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त्रिस्तुति परामर्श . )
कुसुमिणदुनिमित्ते - गहपीडवसगामारिरिठभये, वासास णिविज्जुए - वायारि महाजणविरोहे, जंचविभयंलोगे - तं सव्वं निद्दले इमाए विज्जाए, सठ एहे मंगलयरे - पावहरे सयलपावखय सोखदाइ, 'अकाउंमिमे पच्छिते - संथारगंमिउण इम्मणस्सणं, धम्म सरीरस्स- गुरुपारंपरिएणं- समुवलजेहिं तु इमेहिंपरममं तख्खरे हिं- दससुविदिसासु-अहिहरिगुडपंतवाणतंतर पिसायादीणं - रख्खणं करेज्जा - उबठाणं -
देखिये ! इस पाठ में खुलासा जाहिर है कि साधुलोग भी हमेशां बर-बख्त सोने के इस महाविद्याकापाठकरे, अगरचे ! न करे-तो- उसकों प्रायछित है, हरवख्त तीनथुइमाननेवाले कहते है हमपंचांगो पर पाबंद है, अब बतलाइये ! यह पाठ पंचांगी का है - या - पंचांगी केबहारका ? अगर पंचांगी का है-तो- फिर मंजुरकरो, और कुबुलकरोकि- देवकी मदद लेना तीर्थकरोने फरमायाहै,
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फिर इसी महानिशीथसूत्रका पाठहै कि साधु श्रुतदेवताकीविद्याका-लाख दफे जाय करे,
( पाठ - महानिशीथसूत्रका )
वंदितु चेइए सम्मं - छठं भत्तेण परिजवईमं, सुयदेवयं विज्जं - लख्खहा चेइयालए. उवसंतो समभावेणं- एकचित्तो सुनिच्छिओ, आउतो अव्यवखितो - रागरइअरइवज्जिओ,
(माइना.) बेलेकातपरकेमुनि-जिनमंदिरमें - जाय, और नम