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(त्रीस्तुतिपरामर्श.) (टीका,) प्रावृत्तस्य-अल्पवृष्टी गंतुं कल्पते, - (माइना,) कमवारीशमें कंबल ओढकर गोचरीजाना स्थविकल्पीमुनिकों हुक्महै, जिनकों शकहो कल्पसूत्र निकालकर साधुसमाचारीका पाठ देखे, वारीश बहुतहोतीहों जिसमे मारे पानीके आहार बेंकाम होजाताहो उस हालतमें गोचरीजाना बेशक मनाहै,
(७) ( दर बयान-महाराजश्री बुटेरायजीका.)
- प्रश्नोत्तर पत्रिका पृष्ट (९) पर मजमूनहैकि-संवत् (१९२१) में बुटेरायजीने व्याख्यानके वख्त मुहपत्ति-न-बांधनेका-मतचलाया,
और संवत् (१४००) के करीब जो श्रीपूज्योने ज्ञान आशातना मिटानेकेलिये आचरण चलाइथी उसका भंग किया,. ...
(जवाब) क्या ! तीर्थकरगणधरोंके वचनोसेंभी श्रीपूज्योंकी चलाईहुइ आचरण बडी होगई, ? हर्गिज ! नही !! तीर्थंकर गणधरोंने जैनशास्त्रोमें किसीजगहनही फरमायाकि-व्याख्यानके वख्त-या-तमाम दिन मुहपर मुहपत्ति बांधो, अगर फरमायाहो कोई बतलावे ? आजतक कोईमहाशय इसबातकों शास्त्रपाठसें सबुत नहीं करसके, जोजो महाशय इसबातकी हिमायत करतेहै शिवाय आचरणा-रूढीऔर-परंपराके दूसरा कोइ सबुत पेश नहीं करसकते, यादरखो ! आचरणा थोडेरोज चलकर टुट जायगी-शास्त्रोका फरमाना हमेशांकेलिये कायम रहेगा, अगरपरंपराकोंही अगाडी लातेहो-तो जो लोग तमामदिन मुहपर मुहपत्ति बांध रखतेहै वे-नही कहेगेंकिहमारीभी परंपराहै और हमारे बडेरोने चलाइहै, फिर उनकों लाजवाब करनेके लिये तुमारे पास क्या सबुतहै, और जो संवत् (१४००) के करीब श्रीपूज्योने आचरणा चलाइ बतलातेहो इस बातके लिये आपलोगोके