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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) तीनस्तुति प्राचीनताकिताब-सफह (८) पर मजमूनहकि-महाराज-राजेंद्रसारजीने तीनथइ तीसवर्षसेनिकालीयहकहना मूर्खाका कामहै,
(जवाब.) आवश्यकनियुक्तिमे प्रतिक्रमणकेवख्त-तीनथुइकहीहै ऐसा कहना अज्ञानीयोंकाकामहै, भद्रबाहुस्वामीने उक्तनियुक्तिमें एसा नही कहा, चोथीथुइकों वीतरागदेवकीवैरिणीकहना-बडेकमअकलोंका-कामहै, क्योंकिकिसीसूत्रकीपंचागीमेंऐसानहीकहा, अगरकहाहै-तो-कोइ पाठवतलावे, चोथीथुइ आचार्यश्रीहरिभद्रसूरिजीनेचलाइ, यहकहनाभीअल्पज्ञोकाकामहै, अगर कोइ तीनथुइकोमंजुररखनेवाला इसबातका सबुतरखताहो. पेशआवे, कोरीबातोंसे काम नहीं चलेगा, इनहीसबुतोंसें कहनेवालेकहतेहैकि-प्रतिक्रमणमें-तीनथुइकरना किसीशास्त्रमेंनहीलिखा, और तीसवर्षसे चलाहै,-खयाल करो ! राजेंद्रमुरिजीजब-श्रीपूज्य-श्रीधरणेंद्रसूरिजीकेशाथ विचरतेथे-प्रतिक्रमणमें कितनी थुइकरतेथे ? लेखक इसबातकों जाहेरकरे, और एकजैनधुके नामसें-सुरत-खुदावक्षप्रेस-नाणावठके पतेसेजो "जाहिरखबर" छपीथी, उसकोंदेखे, उसमें जहां-चुनीलालजी छगनलालजीने राजेंद्रसूरिकों पुछाहैर्कि-आपका गछ क्या है ? तब मूरिजीनेकहाहै-"हवणां सुधर्म गछछे "-यानी इसवख्त हमारा सुधर्मगछहै, इससे सबुतहुवा पेस्तरकोइ औरगछहोगा,
हाक-पतिक्रमण
जेंद्रसरिज हालखा, और
तीनस्तुतिप्रीचानता किताब-सफह (९) पर बयानहैकि-तीनस्तुति-जबतककही जाय तबतकमंदिरमें ठहरनाचाहिये, कारणपरत्व विशेषभी ठहरना,
(जवाब.) खूबकहा ! घूमघामकर उसीठिकाने आये, जोकि