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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) है, जोशख्श-अपने ज्ञानदर्शनचारित्रमें पावंदहै उसकों असंयमी कौन कहसताहै, ? गुणवान्की सबजगह इज्जतहोतीहै, चाहे कोई दूसरा उनकी इज्जतहोती देखकर नाराजरहे-गुणवान्का उससे कोइ नुकशान नही. इजतदारोंकी इज्जत किसीके कहनेसे कम नहीं होसकती,चाहे विद्यासामर हो-या-कोइ दूसराहो-जो-संयम पालेगा वह संयमीकहलायगा, शांतिविजयजीके संयमी कहलानेसें दूसराकोइ नाराज रहे यहभी-एकजमानेकी खूबीहै.___पृछापातिवचम पृष्ट (१९) मजमूनहैकि-रैलयात्रामें पीडेषणा दोष कैसेटलसकता होगा जिसबातका शांतिविजयजीकों घमंडहै किंतु संयम पालनायही शास्त्रकासारहै,
(जवाब.) अगरसंयमपालंनाहीसारहैतो श्रद्धा और ज्ञानक्यौं मजूररखतेहै? पंडितोसें क्यौं ग्रंथबनातेहै? अकेलासंयमपालकरहीबैठेरहनाथा, तत्वार्थसूत्रमेंतोसम्यक्दर्शनज्ञान और चारित्र-तीनोंकेमिलनेसें मोक्षका मार्ग कहा.-और लेखकपुरुष लिखतेहै संयमपालनाही शास्त्रका सारहै, क्या कहना ! लेखकहो-तो-ऐसेही हो, मगर याद रहे ! जैनशास्त्रोंमें अकेला चारित्र कारआमद नही फरमाया, शुद्धश्रद्धा-शुद्ध ज्ञान-और शुद्धचारित्र-तीनोंके मिलनेसेंही काम चलेगा, जो लोग अकेले चारित्रकोही सार बतलातेहै भूलकरतेहै, शिवाय ज्ञानदर्शनके अकेला चारित्र क्या काम देसकताहै, ? शास्त्रोमें हरजह लिखाहै श्रद्धा परमदुर्लभहै, बादउसके ज्ञान-और-ज्ञानकेपीछेचारित्रहे, रैलमें बैठे खानपान-न-करे और जिसगांवमें जाय वहां शुद्ध आहार लेवे फिर पीडेषणा दोष कैसे लगेगा, ? जोजो मुनि-अपनीश्रद्धाके अनुरागी श्रावकोके शाथ विहार करतेहै-वहां पींडेषणा दोष कैसेटलसकताहोगा इसबातपर कोइ खयाल करे,-और जिसबातका शांतिविजयजीकों घमंड बतलाते हो मगर धर्मोपदेशदेना आम मुनिलोगांकी फर्ज है, शांतिविजयजी इसीफर्जकों अदा कररहहै, इसमें घमंडकी कोई बात नही.