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(त्रिस्तुतिपरामर्श.)
लेना कुबुलकरो, और जोकहतेथेकि-मुनिकों-किसीकीमदद लेना-नहीं चाहिये-यहबात-रदहुइ-या-नही,? इसपर गौर करो,
फिरनिशीथसूत्रके सोलहमें उद्देशेका पाठहैकिं-जब-मुनि-जंगलमेरास्ताभूलजाय-तो-वनदेवीका-कार्योत्सर्ग-(यानी)-ध्यानकरे,
ॐ (निशीथसूत्रके सोलहमें उद्देशेका पाठ,)
ताहेदिसिभागममुणंता-बालबुढढ-गच्छस्स रख्खगट्ठा वणदेवयाणकाउसग्गं-करंति-सा-आकंपिआ-दिसि भागपंथंकहेज्जा, इत्पादियावत् एथ्थसुद्धोचेव-नथ्थीपायछित्तं.
___ (माइना.) साधुलोग बरवख्तसफरके जंगलमें अगर रास्ता भूलजाय, उसवख्त अपनी और दूसरे बालमृद्ध वगेरा मुनिलोगोकी रक्षाकेलिये वहांहीखडेहोकर वनदेवीका कार्योत्सर्ग-यानी-ध्यानकरे, बदौलत उसध्यानके वनदेवी आनकर रास्ता बतलावे, और मुनिलोग-उसवतलायेहुवे रास्तेपरचलकर जंगलसे पारहो, औरइसकाररवाइका-कोइप्रायछितभी लेनानहीफरमाया, इसइसपाठसे सबुत हुवा-संयम-और-आत्माकी हिफाजतकेलिये मुनिलोगभी देवताकी मदद लेवे,
कहिये ! लेखकमहाशय ! अब आपकेदिलकावहेम-या-शक रफाहुवा-या-नही ? चोथीथुइतो आपलोगोके खयालमें आचार्योंने बनाइतो-क्या ! यहपाठभी आचार्योंने बनाया ?-या-तीर्थकर गणधरोंकाफरमाया हुवाहै, अगर ताकातहोतो कहदो यहभी काबिलमंजूर करनेकेनही, मगरकिसकी ताकातहै इसकाइनकारकरशके, बेंइल्मके सामने चाहेसो-कहो, मगरतालीमयाफतालोग इसवातकोंहर्गिज ! मं