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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) . ७७ ३१६ दरबयान-जाहिरखबरके लेखका।
सुरत-नाणावट खुदाबक्षके प्रेसकी छपी हुइ जाहिरखबर पृष्ट (२) पर तेहरीर है कि-ते वखते दंडकना अंतमा थुइ कही. ते दंडक केटला ? त्यारे सूरिजीये पांच दंडक बताव्या. चुनीलाले लख्या, पण तेनो अर्थ ते समज्या नही.
(जवाब.) चुनीलालजी श्रावक थे, फिरभी उनकी होशियारी समझोकि इतनी चर्चा उनोने किइ, अगर दंडकके बारेमें कुछ पुछना हो हमसे पुछो, चैत्यवंदनमें पांच दंडक-चार स्तुति-और -प्रणिधानपाठ खुला है. शक्रस्तव-अरिहंत चेझ्याणं-लोगस्स-पु. रूखरवरदीवहे-और सिद्धाणंबुद्धाणं-ये-पांच दंडक कहे जाते है. चार स्तुति जाहिर है, जिसकों आम जैन लोग जानते है, प्रणिधान कहो कि-जयवीयराय कहो-बात-एकही है,
३२ दरबयान-ज्ञानबाजी.
जिज्ञामु जन मनः समाधि किताब पृष्ट (१५) पर तेहरीर है पासथ्याने ज्ञानबाजी नाम रखकर प्रमाद फैलानेका उपाव निकाला है, हारजीत होनेसें शानध्यानका कारण है,
(जवाब.) जिसमें-चादह गुनस्थान-ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय-वगेरा अष्टकर्मोका बयान है उसकों-कौन अकलमंद-आ. तध्यानका कारण कह सकता है ? बल्कि ! धर्मध्यान आनेका सबब है, पासथ्थोने झानबाजी नाम नही रखा. ज्ञानी लोगोने रखा है, क्या क्या ! उमदा ज्ञानकी वातें उसमें दर्ज है उसपर खयाल करो. न्यायरत्नके जवाबकों कोइ किसी सुरत तोड नहीं सकता. क्योंकि -वे-सच बातकों बयान करनेवाले है,