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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) है कि-" राजेंद्रसूरिजीने चैत्यवंदनमा त्रणथुइ करवानो पुनरोद्धारकिधोछे," सोचो ! फिर बातक्याहुई, ? युतो कैसे कोई कबुल करे किउनोने नयामत जारी कियाहै, चारस्तुतिका मानना कदीमसें है, और उसीसबबसे वह तमाममुल्कामे जारीहै और उसकी कदरभीहै. हाथकंकनकों आरसी क्या?
किताब-तीनस्तुति प्राचीनता-पृष्ट ( ६ ) बयानहै शास्त्रोमें जगहजगहपर तीनस्तुति लिखी जिसकों पीतांबरी संवेगीलोग नवीन कहतेहै,
(जवाब.) जगहजगहपरतो क्या ! एकजगहपरभी प्रतिक्रमणमें तीनस्तुतिकरना नही लिखा, अगर लिखाहै-तो-कोई-शास्त्रसबुतसे पेंश आवे, पीतांबरी संवेगीलोग ठीलकहतेहै,-यादरहे ! दुसरीजगहकासबुत दूसरीजगह कारआमद नहीहोसकता, पीत-अंवरयानी-पीलेकपडेरखनाखिलाफकानुनशास्त्रके नही, निशीथसूत्रका हवाला अवलदेचुकेहै कि-नयेवस्त्रकों जैनमुनि-कथे-चुने वगेराका रंगदेव, जैसे श्वेतवस्त्र शास्त्रमें कहेहै वैसेरंगनाभीकहाहै,
तीनस्तुतिप्राचीनताकिताब-सफह (७) पर तेहरीरहै-भद्रबाहुस्वामी आवस्यकनियुक्तिमेंलिखतेहे, आयंमि चेइहरं-गंतूणचेइयाई वंदिज्जा, अजियथयं तिन्निथुइ-परिहायंतिव्वकहंति, मृतकसाधुको परठकरलोटतेवख्त चैत्यमेंजाय, औरवहां चैत्यवंदनकरके अजितशांति-स्तव-कहे, औरफिर वर्द्धमानतीनस्तुति-हीयमानकहे,
_ (जवाब.) यह सबुत प्रतिक्रमणका नहीहै, चर्चा चलरहीहै प्रतिक्रमणकी-और-सबुतदेतेहो-मृतकसाधुको परठकर चैत्यवंदनकरते वख्तका-यहकौन इन्साफकी बातहै ? प्रतिक्रमणकी जगह मंदिरकाहवालादेकर कहतेहोकि-सबजगह तीनथुइलिखिहै, क्या ! खूबबातहै?