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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) चतुर्विसंघका प्रतनीक जैनमें उसकोकहा-जो-खिलाफ हुकम तीर्थकर गणधरके नयामजहबइजादकरे, अशांतिकरनेवाला उसको कहना जो संघमे भेदडाले-और-अपनानयाफिरका कायमकरे, न्यायरत्न अशांतिकरनेवाले नही बल्के ! लेखककीकुतर्करुप अशांतिकों माकुलजवाबोसे मिटानेवालेहै-और-वे-दुनियादार हालतमें-अंग्रेजी-हिंदी-गुजराती संस्कृत चारइल्मके जाननेवालेथे, उनकों खानपानकेलिये घरमें वहुतकुछ मौजूदथा. उनकों दुखकौनसीवातका था-जो-दुखगर्भित-वैराग्यसे दीक्षा इख्तियार करे, ? उनोने अपने आत्मसाधनकेलिये दीक्षा इख्तियार किइहै, गुरुओका प्रत्यनीक कौनहै ? इसपर अकलमंदलोग दर्याफत करे, पर्देके बारेमें न्यायरत्नका फरमाना बहुतदुरुस्तहै, देवमंदिर-और-धर्मशास्त्रकी व्याख्यानसभा पर्दा करना किसीशास्त्रका हुकम नही, मुल्कमारवाड-और-पूरवतर्फ श्रावकोंमें रवाजहैकिजिनमदिरमें पूजा पढाते वख्त-और-धर्मशास्त्रकी व्याख्यानसभाभी
औरतोंकेलिये पर्दा लगातेहै, औरतें व्याख्यानसुननेकी जगह बातें करतीहै, न्यायरत्न इसपरफरमातेहै मंदिर और व्याख्यानसभागें पर्देका क्या कामहै, ? कहिये ! इसमें कौन बेंजा वातहै, ?
कोइशख्श शास्त्रकी वातकों गप्प कहे-और-३इन्साफकी बातकरे तो उसको जबानीताडना देना जैनशास्त्रका हुकमहै. देखो ! रायपसेणीमूत्रमें क्या लिखाहै ? उसपर ख्याल करो, ! ! केशीकुमारजैनाचार्य जब परदेशीराजाके मुल्कमें गयेथे और इसशहरका राजापरदेशी-जब मजहबी बहेसकेलिये उनकेसामने आयाथा-कुतर्क करनेलगा उसहालतमें केशीकुमारजैनाचार्यने उसको साफ कहदियाकि-मूढतराएणं तुमं पयेसीराया,-बतलाइये ! मूढशब्दका माइना क्याहुवा सबुतहुवा मुनिलोगभी कुतर्ककरनेवालोंको जवानी ताडना करे,
देखो ! ज्ञातासूत्रमेंभीलिखाहै तं धीरथ्थुणं अज्जो नागसिरीए