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( त्रिस्तुति परामर्श . )
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में बात मंदिरमें पढनेकी थी, प्रतिक्रमणकेलिये नही, ज्यादे मंदिर होतो - एक एकमंदिरमें एक एक स्तुति पढनाभी. कहा, जैनतत्वादर्शका पाठ यहां देतेहै आमलोग देखे,
( पाठ - जैनतत्वादर्शका, )
पृष्ट (४१७) पर लिखा है - " एक निश्राकृत उसको कहते है जो गछके प्रतिबंधसे बनाहो, जैसाकि - यह हमारे गछका मंदिर है, दूसरा अनिश्राकृत, जिसपर किसीगछका प्रतिबंध नहीहो, इन सर्व मंदिरोंमें तीनथुइ पढना, जेकर सर्व मंदिरोंमें तीनथुइ देते बहुतकाल लगता जाने तथा मंदिर बहुतहोवे - तहां - एक एक जिनमंदिर में, एकएक थुइ पढे, इसवास्ते सर्वजिनमंदिरो में विशेषरहित भक्ति करे, "देखिये ! इसमें प्रतिक्रमणका नाम निशानभी नही, आगे पीछेका संबंध मिलाकर देखना चाहिये, कोई महाशय यह-न-समझेकि - जैनतत्वादर्श में प्रतिक्रमणके वख्त - तीनथुइ - लिखी है,
श्रविधिग्रंथका भी खुलासा बयान करते है, सुनो ! चिमनलालजी सांकलचंदजीकी छपवाइहुइ किताब श्राद्धविधिभाषांतर पृष्ठ (१५२) पर लिखा है कि
(गाथा.)
निस्सकडमनिस्सकड चेइए सव्वेहिं धुइ तिन्नि, वेलंच चेड़ आणिय - नाउं इक्किक्किया वावि, -
(अर्थ) निश्राकृत ते कोगनुं चैत्य-अनिश्राकृत -ते- गछवगरनुं सर्व साधारण चैत्य एवां बने प्रकारना चैत्ये त्रण स्तुति कहवी, एम करतां जो घणीवार लागे