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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) पृछाप्रतिवचनपृष्ट (१७) परतेहरीरहै जो शिथिलाचारीहोतेहैवे-अपने शाताकेलिये अनेक अपवादपदका बहाना करके बुरीबुरी प्रतिसेवना करतेहै, उनके दिखलाये हुवे अपवादिकशास्त्रप्रमाणोंकों देखकर भव्यप्राणियोंकों विस्मित-न-होना चाहिये,---
(जवाब.) शिथिलाचारीकोनहै ? और अपवादमार्गका बहाना कौन लेताहै ? इसपरं फिर गौर करलो ! आजकाल असे कौन जैनमुनिहै-जो-अपवाद मार्गका सहारा-न-लेते हो, ? ख्याल करो ! उत्सर्ग मार्गमें तोजैनमुनिकों उद्यान-बनखंड-या-पहाडोंकी गुफामें रहना फरमाया. आज शहरमें आनकर रहते है कहिये ! यह उत्सगमार्गहुवा-या - अपवादमार्ग, ? उसंगमार्गमें जैनमुनिकों तीसोपहर गौचरी जाना कहा, सौचो ! आज ऐसाकौनकरताह, ? उत्सर्गमार्गमें जैनमुनिकों शून्यागार-बनखंड-या-श्मशानवगेरामेंजाकर ध्यानकरना कहा आज ऐसा कौन करताहै ? उत्सर्गमार्गमें पात्रकों लेप-न-लगे वैसी लुखासुखा आहारलेनाफरमाया, खयालकरो ! आजऐसा कौन करताहै, ? उत्सर्ग मार्गमें रोग पैदा हो तो समताभाव करना मगर दवा नहीं लेना कहा, आज ऐसा कौन करताहै, ? अगर कहाजाय वैसाजमाना आजकल नहीं रहा. न-वैसीताकात रही इसलिये जैसा जमानाहै-वैसी-क्रिया का रतेहै-तो-फिर इसी संडकपरआओ, ! उत्कृष्टता किसबातकी दिखलाते हो ? विद्यासागरभी-तो यही फरमातेहैकि-द्रव्यक्षेत्रकालभावदेखकर चलो, कोरीवातें बनाना क्या ! फायदा, ? अपवादमार्ग-विदून किसीका काम नहींचलता, अगरकोइ कहे हम-कमजोर मार्गकों मंजूर नही करते तो बतलावे-शहरमें आनकर क्यों रहतेहै, पहाडोंकीगुफा-और-बनखंडमें जाकर क्यों नही रहते,-खानपानकी चीजें वहांही मिलजायाकरेगी,अगर-न-मिलेतो-समताभावः करना, क्योंकि-समताभावगैरहना मूनिका