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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) पास क्या सबुतहे, ? किस श्रीपज्यजीने इस आचरणाकों चलाइ उनका नाम क्यों नही जाहिर किया ? महाराजश्री बुटेरायजीसाहब जो फरमातेथेकि-मुहपत्ति मुहपरबांधना किसी जैनशास्त्रमें नही लिखा बहुत दुरुस्त था, जो बात मुताबिक हुक्म तीर्थकर गणधरोकेहो उसको नयी कौन कहसकताहे, ? मुहपत्ति कानमें डालनेसें मुनिकों कर्णवेध कराना पड़ेगा, किसी जैनशास्त्रमें नहीं लिखाकि-मुहपति बांधनेकेलिये मुनि-कर्णवेध-करावे, कल्पसूत्रकी पुरानी पुस्तके जो मुनहरीहर्कोकी लिखिहुइ पुस्तकालयोमें मिलतीहै उसमें गणधर मुधस्विागी-जंबुस्वामी वगेरा मुनियोंकी तस्वीर बनीहुइ मौजूदहै, मुहपति उनके हाथमे रखीहुइहै मुखपर बांधीहुइ नही, अगर व्याख्यानके वख्तभी मुहपति मुंहपर बांधना जैनशास्त्रोंमें लिखाहोता तो उनकी तस्वीरमेंभी मुहपति बांधनेका आकार होता.
(८)
(बयान महाराजश्री झवेरसागरजी-और
एहवाले रतलाम,-)
___ महाराजश्री अवेरसागरजी मुल्क-मालवेतर्फ-बहुत अर्सेतक विचरे, और आम जैनसंघकों तालीम धर्मकी दिई, इंदोर-उज्जैनरतलाम वगेरामें चौमासे किये, संवत् (१९३०) मे जवं मध्यस्थोकी सभाकरके ब-मुकाम रतलामपर उनोने तीनथुइका परामर्श किया उस अर्सेका बनाहुवा-ग्रंथ-निर्णयप्रभाकर अबभी रतलाममें मौजूद है. जिनकों शकहो जैनश्वेतांबरसंघसें मंगाकर देखे.