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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) रमानहै, खयाल करो ! आजकल मुताबिक उसके बर्तावकरनेवाले कितनेहै, ?
जिज्ञासुजनमनः समाधिकिताब पृष्ट (१५) पर दलीलहै, अब है ! सुज्ञो ! ! शांतिविजयजी उत्सूत्रताका जबाब बतालाकर ह. माराशुद्धआशय उत्तरके साथ लिखदियाहै,
(जवाब,) शांतिविजयजीकी उत्सूत्रता क्या ! बतलाओगे !! -चोथीथूइकों वीतरागदेवकी वैरिणी कहना किसजैनसूत्रमें लिखाहै ? इसबातकों कोइसूत्रपाठसें सबुतकरे. अगर कोइसबुतनहीहै-तो-यहउ
सूत्रता हुइ-या-नही ? शांतिविजयजीकी उत्सूत्रता कोइसाबीतकरे, यूतो तीर्थकरोके सामनेभी कइलोग तीर्थकरकों तीर्थकरतरीके नहीमानतेथे, इसीतरह शांतिविजयजीके लेखकों कोइ उत्सूत्र कहे-या-ना मंजूरकरे-तो-उससे शांतिविजयजी उत्सूत्रभाषी नही होसकते, अ. कलमंद उसीका नामहै-जोशास्त्रसबुतसें पेंश आवे, क्या ! इनबातोंसें शांतिविजयजी परास्त होगये समझतेहो ! हर्गिज नहीं, !!
जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताबके सफह (१७) परमजमूनहै इसतरह कइरौजतक परस्पर समभावसें वर्ततेथे (यानी) श्वेतांबर दि. गंवर समभावसे बर्ततेथे, बाद-महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीने नींदा द्वेष.परस्परकरके मंदिरजानाभी छोडादिया, उनकी आमदनी बंदकरवा दिई, क्या ! यहीउनका पराजय किया ? . (जवाब.) लेखक-सूत्रआवश्यककी बडीटीका देखे, और तलाशकरे उसमे क्यालिखाहै ? श्वेतांबर दिगंबरकी भिन्नता पेस्तरसें है, महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीने भिन्नता नही कियी, -न किसीकी आमदनी बंद कराइ, हमने-जो-जैनपत्रमें लिखाथाकि -एक मयानमें दो-तलवार-नही रहसकती-वैसे-भिन्न श्रद्धावाले एक