साफ सचफरमाताहो उसकों कौन गलतकहसकताहै, ? सोचो ! अभव्यजीव-जोकि-धर्मसे ऐतराजथे तीर्थकरदेवोंकों तीर्थकरतरीके नही मानतेथे, उससे तीर्थंकरोंका क्या नुकशानथा, ? इसीतरह न्यायरत्नकों कोइ न्यायरत्न-न-समझेतो न्यायरत्नका क्या नुकशानहै, ? कुछभीनही, पर्युषणनिर्यपत्रिका पृष्ट (१७) पर दलीलहै जो गीतार्थ-न-हो -और कहे-मैं-गीतार्थहु-वह-सित्तेरकोडाकोडी-सागरोपमकी स्थितिवाला महामोहनीकर्म उपार्जन करताहै, (जवाब.) जो-गीतार्थहै-और-गीतार्थ कहलावे उनको कोई महामोहनीकर्म नहीबंधता, महामोहनीकर्म-उनकों-बंधताहै-जो-अधर्मकों धर्मकहे, शास्त्रकेहुकमको कुबुल-न-करे-और खिलाफ हुकमतीर्थकरगणधरकेनयामजहबजारीकरे, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) पर्युषणनिर्णयपत्रिका पृष्ट (१८) पर मजमून है धर्मोपदेशकेलिये रैलविहार करना - शास्त्रमें कहा है तो क्या ! आत्मारामजीने उनग्रंथोको नहीदेखाथा, ? जो चलनेका खेद सहन किया, वह गाडीमें बेठकरजाना क्या नही जानतेथे, ? ४३ ( जवाब . ) बेशक ! वे - जानतेथे तभी तो - तीनथुइकी प्ररूपणाको गलत बतलागये. और चतुर्थस्तुतिनिर्णयभाग दुसरा - बनाकरजाहिरकरगये जिससे जिज्ञासुओका शकरफाहोगया, और श्री पूज्यजी - -श्रीधरणेंद्रसूरिजी जोकि - सनातन - जैन श्वेतांबर आम्नायमें चार स्तुतिपर पावंदथे प्रतिक्रमणमे तीनथुइकरना क्या ! -नही जानतेथे ? तीनथुइकी प्ररूपणाकरजाते ! मगर कैसेकरे, ? वे जैन आगम के माहितगारये, धर्मोपदेशदेनेके लिये नावमें बेठकरजाना शास्त्रोंमें क्यौं फरमाया, ? तीकरगणधर - जैन मुनियोंकों - एकहीजगह बेठेरहना फरमाजाते, मगर कैसे फरमावे ! धर्मोपदेशदेना बडे फायदेका कामहै, जो बात - शास्त्रों में सबुत पाइजातीहो - उसकों - अमलमें लाना कोइहर्जकी बात नही, श्रामण्यरहस्य पृष्ट (९) पर बयान है जिनश्रावकोने उन आत्मारामजीकों आचार्य माने है और उनकेही शिष्य आत्मारामजीकी नींदा लिखते है- उनको सर्वप्रश्न पुछते है. और महाप्रतिष्टासे बतलातेह वह सर्व अनाचार में पूरेपूरे पंडित है, ping ( जवाब . ) अनाचार में पुरेपुरे पंडित - वे - है - जो - खिलाफहुकम तीर्थकर गणधर के नयामजहब इजाद करते है, सवाल पुछनेवाले जिसको ज्ञानवान् समझतेहोगे उनहीकों सवाल पुछतेहोगे. किसीकों कोइसवाल पुछे और उसकेलिये कोई एतराजहो-यहभी एकजमानेकी खुबीसमझो, अगर किसीका ख्यालहो विद्यासागर रैलमें बैठते है फिरभी लोगउनकों क्यों सवाल पुछते है ? तो सौचो ! यहबात अकलके ताल्लुक है, जिसकों Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) जोकोइ अकलमंद समझताहै उसीकों सवाल पुछताहै, विद्यासागर किसीकों कहने नहोजाते तुमहमकों सवालपुछो, जिसकों जरुरत पडतीहै पुछता है, (२४) E3 ( दरबयान पांचसवालोका.) पर्युषणनिर्णयपत्रिका पृष्ट (२३) पर बयानहै, श्वेतांबरसंघसाधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाकों-यत्किंचित् पृछा,-(यानी) कुछसवाल पुछते है. . १. सवाल पहला,-पंचांगी किसकों कहतेहै ? और प्रकरण उस पंचार्गाके अंतर्गतहै-या-नही, ? (जवाब.) सूत्र-भाष्य-टीका-नियुक्ति-और-चूर्णि-इनको पं चांगी कहतेहै, और प्रकरणग्रंथ पंचांगीके अंतर्गतहै, ? २. सवाल दूसरा,-जो प्रकरणादि पंचांगीसे-न-मिलतेहो-तो -मानना-कि-नही, ? (जवाब.) कौनकौनसे प्रकरण पंचांगीसें नही मिलते ? जा. हिरकरो ! जवाब देयगें, ३. सवाल तीसरा, यदि शास्त्रकारही परस्पर विरोध करते हो-तो-किससे निर्णय करना ? (जवाब.) अगर समझनेवालोंकी समझकाही फर्क हो-तो किसका दोष कहना, ४. सवाल चोथा,-श्रावक समुदाय बेगहो-वहां-स्त्री-भाषण देवे-या नहीं? Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (जवाब.) औरतोके सामनेही-औरत भाषण देवे, ५, सवाल पांचमा-अशठाचरणाकों अंगीकार करनाकि-न ही ? जैसेकि-रैलविहार-उपानह पहनना-आधाकर्मी-आ हार खाना, अतर-तेल-फुलेल लगाना-इत्यादि, (जवाब. ) प्रतिक्रमणमे तीनथुइकरना और चोथीथुइको वीतरागदेवकी वैरिणी कहना-किसजैनशास्त्रमे लिखाहै ? अपनीश्रद्धाके अनुरागी श्रावकोके शाथ रास्तेमें जैनमुनिकों बिहारकरना,-श्रावकलोग मकानकिराये लेवे उसमें जैन मुनिको ठहरना, इनबातोंकों कोइ सौचलेवेतो उसकाशक खुद-ब-खुद रफाहोसकेगा, नावमें बेठनेका जैनमुनिकों हुकमहै-या-नही ? इसबातकोंभी कोई अपने खयालशरीफमें लावे, उपानह पहननेका पाठ प्रवचनप्तारोद्धारका इस किताबमें अवलदेचुकेहै, पढाहोगा. आधाकर्मी-आहारखाना-जैनमुनियोकेलिये मनाहै, तेलकेबारेमें अगरकिसी मुनिकों बीमारीका सबबहो तो-शरीरपर लगाना फर्ज है, शतपाक-सहस्रपाक-और-लक्षपाक वगेरा तेल पेस्तरहोतेथे आजकल-चंदन-बादाम-आवला-सीरकी-खोपरेल वगेराके तेल बीमारीकी हालतमें कइ जैनमुनि शरीरपर लगातेभी है, पांचसवालोके जवाब खतम हुके, औरभी जिसकों जोकछ पुछनाहो पुछे, हमारे यहां इन्साफके लेख हरवख्त तयार मिलेगे, ऐसा कोइ-न-समझकि-विद्यासागर चुपरहे. इन्साफ-वहचीजहै-जिसके सामने बडेबडे आलिम .. और-फाजिल चकराये जाते है.. मुनिकों बीमारनय कोलिये मनाहै, ना आधाकर्मी आ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (२५) (जवाब तीनस्तुतिप्राचीनता किताबका,) किताव-तीनस्तुति प्राचीनता नामसे जो जावरेवालोंकी तर्फसे छपकर जाहिरहुइहै, जिसके पंने कुल्ल (१४) है उसके अवलपृष्टपर तेहरीरहै,-आशारहित धर्मानुष्टान स्वीकारकरना, मोक्षसेलेकर सर्वत्र वस्तुओमें मुनिलोगोको निस्पृहता रखना इसीका नाम उत्तममुनिहै, (जवाब.) लेखक जिसकों गुरुमानतेहै-वे-उत्तम मुनिकी पंक्तिमें है-या-मध्यममें ? अगर कहाजाय उत्तममुनिकी पंक्तिमें है-तो-बतलाना चाहिये शुभहशामके प्रतिक्रमणमें-देवाणंआसायणाए-देवीणं आसायणाए-ऐसापाठ क्यों हरहमेश बोलतेहै. ? देखो ! (आवश्यक सूत्रका मूल पाठ यहां देतेहै.) "देवाणं आसायणाए-देवीणं आसायणाए-" आवआवश्यकसूत्रकीटीकाकापाठ-आशातनया अवहीलनया -याकर्मबंधरुपो-अतिचारः कृतः-तस्मात्-प्रतिक्रमामिनिवर्ते-इत्यर्थः खास आवश्यकसूत्रका मूल-और उसकी टीकाका पाठ फरमाताहैकि-मुनिप्रतिक्रमणमें ऐसापाठबोले मैनेदेवताकी और देवीकी आशातनाकिइहो-तो-उससेमैं-अतिक्रमताहुं-अर्थात् निवर्तनहोताहुं. (यानी) पीछा हठताहुँ, कहिये ! इसपाठका मतलब क्या हुवा ? और इसपाठकों सचमानना-या-जूठ ? अब कहनेवालोंकी निस्पृहता कहां रही ?-अगर आशारहित धर्मानुष्टान करना और मोक्षसेलेकर सर्वत्र वस्तुओमें निस्पृहतारखना मंजुरहै-तो-यहपाठ प्रतिक्रमणमें क्यों बोलते हो ? मुहसें कहनाही जानतेहो-या-कुछ सबुतभीरखतेहो ?-जैसे चोथीथुइको वीतरागदेवकी वैरिणी कहतेहो इसपाठकोंभी वीतरागदेववैरी कहदो, तमाममुनिलोग इसपाठकों प्रतिक्रमणमें बोलतेहै, किसकी Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) ताकातहै इसपाठकों गलत कहसके, ? चाहे कोइ हजारचतराइकरे मगर शास्त्रकेसामने किसीकीचतराइ नही चलशकती. मुंहसेकहतेहो-मुनिलोगोंकों निस्पृहता रखना चाहिये-मगरदेखो ! आवश्यकसूत्रके मूलपाठमें तीर्थकर गणधर क्या ! फरमागयेहै ? उसपर खयालकरो, देवीदेवताकी चोथीथुइकेलिये तो इतनी बातेंबनातेहो फिर इसपाठकों प्रतिक्रमणमें हरहमेश क्यों बोलतेहो ? तीनस्तुतिप्राचीनताकिताब सफह अवलपरलिखाहै आजकलश्रावकोंमे ऐसाभ्रम हुवाहै, तीनस्तुतिकामत तीसवर्षसे प्रचलितहुवा, और राजेंद्रसरिजीनेनिकालाहै, क्यौं ! नहो ! ! क्योंकि-आजकल पीतांबरोंका अधिकप्रचारहोनेसे होनाहीचाहिये, ___ (जवाब.) पीतांबरोंका अधिकप्रचारहीतो लेखककों नागवार गुजरताहोगा, लेखकबहुतही जोरलगातेहै मगर पीतांबर संवेगीसाधुलोग उनका जोर चलनेनहीदेते, जहांजहां सवेगीसाधुमहाराजोका विचरनाहोताहै वहांवहां तीनथुइका फैलाव होसकतानही, बल्किन् ! कमीहोता है. देखलो महाराजश्री झवेरसागरजीने मुल्कमालवेमें तीनथुइकेप्रचारकोरोका, और ब-मुकाम रतलाममें मध्यस्थोंकीसभाकरके तीनथुइका परामर्शकिया, महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीने-मुल्क गुजराततर्फ-चतुर्थस्तुति निर्णयकिताबबनाकर तीनथुइके प्रचारकोंरोका, और विद्यासागर ब-जरीये अपनीकलमकेरोकरहेहै. जिसकीताकातहोसामने आवे और प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरना किसीमूत्रकी पंचांगीमें दिखलावे, पीतांबरोंकानाम लेखककों अछा-न-लगताहोगा, ! मगर खयालकरे ! पीतांवरोनेक्याक्याकरदिखलायाहैसुरतमेभी जोचारस्तुतिवालोकीतरकीरही बदौलतपीतांबरोंहीकीरही, फिरलेखक पैसाक्यौं-न-लिखे ? लिखेहीलि, खेमगर यादरहे पीतांवरनामखिलाफकानुनजैनशास्त्रकेनही, जैनसाधुकों नयाकपडामिलेतों-कथा-चुनावगेराके रंगसेरंगलेवे, यहवात मिशीथसूत्रके Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) फरमानसेंसहीहै, किसकीताकातहै निशीथसूत्रकोंजूठा कहसके ? मुल्कमालवेमें-उज्जेन-इंदोर-रतलाम-मंदसौर वगेराजो बडेशहेरहैवहां तीनथुइकाप्रचार बदौलत-पीतांबरोंहीकीरुका, रतलाममें (७००) घर सनातनजैनश्वेतांबर-चारस्तुति माननेवालोके मौजरहे वहां करीब (५०) घर तीनथुइवालोकेहोगें, इंदोर-उज्जेनमें-बिल्कुलतीनथुइका प्रचार नहीरहा, मंदसोर-सो-उसमें चारस्तुतिमाननेवालोके घर करीब (१००) है, वहां तीनथुइवालोके घर करीब पचीसतीसहोगें, खयालकरो ! पीतांबरोका कैसा प्रभावहै, ? इसीसेकहाजाताहैकि-जगहजगहपर पीतांबरसंवेगीसाधुमहाराजही तीनथुइके प्रचारकों रोकतेहै,-और-प्रतिपक्षीयोंकों उनकानाम नागवारगुजरताहै, और यहबात बहुतसचहैकि-प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरनेका-मजहब (३०) वर्षसेचला,-सत्पक्षग्राहीकेनामसे जो-"महाराजश्री राजेंद्रसरिजीकी त्रणथुइ-अने-चारथुइसंबंधीचर्चा" इस्तिहार -सुरतविक्टोरिया-प्रेस-तारिख २५-७-१९०३ रौज छपाथा, उसमें लिखाहै राजेंद्रमुरिजीनेबधास्त्रनियुक्तिभाष्य-चूर्णिवृत्तिग्रंथोनावचनाधारे चैत्यवंदनमा त्रणजथुइ करवानो पुनरोद्धार किधोछे, देखिये ! चैत्यवंदनमें तीनथुइ करनेका पुनरोद्धारकरना इसमें कबुलरखाहै-या-नही ? अगरकहोगेरखाहै-तो-फिरवात क्याहुइ,? पुनरोद्धारभी क्यों कुबुलरखना था ?-जवानी जमाखर्चसें कामनहीचलेगा, यादरहे ! किसीजैनसूत्रमें या-उसकीपंचांगीमें नहीलिखाकि-प्रतिक्रमणमें तीनथुइ करना, अगर लिखाहै तो कोइ पाठ बतलावे, (शेयर.) कोरीबातोसें कामनहीचलता-जैसेपानीसेंदीपनहीजलता, कोरीबातोसेंबातनहीरहती-जैसे कागजकीनावनहीवहती,१ त्रीनस्तुतिप्राचीनताकिताबसफह (२) पर-लेखकलिखतेहैकि Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) जैनोमें किसीरागीद्वेषीदेवोकीपूजानहाहोती, वीतरागभगवानकीपूजा निकामभावसेंहोतीहै,रागीद्वेषीदेवोंकीपूजाकरकेसंसारिक-वस्तुमांगनेमेलगरहना-जैनशास्त्र मनाकरताहै, (जवाब.) हमलोग-रागीद्वेषीदेवोंकापूजाकभी-नहीकरते-औरन-संसारिक-वस्तुमांगनेमें लगेरहतेहै, हमारेजैनमजहबमेंवीतरागभगवान्हीकी-निष्कामभावसेंपूजाहोतीहै,-लेखक अगर जैनमजहबमें पावंदहै-तो-उपर लिखीहुइबातकों कुबुलकरे, और इसबातपरदाफत उनकेपक्षानुथायी-मुनिलोग-प्रतिक्रमणमें बेठकर देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए पाठ हरहमेश बोलतेहै-या-नही ? अगरबोलतेहै-तो-इसकी क्या वजहहै ? और इसवातकीभी तलाशकरेकि-श्रुतदेवीका-और-क्षेत्रदेवीका कायोत्सर्ग करतेहै-या नही ?-अगर करतेहै-तो-उसका क्यासबबहै ? इसका खुलासा जाहिरकरे, हमलोग घरकभेदीहै,कोइ हजार चतराइकरे मगर अकलमंदोके सामने एकभी नही चलसकती, तीनस्तुतिप्राचीनता-किताब-सफह-(२) पर लेखक तेहरीरकरतेहैकि-कितनेकदेव-जैनशाखमें अधिष्ठातातरीके मानेजातेहै,-जैनोमें-या-जैनशास्त्रपर खामीआतीहै-तब-वे-अधिष्टायकदेव-रक्षाकरतेहै, इसपकारसम्यकदृष्टि देवोकी-स्तुति-किसीकिसीवख्त-करनीपडतीहै, (जवाब.) किसीकिसीवख्तभी सम्यक्दृष्टिदेवोकी स्तुतिकरना क्यौं मंजूररखतहो, ? तुमतो निस्पृहतारखनेवालेठहरे, फिर सम्यक्हष्टिदेवोंकि स्तुतिकरके अपनी-निस्पृहता क्यों खोतेहो ? जब निस्पृहताका झंडा उठायाथा-तो-पुरा उठानाथा, और आमलोगोंका मालू. महोकि-देखिये ! यहां लेखकमहाशयने अधिष्ठातादेवोंको रक्षाकरने Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०. (त्रिस्तुतिपरामर्श.) वालेभी माने, और यहभी-बातमंजुररखीकि-किसीकिसीवख्तसम्यकदृष्टिदेवोंकीस्तुति करनापडतीहै, हमपुछतेहै तकलीफके वख्तभी क्यों उनदेवोंकी स्तुतिकरना, पेस्तर इसीतीनस्तुतिप्राचीनता-किताबके सफहदूसरेपर लिखतेहो-इष्टफलकीसिद्धि-शुभकर्माधीनहै, और यहांकहतेहो कभीकभी उनअधिष्टायकदेवोकी स्तुतिकरनाभीपडतीहै, क्या ! खूबलेखकहै-जो-अपनेही-लेखसें-आप लाजवाबहोजाय, तीनस्तुतिप्राचीनताकिताब-सफह (२) पर लेखकदलील करतेहै कल्पनियुक्तिमेकहाहै इसलोकमें चक्रबादिभोग-परलोकमें इंद्र-समानिकादिपद-और-तीर्थकर पदवीकेलियेभी आशा-न-करनाचाहिये, (जवाब.) कौन कहताहैकरो ! औरफिरकभीकभीसम्यकदृष्टिदेवोंस्तुतिकरनाभी क्यों मंजुररखतेहो ? निस्पृहवननाथा-तो-पुरेहीबनते ! एकजगहकुबुलकरना-औरएकजगह-न-करना किसघरका न्याय है ? मालूमहोगइ आपलोगोंकी निस्पृहता ? और यहभीबतलाना चाहिये दीक्षादेतेवख्तजोविधि-कराइजातीहै-उसमेंशासनदेवता और वैयावृत्यकरादिकोंकाकायोत्सर्ग क्यौंकरतेहो ? इसकोंभीछोडदो, क्योंकिआपलोगतो निस्पृहताका झंडा उठाये हुवेहो उसमें खललआयमा, ___ तीनस्तुति प्राचीनताकिताबसफह (१३) पर मजमूनहैकि-यदिभगवान्को देवदेवीयोंकीप्रार्थनाअभिष्टहोतीतो बडेबडेसूर्य-चंद्र-इंद्र-इशानादिदेवोंका वागनुष्टानवताकर लौकिकवस्तुओंकीकी दर्शाते, (जवाब). अगरतीर्थकरगणधरोंको देवदेवीयोंकीबेंअदवीकराना मंजूरहोतातो स्थानांगमूत्रके पांचवेस्थानपर सम्यकदृष्टिदेवताओंका-अवर्णवाद बोलनेसेदुर्लभवोधीपना हासिलहोना क्योंफरमागये? क्या ? इसपाठकों कोइ-जूठ-कहसकताहै, ? अगर लेखककी ताकातहो-तो-क Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) हदेवे यह पाठभी जूठहै, खयालकरो? यह वाग्-अनुष्टानहुवा-या-नही.? और लौकिकवस्तुओकी सिद्धिकौनचाहताहै ? इसका खुलासा जाहेर करे, तीनस्तुतिप्राचीनताकिताबसफह (४) पर बयानहैकि-असहिज्ज-देवासुर-नाग-सुवनजख्खरख्वस-किन्नरकिंपुरिसगरुलगंधवमहोरगाइ देवगण-इत्यादि,अर्थात् देवअसुरादिकोकीसहायता-न लेनेवाले श्रावककहलातेहै, और आजकल अतिनिकृष्टदेवोंकीउपासनामें अतिदुर्लभ श्रावककुलबरबादकरतेहै, (जवाब.) अगर देवताओकीसहायलेनामंजुरनहीथातो-पेस्तर क्यौं कुबुलकरचुकेकि-सम्यकदृष्टिदेवोंकी स्तुतिकभी कभीकरनापडतीहै,? सहायताहीनहीलेना तो फिरस्तुति क्यों करना ? सहायतान-लेनेवालेश्रावककहलातेहै इसबातपर पावंदहो-तो-फिर आपकौनहुवे? इसपरखयालकिजिये ! गोष्टामाहिल-निन्हवके-अधिकारमेंदेखो' आवश्यक-वृत्तिका-पाठहैकि-जब-गोष्टामाहिलनेअसत्यप्रा . संत्रचतुर्विधसंघनेमिलकरकायोत्सर्गकिया, और देवर .सपाकिइ तब विदहक्षेत्रमेंजाकरभगवान्कोपूछोकि-दुर्बलि ..कोबुलाकरकहा-महाकुछकहताहै-वहबातसचहै ? या कापुष्पाचार्य वगेरासंघ-जोवतानेजाकरतीर्थकरभगवान शमाहिल कहताहै-वह-सचहै ? दे " . को छा-और-आकरकहाकि-संघ-सचाहै, गा (पाठ-आवश्यक-सूत्रवृत्तिका.) एतच्चाश्रद्दधाने-तस्मिन्-सर्वसंघेनमिलित्वाकायो सर्गेण देवता-आकृष्टा, सा-आगता, उवाच-आदिशतुसंघा-इक्तासंघेन-गत्वातीर्थकर पूछ ! यदुर्बलिकापुष्पाचार्य Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) प्रमुख संघो वक्ति तत्सत्यं - उत - गोष्टामाहिलोक्तमिति-तत्साहाय्यायच -संघः कायोत्सर्गेणस्थितः --सा--तीर्थकरंष्पृष्ट्वा - आगताउवाचसंघः सम्यक्वादी- इतरोमिथ्यावादीनिन्हवःउसपाठकामाइनाउपर दिखला चुकेहै, देखिये ! इसमें संघने देवता बोलाने के लिये कायोत्सर्ग किया है - या नही ? अगर किया है - तो - बतलावे दुर्बलिकापुष्पजैनाचार्य वगेरासंघकों - आराधक कहना - या - - विराधक ? लेखक लिखता है कि देवता की सहायता - न-लेनवाले श्रावक कहलाते थे - तो अब बतलावे चतुर्विधसंघ में श्रावक है-या- नही ? - और उनश्रावकोंकों श्रावकमानते हो - या नही ? सबुतहुवा लेखककोरीबातें बनानेवाले है, - सुभद्रा - सतीने - देवताकीसहाय्यसे चंपानगरी के दरवाजे खोलेथे, जिस बातकों आमजैनसंघ - जानता है, - औरं - सुभद्रा - सोलह-सतीयों में एकसतीथी - यहभी किसीजैनसेंछीपीबातनही, बतलानाचाहिये ! अब लेखक - शुभदासतीकों-श्राविका क हते हैं - या नही ? तीनस्तुति प्राचीनता किताबसफह ( ४ ) पर तेहरीरहै कि - बीतराग भगवान की वैरिणी - व्यंतरदेवो कीपूजाका मूल - चोथीथुइ है, क्योंकि पहली - पेंतालीस आगमोकी पंचांगी में तीनही स्तुति कहीं है, ( जवाब . ) किसीजैन आगकी पंचांगीमेंप्रतिक्रमणके वख्त तीनथुइ करना नही कही, और यहभी किसी जैन आगमकी पंचांगीमें-नहीलिखाकि - चोथीथुइ - वीतरागदेवकी वैरिणी है, अगर कोइ तीनथुइमाननेवालोमें जैन आगमकी पंचांगीका इल्मरखताहो- सामने आवे, और बतलावेकि- किसपंचांग में चोथीथुइ वीतरागदेवकी वैरिणी लिखिहै ? और किस पंचांगीमें लिखा कि- प्रतिक्रमण में तीनथुइकरना, अगर इसबात Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) कों कोइ-न-बतला सके-तो-सबुतहोगाकि-नाहक ! हठवाद करतेहै-और पाठ बतला सकते नही, किताब-तीनस्तुति प्राचीनता-सफह ( ४ ) पर दलीलहै पीछेसे कोइ कोइ आचार्योके विचारमें आयाकि व्यंतरदेव इससमय आराधनेमेंआवेगे तो शासनकी रक्षाहोगी. और बौद्धादिक अन्यदर्शनीहै वे इसप्रकार चमत्कार देखातेहै-तो-अपने अनुयायीजो श्रावकहै उनके लिये जोकुछ उपाय-न-विचाराजायगा तो कितनेक दिनोमें सम्यक्तकों खो बैठेगे, एसा बिचारकरके हरिभद्रमूरिजीने ललितविस्तराग्रंथमें व्यंतरदेवोकी स्तुति लिखी. (जवाब.) आचार्य हरिभद्रमुरिजीने चोथीथुइ नही बनाइ, बल्कि, पहिलेसे है, अगर प्रतिक्रमणमें वैआवच्चगराणंसंतिगराणं सम्मदिठिसमाहिगराणं, पाठको-मंजुररखतेहो-तो-चोथीथुइ सबुत हुइ, अगर मंजुर नहीरखोहो-तो-कहदो यहपाठभी हमनहींमानते, जैसे चोथीथुइ इनकारहुइ वैयावचाराणं-पाठकोंभी इनकारकरदो, खयाल करो! अगर जैनशाखोमें चोथीथुइ मंजुर-न-होतीतो-बैयावत्यकरनेवालों काकार्योत्सर्ग करनाकैसे मंजुरहोता, अगरकोइकहे चोथीथुइ पीछेसे • बनाइहै-तो-बतलावे ! तीर्थकरगणधरोकी बनाइहुइ तीनथुइकी त्रिपुटी कौनकौनसीहै ? जैसे चारथुइकी चोकडी मौजूदहै-वैसे तीनथुइको त्रिपुटीभी होनाचाहिये, मगरकैसेहो ? जोबातनयीहो उसका सबुतकहांसे आवे ? और वगेरसबुतके कोइबात असरनही दिखलासकती, हरशख्शकों लाजिमहै अपनी तेहरीरका सबुतबयानकरे, आचार्यहरिभद्रसूरिजीने कोइनयीबात बयाननही फरमाइ, जोकदीमसे चलीआतीथी उसीको फरमाइहै, हरखासो आमकों वाजहहो किसीजैनशास्त्रमें नहीं लिखा चोथीथुइ वीतरागदेवकी वैरिणीहै, विनासबुत कोइबात बयान Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ( त्रिस्तुति परामर्श . ) करना - अकलमंदीका कामनही, " सवथ्थचेइए थुइ तिन्नि- तिन्नि-वाकes " - यहपाठ मंदिर के बारेमें है, चैत्यपरिपाटी करनेकों जाना - उस बख्त अगर मंदिर बहुत हो - और - वख्तथोडाहो - तो एकस्तुतिभी पढना कहा, फिर एक थुकी णाभी करना चाहिये, इसबखतजोचर्चा चल रही है प्रतिक्रमणकेबारेमें चल रही है, प्रतिक्रमणकीजगह मंदिर काहवाला देना कौन इन्साफकी बात है ? दूसरी जगहका सबुत दुसरीज महदेना और अपनीबातकों सचकरने की कौशिश करना शिवाय पक्षपातके दुसरानही कहंशकते. अकलमंदलोग ऐसी पेंचदार बातकों हर्गिज ! मंजूर नही करेंगे, हमलोगोकों आपका सबखुलासा हालमालूमहै, जैनतत्वादर्शमें - और - श्राद्धविधिमें भी मंदिर की बात है, प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरनेका वहांको पाठनही, प्रतिपक्षीके दियेहुवे सबुतगेर मुमकीन है, एक जगहतो आचार्य हरिभद्रमूरिकों चोथीथुइ-नयीबयान करनेवाले बतलातेहो - तो फिर उनके बनायेहुवे दूसरेशास्त्रोंकों क्यों मंजुररखतेहो ? बडे अफशोषकी बात है अपनी दलील - सचकरनेके लिये आदमी क्या क्या ! बातें जाहिर करता है - जोकि - अकलमंदोके खयालमें दुरुस्त नही आसकती, - किताब - तीनस्तुतिप्राचीनता - पृष्ट ( ५ ) पर मजमन है, इस प्रकार कइ आचार्योंके प्रयत्नसें देशमात्रमें चारस्तुति प्रसरी, जव कोइ नयामजहब निकलेतो - खूब फैलता है, और जुनेमजहबकी कदरनहीरहती. ( जवाब ) कौन कहता है आचार्यो के प्रयत्नसे चोथीथुइ चली है, ? चारथुइ तीर्थकरोके वख्तसे चली आती है, अगर कदीमसें-न-होतीतो - वैयावच्चगराणका पाठ क्यौंहोता ! पक्षपातके चश्मेकों उतारकर कोइदेखे, सबुतहुवा चोथीथुइ कदीमसें है, एकशख्शके: प्रयत्नसे तीनथुइकी प्ररूपणा शुरुहुइ, मगर वहज्यादे चलसकी नही, सुरत विकटोरिया प्रेसमें सत्यक्षग्राहीके नामसेछपे हुवे इस्तिहारमें कुबुलरखा Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) है कि-" राजेंद्रसूरिजीने चैत्यवंदनमा त्रणथुइ करवानो पुनरोद्धारकिधोछे," सोचो ! फिर बातक्याहुई, ? युतो कैसे कोई कबुल करे किउनोने नयामत जारी कियाहै, चारस्तुतिका मानना कदीमसें है, और उसीसबबसे वह तमाममुल्कामे जारीहै और उसकी कदरभीहै. हाथकंकनकों आरसी क्या? किताब-तीनस्तुति प्राचीनता-पृष्ट ( ६ ) बयानहै शास्त्रोमें जगहजगहपर तीनस्तुति लिखी जिसकों पीतांबरी संवेगीलोग नवीन कहतेहै, (जवाब.) जगहजगहपरतो क्या ! एकजगहपरभी प्रतिक्रमणमें तीनस्तुतिकरना नही लिखा, अगर लिखाहै-तो-कोई-शास्त्रसबुतसे पेंश आवे, पीतांबरी संवेगीलोग ठीलकहतेहै,-यादरहे ! दुसरीजगहकासबुत दूसरीजगह कारआमद नहीहोसकता, पीत-अंवरयानी-पीलेकपडेरखनाखिलाफकानुनशास्त्रके नही, निशीथसूत्रका हवाला अवलदेचुकेहै कि-नयेवस्त्रकों जैनमुनि-कथे-चुने वगेराका रंगदेव, जैसे श्वेतवस्त्र शास्त्रमें कहेहै वैसेरंगनाभीकहाहै, तीनस्तुतिप्राचीनताकिताब-सफह (७) पर तेहरीरहै-भद्रबाहुस्वामी आवस्यकनियुक्तिमेंलिखतेहे, आयंमि चेइहरं-गंतूणचेइयाई वंदिज्जा, अजियथयं तिन्निथुइ-परिहायंतिव्वकहंति, मृतकसाधुको परठकरलोटतेवख्त चैत्यमेंजाय, औरवहां चैत्यवंदनकरके अजितशांति-स्तव-कहे, औरफिर वर्द्धमानतीनस्तुति-हीयमानकहे, _ (जवाब.) यह सबुत प्रतिक्रमणका नहीहै, चर्चा चलरहीहै प्रतिक्रमणकी-और-सबुतदेतेहो-मृतकसाधुको परठकर चैत्यवंदनकरते वख्तका-यहकौन इन्साफकी बातहै ? प्रतिक्रमणकी जगह मंदिरकाहवालादेकर कहतेहोकि-सबजगह तीनथुइलिखिहै, क्या ! खूबबातहै? Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) मृतकसाधुको पहुचाकरमंदिरगये-वहां-अजितशांतिस्तव-कहकर वर्द्धमानतीनथुइ हीयमानकही, और कहदिया-तीनथुइ-सबुतहुइ, मगरयादरहे ! इसपाठमें प्रतिक्रमणका नामनिशानभी-नहीहै, कोइमहाशय यह-न-समझे आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामीने आवस्यकनियुक्तिमें प्रतिक्रमणकेलिये तीनथुइ कहीहै, तीनस्तुतिपाचीनताकिताब पृष्ट (७) पर दलीलहैकि-कल्पहभाष्यमेंभी तीनस्तुतिकरनी कही. (पाठ) चेइघरुवस्सए-वाआयम्मुस्सगा गुरुसमीवंमि, अविहिं विगिंचणयाए-संतिनिमित्तं च थवो तथ्थ, १, परिहायमाणियाउ-तिनिथुइओ हवंति नियमेणं-अजियसंतिथ्थग-माझ्याउ कमसो तहिंनेउ, २, .. (माइना) मंदिरमें-या-उपाश्रयमें आकर गुरुकेसामने अविधि पारिठावनीका कायोत्सर्गकरना और शांतिनिमित्त स्तोत्रपढना. बाद उसके हीयमानतीनस्तुतिपढना, और फिर अजितशांतिस्तव पढना. - (जवाब.) देखिये ! इसमेंभी वहीबातहैकि-मंदिरऔर उपाश्रयमें आकर अविधिपारिष्टापनिकाकेलिये कार्योत्सर्गकरे शांतिनिमित्त स्तोत्र पढे और हीयमानतीनस्तुति कहे, प्रतिक्रमणकाइसमें कोइजिक्र नही. नाहक ! मंदिरका हवाला प्रतिक्रमणकी बातमें देतेहै और कहतेहै देखो ! तीनथुइ लिखीहै, मगर तारीफ जब है अगर प्रतिक्रमणमें तीनथुइ करनेकापाठ किसीसूत्र-या-पंचांगीका दिखलादो. जिससे मतलबहासिलहो, इनबातोंसें इल्मीयत जाहिर नहीहोती, लेखक अगर अपनी बातको सचसमझताहो-तो-प्रतिक्रमणकेबारेमें कोइसबुतलावे, मंदिरमेंतो एकस्तुतिपहनेकाभी पाठहै फिर एकस्तुतिकी प्ररुपणाभी शुरु करो, Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (२६) (आचार्य-भद्रबाहुस्वामीने-आवश्यक नियुक्तिमेंप्रतिक्रमणकेवख्ततीनथुई ___ करना नहीं कहा,-) तीनस्तुति प्राचीनताकिताब-सफह (८) पर दलीलहै वीरसंवत् (१५४) में महाराज भद्रबाहुस्वामीने नियुक्तिवनाइ जिसकों आज (२२७७) वर्षसे अधिक होनेको आयेतो कहिये ! (३०) वर्षसे तीनथुइ निकसी-यह-कहना उत्सूत्रहै-या-नहीं, ? (जवाब.) कौनकहताहै आवश्यकनियुक्तिमें प्रतिक्रमणके वख्त तीनथुइकही, अगर कहीहो-तो-कोइवतालावे,-वहां-मृतकसाधुकेकलेवरकों परठकर आनेके वख्तकी बातहै-और-लेखकअपनीबातकों सचकरनेकी कोशिश करताहै, मगर यादरहे ! अकलमंदलोग इसवातको कभी मंजुर-न-करेगें, प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरना इसनियुक्तिमें नहीं कहा, अगर कहाहै-तो पाठबतलावेलेखककेही दियेहुवे सबुतोसे मालूमहोगयाकि-उनकेपासकोइ पुख्तासबुतनहीहै. हरजगहमंदिरकीवात अगाडी लातहै, यह नही मालमकि-मंदिरमें तो एकस्तुतिभी करना कहीहै, फिरतीनथुइकाही क्या निश्चयरहा, (३०) वर्षसें प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरनेकी प्ररुपणाशुरुहुइ-यहषातबहुतसचहै, इसमें कोइगलतवात नही, लेखकलिखतेहै नियुक्तिकों बने आज (२२७७) वर्षहुवे-हमकहतेहै इससे तुमारीबात क्या सबुतहुइ ? अगर उसमेंप्रतिक्रमणकेवख्त तीनथुइ करनेका पाठ वतलाते-तो-तुमारीबहादूरीथी, मगर बतलाते कहांसे ? उसमेतो प्रतिक्रमणकानामनिशानभीनही, अमर कोइ लाखचतराइ खैले, मगर अकलमंदोंके सामने एकभी-नहीं चलसकती, और हमतो घरके भेदी ठहरे,-हमारे सामने क्या ! कोइ कहेगा,-किसीकमअकलकों-यहबात-समझाना, हम-सब समझेहुवेबैठेहै, Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) तीनस्तुति प्राचीनताकिताब-सफह (८) पर मजमूनहकि-महाराज-राजेंद्रसारजीने तीनथइ तीसवर्षसेनिकालीयहकहना मूर्खाका कामहै, (जवाब.) आवश्यकनियुक्तिमे प्रतिक्रमणकेवख्त-तीनथुइकहीहै ऐसा कहना अज्ञानीयोंकाकामहै, भद्रबाहुस्वामीने उक्तनियुक्तिमें एसा नही कहा, चोथीथुइकों वीतरागदेवकीवैरिणीकहना-बडेकमअकलोंका-कामहै, क्योंकिकिसीसूत्रकीपंचागीमेंऐसानहीकहा, अगरकहाहै-तो-कोइ पाठवतलावे, चोथीथुइ आचार्यश्रीहरिभद्रसूरिजीनेचलाइ, यहकहनाभीअल्पज्ञोकाकामहै, अगर कोइ तीनथुइकोमंजुररखनेवाला इसबातका सबुतरखताहो. पेशआवे, कोरीबातोंसे काम नहीं चलेगा, इनहीसबुतोंसें कहनेवालेकहतेहैकि-प्रतिक्रमणमें-तीनथुइकरना किसीशास्त्रमेंनहीलिखा, और तीसवर्षसे चलाहै,-खयाल करो ! राजेंद्रमुरिजीजब-श्रीपूज्य-श्रीधरणेंद्रसूरिजीकेशाथ विचरतेथे-प्रतिक्रमणमें कितनी थुइकरतेथे ? लेखक इसबातकों जाहेरकरे, और एकजैनधुके नामसें-सुरत-खुदावक्षप्रेस-नाणावठके पतेसेजो "जाहिरखबर" छपीथी, उसकोंदेखे, उसमें जहां-चुनीलालजी छगनलालजीने राजेंद्रसूरिकों पुछाहैर्कि-आपका गछ क्या है ? तब मूरिजीनेकहाहै-"हवणां सुधर्म गछछे "-यानी इसवख्त हमारा सुधर्मगछहै, इससे सबुतहुवा पेस्तरकोइ औरगछहोगा, हाक-पतिक्रमण जेंद्रसरिज हालखा, और तीनस्तुतिप्रीचानता किताब-सफह (९) पर बयानहैकि-तीनस्तुति-जबतककही जाय तबतकमंदिरमें ठहरनाचाहिये, कारणपरत्व विशेषभी ठहरना, (जवाब.) खूबकहा ! घूमघामकर उसीठिकाने आये, जोकि Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुतिपरामर्श . ) हमारा कहना था, हमभी - तो यही कहते थे, मंदिर की बात है, प्रतिक्रमणकी ही, कहिये ? इसमे आपने नयी इल्मीयत क्या ! दिखलाई ? जिससे हमारा इतमीनानहो, क्या ! इसी भरुसेकहतेथे पंचांग में सबजगह तीनथुइलिखी है, हम समझतेथे कोई बडासबुतरखते होगे. मगर मालूम होगये आपलोगोके सबुत ! हरजगह मंदिरकाही जिक्रलातेहो, और प्रतिक्रमण के बारे में: कोइसबुत नहो देसकते, यादरहे ! विद्यासागरकी दलीलकों - तोडना - मोतीचूरका लड्डु - नहींहै - वल्के ! लोहकेचनें है, आपलोगोकेदिये हुवे पंचांगीके सबुत देखलिये, तीनथुइका शौर उडारखा है. मगरप्रतिक्रमणमें तीनथुइकरनेका एकभी सघुतनही देसकते, - ५९ (२७) (जवाब - राजेंद्रसूर्योदय- किताबके लेखका) राजेंद्रसूर्योदय किताब - पृष्ट (३२) ते हरीर है, साधु - चोथेगुणस्थानवालेदेवोंकी स्तुति कैसे कर सके ? ( जवाब . ) क्यौं - न - करसके ? उनकी धर्मश्रद्धापर तारीफकरना कौनदोषकीबात है ? - अगर इसबातकों नामंजूरखतेहो - तो फिर हरहमेरा प्रतिक्रमण बैठकर देवाणं आसायणाए - देवीणं आसायणाए पाठ क्यों पढते हो? इसपाठकोंभी पढना छोडदों, और स्थानांगसूत्रमेंजो बयानहैकि - सम्यकदृष्टिदेवताओंका अवर्णवादबोलनेसे दुर्लभबोधीपनी हासिलहोता है इस बातकोभी नामंजुरकरो, और खयालकरो ! देवता अगर धर्मश्रद्धामें लाइकतारीफ केनही है - तो उनको शासनके रक्षपाल कैसे मुकरर किये गये, ? Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) ॐ (सूत्र-महानिशीथका पाठहै, ) जलजलणदुठसावय नरिदाहिं जोगणीण भए, तह भुय जख्ख रख्खस-खुद्द पिसायाणं मारीणं, कलिकलहविग्घरोहग-कंताराइ समुद्दमझेय, दुचिंत्तिय अवसउणे-संभरियव्वा इमाविज्जा, ___(माइना) पानी-आग-दुष्टजानवर-राजा-सर्प-योगिनी-भत-यक्ष-राक्षस-शुद्रपिशाच-महामारी-कलिकलह-विघ्न-रोग-महाअटवी-समुद्र-और अपशकुन-वगेरा चिंताफिक्रकेवख्त संयम और आत्मरक्षाकेलिये साधुलोग इसमहाविद्याको यादकरे, देखिये ! महानिशीथसत्रका पाठ क्याफरमाताहै, इसपाठकों तीनथुइ माननेवाले मंजुररखतेहै-यानहीं ? इसबातकी जाहिरकरे, ॐ (फिर आगे इसीमहानिशीथसूत्र में मजमूनहकि-) बर वख्त-सोनेके साधुलोग अपनी आत्मरक्षाकेवास्ते हमेशा इसमहाविद्याका पाठकरे, और बाद उसके सोवे, अगर-न-पढेतो उसको उपस्थापनाका प्रायछित लगे, जिसका खुलासापाठ यहाँ तेहरोरहै, देखो! ॐ ( पाठ-महानिशीथसूत्रका,-) तउ-एआए-पवरविज्जाए-अत्ताणगं समहिमंतिउणइमसत्तख्खरेउत्तमंगोभयखंधकुच्छीचलणतलेसु-णिसेजा, Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिस्तुति परामर्श . ) कुसुमिणदुनिमित्ते - गहपीडवसगामारिरिठभये, वासास णिविज्जुए - वायारि महाजणविरोहे, जंचविभयंलोगे - तं सव्वं निद्दले इमाए विज्जाए, सठ एहे मंगलयरे - पावहरे सयलपावखय सोखदाइ, 'अकाउंमिमे पच्छिते - संथारगंमिउण इम्मणस्सणं, धम्म सरीरस्स- गुरुपारंपरिएणं- समुवलजेहिं तु इमेहिंपरममं तख्खरे हिं- दससुविदिसासु-अहिहरिगुडपंतवाणतंतर पिसायादीणं - रख्खणं करेज्जा - उबठाणं - देखिये ! इस पाठ में खुलासा जाहिर है कि साधुलोग भी हमेशां बर-बख्त सोने के इस महाविद्याकापाठकरे, अगरचे ! न करे-तो- उसकों प्रायछित है, हरवख्त तीनथुइमाननेवाले कहते है हमपंचांगो पर पाबंद है, अब बतलाइये ! यह पाठ पंचांगी का है - या - पंचांगी केबहारका ? अगर पंचांगी का है-तो- फिर मंजुरकरो, और कुबुलकरोकि- देवकी मदद लेना तीर्थकरोने फरमायाहै, B फिर इसी महानिशीथसूत्रका पाठहै कि साधु श्रुतदेवताकीविद्याका-लाख दफे जाय करे, ( पाठ - महानिशीथसूत्रका ) वंदितु चेइए सम्मं - छठं भत्तेण परिजवईमं, सुयदेवयं विज्जं - लख्खहा चेइयालए. उवसंतो समभावेणं- एकचित्तो सुनिच्छिओ, आउतो अव्यवखितो - रागरइअरइवज्जिओ, (माइना.) बेलेकातपरकेमुनि-जिनमंदिरमें - जाय, और नम Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) स्कारकरकेश्रुतदेवीकी विद्याका लाखदफे जापकरे, समभावमें उपशांत रहे, और अपने चित्तको एकध्यानपर रखे, रागद्वेषसे रहितहोकर उपयोगकेसाथ उक्तविद्याका जापकरे,-बतलाइये ! इससे क्या सबुतहुवा ? खयाल करो ! अगर जैनआगमको श्रुतदेवताकीविद्याकाजापनामंजुरहोता, तो यहपाठ क्यों होता ? सबुतहुवा साधुलोगभी श्रुतदेतदेवताकीविद्याका पाठ करे, तीनथुइपरएतकातरखनेवालोकी ताकातहो-तो-कहदेवे इसपाठकोंभी हम नही मानते, और जैसे चोथीथुइके लिये टालटुलकरतेहै इसपाठकेलियेभीकरे, मगरतारीफहै उनकीजो तीर्थकर गणधरोके फरमानेपर अमलकरे, और बेंहुदा वेंसनदबातें पेंशन-करे, ___ अब व्यवहारसूत्रकी चूर्णिकापाठदेकर देवताकी सहायतासें आलोचनालेनेका सबुतदेतेहै, सुनो ! व्यवहारसूत्रकी चुर्णिमें लिखाहैकि-साधुलोगोको आलोचनापायछित लेनाहो-और-उसवख्तगुरुमहाराजका इत्तफाक-न-हो-तो-तेलेकातपरके देवताका आराधनकरे, और उसकी सहायतासें आलोचना लेवे. ___ (व्यवहारसूत्रकी चूर्णकाा पाठ,-) इथ्थं तिथ्थंकरेण-गणहरोहिय-बहुणि-पायछित्ताणिदिज्जमाणाणि देवयाणदिठाणि-तओ देवयाओ अठमभत्तं काउं अकंएिता आलोए, (माइना.) तीर्थकर-गणधरोने अपनी मौजुदगीमें जोजो प्रायछित दियेथे देवताओनेदखेथे, इसलियेउनदेवताओंकों आराधनकरके साधुलोग-ब-मुजबफरमाने उनकेपायछितलेवे, देखिये ! इसपाठमें देवताकी मददलेनासबुतहै-या-नही ? और बतलाइये ! व्यवहारसूत्रकीचुर्णिकों पंचांगीमें मानतेहो-या-नहीं ? अगर मानतेहो-तो-उसमें-देवताकी मदद Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) लेना कुबुलकरो, और जोकहतेथेकि-मुनिकों-किसीकीमदद लेना-नहीं चाहिये-यहबात-रदहुइ-या-नही,? इसपर गौर करो, फिरनिशीथसूत्रके सोलहमें उद्देशेका पाठहैकिं-जब-मुनि-जंगलमेरास्ताभूलजाय-तो-वनदेवीका-कार्योत्सर्ग-(यानी)-ध्यानकरे, ॐ (निशीथसूत्रके सोलहमें उद्देशेका पाठ,) ताहेदिसिभागममुणंता-बालबुढढ-गच्छस्स रख्खगट्ठा वणदेवयाणकाउसग्गं-करंति-सा-आकंपिआ-दिसि भागपंथंकहेज्जा, इत्पादियावत् एथ्थसुद्धोचेव-नथ्थीपायछित्तं. ___ (माइना.) साधुलोग बरवख्तसफरके जंगलमें अगर रास्ता भूलजाय, उसवख्त अपनी और दूसरे बालमृद्ध वगेरा मुनिलोगोकी रक्षाकेलिये वहांहीखडेहोकर वनदेवीका कार्योत्सर्ग-यानी-ध्यानकरे, बदौलत उसध्यानके वनदेवी आनकर रास्ता बतलावे, और मुनिलोग-उसवतलायेहुवे रास्तेपरचलकर जंगलसे पारहो, औरइसकाररवाइका-कोइप्रायछितभी लेनानहीफरमाया, इसइसपाठसे सबुत हुवा-संयम-और-आत्माकी हिफाजतकेलिये मुनिलोगभी देवताकी मदद लेवे, कहिये ! लेखकमहाशय ! अब आपकेदिलकावहेम-या-शक रफाहुवा-या-नही ? चोथीथुइतो आपलोगोके खयालमें आचार्योंने बनाइतो-क्या ! यहपाठभी आचार्योंने बनाया ?-या-तीर्थकर गणधरोंकाफरमाया हुवाहै, अगर ताकातहोतो कहदो यहभी काबिलमंजूर करनेकेनही, मगरकिसकी ताकातहै इसकाइनकारकरशके, बेंइल्मके सामने चाहेसो-कहो, मगरतालीमयाफतालोग इसवातकोंहर्गिज ! मं Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ( त्रिस्तुति परामर्श.) जूरनहीकरेगें, मालूमहोगये लेखकके शास्त्रसबुत ! कोरेदमभरनेवाले है, कहते है देवताकी मदद नहीं लेना चाहीये, मगरजैनशास्त्र फरमाते है, धर्मकामके मदद लेना कोई मुमानीयतनही, कइसबुतभी उपरदे चुके, यातो लेखक इसकोंबुलकरे, या - कहदेवे - हम इसको नही मानते, - जैसे चोथीथुइको वीतरागदेवकी वैरिणी बतलातेहो. इनपाठोकोंभी कहदो - वीतरागदेव के वैरी है, - (२८) (प्रतिक्रमणमें चारस्तुतिकरनेका सबुत, ) (जिसकों भाष्यकार - अवचूरिकार- और नवअंगसूत्रकी टीका बनानेवाले अभयदेवसूरिमहाराज - प्रमाणिक- और - आवश्यकके अंतर्गत बतलाते है, - चैत्यवंदन भाष्य में चैत्यवंदनकेलिये (२४) द्वार बयान फरमाये, उसमे पांचमे द्वारपर तीन किस्मके चैत्यवंदन करना फरमाया, उसका पाठ इस जगह बतलाते है, देखो ! [पाठ चैत्यवंदनभाष्यका, ] ( गाथा २३ मी. ) वमुक्कारेण जहन्ना - चिइवंदण मझदंडथुइजुअला, पणदंडथुइचउक्कग-थयपणिहाणियउक्कोसा, [ पाठ अवचूरिका. ] नमस्कारेण - अंजलिबडशिरोनमनादि लक्षणप्रणाम मात्रेण - यद्वानमो अरिहंताणंइत्यादिना, अथवा - एकेनश्लोकादिरूपेण नमस्कारेण - इतिजातिनिर्देशात् - बहुभिरपिनम Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ (त्रिस्तुातपरामर्श.) स्कारैः-यदा-नमस्कारेण प्रणिपातापरनामतया-प्रणिपातदंडकेन-एकेन, मध्या-मध्यमदंडकश्च-अरिहंतचेइयाणंइत्यादिः-एकः-स्तुतिश्चप्रतिता-एका-तदंतएक-या-दीयते तएवयुगलंयस्यांसादंस्तुतियुगलाचैत्यवंदना, शक्रस्तवोप्यादौ भण्यते ( अथवा ) दंडकयोः शक्रस्तवचैत्यवंदनरुपयोर्युगलं स्तुत्योश्चयनसा दंडस्तुतियुगला, इहचैका स्तुतिचैत्यवंदनादंडक कार्योत्सर्गानंतरं श्लोकादिरुपया अन्यान्यजिनचैत्यविषयतया-अधुवात्मिका तदनंतरंच अन्याध्रुवा, लोगस्सुजोयगरेत्यादिनामस्तुतिसमुचाररुपा (यद्वा) दंडकाः शक्रस्तवादयः पंच-स्तुतियुगलंच-समयभाषया स्तुति चतुष्टयं-उच्यते, आद्यात्रिस्रोपिस्तुतयोवंदनादि रुपस्वादेकागण्यते, चतुर्थीस्तुतिरनुशास्तिरूपत्वात् द्वितीयोच्यते-तथापंचभिर्दडकैः स्तुतिचतुष्केणस्तान प्रणिधानेन-च-उत्कृष्टा, .... इसपाठका माइनायहहैकि-चैत्यवंदन तीनतरहकीहोतीहै, जधन्य-मध्यम-और उत्कृष्ट-जिसमें मध्यमचैत्यवंदन उसकोंकहते है, जो नमुथ्थुणंपढकर यावत् अरिहंतचेइयाणंतक पाठपढे, औरएक नमस्कार मंत्रका कार्योत्सर्ग करके एकस्तुतिकहे, या-मयचैत्यवंदनके नमुथ्थणं यावत्स्तुतिपर्यंत पढकर लोगस्सउज्जोयगरे कहे, अथवा चारस्तुतिकहकर देववंदनाकरे, इसकानाम मध्यमचैत्यवंदनाहै, उत्कृष्ट चैत्यवंदन उसको कहतेहै-जो-पांचदंडक-चारस्तुति-स्तवन-जयवियरायवगेरा पणिधानपाठतकपढे, यहां भाष्यकारने मध्यमचैत्यवंदनमें जो स्तुतियुगल कहा उसकामतलब अवचूरिकारने इसतरह खुलासाकियाहैकि अवलकी सीनस्तुति अर्हतचैत्यकी-दुसरीसवतीर्थकरकी और तीसरी-जो-ज्ञानकी है-वह-सववंदणवत्तीयापाठके शाथकहीजातीहै. इससेसबुतहुवा वंदना Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmamataram ६६ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) दिस्वरुप-जो-है, सब-एकभेदमें है, और चोथीथुइ अनुशास्तिरुपहै. इस लिये इसकों दुसरेभेदमें शुमारकिइगइ, इनदोनोंभेदोंकों मिलानेसे स्तुतियुगल-यानी-चारस्तुतिहुइ, इसीसबुतसें स्तुतिचतुष्टयपद दियाहै, देखलो ! इसपाठसे साफतौरपर चारस्तुति सबुतहुइ, किसकी ताकात है इसकों गलत कह शके, ? (भाष्यकारने चारस्तुति बयानफरमाइ) [उसकापाठ, अहिगयजिण पठमथुइ-बीयासव्वाण तइअनाणस्स, वेयावच्चगराणउ-उवउगथ्थं चउथ्थथुई, (५२) ....( माइना,) चारस्तुतिमें अवलस्तुति-एकतीर्थकरकी-दुसरी सबतीर्थंकरोंकी-तीसरीज्ञानकी-और-चोथी वैयाटत्यकरनेवाले देवता ओंकी, देखिये ! इसमेभी चारस्तुतिका सबुतहै जिसकों कोइअकलमंद गलतनही कहसकता, खयालकरनेकी जगहहैकि-पहेली-दुसरी-तीसरी स्तुतिकहनेसे पेस्तर शक्रस्तव-लोगस्स-और--पुख्खरवर्दी-इनतीनोंकी अखीरमें वंदणवत्तीयापाठ कहकर कायोत्सर्ग करनाकहा. और च र्थस्तुतिके वख्त सिद्धाणंबुद्धाणं कहकर वंदणवत्तीयापाठ बोलना नहीकहा. सबबइसका यहहैकि-तीर्थकरदेवोकों-और-उनके ज्ञानकों - दनीकपूजनीक समझकर वंदणवत्तीयापाठ कहागया. और चतुर्थस्तुतिमें शासनदेवताको वैयावृत्यकरनेवाले समझकर वैयावच्चगराणपाठ कहा, वंदणवत्तीयापाठ नहीकहा, देखलो ! तीर्थकरगणधरोने अवलहीसे फरमादियाहैकि-तीर्थकर और ज्ञान वंदनीकपूजनीकहै, और शासनदेवता वैयावृत्यकरनेवाले है, यहबात प्रतिपक्षीकों क्यौं-न-पसंद हुइ, ? मगर ठीकहै ! जबतक-आदमी पक्षपातसे अलग नहींहोता असलीबातपर उसका खयाल नही जमता. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) फिरभाष्यकारने-वन्ना सोलसवसियाला-इसपदसें आठ वर्ण प्रमाणद्वार बयानकिये, इसमें चैत्यवंदनसूत्रके सबहर्फ सोलहसोसेतालीश-बतलाये, सो यहां मयगाथाके दिखलाते है. " (पाठ चैत्यवंदनभाष्यगाथा (२६) (२७),--) अडसठि अडवीसा-नवनउयसयंचदुसयसगबउया, दोगुणतीस दुसठा-दुशोल अडनउअशय दुवन्नशयं, २६, इअनवकार खमासमण-इरियसकथ्थयाइं दंडेसु, पणिहाणेसु अ अदुरुत्तवन्नासोलसयशीआला, २७, __(माइना) खास अवचूरिकारमहाराज फरमाते है सुनो! नमस्कारमंत्रके (६८) हर्फ, इछामिक्षमाश्रमणके (२८) हर्फ, इर्यावहिके इछामिपडिकमीउसेलेकर ठामीकाउसग्गतक (१९९) शक्रस्तवके सव्वेतिविहेणवंदामितक (२९७) चैत्यस्तवके अरिहंतचेइयाणंसेलेकर अप्पाणंवोसरामीतक (२२९) चतुर्विंशतिस्तव-यानी-लोगस्सके सव्वलोएतक (२६०) श्रुतस्तवके सुअस्सभगवओतक (२१६) सिद्धस्तवके सम्मदीठीसमाहिगराणंतक (१९८)-और प्रणिधानदंडकके (१५२) इनसबहाँको मिलाने कुल्लमिलान (१६४७) हर्फ होते है, - देखिये ! यहांभी वैयावच्चगराणकेपाठसे सिद्धस्तवमें (१९८) हॉकी गिनति बतलाइ, अगर चोथीथुइमानना-जैनशास्त्रोको नामजुरहोती-तो वैयावच्चगराणपाठ क्यों होता ? अगर वैयावञ्चगराणंपाठ-न-लेवेतो सोलहसोसेतालीस हॉकी गिनती पुरीनही होसकती, इस लिये सबुतहूवाकि-वैयावच्चगराणंकापाठ बोलना तीर्थकरदेवोंका हूकम है, वैयावच्चगराणपाठ सबुतहूवा-तो-चोथीथुइ-खुद-सबुतहूइ, ऐसाकोइ जमामर्द नही जोइसपाठकों जूठा तसव्वरकरसके, और किसकीताका Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) तहै कि-इससबुतकोंतोडे, विद्वान् उसीकानामहै जैसासवालहो-उसका वैसा जवाबदेवे, जिससे उसकामतलब हासिलहो. यहनहीकि-चर्चाचलतीहो प्रतिक्रमणकी-और-सबुतदेवे मंदिरका, अगरकोइ तीनथुइ माननेवाले कहे हमकों चैत्यवंदनभाष्य मंजुरनही तो उसको खयालकरना चाहिये-नवांगसूत्रकी टीकाबनानेवाले श्रीमान्-अभयदेवमूरिजी-महाराज देखो ! पंचाशकसूत्रकी टीकामें क्या! फरमा रहे है, - (पंचाशकवृत्तिका-पाठ,-) . चैत्यवंदनभाष्यकारादिभिरेतत्करणस्य समर्थित्वा तुच-तदधिकतरमपि तन्नयुक्तं--नच-वाच्यं भाष्यकारादिवचनानि--अप्रमाणानि तदप्रमाण्येसर्वथा आगमानवबोधप्रसंगात् आवश्यकानुज्ञानेच चैत्यवंदनस्य अनुज्ञात्वात्आवश्यकांतः पातित्वात्-चैत्यवंदनसूत्रस्य-इति-अलंप्रसंगेन, (माइना,) अभयदेवमूरिजी महाराज चैत्यवंदनभाष्यकारको प्रमाणिक बतलाते है, अगर इनके वचनोंकों कोइ अप्रमाणिक कहे-तो वह आगमका (यानी) जैनसिद्धांतोका अनजानहै ऐसाजानना. क्यौं कि-आवश्यकके अनुज्ञानमें चैत्यवंदनकों अनुज्ञातजानना. चैत्यवंदनसूत्र आवश्यकके अंतःपाती है,-चैत्यवंदनमें चारस्तुतिकरना मध्यमभेदमें उपर बतलाचकेहै,-वैयावच्चगराणंका-पाठ-अगरमानतेहोतो चतुर्थस्तुति सबुतहइ,-जाये गौरहै नवअंगशास्त्रकी टीका बनानेवाले-महाराजश्रीअभयदेवमूरिजी-जिन-भाष्यकारको प्रमाणिक फरमावे, उनकों कौन अप्रमाणिक कहसकताहै ? तीनथुइपर एतकातरखनेवालोंकों Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) ६९ लाजिम है, भाष्यकारकों - अवचूरिकारकों और नवअंगशास्त्रकी टीकाके बनानेवाले- अभयदेवसूरिजीकों - मान्यकरे, पंचांगीकों मान्य करतेहो तो- पंचांगीकों बनानेवालोंके - फरमान को भी मंजूर करो, - E जो शख्श सचीनींदमें सोताहो उसको अवाज देकर दुसरा शख्श जगा सकता है, मगर जो शख्श नकली नीदमें जानबुझकर सो रहे और अवाज देनेवालेकी अवाजकों - सुनताहुवाभी--न--सुने, उसको कोइ कैसे जगा सकेगा. बस ! इससे ज्यादे कोइ क्या लिखे, - - ? (२९) ( जवाब - जिज्ञासुजनमनः समाधि किताबके लेखका.) जिज्ञासुजनमनसमाधिकिताब - जो - ( २२ ) पंनों की छपी है, उसके टाइटल पेपर लिखा है- “ शांतिविजयजी के साहसिक कर्मोंका प्रतिकार, (यानी ) शांतिविजयजीके कार्यपर समालोचना, ( जवाब . ) शांतिविजयजीके साहसिककर्मोंका प्रतिकार तुम क्या करोगे ! तुमारे साहसिककर्मोंका प्रतिकार शांतिविजयजी कर रहे है. देखलो ! तुमारे सवालो के जवाब किसकदर उमदगीसें देरहे है जिसकों पढकर तुमभी ताज्जुब करोगे, चारपंनेका लेख लिखकर समझते होगें उनके साहसिककमका प्रतिकार होगया, मगर यादरखो ! उनके साहसिककमका प्रतिकार तुमसे - न- होसकेगा. देखो ! इसी जिज्ञासुजनमनः समाधि किताबके पृष्ट (१३) पर तुम खुद लिखतेहो" पीले कपडे पहरना, रैलविहार करना, इत्यादिमें एकांत वादकरने से निन्हवहरूले में कुछ हरकत नही, " सोचो ! इसका मतलब क्या हुवा ? Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० (त्रिस्तुतिपरामर्श.) मतलब यहहुवाकि-पीले कपडे और रैल विहारकरना-अनेकांतवादसे यानी ( स्याद्वादन्यायसें ) निन्हवपनानही, यहभी खुबकहा, इससतो तुमखुद कुबुल होगयेकि-अनेकांतवादसें उक्तबातें ठीकहैं, चतराइतो लेख लिखनेमें खूबकरतेहो-मगर-अकलमंदोके सामने चलनहीसकती, औरहमतो घरकेभेदी ठहरे,-हमारेसामन काइक्या चतराइ करेगा ? जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताबके पृष्ट (१४) पर बयान है अनेक साधुओके बीचमें रैलविहार कररहेहै उनकोंही रोकना मुनिसंवेगीयोंकों कठिनतर है तो-अन्यमतावलंबीयोंकों क्या रौकसकेगें, ? एकही मनुष्य समस्त पीतांबरोका पीतलेशी धुरी-उडारहाहै तो क्या ऐसे साधु इतनीभारीसमुदायमें पढेलिखे नही है ? यदि है-तो-प्रकाशमें क्यौं-नही आते ? क्या ! उसपासथ्येसे डरते है, ? अहो मुनिमहाशयो पदि वीतरागप्रणीतसूत्रोंका बलहै तो क्यों छुपते फिरते हो ? (जवाब.) पार्श्वस्थ वहहोता है जो आधाकर्मी-उपाश्रय-वापरे, देखो ! पंचकल्पचूर्णि, पार्श्वस्थ वहहोताहै-जो-आधाकर्मी आहार लेवे, देखो ! पीड नियुक्ति, पार्श्वस्थ-वहहोताहै-जो चौदहउपकरणसें ज्यादे उपकरण रखे, देखो ! निशीथसूत्रकीचूर्णि, पार्श्वस्थ वहहोताहै जो साधु-साध्वी-एकशाथ विहार करे, देखो ! व्यवहारसूत्रकी चर्णि पार्श्वस्थ वहहोताहै-जो- शय्यातरके घरका आहारलेवे, देखो! आवश्यकसूत्रकी चूर्णि,-कइमुनि-जब-एकमुल्कसे दुसरे मुल्ककों विहार करते है, श्रावकोके शाथ विहार करते है. क्या श्रावकलोक नही जातेकि-शाथमे दशपनरांह मुनिमहाराजहै आहारका योग रखना होगा. क्या ! जो पूर्णसंयमी होनेका दावा रखते है विनाश्रावकके अकेले विहारनही करसकते ? अगर कहा जाय-जैसा द्रव्यक्षेत्रकालभावहै-वैसावर्तते है, तोफिर इसी सडकपर आइये ! उत्कृष्टता किसबातकी रही ? Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) ७१ आत्म कल्याणके लिये वाइसपरिसह-जो-जैनशास्त्रोंमें बयान फरमाये है-अपने बदनपर सहनकरना चाहिये, कोरीवातोंसे कामनही चलेगा, परलोकमें अपना धर्मही कामदेगा. जोशख्श अनेक साधुओके बीचमें वेधडक रैलविहार कररहेहै, तुमारी ताकात नही तुम उनकों रौकशको, लेखक दुसरोंकों चमकाकर सायत ! आपसमे अनबनाव कराना चाहतेहोगे मगर पीतांबरसंवेगी साधुलोग बडे चतरहोतेहै-वे-आपसमें अनवनाव कभीकरनेवाले नहीं. और फिर लेखक लिखताहै क्या ! उसपासथ्थेसे डरतेहो ? जवाबमें मालुमहो-वे-उसशुद्धसंयमीसे-नही डंरते-बल्के ! लेखक खुद डरताहै जभी तो दुसरोंकों लिखताहैकि-यदि वीतरागप्रणीतसूत्रोंका बलहै-तो-प्रकाशमें क्यौंनही आते ? मालुमहोता है लेखककों वीतरागप्रणीतसूत्रोंका बलनहीं है-जभी दुसरोको ऐसा लिखते है. और यहभी सबुत होताहै न्यायरत्नकी कलम लेखककों उमदा तौरसे चकित कररही है. फिर लेखक यहभी लिखताहै-एकही-मनुष्य-समस्त पीतांबरोका धुर्रा उडा रहाहै, जवाबमें मालुमकरे वह पीतांबरोंका धुर्रा क्यों उडावे ? क्योंकि-वह-खुद पीतांबर है, धुरै उनकेलेखोंके उडरहेहै जो बेहुदा-वेंसनदबातें पेंशकरतेहै-और जैनमें-नयेनयेमजहब इख्तियार करतेहै, और फिर जोलिखाहैकि-इतनीभारीसमुदायमें क्या ! ऐसे पढे लिखे साधु-नही है-जो प्रकाशमें आवे, जवाबमें मालुमहो क्यों नहींहै ? बहुतहै, देखिये ! पढेलिखे हुवे-महाराजश्री झवेरसागरजी कैसे गीतार्थ हुचे, जिनोने व-मुकाम-रतलाम मुल्क मालवेमें मध्यस्थोंकी सभाकरके तीनथुइका परामर्शकिया, और तीनथुइके फैलावको-रोका, महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीने चतुर्थस्तुतिनिर्णय-किताब बनाकर तीनथुइके फैलावको रोका सुरतमें-पंन्यासजी-श्रीयुत-चतुरविजयजीनेऔर-सनातन-जैनश्वेतांवर आनाय-चारस्तुतिमाननेवाले श्रावकोंने Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) -अगत्यका ठहराव करके तीनथुइके फैलावकों रोका, और विद्यासागर वजरीये अपनी कलमके शास्त्रसबुतदेकर तमाम मुल्कोंमें रोकरहे है, इससे ज्यादे और क्या चाहतेहो, ?-देखिये ! पीतांबरोने क्या क्या ! करदिखायाहै ? पीतांबरनाम कुछबुरा नही है, कृश्न-लेश्यासेपीतलेश्या-हरसुरतसे अछीहै, हां ! कृश्नांबर और-मलिनांवर वेशक ! खिलाफ कानुन-जैनशास्त्रके है, जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब-सफह (१४) पर तेहरीरहै, न्यायरत्नने कितने अन्यमतियोकों जैनीकिये उनके नाम बतानेमें क्यों डरतेहै ? क्यौं-न-डरे ?-शिथिलमार्गी-होनेकेलिये झूठीबातें लिखमारतेहै, (जवाव.) लेखक जिनकों साधुमानतेहै उनका कठिनमार्ग जा. हेर करे जिससे आमलोगोकों मालूमहोकि-वे-ऐसेकंठिनमार्गीहै, और डरता-वह-होगा जो-खिलाफहुकमजैनशास्त्रके तेहरीरकरे,-और-आप अपने नामसे-या-हस्तारक्षकी सहीसें जाहिरमें-न-आवे न्यायरत्नहरलेखमें अपनेनामसे-औरहस्ताक्षरकी सहीसे जाहिरमें आतेहै, फिर कौनकहसकताहौक न्यायरत्न डरतेहै, न्यायरत्नने जिसजिसगरमजहबवालोकों तालीमधर्मकी देकर जैनीकियेहै-जिसकों तलाशकरनाहोमुलकोंमें-फिरकरकरलेवे, न्यायरत्न-न-शिथिलमार्गीहै-न-जुठीबातेंबनानेहवालेहै,-अवजरा कठिनमार्गी-और-शिथिलमार्गीका बयान सुनिये! जिससे तुमारेदिलका शकरफाहो,-पेस्तरके जैनमुनि-बनमें और उद्यानमें रहतेथे आजकल तुमारी ताकातनही ऐसाकरसको, देखलो ! आजकलशहरमें आकररहनाहोताहै. अगर कठिनमार्गीबनना चाहतेहोतो-वनमें जाकररहो, कोरीसफाइ बताना दूसरीबातहै, जैनमुनि किसीकेलडकेकों दीक्षादेवेतो बिनाहुकम-मा-बापके नहीदेना शाखका फ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ~ ~ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) रमानहै, खयाल करो ! आजकल मुताबिक उसके बर्तावकरनेवाले कितनेहै, ? जिज्ञासुजनमनः समाधिकिताब पृष्ट (१५) पर दलीलहै, अब है ! सुज्ञो ! ! शांतिविजयजी उत्सूत्रताका जबाब बतालाकर ह. माराशुद्धआशय उत्तरके साथ लिखदियाहै, (जवाब,) शांतिविजयजीकी उत्सूत्रता क्या ! बतलाओगे !! -चोथीथूइकों वीतरागदेवकी वैरिणी कहना किसजैनसूत्रमें लिखाहै ? इसबातकों कोइसूत्रपाठसें सबुतकरे. अगर कोइसबुतनहीहै-तो-यहउ सूत्रता हुइ-या-नही ? शांतिविजयजीकी उत्सूत्रता कोइसाबीतकरे, यूतो तीर्थकरोके सामनेभी कइलोग तीर्थकरकों तीर्थकरतरीके नहीमानतेथे, इसीतरह शांतिविजयजीके लेखकों कोइ उत्सूत्र कहे-या-ना मंजूरकरे-तो-उससे शांतिविजयजी उत्सूत्रभाषी नही होसकते, अ. कलमंद उसीका नामहै-जोशास्त्रसबुतसें पेंश आवे, क्या ! इनबातोंसें शांतिविजयजी परास्त होगये समझतेहो ! हर्गिज नहीं, !! जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताबके सफह (१७) परमजमूनहै इसतरह कइरौजतक परस्पर समभावसें वर्ततेथे (यानी) श्वेतांबर दि. गंवर समभावसे बर्ततेथे, बाद-महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीने नींदा द्वेष.परस्परकरके मंदिरजानाभी छोडादिया, उनकी आमदनी बंदकरवा दिई, क्या ! यहीउनका पराजय किया ? . (जवाब.) लेखक-सूत्रआवश्यककी बडीटीका देखे, और तलाशकरे उसमे क्यालिखाहै ? श्वेतांबर दिगंबरकी भिन्नता पेस्तरसें है, महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीने भिन्नता नही कियी, -न किसीकी आमदनी बंद कराइ, हमने-जो-जैनपत्रमें लिखाथाकि -एक मयानमें दो-तलवार-नही रहसकती-वैसे-भिन्न श्रद्धावाले एक Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) धर्ममें एक रुप-नहीहोसकते-बहुतठीकहै, जैनाचार्यश्रीहीरविजयसूरिजीने-जब-शत्रुजय-गिरनार-समेतशिखर-राजगृही-पावापुरीवगेरातीर्थोके फुरमानपत्र बादशाह अखबरसे करवायेथे-ये-ये तीर्थ-जैन श्वेतांबरके लिखेहै, इसपर लेखक खयालकरे. जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताबके सफह (१६) पर बयानहै शांतिविजयजीका कहनाहैकि-शुभइरादेसे रागद्वेष करनेमें कुछ हर्ज नही. . (जवाब.) लेखक-अगर इसबातकों नामंजूररखतेहै-तो-बतलावे ! धर्ममें विघ्न डालनेवाले नमुचिको विश्नुकुमार मुनिने-क्यौंसजा दिइ ? महाराज-कालिकाचार्यजी गर्दभिल्लराजाके सामने इ. रादे धर्मके क्यों लडाइमें सामीलहुवे, ? इनका कषायकरना दुनियादारीकेलिये था-या-धर्मके लिये ? शांतिविजयजीकी दलीलकों तोडनेकी कोशिश तो करतेहो मगर-टुट नही सकती, बल्कि ! पुख्ताहोती जातीहै. कल्पसूत्रमें जहां गौतमस्वामीका बयानहै देखो ! क्यालिखाहै,? कल्पसूत्र-वृत्तिका-पाठ, ( अनुष्टुप्-वृत्तम्. ) अहंकारोपिबोधाय-रागोपि गुरुभक्तये, विषादः केवलायाभूतू-चित्रं श्रीगौतमप्रभोः,-- [मायना.] गौतमस्वामीका-अहंकारभी-प्रतिबोधपानेकेलिये हुवा, रागकिया-तो-तीर्थकरमहावीर जैसे गुरुकी भक्तिपर किया. तीर्थकरमहावीर स्वामीके निर्वाणहोनेपर रंज किया-सोभी-फायदेमंद हुवा, सोचो ! इसबातकोकि-इसका नतीजा क्या निकला ? अहंकार -राग-और-विषाद इरादे धर्मके फायदेमंदहुवे-या-नहो, Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (३०) [दरबयान-सुरतसंघ-औरअगत्यका ठहराव.] __जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब पृष्ट [१९] पर मजमूनहै, सुरतसंघका पराजय करके-सुरतसंघ-अगत्यका ठहराव-नामकीकिताब मिथ्यात्व रोगका औषध-राजेंद्रसूर्योदय किताबमें बताकर तमामहिंदुस्थानके श्वेतांवर संघकों समर्पण करदिइगइ, ऊससे सभीमहाशयोंकी शंकाका-नाश होगया. (जवाब.) सुरतसंघका पराजय कोइ क्याकरेगा ? उसकातो जयहुवाहै.-उनोने कैसा उमदा अगत्यका ठहरावकियाकि-जिससें• उनकेशहरमें-सनातन जैनश्वेतांबर आम्नायमें नयेमजहलकी-जड-जमनेनहीपाइ. और उनोने उसकिताबकों मुल्कमुल्कमें भेजदिइकि-जिससे तमाम-जैनश्वेतांबर-चारस्तुति-माननेवालोका-तीनथुइकेबारेमेंशक-रफा होगया. मिथ्यात्वरोगका औषधदेखना होतो चतुर्थस्तुति निर्णयकिताबमें देखो,-राजेंद्रसूर्योदय-किताबका-जवाब-शांतिसूर्योदय तयारहै. आमलोगोकों रौशन-हो, सुरतसंघका पराजय नहीहुवा-बल्किन् ! जयहुवाहै. महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीकाबनायाहुवा-चतुर्थस्तुतिनिर्णय-हिंदुस्थानकेबहार-आफ्रिका-एडन-बमां-वगेरामुल्कों-जहांजहां सनातन जैनश्वेतांबर चारस्तुतिमाननेवाले श्रापक गयेहे-वहांतक-पहुचाहै. और त्रिस्तुतिपरामर्शभी पहुचेगा, जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब पृष्ट (१७) लेखकने लिखाहै" नतो तीनको उठाइ-न-चारको"-यथोचितस्थानमें जहांकरनेकी है-वहां-करतेहै. (जवाव.) फिर बात क्याहुइ ? यथोचितस्थानमें जहांकरनेकोहै-वहां-करतेहो-तो-उसका नाम क्यों नही लीखा, ?-प्रतिक्रमणकेवख्त चारथुइ करनामंजूरहै-यानही ?-लेखक-इसबातकों जाहिर करे, अगरकोइ कहे आवश्यकसूत्रकी बडीटीकामें वैयावच्चगराणं पाठ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ त्रीस्तुतिपरामर्श क्यौं नही ? जवाबमें मालूमहो बडीटीका नियुक्तिपर व्याख्याकरतीहै उसमें सूत्रस्पर्शकनियुक्तिसे जोपाठ-रचनामें-निकट आया उसकों बतलातीह, संपूर्णमूत्रका अर्थ बयान नहीं करती. इसीसबब सूत्रस्पर्शक नियुक्तिकारने उसका कथन नहीकिया. थोडे पढेहुवे लोग इतनीबारीकीकों पहुंचतेनही. और उनके सामने कहदियाजाताहै देखोभाइ ! बडीटीकामें नहींहै, आवश्यकसूत्रकी बडीटीकानियुक्तिपर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजीने बनाइहै, प्रश्नोत्तरपत्रिकामें लेखकनेलिखाहै हरिभद्र सूरिजीने चारथुइ-स्थापनकरनेकलिये ललितविस्तरा ग्रंथबनाया. और फिर उनहीकी बनाइ आवश्यकसूत्रकी बडीटीकाका सबुत चाहना.यह कितनी ताज्जुबकी बातहै, ! जिज्ञासुजनमनः समाधिकिताब पृष्ट (१९) पर बयानहैकिजबतक उत्सूत्रप्ररुपक-बहार-न-काढेजायगे तबतक अन्यमतावलंबीयोंकी कुतर्कोका जवाबदेना दुर्लभ होगा. (जवाब.) हमकों अन्यमतावलंबीयोंकी दलीलोका-जवाबदेना कोइ दुसवार नही,-और उन्सूत्रप्ररुपकोंकों बेशक ! बहार निकालना चाहिये, मगर पेस्तर इसवातका तस्विया करलोकि-उत्सूत्रप्ररुपककोन है. ? शांतिविकयजीके लेख विनाशास्त्रसबुतके हर्गिज ! नहीहोते, हर लेखमें शास्त्रसबुतसें पेंश आतेहै. ख्याल रहे ! शांतिविजयजी हमेशां खुशमिजाज और कुतीयोंकी कुतर्क-रुप-अशांतिको मिटानेवालेहै, जिसकोजोकुछलिखनाहो फिर लिखे–इन्साफके लेख तयारहै. __ जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब पृष्ट (१९) पर मजमूनहैकिअव-जौ-जैनपत्रमें किसीप्रकारका अपशब्द देखुंगा-तो-अबस्य लिखनेमें-न-चुकुंगा. (जवाब.) वेशक ! मतचुकना, जिसकीउमेद हो-पुरीकरलेना. यहकोइ-न-समझेकि-विद्यासागर चूपरहे, जितना लिखोगे जवाबमें उससेदुगुना-सामनेपाओगे, Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) . ७७ ३१६ दरबयान-जाहिरखबरके लेखका। सुरत-नाणावट खुदाबक्षके प्रेसकी छपी हुइ जाहिरखबर पृष्ट (२) पर तेहरीर है कि-ते वखते दंडकना अंतमा थुइ कही. ते दंडक केटला ? त्यारे सूरिजीये पांच दंडक बताव्या. चुनीलाले लख्या, पण तेनो अर्थ ते समज्या नही. (जवाब.) चुनीलालजी श्रावक थे, फिरभी उनकी होशियारी समझोकि इतनी चर्चा उनोने किइ, अगर दंडकके बारेमें कुछ पुछना हो हमसे पुछो, चैत्यवंदनमें पांच दंडक-चार स्तुति-और -प्रणिधानपाठ खुला है. शक्रस्तव-अरिहंत चेझ्याणं-लोगस्स-पु. रूखरवरदीवहे-और सिद्धाणंबुद्धाणं-ये-पांच दंडक कहे जाते है. चार स्तुति जाहिर है, जिसकों आम जैन लोग जानते है, प्रणिधान कहो कि-जयवीयराय कहो-बात-एकही है, ३२ दरबयान-ज्ञानबाजी. जिज्ञामु जन मनः समाधि किताब पृष्ट (१५) पर तेहरीर है पासथ्याने ज्ञानबाजी नाम रखकर प्रमाद फैलानेका उपाव निकाला है, हारजीत होनेसें शानध्यानका कारण है, (जवाब.) जिसमें-चादह गुनस्थान-ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय-वगेरा अष्टकर्मोका बयान है उसकों-कौन अकलमंद-आ. तध्यानका कारण कह सकता है ? बल्कि ! धर्मध्यान आनेका सबब है, पासथ्थोने झानबाजी नाम नही रखा. ज्ञानी लोगोने रखा है, क्या क्या ! उमदा ज्ञानकी वातें उसमें दर्ज है उसपर खयाल करो. न्यायरत्नके जवाबकों कोइ किसी सुरत तोड नहीं सकता. क्योंकि -वे-सच बातकों बयान करनेवाले है, Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ( त्रिस्तुति परामर्श.) ३३ हिदायत - उल - आम. आम जैन श्वेतांबर चार स्तुति माननेवालोकों - लाजिम है अपने सचे एतकात पावंद रहे. चार स्तुति कदमसे हैं, लेखक अगर सबुत रखते हो - तो - पाठ जाहिर करे कि - फलाने सूत्रकी पंचांगी में प्रतिक्रमणके वख्त तीन थुइ करना लिखी है, दरमियान शास्त्रार्थके पाठ होना जरुरी है, त्रिस्तुतिपरामर्शका अवल हिस्सा पूर्ण हुवा, इतनेपर कोई कुछ लिखेगा तो दूसरा हिस्सा तयार है, राजेंद्रसूर्योदय किताबका जवाब शांतिसूर्योदय भी मौजूद है, महारामश्री झवेरसागरजीके वख्तका बना हुवा - निर्णयप्रभाकर ग्रंथभी रतलाम के सनातन - जैन श्वेतांबर संघ - चारस्तुति माननेवालोंके पास तयार है, अगर कोइ छपवाना चाहे तो छपवा सकते है, - हमारे गुरुके - या - हमारे नामपर - किसी अखबार - या - किताबमेंकिसीने कुछ आक्षेप किया हुवा देखो, फौरन हमारे पास भेजदो हम उसका माकूल जवाब देयगे. त्रिस्तुतिपरामर्शका - अवल हिस्सा खतम हुवा. [ कवि-सुरजमल ताकीन उदयपुर - मुल्क मेवाडकी बनाई हुई गुरुभक्तिपर - शेयरदार लावनी. ] विद्यासागर न्यायरत्न श्री - शांतिविजयजी मुनिमहाराज, तीरथ ने आपके जनम जनमके सुधरे काज, (ए टेक, ) शासननायक सब सुखदायक - जिनका निशदिन ध्यान धरो, भव्य जीवोके प्रेमहित चितसे आप कल्यान करो, शठनर सुधरे सुनकर बानी - असो मुनि व्याख्यान करो, स्वल अज्ञानी पशुसम उनके हिरदेमें ज्ञान धरो. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( लावनी. ) ( शेयर ) आपने जनमतको धारन - करके त्यागो है कुटुंब, उधरे पटल निज उरके मुनिजी - दूरकर दिनो है तम. दीपायो जनमतकों स्वामी - प्रकाशित भयो रविसम, जन्म जन्मांतरकी बिगरी बात सुधरी इस जनम ( मिलान. ) ७९ wwwww करते हो सब कठिन तपस्या- धन्य धन्य मुनिजी सुखसाज तीरथ कीने आपके जनम जनमके सुधरे काज, ( १ ) पहिले समेतशिखरगिरि प्रभुके-आप मुनिजी किये दर्शन, एक महिना गिरिपर बेठ कियो प्रभुजीको भजन, पावापुरीमे रहे तीन महिना - आप मुनिजी हो धनधन. कइ जिज्ञासु आपसे पुछे शास्तरको बर्नन. ( शेयर. ) अंतरिक्ष पारसनाथजीमें आठ दिन किनो है ध्यान, शतरुंजाजी गिरिराजमें चौमासो कर दिनो बखान, गिरनारजी दिन बारां रहकर - दिपायो साचोहि ज्ञान, आठ दिन आबुजी उपर विराजकर किनो है ध्यान. ( मिलान. ) रानकपुरजी पांच दिवसतक - आप मुनिजी रहे बिराज, तीरथ किने आपके जनम जनमके सुधरे काज, (२) हस्तिनागपुर आप बिराजे आठ दिवसमें लिखलियो हाल, कंपिलाजीमें रहे दिन तीन आप भव्यजनके प्रतिपाल, शौरीपुर दिन एकटी मुनि - काटयों सकलकलिमल जंजाल, कौशांबी में रहके मुनीश्वर तीन दिवस रिपु किये पेंमाल. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) (होयर.) सावथ्वी नगरीमें एक दिन-वास मुनिजन जाकर्यो, एक दिन भदीलपुर भीतर-पाप तनकों सब हों, मिथिलापुरी एकदिन टीके-वहां ध्यान जिनजीको धर्यो, राजगृही दिन पांच बसे-वहां सकलपाप तनकों जर्यो, (मिलान.) अयोध्यामें दिन आठ बिराजे-मिली केइ ज्ञानीकी समाज, तीरथ किने आपके जनमजनमके सुधरे काज, (3) मांडवगढ रहे एक दिवस वहां-कों आप भारी उपकार, शंखेश्वरजी रहे दिनतीन रख्यो मनमें आचार, तारंगाजी दिनतीन रहे वहां-तप्तबुझाइ तनकी अपार, केशरीयाजी रहके छहदिन बोलेहे वहां जयजयकार, (शेयर.) फलोदी पारसनाथजीमे-तीनदीन तपसा करी, मकसीपारसनाथजीसे-पखवाडे विनति खरी, काशी दिनरहे आठ भेटे-आपसे केइ शासतरी. चंपापुरी एकमास रहकर-चर्चा करी मुनि रसभरी, (मिलान.) सुरजमल्ल कहे क्षत्रीयकुंडपर-तीनदिवस बेठे मुनिराज, तीरथकीने आपके जनमजनमके सुधरेकाज, (4) [गुरुभक्तिपर-शेयरदार-लावनी-खतमहुइ.--]