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(त्रिस्तुतिपरामर्श.)
फिरभाष्यकारने-वन्ना सोलसवसियाला-इसपदसें आठ वर्ण प्रमाणद्वार बयानकिये, इसमें चैत्यवंदनसूत्रके सबहर्फ सोलहसोसेतालीश-बतलाये, सो यहां मयगाथाके दिखलाते है.
" (पाठ चैत्यवंदनभाष्यगाथा (२६) (२७),--) अडसठि अडवीसा-नवनउयसयंचदुसयसगबउया, दोगुणतीस दुसठा-दुशोल अडनउअशय दुवन्नशयं, २६, इअनवकार खमासमण-इरियसकथ्थयाइं दंडेसु, पणिहाणेसु अ अदुरुत्तवन्नासोलसयशीआला, २७,
__(माइना) खास अवचूरिकारमहाराज फरमाते है सुनो! नमस्कारमंत्रके (६८) हर्फ, इछामिक्षमाश्रमणके (२८) हर्फ, इर्यावहिके इछामिपडिकमीउसेलेकर ठामीकाउसग्गतक (१९९) शक्रस्तवके सव्वेतिविहेणवंदामितक (२९७) चैत्यस्तवके अरिहंतचेइयाणंसेलेकर अप्पाणंवोसरामीतक (२२९) चतुर्विंशतिस्तव-यानी-लोगस्सके सव्वलोएतक (२६०) श्रुतस्तवके सुअस्सभगवओतक (२१६) सिद्धस्तवके सम्मदीठीसमाहिगराणंतक (१९८)-और प्रणिधानदंडकके (१५२) इनसबहाँको मिलाने कुल्लमिलान (१६४७) हर्फ होते है, - देखिये ! यहांभी वैयावच्चगराणकेपाठसे सिद्धस्तवमें (१९८) हॉकी गिनति बतलाइ, अगर चोथीथुइमानना-जैनशास्त्रोको नामजुरहोती-तो वैयावच्चगराणपाठ क्यों होता ? अगर वैयावञ्चगराणंपाठ-न-लेवेतो सोलहसोसेतालीस हॉकी गिनती पुरीनही होसकती, इस लिये सबुतहूवाकि-वैयावच्चगराणंकापाठ बोलना तीर्थकरदेवोंका हूकम है, वैयावच्चगराणपाठ सबुतहूवा-तो-चोथीथुइ-खुद-सबुतहूइ, ऐसाकोइ जमामर्द नही जोइसपाठकों जूठा तसव्वरकरसके, और किसकीताका