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( त्रिस्तुति परामर्श . )
छपना, एकसत्पक्षग्राहीके नामसे - " माहाराजश्री राजेंद्रसूरिनी त्रण थुइ अने 17 संबंधी चरचा चारथुइ का - छापाछपना विवेचनप्रिय जैन बंधुके नामसे - " श्रीसंघने सत्यंवातनी सूचना " - लेख छपना, यहभीतो ज्ञानका प्रकाशही किया है, - श्री पूज्यजी - श्रीधरणेंद्र - सूरिजी - जोकि - सनातन - जैन श्वेतांबर - चारस्तुतिकी - श्रद्धा में पावंदथे - उनोने क्यौं तीनस्तुतिकी प्ररुपना नहीकि, क्या !-वे- तीनस्तुतिकी प्ररुपनाकरना नही जानते थे ? - मगर - वे - कैसे करे ! क्योंकि - जैनशास्त्र के पुरे माहितगार थे, न्यायरत्नका ज्ञानप्रकाशदेखना हो तो उनकी बनाइहुइ मानवधर्मसंहिता- जैनसंस्कारविधि - रिसालामजहब ढुंढिये - और - त्रिस्तुतिपरामर्शजो - आपलोगोकेसामने मौजूद है उनसे देखो, और-वे- धर्मकी तरक्कीके लिये हुवे है इसमें कोई शक नही, -
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( चीठी लिखनेकेबारेमें कल्पभाष्यवृत्तिका पाठहै कि . )
जथ्थविय गंतुकामा - तथ्यवि कारिंतितेसिंनायंतु आरख्खियाइ तेविय - तेणेवकमेण पुछति, -
( वृत्तिः) यत्रापि राज्येगंतुकास्तत्रापिये साधवोवर्ततेतेषां लेखप्रेषणेन संदेशप्रेषणेन - वा- सविज्ञातुं कुर्वति, यथावयं इतोराज्यात् तत्रागंतुकामा अतोभवद्मिस्तत्रारक्षकान् ततः पृछति, यदाह - तैरनुज्ञातं भवति तान् साधून् ज्ञापयंति, आरक्षितादिभिरन्नानु ज्ञातमस्ति भवद्मिरत्र - आगंतव्यं, एषनिर्गमने प्रवेशेच विधिरुक्तः
( माइना . ) जिसराज्यसे साधुलोग दुसरेराज्यमें जानाचाहते हो - तो - पेस्तर उसराज्यमें ठहरेहुवे अपने साधुओंकों लेख भेजकर - या